स्वाति अपने कमरे में लेटी हुई अपने अतीत और वर्तमान समय में आये हुए परिवर्तन का आंकलन कर रही थी और उसे अपने मन में एक सघन पीड़ा का अनुभव हो रहा था।
अभी कुछ महीनों पहले की ही तो बात है कि स्वाति की आलोक से शादी हुई थी और वो भी प्रेम विवाह…स्वाति को सजने संवरने का बहुत शौक था।उसकी बड़ी बड़ी आँखे हमेशा काजल से सजी रहती थीं…..।अपनी तरह घर को भी सजाने के बड़ा शौक था उसे और जब साथी मनचाहा हो तो
अरमान भी दोगुने हो जाते हैं। बहुत भाग्यशाली होते हैं वो लोग जो किसी को चाहें और वही जीवनसाथी के रूप में मिल जाये।बस यही सोच कर स्वाति इतराते हुए ससुराल आयी थी कि अब अपने घर को प्रेम से संभालूंगी पर असल जिंदगी पिक्चरों से बहुत अलग होती है।
शादी के तीन महीने बाद ही स्वाति की मां का निधन हो गया,वो तो समझ ही न पाई की ज़िंदगी ने मनचाहा पति देकर जीवनदायिनी माँ को ही हमेशा के लिए छीन लिया। वो रो रोकर बेहाल थी,ऐसे में आलोक ने उसे ढांढस बंधाया कि मेरी माँ है तो, अब वो ही तुम्हे तुम्हारी माँ जैसा प्यार देंगी।
स्वाति भी माँ को खोने के बाद अपनी सास की तरफ झुकने लगी थी ,क्योंकि प्रेम विवाह हुआ था और उसके मायके वाले इस
शादी के पक्ष में नही थे पर बेटी की खुशियों के आगे झुककर उन्होंने शादी कर दी थी और अब माँ को खोने के बाद वहां ऐसा कोई नही था जिससे वो अपने मन की बात कह सके और दूसरी तरफ डरती थी कि कहीं भाई भाभी ताने न दें कि हम तो पहले ही कहते थे कि यहाँ शादी मत करो।
धीरे धीरे स्वाति घर गृहस्थी में व्यस्त हो गयी और समय के साथ जीवन के नजदीकी रिश्तों की तमाम परतें उतरती चली गयी।जिस मायके पे उसे नाज़ था,उन लोंगो ने अपनी तरफ से कभी कोई प्रयास नही किया स्वाति से रिश्ता निभाने का।औपचारिकताएं रह गयी थीं जो अवसर पर निभा दी जाती थीं। सच ही कहा गया है कि मायका मां से ही होता है।
दूसरी तरफ जिस सास में वो मां का अक्स ढूँढा करती थी वो भी कम नही थीं। जब उनकी बेटी आ जाती तब वो स्वाति को नौकरानी समझने लगे जातीं।सारा दिन दोनों माँ बेटी कानाफूसी में ही बिता देतीं,मां अपनी बहू की निंदा करती तो बेटी अपनी सास की..।
स्वाति समझ न पाती कि आखिर उससे क्या गलती हो जाती है जो उससे सासूमाँ खुश नहीं रहतीं।उसको इस बात का बड़ा मलाल था कि वो अपनी सास का प्यार नही पा पाई।
वो सारे काम करती फिर भी कभी प्रोत्साहित करने के लिए सासूमाँ एक शब्द नही बोलतीं वहीं अगर बेटी एक कप चाय बना देती तो यशगाथा रुकती नही थी। वो सबको गरम रोटियां खिलाती पर उससे ये पूछने वाला कोई नही था कि तुमने खाया या नहीं?..
घर के किसी सदस्य की तबीयत खराब होती तो वो सबके खाने पीने और दवा का ध्यान रखती पर जिस दिन वो बीमार होती उस दिन कोई एक कप चाय भी न पूछता।
इस तरह के बर्ताव ने उसको एकाकीपन के बीच लाकर खड़ा कर दिया था,अब वो असमंजस में थी कि वो किसके लिए क्या कर रही है?क्यों कर रही है?
उसकी आँखों की कोरें अब काजल की जगह आँसुओ से गीली रहती थीं क्योंकि वो अत्यंत भावुक थी।
आलोक काम के दबाव में इस कदर उलझा था कि स्वाति के बदले हुए भावों पर उसका ध्यान ही न गया पर जैसे ही वो काम के बोझ से कुछ हल्का हुआ तो उसने ध्यान दिया कि बीते कुछ समय से
स्वाति पहले जैसी नही है। वो बहुत चुप चुप रहने लगी है,शादी के पहले वो बेहद चुलबुली थी,पर अब शांत होने लगी है,तब उसने अपने अव्यवस्थित दिनचर्या का ध्यान करते हुए पाया कि कई महीनों से वो
अपनी पत्नी को वक़्त ही नही दे पाया। उसकी पत्नी के मन में क्या चल रहा है,ये पूछने का समय ही नहीं था उसके पास । उसके बाद आलोक ने मन ही मन ये प्रण लिया कि जिस लडक़ी को वो अपने प्यार के बंधन में बांध के इस घर में लाया था
और जिस लड़की ने किसी की परवाह न करते हुए सब कुछ छोड़ दिया उसकी खुशियों के लिए हरसंभव प्रयास करना मेरा कर्तव्य है।
आलोक ने दस दिन की छुट्टी ली और स्वाति को वक़्त देना शुरू किया।दो तीन दिन के लिए तो वो उसे शहर के बाहर घुमाने ले गया फिर लौटकर भी स्वाति के साथ ही रहता। किचन में हाथ बंटाता, सर दर्द होता तो सर दबा देता और साथ मे खाना खाता और ढेर सारी बातें करता।
इन सबके साथ जो सबसे बड़ा योगदान था वो ये कि आलोक ने अपने माता पिता के साथ स्वाति को घुलने मिलने में बहुत मदद की। साथ ही यह भी समझाया कि तुम मेरी मां से अपने रिश्ते को भावनात्मक रूप से मजबूत होने के लिए थोड़ा समय दो,वो धीरे धीरे तुमसे जुड़ने लगेंगी,और इसके लिए मैं पूरी कोशिश करूंगा ।
इन छोटे छोटे प्रयासों से स्वाति के हताश हो चुके मन और जीवन को एक नई दिशा मिल गयी।अब उसे समझ आ गया था कि उसे क्या करना है और क्यों करना है।
उसने आलोक को दिल से धन्यवाद दिया और कहा,”आपने मेरे निराश मन को जीने की वजह दी है वरना अवसाद मुझे चारों तरफ से घेर चुका था,
मैं मां के न रहने के बाद से पूरी तरह दिशाहीन हो गयी थी हर तरफ निराशा ही दिखती थी ऐसे में आपने मुझे अपने प्यार और विश्वास से संभाल लिया, मैं कभी आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।”
आलोक ने प्यार से कहा,”तुमने कभी मुझे और मेरे परिवार को शिकायत का मौका दिया ही नहीं। गलती तो मेरी है जो मैं तुम्हे समय नही दे पा रहा था और गलती मेरी माँ की भी है जिन्होंने तुम पर बीते कठिन समय पर भी तुम्हे मातृवत स्नेह से दूर रखा।
उनकी तरफ से भी मैं तुमसे मांफी मांगता हूं।तुम मेरी ज़िंदगी का आधा हिस्सा हो और तुम्हे खुश रखना मेरी ज़िम्मेदारी है।अब इन आँखों मे काजल ही रहेगा आँसू नहीं….”।।।।।
स्वाति आलोक के कन्धे पर सर रखकर सुनहरे भविष्य की कल्पना में खो गयी।।।।
दोस्तों,जीवनसाथी अगर समझदार और साथ देने वाला हो,तो जीवन में आने वाली हर कठिनाई को सहने की ताकत आ जाती है और रिश्तों में बहुत कुछ बिगड़ने से बच सकता है।
अगर आपको मेरी ये कहानी पसंद आई हो ,तो कमेंट अवश्य करें,ताकि मैं अपनी कमियों और गलतियों में अपेक्षित सुधार कर सकूं।
धन्यवाद।।
सिन्नी पाण्डेय