रजनी के किच-किच से तो मैं परेशान हो चुका हूँ। जब देखो लड़ती रहती है। आज तो घर जाऊँगा ही नहीं, चाहे कुछ भी हो जाये।”
मन में बुदबुदाता हुआ, मनोज पार्क में आकर बैठा ही था कि हवाओं ने बहना शुरू कर दिया। जैसे हवाओं को उसके आने का एहसास हो गया हो।
मनोज के चारों तरफ हरियाली थी और बगल में कुछ सूखे घास, जो शायद पैरों की रगड़ से पीले पड़ गये थें। मनोज ख्यालों में डूबा ही था कि अचानक एक आवाज ने उसे हिला दिया – “अंकल, अंकल”।
मनोज ने अपने इधर-उधर देखा पर उसे कुछ नज़र न आया। उसे लगा शायद उसका वहम है। इसलिए आवाज से ध्यान हटाते हुए वह फिर रजनी को भला बुरा कहने में लग गया। कुछ देर बाद वही आवाज फिर से आई।
मनोज (डरते हुए) : क..क..क..कौन है?
तभी एक आवाज आयी – “सामने देखो।”
मनोज ने सामने देखा तो वह दंग रह गया। सामने लगभग नौ साल की लड़की पालथी मारे हुए वहीं ज़मीन पर बैठी हुई थी। जिसके बाल सुनहरे और आँखें काली थी। उसके हाथों में अंडाकार दर्पण था। जिसके चारों तरफ सुनहरी पट्टी थी। दर्पण भी लड़की की तरह अद्भुत और रहस्यमयी था।
दर्पण का आकार इतना बड़ा था कि उसके पीछे लड़की का सारा बदन छिप गया था। केवल उसके दो पैर और सिर ही दिख रहे थे। दर्पण में एक चीज अनोखा था और वह था दर्पण के अंदर का दृश्य। दर्पण में देखने पर दर्पण के पीछे के घास का मैदान दिखाई दे रहा था। जैसे दर्पण के पीछे लड़की का शरीर हो ही ना।
मनोज ने आश्चर्य के साथ उस अजनबी लड़की से पूछा : ये क्या चीज है?
लड़की : दर्पण।
मनोज : दर्पण???
लड़की : जादुई, दर्पण।
मनोज दर्पण को एक टक निहारता रहा और अचानक कहीं खो सा गया।
कुछ देर बाद मनोज ने खोए अंदाज में ही बोला : सारी गलती मेरी ही है। बेचारी रजनी ने तो बस यही कहा था कि वह मुझे चाय नहीं दे सकती क्योंकि उसकी तबियत ठीक नहीं है। मुझे तो उसकी खैरियत पूछनी चाहिए थी। पर मैंने तो उसे ना जाने कितना उल्टा-सीधा बोल दिया, और तो और उसे थप्पड़ भी मार दिया। नहीं-नहीं, मैं ही गलत हूँ। मुझे रजनी से माफ़ी मांगनी ही होगी।”
यह बोलते हुए, मनोज वहाँ से उठकर जाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि उस लड़की ने बोला – “अंकल, कहाँ जा रहे हो?”
मनोज पीछे मुड़ते हुए: बेटा, मुझे जाना होगा। मुझे किसी से माफ़ी मांगनी है।
मनोज आगे बढ़ा ही था कि तभी वह पीछे मुड़ते हुए बोलता है – “थैंक्यू यू बेटा”।
पर वह लड़की उसे कहीं दिखाई न दी। मनोज घबरा गया। लेकिन अगले ही पल वह रजनी से मिलने चल दिया।
तभी पीछे से आवाज आयी – “अंकल, थैंक यू बोलना है तो इस दर्पण को बोलो जो सबको उसके बुरे कर्मों से अवगत कराता है।”
मनोज ने पीछे मुड़कर देखा। पर इस बार भी उसे कोई दिखाई न दिया। मनोज आगे बढ़ा और थैंक यू जादुई दर्पण बोलते हुए, रजनी से मिलने चल दिया। अब मनोज के चेहरे पर गुस्से की जगह मुस्कान थी।
(पूर्णतः सुरक्षित, स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)
नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार
सीख :
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि :
1. अगर हमें अपनी गलती का एहसास हो जाये तो उसे समय रहते सुधार लेना चाहिए।
नोट : लघुकथा कैसी लगी। प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा। आपकी समीक्षा हमारे लिए अमूल्य निधि है। धन्यवाद।