“आजकल के बच्चों की यह बात मुझे एकदम पसंद नहीं आती है,जो कमाया सभी उड़ा दिया।आड़े वक़्त के लिए कुछ बचा कर रखते ही नहीं है।अब कुछ विपप्ति आई तो चलो किसी के आगे हाथ पैर जोड़ने।तुम्हारी शादी में इतना लेनदेन किया फिर भी मुझसे उम्मीद रखती हो। अब कहाँ से दूँ।”पापा की बात सुनकर विभा एकदम आश्चर्य में पड़ गईं पिता दूसरा है।
“मैं क्या करूँ कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। तुम जानती ही हो तुम्हें कुछ भी देने पर तुम्हारी भाभी कितना हंगामा करती है और इतने पैसे देने पर तो पता नहीं क्या ही कर दें” भाई ने जवाब दिया।
“मैं क्या कर सकती हूँ, तुम तो अपने जीजाजी का स्वभाव जानती ही हो।उन्हें मेरा अपने मायके वालों
पर पैसे खर्च करना बर्दास्त ही नहीं होता ” बहन ने इनकार किया। ” बेटा मैं तो स्वयं तुम्हारे पापा और भैया – भाभी पर निर्भर हूँ। तुम्हे तो पता ही है कि तुम्हारे पापा के आगे मेरी कुछ नहीं चलती है। तुम्हारा भाई भी अपनी बीबी के डर से कुछ कर नहीं पाता है। मेरी तो भगवान से बस यही प्रार्थना है
कि मेरा बुढ़ापा बस किसी तरह सुख शांति से कट जाए” माँ ने हाथ खड़े कर दिए।अब? अब क्या होगा? अब मैं किसके पास जाऊँ?दिमाग में बस यही बाते रह -रह कर घूम रही थी। लग रहा था सर दर्द से फट जाएगा। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। आज विपत्ती आने पर कोई भी साथ खड़ा दिखाई नहीं दे रहा था। जिन्हे मैं अपना समझ रही थी आज कठिनाई के समय मे उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए थे।
रोज सुबह – शाम माँ-पापा, भैया – दीदी का फोन पर घंटो बात करना और मुझसे अपना ख्याल रखने कि बात करना आज फजुल लग रहा था। क्या उनका मेरे लिए अपनी चिंता व्यक्त करना बस एक रश्म अदायगी थी? परिवार का कर्तव्य बस फोन पर हालचाल लेना ही होता है।आज सुबह जब वैभव
उठा तो अचानक उसके सर मे भयंकर दर्द होने लगा, जिसके कारण उससे उठा नहीं जा रहा था। उसके सर में पहले भी दर्द होता था जिसे वह सर्दी तो कभी गैस कहकर दर्द की दवा खा लेता था और अपना काम करने लगता।पर आज का दर्द असहनीय था। कोई दवा काम नहीं कर रही थी। तब उसे आन्या डॉक्टर के पास लेकर आई। डॉक्टर ने कुछ जांच करने के बाद उसे ब्रेन ट्यूमर होने की
आशंका व्यक्त की और आगे और भी कुछ जांच कराने को कहा।जांच में डॉक्टर की आशंका सही साबित हुई।डॉक्टर नें कीमो थेरेपी और ऑपरेशन करने कि बात की। जिसके लिए अनुमानित दश लाख रूपये लगने का बजट बताया। वैभव के एकाउन्ट मे इतने पैसे नहीं थे।इसलिए आन्या को अपने रिश्तेदारों से पैसे मांगना पड़ रहा है। पर पैसो की जगह उसे यह सब सुनने को मिला। आज इन
खोखले रिश्तो के भरम टूटने पर बहुत दर्द हो रहा था क्योंकि वैभव के ठीक रहने पर आन्या अपने भाई बहन के बच्चो पर बहुत ही खर्च किया करती थी। लग रहा था कि कलयुग के सारे नाते,रिश्ते मतलब के ही होते है शायद। जब माँ – बाप,भाई – बहन ने मना कर दिया तो अब और किससे आशा
रखे कोई? आन्या को समझ नहीं आ रहा था, पैसो का इंतजाम कहाँ से करे।नर्स ने भी डराते हुए कहा था कि पैसो का इंतजाम जल्द करके ऑपरेशन करवा ले। जितना जल्दी इलाज शुरू होगा उतना
ज्यादा बीमारी के ठीक होने की संभावना रहेगी, नहीं तो भगवान ही मालिक है।आन्या के सास -ससुर का देहांत हो चूका था और मायके वालो ने हाथ खींच लिया था। वह सोच ही नहीं पा रही थी कि अब
पैसो का इंतजाम कहाँ से करे। वैसे एक जेठ- जेठानी थे परन्तु सास की मृत्यु के बाद उनसे सम्पर्क नहीं था।आपस मे कोई झगड़ा नहीं था परन्तु आन्या को उनसे कोई लगाव भी नहीं था।उसकी शादी
होने के बहुत पहले से ही वे लोग बंगलौर मे जाकर बस गए थे। वहीं किसी कम्पनी मे दोनों काम करते थे। उनके बारे मे आन्या को बस इतना ही पता था। सास जिन्दा थी तो कभी – कभी उनसे फोन पर बात करती थी तो थोड़ा बहुत उनके बारे मे पता चलता था, परन्तु सास के देहांत के बाद वह
सम्पर्क भी खत्म हो गया था। सब जगह से ना सुनने के बाद आखिर में उसे उन्ही का अब आसरा दिखाई दें रहा था। जेठानी के एक रिश्तेदार आन्या के शहर में ही रहते थे।वह उनके पास गई और उनसे अपनी जेठानी का फोन नंबर लिया और जेठानी को फोन कर दिया। डर भी लग रहा था कि पता नहीं वे क्या सोचेंगी। आखिर पांच वर्ष बाद उनसे सम्पर्क कर रही थी। उनकी अंतिम भेट सास
के मृत्यु के वक़्त हुई थी। उसके बाद से उनसे कोई सम्पर्क नहीं था। फोन उठाते ही उन्होंने कहा ” कौन ” आन्या नें कहा “दीदी मैं” और अपना नाम बताया। नाम सुनते ही उन्होंने बहुत ही आत्मीय आवाज मे कहा ” बहु कैसी हो? देवर जी ठीक है? बच्चे कैसे है? “उनकी आत्मीय आवाज को सुनकर
आन्या फूट-फूटकर रोने लगी।उसकी रोने की आवाज सुनकर वे घबरा गईं और कहा ” क्या हुआ क्यों रो रही हो। सब ठीक है न? ” आन्या नें कहा ” कुछ भी ठीक नहीं है। आपके देवर जी को ब्रेन ट्यूमर
हो गया है। ” तब उन्होंने ढाढ़स बढ़ाते हुए कहा तो रोने की क्या बात है इलाज होगा फिर वे ठीक हो जायेंगे। इलाज ठीक से चल रहा है न? उन्होंने पूछा। आन्या नें कहा” नहीं ” “क्यों ” क्या दिक्कत है!उन्होंने आश्चर्य से पूछा।आन्या नें कहा ” पैसों के कारण रुका है। यह सुनते ही वह बोली “जल्दी से
अपना बैक अकाउंट नंबर भेजो और कितने रूपये की जरूरत है यह भी बताओ। मैं तुम्हारे जेठ जी को बोलती हूँ वे तुरंत ट्रांसफर कर देंगे। हम भी छुट्टी लेकर जल्द – से – जल्द वहाँ पहुंचेंगे।”
जेठानी जी की बातों को सुनकर आन्या को आज समझ आया कि रोज बात करने वाले आपके हमदर्द हो यह जरूरी नहीं। जो वक़्त पर काम आये वही सच्चा हितेषी होता है।
वक़्त पर काम आना
विषय —अपनों की पहचान
लतिका पल्लवी