शारदा देख रही थी कि जबसे उसकी प्यारी पोती गोपिका का विवाह तय हुआ है, उसके चेहरे की मुस्कान और हॅसी नकली हो गई है। वह बाहर से सबको दिखाने के लिये हंसती मुस्कुराती है लेकिन उसके अन्दर कोई द्वंद्व चलता रहता है।
ऐसा भी नहीं है कि नवल से विवाह के लिये किसी ने उससे जबरदस्ती की है। जब नवल का संबंध आया था तो बेटे बहू ने गोपिका से पूछा था कि यदि उसके जीवन में कोई हो तो वह बता दे, उन्हें अपनी इकलौती बेटी की खुशी से अधिक कुछ नहीं चाहिये लेकिन गोपिका ने मना कर दिया।
नवल और उसके परिवार से मिलने के बाद गोपिका से दुबारा पूछा गया कि क्या वह इस परिवार की बहू बनना चाहती है? गोपिका ने तुरंत हॉ कह दिया। शारदा, बेटे बहू को भी नवल और उसका
परिवार बहुत पसंद आया। नवल या उसके परिवार का फोन आने पर गोपिका बहुत अच्छी तरह
सबसे बात करती थी। कहीं कोई कमी दिखाई नहीं पड़ रही थी लेकिन नवल का फोन आने पर गोपिका के चेहरे पर वो व्यग्रता, उत्कंठा और लुनाई शारदा को नजर नहीं आ रही थी जो इस तरह सम्बन्ध तय हो जाने पर लड़कियों के चेहरे पर निखरने लगती है।
यहॉ तक नवल का फोन न आने पर भी उसके भीतर की किसी तड़प का अहसास भी शारदा को नहीं हो रहा था।
सब कुछ अच्छा था लेकिन शारदा को गोपिका के चेहरे पर वह खुशी नहीं दिखाई दी जो वह देखना चाहती थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या है? गोपिका यदि खुश है तो उसे कुछ कमी का अहसास सा क्यों हो रहा है?
शारदा की जान थी गोपिका। अपनी पोती को कलेजे से लगाकर पाला था उसने, इसलिये उसे अच्छी तरह समझती थी। सुबह ऑफिस जाने की हड़बड़ी और शाम को थकान के साथ तमाम घरेलू कार्यों के कारण मॉ से अधिक गोपिका दादी के करीब रही थी।
बहू और बेटा तो सगाई की तैयारियों में व्यस्त है। इकलौती बेटी के लिये वर्षों से संजोये उनके अरमान पूरे होने वाले हैं। उस पर भाग्य से नवल जैसा लड़का और उसका बेहद सज्जन शिष्ट परिवार मिल गया। दोनों बहुत खुश थे।
आज जब बेटा बहू ऑफिस चले गये तो वह गोपिका के कमरे में गई। गोपिका सी० ए० अन्तिम वर्ष में थी। जल्दी ही उसकी परीक्षा होने वाली थी, इसलिये वह बहुत लगन से पढाई कर रही थी। वैसे भी वह अपनी पढ़ाई के प्रति काफी जागरूक थी।
भले ही वह नौकरीपेशा दम्पत्ति की बेटी थी लेकिन उसके बेटा बहू ने उसे बहुत प्यार और अच्छे संस्कार दिये थे। बेटी को नवीं कक्षा तक खुद बहू ने पढ़ाया था। गोपिका जितना प्यार और सम्मान अपने मम्मी पापा का करती थी उतना ही दादी का भी। बेटा बहू भी उसको पूरा सम्मान और प्यार देते
थे। इसी कारण उसके घर सास बहू वाला फेमली ड्रामा देखने को नहीं मिलता था। जिन बातों से शारदा का कोई लेना-देना नहीं होता था उनमें वह हस्तक्षेप नहीं करती थी। बेटा बहू भी शारदा की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आवश्यकताओं का ध्यान रखते थे। दोनों पक्षों की ऐसी ही समझदारी से घर खुशहाल रहते हैं।
शारदा जब गोपिका के कमरे में गई तो वह पढ़ाई कर रही थी। दादी को देखकर उसने अपना लैपटॉप बन्द कर दिया – ” आइये दादी, बड़ी देर से पढाई कर रही थी। चलिये अब गप्पें मारते हैं।”.
” मेरा भी मन तुमसे बात करने का कर रहा था, इसलिये मैं नौकरानी को दो कप कॉफी के लिये बोल आई हूॅ। अभी हम दोनों की कॉफी आती होगी।”
गोपिका ने शारदा को पलंग पर ही बैठाकर उनके गले में बांहें डाल दीं – तभी तो मैं कहती हूॅ कि मेरी दादी सुपर से भी अच्छी हैं।”
” दादियां सभी अच्छी होती हैं।” शारदा ने हंसते हुये कहा।
” मेरी सहेलियों की दादियां तो एकता कपूर के सीरियल वाली दादी जैसी रहती हैं। हर समय घर में किच किच करती रहती हैं।”
शारदा के साथ गोपिका भी जोर से हंस पड़ी। तब तक दोनों की कॉफी आ गई। कॉफी पीते पीते शारदा अपने मुख्य मुद्दे पर आ गई – ” गोपी बेटा, नवल और उसका परिवार हम सबको पसंद है और जहॉ तक मुझे पता है कि तुम्हारी पहले कोई पसंद भी नहीं है लेकिन क्या बात है तुम्हारे चेहरे पर मुझे
वह खुशी दिखाई नहीं देती है। क्या तुम्हें नवल या उसका परिवार पसंद नहीं है? ऐसा है तो स्पष्ट बताओ। अभी समय है, सब ठीक हो जायेगा। हम लोग उनसे क्षमा मांग लेंगे लेकिन अपनी लाड़ली बच्ची को उसकी मर्जी और पसंद बिना जबरदस्ती कहीं नहीं भेज सकते।”
” ऐसा क्यों सोच रही हैं? सचमुच नवल और उसके घर वाले बहुत अच्छे हैं और नवल तो बहुत जिम्मेदार और संवेदनशील है। उसकी बातों में एक परिपक्वता और दृढ़ता रहती है। सबसे अच्छी बात तो यह है कि वह हर स्त्री को सम्मान की नजर से देखते हैं।”
शारदा ने गोपिका का चेहरा अपने हाथों में ले लिया – ” फिर बताओ ना बिटिया। क्या परेशानी है? कोई ग्रन्थि मन हो तो उसे खोल दो, वरना यह छोटी सी ग्रन्थि ही तुम्हारे दाम्पत्य सम्बन्धों के लिये घातक सिद्ध हो जायेगी।”
गोपिका कुछ देर चुप रही फिर उसने बात बदल दी – ” आपका जमाना ही अच्छा था दादी। शादी बाद साथ रहते रहते पति से प्यार हो जाता था शायद आप लोगों एक दूसरे के साथ जिन्दगी बिताने को ही प्यार कहते थे। न कोई उलझन, न कोई दुविधा। जहॉ माता पिता ने विवाह कर दिया, चले गये। साथ रहकर गृहस्थी चलाने लगे, बच्चे पैदा किये, उनकी जिम्मेदारियां निभाते रहे। बस सब कुछ आसानी से बीत गया।”
” ऐसा नहीं है बिटिया। दिल तो हमारे पास भी होता था, हमें भी कोई अच्छा लग जाता था, हम भी किसी को प्यार करने लगते थे लेकिन उस कसक को हमेशा के लिये मन में दबा लेते थे।”
शारदा समझ गई कि गोपिका के मन में कुछ तो है और वह जानने के लिये अपना दिल खोलकर दिखाना पड़ेगा। उसने गोपिका का हाथ पकड़ लिया – ” गोपी, आओ, तुम्हें कुछ दिखाऊं।”
शारदा अपने कमरे में आई और उसने एक पुराने सन्दूक से एक डिब्बा निकालकर खोला। गोपिका ने देखा कि उसमें कुछ अजीब सा रखा है।
” यह क्या है दादी?”
” ये मेरे वो गहने हैं जो मुझे सोने चॉदी के गहनों से अधिक प्रिय हैं। अपने सोने चॉदी के आभूषण तो मैं बॉट सकती हूॅ लेकिन इन्हें नहीं। इन्हें मेरी मृत्यु के बाद मेरे साथ ही मेरी चिता में जला देना, आज मैं यह जिम्मेदारी तुम्हें सौंप रही हूॅ।”
” आप आज कैसी बातें कर रही हैं? इसमें क्या है, मुझे समझ में नहीं आ रहा।”
” आज तुम्हें सब कुछ बताऊॅगी।”
और शारदा अपनी पोती के समक्ष जीवन की एक अनसुलझी कहानी बताने लगी। पॉच साल की थी उस समय शारदा जब उसके पड़ोस में पोस्ट मास्टर का परिवार रहने आया। शारदा और उसके दोनों भाई, पोस्ट मास्टर की दो बेटियां और बेटा कुलदीप सहित छह बच्चे मिलकर दोनों घरों में इतना ऊधम मचाते कि घर वालों का जीना हराम कर देते। उन दिनों बच्चे सिर्फ बच्चे होते थे लड़का या लड़की नहीं। कबड्डी, कैरम, लूडो की तरह गुड्डे – गुड़िया के आदि खेलों में सभी सम्मिलित रहते थे।
एक बार सभी बच्चों ने मिलकर गुड़िया गुड्डे की शादी करने की सोची। दोनों मम्मियों ने शारदा के घर की ऊपरी मंजिल में तैयारी कर दी। कमरा सजा दिया गया। गुड्डे-गुड़िया के कपड़े, मोती के जेवर मम्मियों ने खुद बना दिये। कुलदीप की मम्मी ने पूड़ी, सब्जी, मिठाई भी बना दी।
दोनों मम्मियों ने एक ही शर्त रखी कि न तो इस खेल में वे लोग आग जलायेंगे और न ही झगड़ा करेंगे। अगर इन दोनों कामों में से कुछ भी हुआ तो वे लोग तुरन्त आकर खेल बन्द करवा देंगी।
इस खेल में मुहल्ले के कुछ दूसरे बच्चे भी शामिल हो गये। खेल के एक दिन पहले किसी बच्चे ने कहा कि इस बार हम खेल में किसी को दूल्हा और दुल्हन बनाकर खेलें तो कैसा रहेगा? बच्चे सहम गये, उन्हें पता था कि मम्मियों को पता चलेगा तो बहुत मार पड़ेगी।
” नहीं पता चलेगा, हम लोग चुपचाप खेलेंगे तो कोई ऊपर आयेगा ही नहीं।” उसी बच्चे ने कहा
बच्चे इस नये खेल के लिये मान गये। चूंकि शारदा और कुलदीप सबसे छोटे थे, इसलिये इन्हीं दोनों को दूल्हा दुल्हन बना दिया गया।
तभी किसी लड़की ने कहा – ” दुल्हन के कपड़े और गहने तो ससुराल से आते हैं। कुलदीप कहॉ से लायेगा?”
कुलदीप की बहन बोली – ” मैं मम्मी से अपने पहनने के लिये साड़ी मांग लूॅगी और शारदा को पहना दूंगी।”
बच्चे किसी भी परेशानी का समाधान करने में बहुत रचनात्मक होते हैं। आखिर सबने मिलकर रास्ता ढूंढ लिया। उन्होंने नीम के पेड़ से बहुत सारे पत्ते तोड़े। फिर नीम की सीकों से एक छल्ले में दूसरा छल्ला जोड़ते हुये शारदा के लिये गले का हार, कमर की करधनी, पैरों की पायल, हाथों के कड़े, अंगूठियां, नथ, मांग टीका ढेरों आभूषण बना डाला।
दूसरे दिन सब बच्चों ने मिलकर शारदा को साड़ी के साथ नीम की सीकों से बने सारे आभूषण पहना दिये। कुलदीप ने उससे कहा कि अभी यह आभूषण पहन लो। बड़े होकर जब हम लोग असली वाली शादी करेंगे तब तुम्हारे लिये सोने के गहने बनवा दूंगा।
बिना किसी बाधा के पूरा खेल सम्पन्न हो गया। तभी दोनों मम्मियां ऊपर यह देखने के लिये आ गईं कि आखिर बच्चे बिना शोर शराबे के इतना शान्त रहकर कैसे खेल रहे हैं? उन लोगों ने जब शारदा को साड़ी पहने और नीम की सीकों के गहने पहने देखा तो हंसते हंसते लोटपोट हो गईं। शारदा की मम्मी जल्दी से कैमरा ले आईं और सब बच्चों की फोटो खींची। एक फोटो शारदा को कुर्सी पर खड़ा करके भी खींची।
बाद में कुलदीप की मम्मी ने उस साड़ी से शारदा के लिये एक छोटा सा लंहगा, कुर्ती और फ्राक सिल दी। शारदा कुलदीप से बराबर तगादा करती रहती – ” तुम्हारे ऊपर मेरे सोने के गहने उधार हैं।”
” हॉ, मुझे याद है। पहले पढ लिखकर नौकरी तो करने दो।”
कुछ समय बाद पोस्ट मास्टर का ट्रांसफर हुआ तो दुनिया की भीड़ में वह और उनका परिवार खो गया। मम्मी और उसके भाई नये पड़ोसियों में व्यस्त हो गये। शारदा की कुछ समझने की उम्र नहीं थी लेकिन उसने अपने सारे जेवर सम्हाल कर रख लिये। समय बीतता गया और शारदा का विवाह हो गया।
” सच कहती हूॅ गोपी। तुम्हारे दादाजी बहुत अच्छे थे। मुझे हर सुख और सम्मान दिया लेकिन इतने दिनों बाद भी मन में एक कसक टीसती अवश्य है। कहॉ होगा कुलदीप? क्या उसे अब भी मेरी याद होगी?”
गोपिका बड़े ध्यान से सुन रही थी। दादी ने उसे अपने सन्दूक में रखा गुलाबी रंग का छोटा सा लंहगा, कुर्ती और फ्राक भी दिखाई। एक दम पीली पड़ गई दो फोटो भी दिखाई।
फिर उसने मन में कुछ निश्चय किया – ” आप जैसी कोई मीठी याद तो नहीं लेकिन मेरे मन में एक कसक अवश्य है।”
गोपिका अपने मन की पर्ते खोलने लगी – सोशल मीडिया के माध्यम से ही उसकी विवेक से दोस्ती हुई थी। दोस्ती आगे बढी तो दोनों आपस में मिलने लगे। गोपिका उसके प्यार में पागल होने लगी। उसके कई दोस्तों ने उसे समझाया भी कि विवेक अच्छा लड़का नहीं है। लेकिन उसे विवेक के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगता। धीरे-धीरे विवेक उसके मन मस्तिष्क पर कब्जा करता जा रहा था।
एक दिन उसकी एक सहेली का फोन आया – ” गोपिका, मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है, जल्दी आ जाओ।” उसने रेस्टोरेंट का नाम बता दिया।
गोपिका जब पहुंची तो उसकी सहेली बाहर ही मिल गई। वह गोपिका को लेकर अन्दर गई तो सामने ही विवेक एक लड़की के साथ बैठा था, दोनों एक दूसरे की ऑखों में देखते हुये एक ही गिलास से स्ट्रा द्वारा कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे। गोपिका के तो पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई।
” इस तरह खुद पर नियंत्रण खो देने से कुछ नहीं होगा।” गोपिका का हाथ पकड़कर वह आगे बढ़ी और जाकर विवेक के सामने बैठ गई।
सामने गोपिका को देखकर विवेक सकपका गया – ” गोपिका, तुम!”
तब तक गोपिका ने खुद पर नियंत्रण कर लिया था – ” अरे …. चौंक क्यों गये? हम तो एक दूसरे को प्यार करते हैं ना, इसलिये तुम्हें देखा तो चली आई।”
” क्या बकवास कर रही हो? विवेक मुझसे प्यार करता है।” वह लड़की गुस्से में चीख पड़ी।
गोपिका ने होंठों पर एक तीखी मुस्कान लाकर कहा -” विवेक, इस लड़की को सच बताओ कि तुम किससे प्यार करते हो?”
” गोपिका….. मैं……।” विवेक से हकलाहट के कारण बोला नहीं जा रहा था।
अचानक गोपिका उठकर खड़ी हुई, उसने एक झन्नाटेदार तमाचा विवेक के गाल पर मारा – ” तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं है। मुझे सब समझ में आ गया है। आज के बाद मुझसे दूर रहना, वरना परिणाम के जिम्मेदार खुद होंगे।”
फिर उसने उस लड़की से कहा – ” आज की घटना से सबक सीख लेना। यह व्यक्ति किसी से प्यार नहीं करता। इसके लिये लड़कियां मन बहलाने का साधन मात्र हैं।”
” फिर…….।” शारदा के मुंह से निकला।
” फिर क्या दादी? मैंने सोच लिया कि अब किसी के प्यार के चक्कर में नहीं पड़ूंगी। मेहनत से पढ़ाई करके अपना कैरियर बनाकर अपने और अपने मम्मी पापा के सपनों को पूरा करूंगी। कैरियर के बाद प्यार या शादी के बारे कुछ सोचूंगी लेकिन उसके पहले ही मम्मी पापा ने नकुल को पसंद कर लिया। नकुल सचमुच बहुत अच्छे हैं, उनसे कुछ दिन की बातचीत और एक दो बार मिलने से यही लगा है।”
” फिर क्या बात है, तुम खुश क्यों नहीं हो? क्या वह लड़का अब भी तुम्हें परेशान करता है।”
गोपिका हॅस पड़ी – ” एक दो बार उसने मुझे बरगलाने का प्रयत्न किया कि मुझे गलतफहमी हो गई है लेकिन मैं उसे देखते ही अपने चण्डी अवतार में आ जाती थी। वह समझ गया कि उसकी दाल अब नहीं गलने वाली। मैं भावुक और नादान थी लेकिन बेवकूफ और मूर्ख नहीं हूॅ।”
” मेरी समझ में अब भी तुम्हारी परेशानी का कारण नहीं आ रहा है।”
” मैं नकुल को पाकर खुश हूॅ लेकिन दादी जैसे इतने वर्षों बाद भी आपके मन से कुलदीप जी की यादों की कसक नहीं जा पाई है और आप आज भी उन बचपन की स्मृतियों को सीने से लगाये चिता तक की यात्रा करना चाहती हैं, उसी तरह मेरे मन से भी विवेक की यादों की कसक जा नहीं रही है। उसने
भले ही धोखा दिया हो लेकिन मेरा तो वह पहला प्यार था, उसे कैसे भूलूं?” गोपिका की ऑखें नम हो
गईं। शारदा ने उसे गले से लगा लिया – ” तुम सही कह रही हो, पहला प्यार हमेशा कसकता रहता है लेकिन उसके साथ ही यह सोचो कि अगर तुम्हें सच्चाई पता न चलती तो विवेक तुम्हारे साथ क्या पता कितना गलत कर देता। हो सकता है कि तुम्हें ऐसी अंधेरी खाई में ढकेल देता कि हम सब चाहकर भी कुछ न कर पाते।”
” मस्तिष्क इसके लिये ईश्वर को कोटि कोटि धन्यवाद देता है कि मैं ऐसे व्यक्ति के चंगुल में फंसने से बच गई लेकिन जब उसका प्यार, बातें और स्पर्श याद आता है तो उसके बारे में सोचने पर विवश हो जाती हूॅ।”
” ठीक है, अब जब भी उसकी बातें याद आयें नकुल की बातें, उसका स्पर्श, उसकी ऑखों का छलकता प्यार याद करने लगना। धीरे-धीरे तुम्हारा मन उसकी और नकुल की तुलना करने लगेगा और उसका नकली प्यार और धोखा याद रह जायेगा। अपनी ओर से नकुल से कभी-कभी फोन
मिलाकर बात करो, उसके बारे में जानो और उसे अपने बारे में बताओ। अगर उचित समझना तो उसे
विवेक के बारे में बता देना क्योंकि जीवन के किसी मोड़ पर उसे पता चले तो तुम्हारे दाम्पत्य पर ऑच न आये लेकिन पहले उसके मन में अपने प्रति प्यार और विश्वास पैदा करो, उसे अपने प्यार का विश्वास दिलाओ। उसे अहसास कराओ, वह एक बचपना था और अब तुम्हें सिर्फ नकुल से प्यार है और तुम खुशी खुशी जीवन की राह पर उसका हाथ पकड़ कर चलना चाहती हो।”
गोपिका ने शारदा को गले लगाने के साथ ही उसके गालों पर ढेरों चुम्बन ले डाले – ” तभी तो मैं कहती हूॅ कि मेरी दादी सुपर से भी ऊपर हैं। आपने तो मेरी सारी उलझन ही सुलझा दी है।”
शारदा ने उसके कपोलों पर हल्के से चपत लगाई – ” अब इस प्यारे चेहरे पर सच्ची खुशी झलकनी चाहिये। नकुल का नाम सुनकर भी तुम्हारा निखरा और खिला हुआ चेहरा दिखना चाहिये, समझीं।”
” आपका आदेश शिरोधार्य है।” कहकर गोपिका ने हाथ जोड़कर शारदा के सामने सिर झुकाया और दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं।
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर