अपनी मर्ज़ी से – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  सात साल पहले गंगाराम काम की तलाश में अपने गाँव से मुंबई आया था।महीनों इधर-उधर भटका..भूखा-प्यासा फुटपाथ भी सोया, तब जाकर उसे फ़र्नीचर बनाने के एक कारखाने में काम मिला।धीरे-धीरे उसने अपने रहने के लिये जगह भी ले ली और अपने परिवार को भी ले आया।

     सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन अचानक वहाँ के मंत्री ने अपने गुंडों से लोगों को डराना-धमकाना शुरु कर दिया।जो कोई मराठी भाषा नहीं बोल पाता, उसे प्रताड़ित किया जाने लगा।गंगाराम घबरा गया..उसने अपने दोस्त मणिकांत को अपनी समस्या बताई कि भाई..

हम तो दसवीं तक ही पढ़ पाये हैं..अब मराठी भाषा कैसे..।मणिकांत ने हँसते हुए कहा,” डरने की कौनो बात नहीं है..हम हैं ना तुमरे साथ..।” फिर भी इधर-उधर से कुछ सुनता तो वो भयभीत हो जाता।इसी चिंता के साथ एक दिन वो कारखाने से लौट रहा था

तो रास्ते में तीन-चार लोगों ने उसे घेर लिया और उससे मराठी भाषा में कुछ पूछने लगे।उसके तो पसीने छूटने लगे..आवाज़ लड़खड़ाने लगी।उनमें से एक ने उसका काॅलर पकड़ना चाहा कि तभी वहाँ पर मणिकांत आ गया और हँसते हुए उनसे बोला,” का भईया..हमरे भाई से तुमको का दिक्कत है?”

एक ने मराठी में कुछ बोला तो मणिकांत हा-हा करके हँसा और बोला,” भईया..ई जो तुम मराठी-मराठी कर रहो तो बताओ कि जब तुम लोग बाढ़ में डूब रहे थे तो का मराठी भाषा में मदद माँगी थी..।अच्छा ई बताओ कि तुम अमिताभ बच्चन को जानते हो?”

     ” हाँ..हमने उसकी दीवार, कुली, बागवान..सिनेमा देखी है..।” चहकते हुए एक बोला तब मणिकांत ने उसे आड़े हाथों लिया,” तो तुम लोग हिन्दी भाषा की सिनेमा देखोगे..गाना गाओगे..हमारा लिट्टी-चोखा खाओगे

और हमें ही धमकाओगे..।मैथिली ठाकुर का नाम सुनो हो.. भोजपुरी- मैथिली में भजन गाकर विदेश तक चली गई और अबकी गणपति पूजा में मुकेश अंबानी ने उसे अपने घर भी बुलाया।तुम लोग तो मराठी यहाँ ही बोल सकते हो लेकिन हमारी हिन्दी तो विदेश में भी अपनी धाक जमा आई।

तो सुनो भाई..।” कहते हुए उसने एक का काॅलर पकड़ा और बोला,” हम तो मराठी नहीं बोलेंगे लेकिन अब अगर तुम लोगों ने हमरे दोस्त को परेशान किया तो तुम्हें मारेंगे दस और गिनेंगे एक..।मज़दूरी करने वाले हाथ हैं हमारे…ईंटा-पत्थर तोड़ते हैं और हड्डी भी..।”

कहते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो तीनों दो कदम पीछे हो गये।तब मणिकांत गंगाराम से मराठी में बोला,” चलो भाई..।”

    ” अरे!..तुम तो मराठी बोलते हो..।” एक गुर्राया, तब मणिकांत ने भी उसे मराठी में घुड़की दी,” बोलते हैं..हर भाषा बोलते हैं लेकिन अपनी मर्ज़ी से..तुम्हारे आका(मालिक) की ज़ोर-जबर्दस्ती से नहीं…का समझे..।”

मणिकांत के तेवर देखकर तीनों भाग गये, तब मणिकांत ने गंगाराम को समझाया कि डरना नहीं है किसी से…शान से अपनी भाषा बोलना..और जो आँखें दिखाये तो उसकी आँख निकाल लेना…हा-हा..।     

                          विभा गुप्ता

                       स्वरचित, बैंगलुरु

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