सुष्मिता 2 साल पुराने अपने ख्यालों में खो जाती है—- कितना अच्छा समय था पति समीर बैंक मैनेजर थे और रिटायर्ड होने में अभी 2 साल ही बाकी थे उनकी हार्ट अटैक से मृत्यु हो जाती है, समीर मेरे साथ-साथ अपने बेटे शशांक और बेटी शालिनी का बहुत ध्यान रखते थे रिटायर्मेंट के पहले ही——- बेटे शशांक की सारिका से शादी कर देते हैं! सारिका पढ़ी-लिखी थी अच्छे परिवार की थी पर
हाउसवाइफ ही थी! बेटा भी इंजीनियर था, और गुड़गांव में रहता था! बेटी शालिनी शशांक से 3 साल छोटी थी लेकिन उसकी भी शादी शशांक से पहले करदी थी। बेटी और दामाद बेंगलोर में रहते थे,
दामाद साहिल भी एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थे—- भरा पूरा घर था, माता-पिता भाई बहन सभी थे कोई कमी नहीं थी शालिनी बेटी को भी बहुत मान सम्मान से घर में रखते थे सब कुछ अच्छा था।
समीर ने अपने सर्विस में रहते हुए अपना मकान बनवा लिया था बैंक बैलेंस भी अच्छा था किसी को कोई कमी नहीं थी——- हमेशा अपनी पत्नी सुष्मिता से कहते थे रिटायर्मेंट के बाद अपन शशांक के
पास रहेंगे लेकिन थोड़े दिन रहने के बाद अपने घर वापस आ जाया करेंगे ताकि वह भी अच्छे से रहें!—— लेकिन रिटायरमेंट के 2 साल पहले ही समीर की मृत्यु हो जाने के कारण सुष्मिता को सब कुछ
अकेला सा लगने लगा क्योंकि वह हाउसवाइफ थी और अपने पति के साथ ही सब जगह जाती आती
थी। पैसों की कोई कमी नहीं थी—- समीर की पेंशन भी अच्छी खासी थी लेकिन——- सुष्मिता के साथ अकेले रहने की समस्या बहुत बड़ी आ गई—– यह देखकर बेटा शशांक मां से बोला——-मां—- आप कब तक अकेले रहोगी! कभी तबीयत खराब हो जाए फिर क्या करोगी! आप मेरे साथ गुड़गांव चलो पहले तो सुष्मिता ने कहा मैं अपने घर में रहूंगी सब नौकर चाकर लगे हैं——- लेकिन धीरे-धीरे उसका मन अकेले घबराने लगा यह देखकर शशांक अपनी मां को अपने साथ ले आता है
बहू सारिका भी मां के साथ अच्छा व्यवहार करती है बोलती है हां मां चलो हमारे साथ रहना और उनका मकान और सामान भी बहु बेटे बेच देते हैं! और पैसे मां के नाम से फिक्स कर देते हैं कि बाद में मकान देखकर बना लेंगे देखते देखते——– 1 साल बीत जाता है उनका पोता पीयूष भी 2 साल का हो जाता है लेकिन सुष्मिता का पियूष के साथ बहुत मन लगता था वह उसे खिलाती रहती थी सब कुछ अच्छा चल रहा था——– लेकिन धीरे-धीरे बहू का व्यवहार बदलने लगता है, वह जब भी मां
को देखती मुंह बना लेती, उनसे बात नहीं करती, अकेली नाश्ता बनाकर अपने पति को देकर खुद खा लेती मां यह सब देखकर उदास रहने लगीं उन्हें लगता था मैं अपने ही घर में पराये की तरह रह रही हूं।
सुष्मिता का पोता पीयूष अपनी दादी को बहुत चाहता था वह उनके पास ही ज्यादा समय रहना चाहता था लेकिन यह देखकर भी—– सारिका को अखरता और वह पियूष को उनकी गोदी में से ले आती—– और सुष्मिता के पास अपने बच्चे को नहीं जाने देती— अब तो मां को धीरे-धीरे मानसिक सदमा लगने लगा, और वह मन-ही-मन घुलने लगीं,—— कि मेरा इतना अच्छा घर था! सामान था! मेरे पास कोई कमी नहीं थी! बस—— अकेलापन था अब मैं क्या करूं? एक दिन उन्होंने सोचा मैं अपने बेटे शशांक से अब सारी बात बताऊंगी की बहू मेरे संग अच्छा व्यवहार नहीं करती!
पर बेटे को थका हारा देखकर वह रोज ही चुप रह जाती है, क्योंकि बेटा प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था काम तो बहुत रहता ही है और लेट भी आता था बेटे को मां की स्थिति पता नहीं चलती,—— वह सोचता है मां तो बहुत अच्छे से रह रही हैं।
छुट्टी के दिन जब सब नाश्ता करते हैं तब——- सुष्मिता अपना फैसला—– बेटे को सुना देती है!——– कि बेटे शशांक—- अब मुझे तेरी बहू का व्यवहार और नहीं सहन होगा तुम मुझे एक घर दिला दो—– तुम्हारे पापा के पैसे हैं मेरे पास!—- मैं फिर से पहले जैसे ही रहना चाहती हूं! शशांक एकदम
चौंक जाता है—— अरे मां क्या हुआ? आपको क्या तकलीफ है! यहां पर सब रहते तो हैं— नहीं बेटा नहीं अब मैं सहन नहीं कर सकती—– तेरी बहू मेरे संग बहुत बुरा व्यवहार करती है!—- वह मुझे
देखते ही अपना मुंह बना लेती है, और जब नाश्ता बनाती है——- तो तुम्हें नहीं पता—- मेरे लिए नहीं रखती तुम्हें देकर खुद खा लेती है——- और जब मैं किचन में देखती हूं—- तो बर्तन कढ़ाई सब खाली दिखाई देता है मुझे——- मैं भी इसी घर की सदस्य हूं! तुम्हारी मां हूं—- सब मिल बांट
कर नशता करते हैं तो अच्छा लगता है!—— पर मुझे तो बहु पराया समझती है! जैसे मैं पड़ोस में रहने वाली कोई महिला हूं!—–अरे— अरे— मां आपने पहले क्यों नहीं बताया?—— क्यों सारिका—- तुम मां के साथ ऐसा क्यों करती हो अरे——सारिका गुस्से में बोली—— मां की तो ऐसी फालतू बात करने की आदत है!
शशांक को सारिका पर बहुत तेजी से गुस्सा आता है! नहीं—-मां—–ऐसे झूंठ कभी नहीं बोलतीं!—– और तुम उनकी तरफ देख कर बात अच्छे से क्यों नहीं करतीं मुंह क्यों बनाती रहती हो! यह सुनकर सारिका तुनक कर बोलती है——— मेरी मर्जी—– मेरा मन है—– मेरा घर है, मुझे बोलना होगा तो बोलुंगी! शशांक सारिका पर गुस्सा हो जाता है——-सारिका यह मत भूलो—— यह हमसे पहले मां का भी घर है! मां यह भी बता रही हैं कि तुम पीयूष को भी मां के पास नहीं खेलने देतीं——–
आखिर मां तो उसकी दादी हैं!——— दादी को अपने पोते से प्यार होता है? क्या हो गया—- अगर वह दादी के पास खेल लेगा! सारिका गुस्से में बोलती है पीयूष टाइम से नहीं सोता है, टाइम से नहीं उठाता,—— अरे इतना छोटा बच्चा है क्या हो गया है तुम्हें? मेरे माता-पिता ने अपनी जिंदगी में
कितने कष्ट उठाए और कितने लाड़ प्यार से मुझे पाल पोस कर बड़ा किया जब मैं नौकरी में लग गया तो मेरी पसंद की लड़की से ही—– मतलब—– तुमसे ही शादी भी करवा दी! आज पापा होते तो मां को अपने पास रहने की नौबत भी नहीं आती अपन ने तो उनका मकान और सामान सब बिकवा दिया है,अब अपना फर्ज है मां को अच्छे मान सम्मान से रखना है।
शशांक की बातें सुनकर सारिका——- तुनक कर बोलती है तुम्हारे माता-पिता ने——— तुम्हें पाल- पोस कर बड़ा किया पढ़ाया लिखाया हमें थोड़ी कोई तुम्हारे माता-पिता ने पढ़ा लिखा कर बड़ा किया!—- यह सुनकर शशांक को एकदम झटका सा लगता है!—– और सारिका से कहता है मेरी मां ने तो मेरी हर पसंद का ध्यान रखा अब मेरी बारी है अब मैं तुम्हें यह कहना चाहता हूं——तुम
ध्यान से सुनो एक काम करो——- तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें पाल पोस के बड़ा किया है तो तुम——- उन्हीं के पास चली जाओ!— मायके रहो, मैं तुमसे मिलता रहुंगा मेरी मां तो मेरे पास रहेगी उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकता, यह सुनकर सारिका के होश उड़ जाते हैं——- कि शशांक ने यह कैसा
फैसला ले लिया!—— उसे अपने पति पर पूरा भरोसा था—- कि शशांक उसी का साथ देगा लेकिन यहां पर शशांक ने सही का साथ दिया। यह देखकर सुष्मिता को अपने बेटे पर गर्व हो गया कि कम से कम मेरा बेटा संबंधों का महत्व तो समझता है और उसे———-भी “अपनों की पहचान” है।
सारिका को रात भर नींद नहीं आई उसने सोचा मैं अपने मायके अगर चली गई——— तो उसकी भाभी अच्छे नेचर कि नहीं है—- जब सारिका की शादी नहीं हुई थी पहले से ही सारिका से अच्छा व्यवहार—- नहीं करती थी और मां से लड़ती रहती थी अगर मैं भी अपने ससुराल में ऐसा ही करूंगी
अपनी सास से अच्छा व्यवहार नहीं करूंगी तो शशांक मुझे मायके भेज देंगे! यहां तो मैं अपने ससुराल में इतने अच्छे से रहती हूं!—–सब मुझसे अच्छा व्यवहार करते हैं, अच्छा बोलते हैं, पर मैं अपनी सास के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती यह सोचकर उसको रात भर नींद नहीं आती!——– और सुबह उठकर अचानक सारिका का व्यवहार और मन बदल जाता है।
शशांक ऑफिस के लिए तैयार होता है और मां नहा धोके पूजा करके आती हैं और सभी लोग नाश्ता करने के लिए बैठते हैं——— तभी सारिका मां के पैर छूकर कहती है! मां मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई—– मुझे माफ कर दो, मैं आपके साथ अब अच्छा व्यवहार करूंगी, आपके पोते को भी
आपके पास खेलने दुंगी,आपके खाने-पीने का भी ध्यान रखुंगी———मां मुझे अपनों की पहचान हो गई है। मेरा अपना घर तो यही है, भले ही आपने मुझे पाल पोस के बड़ा नहीं किया लेकिन मुझे एक बेटी की तरह प्यार किया और मैं—- नहीं समझ पाई—— यह देखकर मां भावुक को जाती हैं और सारिका को अपने गले लगा लेती हैं चलो——– बहु तुम्हें समय पर समझ में आ गया और “अपनों की पहचान” तो हो गई।
दोस्तों हमारी कहानी कैसी लगी कहानी पढ़ के अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
सुनीता माथुर
मौलिक, अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र