बड़ी नासमझ थी मैं समझती थी की मां का मायका है ये तो नानी का घर है।घर तो वो है जहां हम सभी एक साथ रहते हैं लेकिन जब मां को उनके मायके में देखा तो अहसास हुआ की सही मायने में यही घर मां का है। यहां मां की अपनी पहचान है। नानी को सभी गरिमा की मां के नाम से जानते हैं। मां
यहां देर तक सोती हैं और उनकी पसंद के खाने बनाती हैं नानी। उनकी पुरानी यादों को कितने अच्छे से सहेज कर रखा है नानी ने। उनका अपना कमरा, उनके बचपन की तस्वीरें और ना जाने कितने
अवार्ड सजा रखा है। मां को मैं जानती हूं क्या? मेरे अंतर्मन को झकझोर गया था।घर में तो सिर्फ कमियां ही गिनावाई जाती है मां की। दादी के पास तो शायद एक किताब भर गई होगी मां के अवगुणों और नासमझी की। पापा नजरअंदाज कर देते हैं या शांति के लिए कुछ नहीं बोलते हैं।
आज ना जाने कितने समय के बाद मां को खिलखिला कर हंसते हुए देखा तो देखती ही रह गई थी। कितनी मासूम हंसी बच्चों की तरह लग रही थी मेरी मां। सचमुच में दो हिस्सों में बंट जाती हैं क्या औरतें। मैं धीरे धीरे बड़ी हो रही थी तो मां को समझने की कोशिश कर रही थी। मां को भी तो हक है
ना खुश रहने का और अपने तरीके से जिंदगी जीने की लेकिन ये बात किसी को भी क्यों नहीं समझ में आई थी।
आज मां के लिए चाय बना कर मौसी लाई थी तो मैं सोचने लगी की अरे मां तो कभी चैन से बैठ कर चाय भी नहीं पीतीं हैं। चाय पीते पीते सभी का टिफिन बनातीं हैं और उसी बीच में सभी की पुकार पर भागती रहती हैं एक पांव पर। फिर आकर ठंडी चाय की प्याली खत्म करते हुए दूसरे कामों में लग जातीं हैं।
हम लोग कितने आश्रित हैं मां पर। बेचारी चकरघिन्नी की तरह दौड़ती ही रहती है सुबह उठने से लेकर बिस्तर पर जाने तक। कितनी बार हम सभी उठा कर भी अपनी बातें करते हैं फिर भी बिना
झुंझलाए उठ कर हमारी समस्यायों का समाधान करती रहती हैं। किसी ने कभी सोचा भी नहीं की उसको भी तो आराम करने का हक है। उसको भी तो गुस्सा आता होगा की सबकुछ छोड़कर कहीं चली जाए।
मैं भी बच्ची से बड़ी हो गई थी शायद मां से खुद को जोड़ने लगी थी। इसीलिए कहते हैं ना की बेटी जब बड़ी होती है तो मां की सहेली बन जाती है फिर उसकी जिम्मेदारी होती है की वो मां की हर ख्वाहिशों को पूरा करे। उसको भी वो पंख दे जो जाने अंजाने कुतर दिए गए थे।
मैंने भी फैसला ले लिया था की मां की इस खुशी को बरकरार रखना है मुझे। उसकी दुनिया अब खूबसूरत होगी और वो इसी तरह खुल कर हंसेगी और अपने वजूद के लिए कोई भी समझौता नहीं करेगी।
मैं आकर मां से लिपट गई थी और मां मुस्करा कर पूछ बैठी क्या हुआ लाडो? कुछ चाहिए तो बताओ?
नहीं मां अब मुझे आपको देना है बहुत कुछ।आप तो नानी के साथ समय बिताओ अच्छी तरह से।
सचमुच में मां का मायका वो जगह थी जहां लोग उसे समझते थे और किसी को किसी बात के लिए ना तो समझौता करना था ना अपना मन मारना था।
मां का घर
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी