शादी होकर माधवी का गृह प्रवेश संयुक्त परिवार में हुआ था। तब से वो परिवार के साथ बड़े प्रेम भाव और अपनत्व से रह रही थीं। परिवार के नाम पर उनका अपना परिवार -पति विमल,तीन बच्चे और स्वयं माधवी।दूसरा परिवार था उनके देवर शिवम, उनकी पत्नी और एक बेटी। दोनों भाइयों का परिवार आपसी प्रेम, विश्वास से एक सूत्र में बंधा हुआ था।
विमल जी और शिवम जी शहर में अच्छे पद पर कार्यरत थे।
दोनों भाइयों का गांव में भी खेती-बाड़ी भी थी, जिसकी देखभाल उनके ही एक रिश्तेदार भाई विनोद करते थे। फ़सल सीजन में कोई एक गांव जाकर पैदावार का हिसाब किताब कर आता था। परिवार संगठित होकर रह रहा था।
पांच वर्ष बाद अनहोनी घटना हो गई। विमल जी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। अब शिवम जी पर ही माधवी उनके बच्चों का और गांव के खेत की देखभाल का जिम्मा आ गया।
पति के देहांत के पश्चात माधवी अपने बच्चों के साथ परिवार में ही रहना श्रेयस्कर समझ रहने लगीं। खेती- बाड़ी के विषय में भी दखल देना उचित नहीं समझा। सबकुछ देवर शिवम जी पर छोड़ दिया। देवर देवरानी ने भी सम्मान और सहयोग से अपने साथ रखा।
एक बार भाई विनोद शिवम जी के घर आए। सभी से अच्छी तरह बातचीत किया और दो दिन बाद वापस लौट गए। लगभग एक महीने बाद उनकी बेटी सुशीला घूमने के बहाने से आईं। एक दिन एकान्त पाकर माधवी से बोलीं, ” आप अपने खेती-बाड़ी के बारे में कुछ जानतीं हैं? कभी आतीं नहीं
तो क्या जान पाएंगी। पिता जी आपको बताने ही आए थे, पर बता नहीं पाए। हमने सोचा कि हम ही आकर बता दें। इसीलिए हम आए। शिवम चाचा आपका हिस्सा बेच रहे हैं। कुछ पता है कि कितना दाम लगाए हैं । चुपचाप आप बैठी रहेंगी तो शायद एक कौड़ी भी आपको न मिले। मैं तो कहूँगी
कि आप आइए और अपना हक का पैसा लीजिए।”
इतनी लम्बी व्याख्या सुनने के बाद माधवी ने अपना मुंह खोला, ” सुशीला! मेरे परिवार के प्रति तुम मुझे उल्टी पट्टी मत पढ़ाओ। मुझे सही ग़लत की परख है। अपने बच्चों को लेकर मैं इसी परिवार में जी रही हूँ । किसी भी तरह का कोई अभाव नहीं है। बच्चे अच्छे से पढ़ रहे हैं। तुम चाहती हो कि मैं
इनसे बैर मोल ले लूँ ,वो भी कुछ पैसों के लिए। खेती-बाड़ी शिवम बाबू देख रहे हैं। जो उचित समझेंगे, करेंगे। मेरा दखल देना उचित नहीं है।” ” मैं आपकी भलाई सोचकर यहां आई थी। आपने मुझे ही दोषी बना दिया” खिन्न मन होकर सुशीला ने कहा। माधवी ने पुनः कहा, ” मेरी भलाई के उद्देश्य से
आई हो, इसके लिए आभारी हूँ पर ऐसी उल्टी पट्टी पढ़ाकर परिवार में दरार डालने की कोशिश मत करो।” अपनी मशविरे का समर्थन न पाकर सुशीला को निराशा हुई। एकाध दर्शनीय स्थल घूम घाम कर वह गांव चली गई।
विषय – उल्टी पट्टी पढ़ाना (ग़लत बात सिखाना)
गीता अस्थाना