रेनु तो आज इतनी खुश थी कि चेहरा भी बिल्कुल पिंकिश पिंकिश लग रहा था , जानते है क्यूं ? क्योकि कालेज के बाद बहुत सालों से एक दूसरे से मिले नहीं थे | आज उसके पैर जमीन पर नहीं थे , ऐसे लग रहा था कि किसी ने उड़ान भर दी हो |
रेनु के चेहरे पर हलकी सी मुस्कान थी| कॉलेज के दिनों की सबसे प्यारी दोस्त अनु आज इतने सालों के बाद उससे मिलने आ रही थी | दोनों की दोस्ती की मिसाल देते थे | रेनु ने अपने सारे राज़ अपने सारे सपने अनु के साथ बांटें थे | वो जानती थी कि दुनिया इधर से उधर हो जाए उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगी |
दरवाज़े की घंटी बजी | अनु सामने खड़ी थी | वही आत्मविश्वासी मुस्कान, चमकती हुई आ़खें दोनों गले मिली | पुरानी यादे ताजा हो गयी | चाय की प्याली के साथ बाते शुरु हुई | रनु को बडा़ सुखद महसूस हो रहा था, जैसे कोई अधुरा रिश्ता पूरा हो गया हो |
लेकिन अनु की आंखों में कुछ ओर था | कुछ छुपा हूआ जैसे कोई अंधेरा सच भीतर दबा बैठा हो | बातचीत के बीच अचानक अनु बोली – रनु तुझे एक बात बतानी है , पहले तो मैं भूल चुकी थी, पर तुझे देखते ही याद आ गई | बता ना — अब कुछ बचा है जो कभी हमने कोई बात शेयर न की हो | |
अनु के चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई – उसने धीमें स्वर में कहा _ “वो नौकरी तुझे याद है जो तेरे लिए इंपोटेंट थी और जिसके लिए तूने दिन रात एक कर दिया था और बहुत मेहनत की थी | तुझे पता है , मैनें ही तेरा नाम खराब किया था और मैनें कहा था यह भरोसेमंद लड़की नहीं है |
रेनु की सांसे थम सी गई जैसे सांप सूंघ गया हो | वही नौकरी जिसके न मिलने पर उसकी जिंदगी की दिशा ही बदल गई थी | उसे लगा अनु ने मुझे धोखा दिया, पर सच सामने खड़ा था उसकी सबसे प्यारी दोस्त ने ही उसके सपनों की डोर काट दी |
क–क्यों ? रेनु की आंखों में आंसू बह निकले | अनु की आ़खें झुक ग ई | मुझे डर था कि तुम मुझसे आगे बढ़ोगे तो मैं पीछे रह जाऊ़गु | मैं तुम्हारी चमक में दब जाऊंगी | उस वक्त मैं स्वार्थी हो गई थी |
कमरे में सन्नाटा छा गया | रेनु को ऐसा लगा जैसे उसके पैरों के तले जमीन खिसक गई हो | इतने सालों का भरोसा, हज़ारों यादें सारी कसमें – सब राख हो गई |
मुंह पर टेप लग ग ई, वो चुपचाप बैठी रही | उसने सोचा – क्या चीखकर, क्या गुस्से से क्या आंसूओं से वो खोया हुआ समय वापिस आ सकता है क्या ? क्या उसका टूटा भरोसा फिर जुड़ सकता है ? नहीं ?
उसने धीरे से कहा – अनु ! तुम्हारा सच सुनकर मुझे अब दर्द नही बस सकून मिला है , क्योंकि अब मैं जान गई हूं कि मेरी गलती नहीं थी | मैं टूट कर भी खड़ी रही, बिना उस नौकरी के भी मैनें अपने रास्ते खुद बनाए और अब तुम्हारे लिए बस खालीपन है, मैं तुम्हें माफ तो कर दूगीं लेकिन भूल नहीं पाऊंगी |
रेनु कुछ कहना चाहती थी, मगर वो कमरे के बाहर चली गई | दरवाजे पर खड़ी आसमान की ओर देखती रह गयी, और महसूस किया कि विश्वासघात इंसान को तोड़ता है , मगर अगर इ़सान अपने अंदर ताकत को ढूंढ लेता है और वो मजबूत बन जाती है |
उसकी आंखों में अब आंसू आना ब़द हो चुके थे | अब उसमें एक अजीब सी दृढ़ता थी, भरोसा टूटा था, पर हिम्मत दोगुनी हो गई थी |
विश्वासघात हमेशा दिल पर चोट करती है, पर चोट हमें अपने भीतर की असली ताकत खोजने का मौका भी देती है और आत्मविश्वास के साथ एक नई उड़ान भरने में मदद भी करती है | हर धोखे में खुद को पहचानने की शक्ति भी मिलती है |
महत्वाकांक्षी से भरपूर हो जाती है |
विषय : विश्वासघात #टूटे भरोसे का राज़
सुदर्शन सचदेवा