बेटी के ससुराल में साजिश न करों – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

कोरियर, और गेट खटखटाया , प्रकाश नारायण जी ने उठकर गेट खोला तो सामने कोरियर वाला खड़ा था। उसके हाथ में एक लिफाफा था जो उसने प्रकाश नारायण जी को पकड़ा दिया और चला गया। प्रकाश जी लिफाफा लेकर अंदर आए तो पत्नी आरती ने पूछा क्या है जी इस लिफाफे में । देखता हूं खोलने तो दो।और प्रकाश नारायण जी ने लिफाफा खोला और पेपर बाहर निकाला।उसे

देखते ही उनके चेहरे का रंग  फीका पड़ गया । तभी पत्नी आरती ने पूछा क्या है क्या लिखा है पेपर में आप इतना परेशान क्यों हो गए। प्रकाश जी के साथ से पेपर लेकर देखती है तो क्या देखती है कि उनकी बेटी कीर्ति के लिए दामाद जी द्वारा भेजा गया तलाक का पेपर था।अरे ये क्या हैं तलाक के

पेपर क्यों भिजवाया है निमेष ने।अब मैं क्या बता सकता हूं कि क्यों भिजवाया है तलाक़ के पेपर प्रकाश जी बोले ।इधर कुछ समय से जो उनके घर चल रहा था न तो ये तो होना ही था। तुमसे कितनी बार कहा कि अब बेटी की शादी हो गई है उसके घर में दखलंदाजी करना बंद करो लेकिन तुम हो कि सुनती नहीं हो।उसका घर है ,पति है सास ससुर है एक अलग परिवार है मत घुसो उसमें लेकिन

तुम हो कि ,,,,,।अब उसको अपने ससुराल पर ध्यान देने दो लेकिन तुम तो हमारी सुनती ही नहीं हो।रोज नई-नई साजिश रची रहती हो कि दामाद जी को बेटी अपने वश में कर लें और बस वो सिर्फ कीर्ती का होकर रह जाए ।और बेटा अपने परिवार अपने मां बाप को भूल जाएं । यही चाहती थी न तुम ।तो लो  अब भुगतो प्रकाश नारायण जी नाराज़ होते हुए पत्नी से बोले।

                प्रकाश नारायण जी एक अच्छे पढ़ें लिखे सभ्य और संस्कारी इंसान थे। ‌ यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के पद से इसी साल रिटायर हुए हैं । उनकी पत्नी आरती देवी बहुत ही मुंहफट और तेज तर्रार  औरत थी ।जिस तरीके से प्रकाश नरायण जी शांत और सुमधुर स्वभाव के थे आरती उसके

विपरीत थी। उनके तीन बच्चे थे दो बेटी और एक बेटा सभी  की अच्छी पढ़ाई लिखाई कराया था। बड़ी बेटी ने इंजीनियरिंग की  थी और उसकी शादी  हो गई थी । बेटी और दामाद दोनों अमेरिका में रहते थे ।बेटा बीटेक के आखिर आखरी साल में था। उसने पढ़ाई के दौरान ही किसी बंगाली लड़की को पसंद कर लिया था ।और बस इस बात का इंतजार था कि नौकरी लगने पर हम लोग शादी कर लेंगे।

                और दूसरी बेटी कीर्ति देखने सुनने में काफी अच्छी थी । लेकिन पढ़ने में थोड़ी ढीली ढाली थी। फिर भी प्रकाश जी ने डोनेशन देकर उनको भी इंजीनियरिंग में दाखिला दिला दिया था। लेकिन वो पढ़ाई में थोड़ा कम और फालतू कामों में ज्यादा लगी रहती थी।पढ़ाई के दौरान ही उसने किसी

पंजाबी सरदार जी को पसंद कर लिया था और मम्मी पापा से कह रही थी कि शादी कर दो। लेकिन प्रकाश जी ने समझाया कि पहले पढ़ाई पूरी कर लो फिर देखेंगे। कीर्ति का चक्कर किसी न किसी से चलता रहता था कभी किसी से तो कभी किसी से ।पढ़ाई मैं मन नहीं लगता था तो पेपर मैं बैक लग

जाती थी फिर दोबारा पेपर देकर क्लीयर करना पड़ता था। फिलहाल किसी तरह उसने चार साल की पढ़ाई पूरी की ।अब सरदार जी से चक्कर भी खत्म हो गया ‌बेगलूरू में नौकरी मिल गई ।अब प्रकाश जी ने सोचा अब कीर्ति किसी लड़के के चक्कर में पड़े उसके पहले उसकी शादी करा दी जाए ।

लड़का ढूढा जाने लगा अपनी बिरादरी का ‌कुछ समय बाद एक लड़का मिल गया अपनी बिरादरी का ।वो लोग दिल्ली में रहते थे । दोनों के माता-पिता ने आपस में बात चीत की और कीर्ति और लड़का निमेष ने आपस में देखकर एक दूसरे को पसंद कर लिया और फिर शादी हो गई।

              निमेष की नौकरी दिल्ली में थी और वो अपने मम्मी पापा और बहन के साथ रहता था।और कीर्ति बैंगलोर में नौकरी करती थी। दोनों में से किसी एक को अपनी नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी एक ही जगह देखनी थी।जब निमेष ने कीर्ति से बात कि की दिल्ली में अपना घर है और वहां सब लोग

साथ में रहेंगे । मम्मी पापा भी अकेले नहीं रहेंगे।और यहां बैंगलोर में किराए का फ्लैट लेना पड़ेगा। किराए से खर्चा बढ जाएगा। लेकिन कीर्ति वहां दिल्ली में सबके साथ रहने को तैयार नहीं हुई।ये सब कीर्ति की मम्मी आरती जी कीर्ति से कहती रहती थी। वहां सबके बीच रहना मुश्किल होगा।और मैं

और तुम्हारे पापा भी तो आते रहते हैं तुम्हारे सास ससुर के साथ हम लोग कैसे रहेंगे।और तुम्हारा सारा पैसा भी बस घर में ही खर्च हो जाएगा। इस लिए तुम निमेष से कहो कि वो यहां बैंगलोर में अपनी नौकरी देखें। प्रकाश जी अपनी पत्नी आरती को समझाते रहते थे कि अब बेटी की शादी हो गई है पहले की बात और थी । बेकार की बातों से उसका दिमाग खराब न करा करो । साजिश रचना बंद करो और बीच में न पड़ो उन लोगों को तक्षक करने दो कि क्या करना है।

                लेकिन कीर्ति की ज़बरदस्ती से निमेष को दिल्ली की नौकरी छोड़कर बैंगलोर शिफ्ट होना पड़ा। वहां पर अक्सर कीर्ति के मम्मी पापा आए रहते थे।और आरती कीर्ति से पैसे भी लेती रहती थी जबकि उनके पास पैसों की कोई तंगी नहीं थी लेकिन आरती कहती बेटी है मेरी पढ़ाया लिखाया है

मेरा भी हक बनता है उससे पैसे लेने का। कुछ समय किराए के फ्लैट में रहने के बाद निमेष ने कहा क्यों न कीर्ति हम लोग अपना फ्लैट ले ले । तुम्हारी कुछ सेविंग और कुछ अपनी सेविंग मिला कर और बाकी का लोन लेकर एक फ्लैट ले लेते हैं किराए से तो बच जाएंगे । बहुत किराया लगता है।

              कीर्ति ने कहा लेकिन मेरी तो कोई सेविंग नहीं है , सेविंग नहीं है, क्या मतलब मेरे पैसे नहीं हैं ।तुम करो ये तो तुम्हारा काम है । लेकिन इतने बड़े शहर में इतना महंगा फ्लैट हैं मैं अकेले कैसे कर पाऊंगा तुम्हें भी तो साथ देना पड़ेगा न । लेकिन मैं तो अपने पैसे मम्मी को दे देती हूं कीर्ति बोली मम्मी को क्यों, क्यों का क्या मतलब है अरे मेरे मम्मी पापा है बस उनको दे देती हूं। लेकिन अब तो

जिम्मेदारी तुम्हारी हम दोनों के प्रति और ससुराल के प्रति है न कि अपने मम्मी के प्रति होनी चाहिए।ये सब बातें सुनकर प्रकाश जी आरती को समझाते हैं कि देखो बेटी का घर बर्बाद मत करों। ये तुम साजिशें करना बंद करो।और फिर तुम्हें पैसे की क्या जरूरत है मेरी पेंशन तो आती है अच्छी खासी

फिर क्या जरूरत है तुम्हें ‌बंद करो कीर्ति से पैसे लेना । लेकिन आरती को समझ नहीं आता। आरती की दखलंदाजी से कीर्ति और निमेष के आपस में झगड़ने होने लगे थे।अब निमेष बहुत परेशान रहने लगा था। निमेष जब अपने मम्मी पापा को बैंगलोर लाने की बात करता तो कीर्ति मना कर देती और न ही खुद दिल्ली जाने को तैयार होती।

             निमेष की बहन की शादी थी। कीर्ति को निमेष कुछ दिन पहले से चलने को कह रहा था लेकिन कीर्ति पहले से जाने को तैयार नहीं हो रही थी बस एक दिन पहले आ जाऊंगी पहले  से आकर क्या करूंगी। कुछ पैसे भी शादी में देने को कीर्ति से कहा  तो उसके लिए भी मना कर दिया।अब

निमेष अकेला ही चला गया। कीर्ति शादी के एक दिन पहले पहुंची लेकिन वहां अनमनी सी घूमती रही जैसे कोई जान पहचान ही न हो ।ननद की शादी में आई थी जैसे कोई मतलब ही न था ससुराल से।उसका ऐसा रवैया देखकर सास ससुर और निमेष भी बहुत परेशान थे।

             वापस शादी से बैंगलोर आने पर कीर्ति और निमेष का खूब झगड़ा हुआ।और निमेष ने कहा दिया कि देखो जो मेरे परिवार को नहीं अपनाएगा मैं भी उससे कोई मतलब नहीं रखना चाहता ।मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता मैं तुमसे तलाक़ चाहता हूं । आज कल बच्चों में बिल्कुल भी सबर नहीं है

समस्याओं को सुलझाने की जगह अलग हो जाना ज्यादा बेहतर समझते हैं।और दिल्ली आकर निमेष ने वकील से मिलकर तलाक़ का नोटिस घर भिजवा दिया।

               आज तलाक का नोटिस पाकर प्रकाश जी पत्नी पर बिफर पड़े ।आ गई कलेजे में ठंडक , तुम्हारी साजिशों की वजह से बेटी का घर बिगड़ रहा है कितना तुम्हें समझाता रहा लेकिन तुम्हारी समझ में न आया।अब आरती को भी लगा कि बहुत ग़लत हो गया ‌। सोचने लगी अभी भी वक्त है

संभालने का अभी कुछ नहीं बिगड़ा है । आरती जी और प्रकाश नारायण जी ने कीर्ति को लिया और दिल्ली निमेष के घर गए । सबने मिलकर माफी मांगी और आगे से ऐसा नहीं होगा ये भी कहा । कीर्ति ने निमेष से  माफी   मांगी । बातें ज्यादा खराब अभी नहीं हुई थी तो सबने समझदारी दिखाते हुए मामले को खत्म करके एक और मौका दिया ।

         रिश्ते को तोडने में नहीं छोड़ने में ही भलाई है  । यही सोचकर सब कुछ नार्मल हो गया।अब शायद कीर्ति को भी कुछ समझ में आया।आज कीर्ति के सास ससुर बैंगलोर आए हुए हैं ।बाहर घूमने का प्रोग्राम है और बाहर ही लंच भी होगा । परिवार में जहां तलाक़ का दाग़ लगनें जा रहा था वहां फिर से खुशियां लौट आई है ।

बेटी के ससुराल में साजिश न करों

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

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