शीतल शहर से गांव के स्कूल के लिए बस से आती और गांव के मेन रोड से अंदर सरकारी शाला में ढाई किलो मीटर तक चलकर पहुंचती, जैसे ही स्कूल लगता तो तब बच्चे उसे कक्षा में आते देख कहते देखो – देखो शीतल मेडम आ रही है, सब बस्ता खोलकर बैठ जाते। इतना उत्साह देखकर वह अंदर ही अंदर से बहुत खुशी महसूस करती।
एक दिन की बात है जब मैडम की साड़ी में नीचे की तरफ गीली हो रही थी ,तब दीपक ने रास्ते में देखकर कहा – मैडम जी आपकी साड़ी नीचे से गीली हो रही है, आप मेरी मां की साड़ी पहन लो , और हमारे घर चल कर चाय पीलो ….
तब इतने अपने पन को देखकर वह अनुशासन की पक्की होने के कारण बोली – कोई बात नहीं दीपक…अभी स्कूल पहुंचने में लेट हो जाऊंगी। और प्रार्थना का समय होने वाला है, तुम भी जल्दी पहुंचो। तब वह कहता- मैडम आपकी साड़ी ये तो नीचे से गीली है। तब वो कहती- थोड़ी देर में मेरी साड़ी पंखे की हवा से सूख जाएगी । तुम ज्यादा मत सोचो
गाँव की कच्ची रोड और बारिश में कीचड़ के कारण था। इसी वजह से दीपक आज बोल पाया था,वही वह बड़ी मुश्किल से जैसे तैसे घर का काम निपटा कर उसे समय से बस में बैठना पड़ता,नहीं तो बस छूट जाए सो अलग परेशानी होती थी……
वह तीन साल नौकरी करने के बाद उसका दूसरे स्कूल में जाना भारी पड़ रहा था,एक दिन गांव के विद्यार्थियों को पता लगा कि शीतल मेडम का स्कूल से ट्रांसफर हो गया तो बच्चे बहुत परेशान हुए। उन्हें लगा कि मेडम जब से स्कूल में आई है, तब से हमारी तो सोच बदल ही गयी। मैदान में कुछ बच्चे आपस में बात कर रहे थे ..
काश कितना अच्छा हो हमारी शीतल मैडम जी ये स्कूल छोड़ कर कभी ना जाए, वो हमें कितना अच्छा पढ़ाती है।यही बात जब द्विवेदी सर ने सुनी तो वो उनसे कहने लगे बच्चों ये सरकारी आर्डर है, इसे बदला नहीं जा सकता है।ये सुनकर बच्चे उस समय कुछ नहीं बोले। घर में जाकर बच्चों ने अपने- अपने घर में ये बात बताई कि शीतल मैडम की
बदली हो गयी है अब उनकी जगह कोई और नयी टीचर आने वाली है, तब उनके माता पिता भी कहने लगे …पता नहीं अब शीतल मैडम जैसी कोई टीचर आती है भी या नहीं…पर शीतल मैडम का स्वभाव ही कितना अच्छा है,अब क्या कर सकते हैं । खैर….
इस तरह गांव के किसान ,,दुकानदार और वहाँ भी महिलाए भी इतनी प्रभावित रहती कि उनसे मिलने को आतुर रहती कि बच्चों की पढ़ाई के प्रति लगाव को देखकर उन्हें लगता, मैडम ने जैसे कोई जादू कर दिया हो। इस कारण गांव वाले भी उनक विदाई वाले दिन दुखी होकर वहां गेट के पास खड़े हो गये थे । शीतल मैडम भी गांव वालों के बीच इतनी रम गयी। कि उन्हें वहां से जाते हुए ऐसा लग रहा था,जैसे एक बेटी की विदाई हो रही हो । उस दिन वो विदाई वाले दिन पूरा गांव गेट के पास इकट्ठा हो गया। कोई फल की टोकरी लिए खड़ा था। कोई सब्जी का थैला लिए खड़ा था। यहा तक वहाँ हरिया किसान अपने बैलगाड़ी सजाए खड़ा था। वो हरिया ही था ,जिसने शीतल मेडम को स्कूल का रास्ता पहली बार बताया था, पहली बार पहुंचने पर बच्चों ने उन्हें घूर-घूरकर देखा। उन्हें पहला दिन आज भी याद आ रहा था। वह उस खिड़की की ओर भी बड़ेे ध्यान से देखे जा रही थी। तभी द्विवेदी जी ने कहा- शीतल मैडम क्या देख रही है??
तब वो बोली -आज भी मुझे पहला दिन याद आ रहा है कि कैसे दीपक खिड़की के पीछे छिप गया था। और बाकी बच्चे भी जिज्ञासा से देख रहे थे और कुछ तो घूर कर देख रहे थे।
अब तो मेरे साथ यहां की ढेरों यादों का पिटारा है।
आज शीतल मेडम की आंखों में आंसू भर आए थे। आज दीपक, मीना, शानू, नवीन, माला, पप्पू सब उनके चेहरे देख रो रहे थे। ये देखकर वो भी भावुक हो रही थी।उन्हें वो सब याद आ रहा था जो उस समय हुआ था,और सोचने लगी। कि यहाँ कैसे वहा दो कमरों का स्कूल देखा,साथ ही छत चूती हुई देखी। तब तो कितनी अलग स्थिति थी।पूरी दीवार गीली होने के साथ स्कूल के मैदान में पानी भरा रहता था, वो अलग…. बच्चे स्कूल आते ही नहीं थे , पूरे स्कूल में उन्हें दस बच्चे ही नजर आए थे।उन्हें देखकर बस शीतल सोच रही केवल दस बच्चे…. उसने सह अध्यापक द्विवेदी से कहा – द्विवेदी जी इतने कम बच्चे पढ़ाई कैसे कराते होगें। देखिए स्कूल की व्यवस्था भी कैसी है ?पानी ही पानी चारो ओर …. ये तो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, फिर कैसे पढ़ाई होगी??
वहां के प्रधानाचार्य विश्वकर्मा जी से बात करने पर वे बोले – क्या करे मैडम … ये सरकारी स्कूल है। हमने शिक्षा अधिकारी तक बात पहुंचाई है। सरकारी स्कूल का यही हाल रहता है। तब वह बोली- ” सर हम अपने स्तर पर व्यवस्था कर सकते हैं। ताकि बच्चे स्कूल और शिक्षा के महत्व को समझे और हमें आंतरिक रुप से जागरूक करना होगा।ताकि बच्चे प्रति दिन उपस्थित रहे। फिर द्विवेदी जी ने सहमति जताई।
धीरे- धीरे वहाँ कमरों में पन्नी लगाई गई। और बाहर मोटी तिरपाल लगाई गई। ताकि पानी से बचाव हो। और वह दिन पर दिन बच्चों के विकास के लिए कोशिश करती ,ताकि बच्चे प्रेरित हो। उसके आने से गांव के लोगों में पढ़ाई के प्रति जागरूकता आई। स्कूल के बच्चों की संख्या जो सत्तर थी वो आज दो सौ तक पहुँच गयी। वह जब भी बच्चों का जन्मदिन होता तो पेंसिल, रबर, कॉपी गिफ्ट देती, और तो और टीका करके टाफी से मीठा मुंह कराती। इस तरह बच्चों की भी शीतल प्यारी मेडम बनती जा रही थी।
तब द्विवेदी जी कहते- अरे शीतल मेडम काहे को इतना करना ,हमें तो सरकार तनख्वाह देती है, हमें तो अपने काम से मतलब होना चाहिए कि बस पढ़ाई कराओ और अपनी छुट्टी,,,,,, इतना कुछ करने से हमें क्या मिलेगा।
तब शीतल कहती – देखिए मैं आपकी सोच तो नहीं बदल सकती पर मैं जानती हूँ, हमारी कोशिश ही बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ा सकती है।
तब द्विवेदी जी उदासीन स्वर में बोले- ठीक है मैडम आपको जैसा करना है तो कीजिये, मैं तो उतना ही करुंगा ,जितना जरुरी होगा जिसकी मुझे तनख्वाह मिलती है।
ऐसी बात सुनकर शीतल मैडम कहती- द्विवेदी जी ये आज के बच्चे हमारे देश के कल का भविष्य है। आज नींव सही नहीं डालेंगे तो हमारे देश का क्या होगा ,,आप सोचों ये हमारे पढाए बच्चे ही कितना बढ़ेगें और वह देश के साथ गांव, शहर सभी तरह से विकास करेंगे। यही बात विश्वकर्मा जी जब सुनते हैं तो शीतल जी से प्रभावित होते है, वे शीतल मैडम के साथ से गांव में शिक्षा के प्रति लोगों जागरूक करने में उसका साथ देते।
कुछ ही दिनों में शीतल मेडम के कारण बच्चों की संख्या में वृद्धि होती है, सत्तर से दो सौ बच्चों का स्कूल बन गया,सकारात्मक सोच के कारण चारो तरफ फूलों के पेड़ लगाए गए, समय पर प्रार्थना होने लगी। गांव के बच्चे पढ़ाई के प्रति उत्सुक रहने लगे। इतना सब उनकी मेहनत के कारण संभव हो पाया। आज जब शीतल मेडम को विदाई के समय पुष्प गुच्छे देकर नारियल और शॉल देकर प्रधानाचार्य जी ने उनका सम्मान किया तो मैदान में बच्चों की तालियाँ बज पड़ी। ये बात किसी को बतानी नहीं पड़ी।
सभी बच्चे बहुत भाव से देख रहे थे। हमारी मेडम अब यहाँ नहीं आएगी ,फिर हम कब मिलेगें। जैसे ही स्कूल से बाहर जाती है तब बच्चे भावुक होकर उनके पैर छूने लगते हैं, तब शीतल मैडम जी कहती- बच्चों मुझे भी यहाँ से जाते हुए बहुत ही बुरा लग रहा है। तुम लोग बहुत मेहनत करके पढ़ाई करना और अपने माँ बाप के साथ देश का नाम रोशन करना। और सबको आशीष देकर आगे बढ़ती है तभी वहां द्विवेदी जी और विश्वकर्मा जी कहते-आपके यहाँ आने से हमारे स्कूल की तस्वीर ही बदल गयी है। आपके आने से यहाँ लोगों की सोच के साथ हमारी सोच भी बदली है ,वह कभी ना भूल पाएंगे। आप सदा तरक्की करे और खुश रहे।
इस तरह द्विवेदी जी के साथ गांव के लोगों की सोच को शीतल जैसी शिक्षिका ने बदल दिया। जब भी वहां कोई नया शिक्षिका या शिक्षक आता तो सब शीतल मैडम को याद करते।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया
जबलपुर
मासिक चैलेंज के अन्तर्गत कहानी