रोज की तरह अपने सारे निपटाकर मानसी अपने बच्चों के पैरों में मालिश करने लगी।उसने पहले छोटे मनु की मालिश की और फिर बड़े अंकित के पास आई।पैरों की मालिश करने के बाद उसने हाथों में तेल लगाना चाहा तो हथेली लाल लकीरें देखकर वो चौंक उठी।
उसने सोए हुए अंकित के गालों पर आँसू की बूँद भी देखी तो वो कराह उठी।इधर कुछ दिनों से वो अंकित का कान भी लाल देख रही थी।
पूछती तो बेटा कह देता,” कुछ नहीं मम्मी…।”और आज…।एक मन तो किया कि अभी उठाकर उससे पूछे लेकिन फिर सोची कि सुबह पूछ लूँगी।उस रात उसे नींद नहीं आई।रह-रहकर बेटे की हथेली पर पड़ी लकीर उसे बेचैन कर रही थी।
अगली सुबह उसने मनु को तैयार करके नाश्ता दे दिया और अंकित के बालों पर कंघी करते हुए पूछ बैठी,” अंकित, तुम्हारी हथेली पर निशान कैसे हैं?”
” कुछ नहीं मम्मी..।” कहते हुए अंकित ने हड़बड़ा कर अपना हाथ पीछे कर लिया।तब मानसी का स्वर तीखा हो गया,” तुम्हारे कान पर लाल स्पाॅट देखा था और आज..क्या बात है..किससे झगड़ा किया है?” तब अंकित के आँसू निकल आये,” किसी से नहीं मम्मी..मैं लंचब्रेक में आरव से बात कर रहा है
तो अर्चना मैम ने देख लिया कि हम दोनों हिन्दी में बात कर रहें तो…।” कहते हुए उसने अपनी गर्दन झुका ली।” सुनकर मानसी आग-बबूला हो उठी।बोली,” ठीक है..तुम दोनों अभी स्कूल जाओ..मैं आती हूँ।”
” नहीं मम्मी..मिस से कुछ मत कहना वरना..।” अंकित भयभीत था।अपने मनोभावों को छुपाकर चेहरे पर मुस्कराहट लाती हुई मानसी बोली,”
तुम्हारी मिस से नहीं, तुम सब को देखने आऊँगी।” उसने बेटे को आश्वस्त किया और दोनों को बस तक छोड़ कर पति का लंचबाॅक्स तैयार करने लगी।साथ ही, अपने व्हाट्सअप ग्रुप पर बेटे के साथ हुई घटना को भी शेयर करते हुए लिख दिया कि मै दस बजे स्कूल जा रही हूँ।
पति को ऑफ़िस भेजकर वो स्वयं भी तैयार हुई और पर्स लेकर ऑटोरिक्शा से स्कूल पहुँचकर दनदनाती हुई प्रिंसिपल के केबिन में पहुँच गई।उसके बदले तेवर देखकर प्रिंसिपल ने उसे बैठाते हुए पूछा कि क्या बात है..आप..।
बस मानसी शुरु हो गई,” एक चौथी कक्षा में पढ़ने वाले छात्र को हिन्दी में बात करने पर प्रताड़ित करना क्या उचित है? कक्षा में तो वो अंग्रेजी में उत्तर देता है..।क्या अपने देश में मेरे बेटे को हिन्दी में बात करना अपराध है..क्या उसे इतनी भी आज़ादी नहीं है
कि अपने मित्र से मातृभाषा में बात कर सके।हमारे विवेकानंद जी ने जब शिकागो के सभागार में बहनों और भाईयों..कहकर संबोधित किया था, तब तो सभागार तालियों से गूँज उठा था और आपके विद्यालय में..यहाँ क्या ब्रिटिश राज है…।
” वह अनवरत बोलती जा रही थी।प्रिंसिपल ने उसे दो-तीन बार टोका भी, listen me..लेकिन वो बोलती जा रही थी।तब प्रिंसिपल ने मिस अर्चना को बुलवाया।वो अपनी दलील देने लगीं तभी कुछ अन्य माताएँ भी मोर्चा लेकर आ गईं, हिन्दी पर प्रहार नहीं सहेगें..मातृभाषा के साथ अन्याय नहीं सहेंगे।
विद्यालय में शोर होता देखकर विद्यार्थी और अध्यापिकाएँ भी कक्षा से बाहर आने लगें।माहोल बिगड़ता देखकर प्रिंसिपल के कहने पर मिस अर्चना ने सभी से माफ़ी माँगी और कहा कि आगे से आप लोगों को कोई शिकायत नहीं होगी।मानसी भी नम्र हुई और बोली कि कक्षा में पढ़ाई करते समय विद्यार्थी हिन्दी में बोले तो आप उन्हें प्यार-से समझाइये।
प्रिंसिपल के कमरे से बाहर आने पर महिलाओं ने उसे घेर लिया,” वाह मानसी..तुमने तो कमाल कर दिया..तुम तो..।” तभी मानसी के पति आ गये और बोले,” अब घर भी चलोगी हमारी लक्ष्मीबाई..।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरू