सोसाइटी में नई नई रहने आई सुषमा जी से सोसाइटी की बाकी सब औरतें उनके साथ घुल मिल कर रहने की कोशिश करती मगर उनका अहम शायद उन्हें सबसे मिलकर रहने की इजाजत नहीं देता था या फिर कुछ ओर बात थी??
यहां तक की वे बातें भी नापतोल कर ही करती थी। शाम के वक्त जब भी औरतों के बीच हंसी का दौर चल रहा होता।
वो शांत ही रहती थी। सोसाइटी में जब भी कहीं किसी के बीच परिवार की बात निकलती तो वह अक्सर अपनी आंखें चुराने लगती थी । न जाने क्यों मुझे ऐसा लगने लगा था।
वो बहुत कुछ छुपा रही है । खैर किसी की जिंदगी में हम ऐसे ही राह चलते तो नहीं झांक सकते ।
अचानक दो दिन बाद सोसाइटी के गार्डन में जहां मैं बैठी थी। वहीं सुषमा जी भी मेरे करीब आकर बैठ गई। मैंने ऐसे ही औपचारिकतावश उनसे पूछ लिया।
सुषमाजी कैसी है आप। सुषमा जी मेरी बातें सुनकर थोड़ा ठहरकर मुझसे कहने लगी। राखी जी सोसाइटी में सब की निगाहें मुझे प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह देखते रहती है। वह सब मैं भली-भांति समझती हूँ, क्योंकि मैं भी जानती हूं ।
समाज में इस तरह अकेली औरत का होना सभी को चकित कर देता है। आज मैं आपसे वह सब कुछ कहना चाहती हूं । जो मैं किसी और से नहीं कह पाई। न जाने क्यों आप में मुझे एक सखी नजर आई, मुझे लगा,मैं अपने मन की बात आपसे कह सकती हूं।
सुषमा जी की बात सुनकर मैं तुरंत उनका हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोल उठी । सुषमा जी बेझिझक आप मुझे अपनी सखी मान कर अपने मन की बात मुझसे कह सकती है । शायद मैं आपकी कोई मदद कर सकूं।
सुषमा जी फिर धीरे-धीरे मुझसे कहने लगी। राखी जी मेरे परिवार में कहने को एक बेटा और बहू और एक पोता भी है, मगर मेरे बेटे ने हमारे न चाहते हुए भी हमें बिना बताए विदेश में ही अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली और अपना घर बसा लिया। हमें बताया तक नहीं।
वह तो हमें अपने ही बेटे के एक मित्र से पता चला। जो हमारे घर के करीब ही रह रहा था। हमारा एक ही बेटा है। उसको लेकर हमारे भी बहुत सारे सपने थे। मैं तो यह सदमा बर्दाश्त कर गई।
मगर मेरे पति इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए । उन्हें दिल का दौरा पड़ गया और इस दुनिया से चले गए ।
मेरे बेटे का तो घर बस गया मगर मेरी दुनिया उजड़ गई। अब मेरे मन में भी बेटे बहु के प्रति कोई लगाव नहीं है। हां पोते की जरूर याद आती है ।
सुषमा जी की बात सुनकर मैं बीच में ही उनसे पूछ बैठी?? क्या आपके पति के जाने के बाद भी कभी उन्होंने आपको बुलाया नहीं या आप गई नहीं??
मेरी बात सुनकर सुषमा जी फिर कहने लगी । बुलाया था मगर अपने निजी स्वार्थ के लिए क्योंकि बहू के बच्चा होने वाला था और बेटे की नौकरी थी। मैंने तो बेटे को दिल से माफ कर दिया था,इसीलिए मैं अपने पति का गम भूल कर वहां चली गई थी,मगर वहां जाकर पता चला।
मुझे वहां सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए बुलाया गया था, और जैसे ही उनका यह स्वार्थ पूरा हो गया। बच्चा जिंदगी में आ गया। उन्होंने फिर मुझे यहां अकेले ही टिकट करके भेज दिया। यह तक नहीं सोचा, कि मैं यहां अकेली कैसे रहूंगी इसीलिए अब मैं भी उनको भुलकर जिंदगी में आगे बढ़ जाना चाहती हूं।
मैं पहले जिस सोसाइटी में थी। वहां सभी का ये कहना आप अकेली क्यों रहती हैं। आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहती । बस सिर्फ़ ये एक ही सवाल बार बार दिन रात मुझे चैन से जीने नहीं दे रहा था इसीलिए मैंने उस सोसाइटी का मकान बेचकर अब इस सोसाइटी में अपना नया मकान खरीद लिया है।
जिसे मैं अपने लिए बसाना चाहती हूं, खुलकर सांस लेना चाहती हूं। आप सबके साथ अपनी जिंदगी चैन से गुजारना चाहती हूं। क्या आप मेरा साथ देगी। क्या आप मेरी सखी बनना पसंद करेंगी।
मैं सुषमा जी की बात सुनकर बड़े संयम के साथ उनसे बोल उठी। जरूर मैं आपकी सखी उस दिन ही हो गई थी। जिस दिन हम पहली बार मिली थी ।
सच कहूं तो यह आपने बहुत सही फैसला लिया। यह सच है। जब हम अपनी जिंदगी की शुरुआत करते हैं तो सबसे पहले हम एक अपना आशियाना बसाते हैं और फिर उस आशियाने में बच्चे आते हैं।
हम उन्हें पढ़ाते लिखाते हैं। उन्हें इस काबिल बनाते हैं कि वह जिंदगी में आगे बढ़ सके। समय आने पर उनका घर बसाते हैं और जब हमारी जिंदगी जीने का समय आता है ।तब हमारे बच्चे हमें ही छोड़कर बहुत दूर चले जाते हैं, तो ऐसे में आपका यहां आना बहुत बड़ा और एक सही कदम है। हर इंसान को अपनी जिंदगी जीने का हक है ।
आपने अपनी जिम्मेदारियां बहुत निभा ली । अब आपको अपने तरीके से जिंदगी जीने में सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि पूरी सोसाइटी आपका साथ देगी और हां यहां आपसे कोई यह सवाल नहीं करेगा कि अब आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहती कहते हुए मैं मुस्कुरा कर सुषमा जी के गले लग पड़ी। सुषमा जी भी बड़ी खुशी के साथ मुस्कुराते हुए मेरे गले लग पड़ी,क्योंकि आज उनसे बार बार पूछा जाने वाला ये सवाल कि आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहती । अब उनसे बहुत दूर जा चुका था।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम