अहंकार

सुषमा जी तनीषा को समझाती रहतीं—
“छोटी बहू, इतना अहंकार अच्छा नहीं है। अगर अपनी जेठानी को थोड़ा सा सम्मान दे दोगी तो कुछ बिगड़ेगा नहीं। मौका पड़ने पर रुपया-पैसा नहीं, व्यवहार काम आता है।”

लेकिन तनीषा पर इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता। उसे अपना बाहर जाकर कमाई करना और बड़े घर की बेटी होने का बहुत अहंकार था। वह अक्सर जेठानी रश्मि की बातें अनसुनी कर देती।

सुषमा जी की बड़ी बहू रश्मि स्वभाव और संस्कार से बहुत ही सरल थी। गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए रहती। ससुर नहीं थे, इसलिए दिव्यांश ने शादी से पहले ही कह दिया था—
“संसार में मेरी माँ से बढ़कर मेरे लिए कोई नहीं। मेरी माँ ने हम दोनों को अकेले ही माता-पिता का प्यार देकर कितने संघर्षों से पाला है। आप विश्वास रखिए, आज से आपसे पहले वह मेरी माँ हैं। आपको जीवन में कभी भी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।”

रश्मि ने अपने वचनों को अब तक पूरी तरह निभाया था।

छोटी बहू तनीषा स्वच्छंद विचारों वाली थी। विशाल ने अपने ऑफिस की ही तनीषा को पत्नी बनाने का प्रस्ताव रखा तो घरवालों को कोई आपत्ति नहीं हुई। तनीषा ससुराल आ गई।

सुषमा जी खुश थीं कि भले ही पति ने समय से पहले उनका साथ छोड़ दिया, लेकिन उन्होंने अपने दायित्व को भली-भांति पूरा कर लिया। दोनों बेटे भी घर बसा चुके थे।

समय के साथ सुषमा जी के घुटनों में बहुत दर्द रहने लगा। संघर्ष इंसान को समय से पहले बूढ़ा कर देता है। दिव्यांश ने बहुत इलाज करवाया, लेकिन उम्र का असर अपना काम कर चुका था। उनका बाहर निकलना लगभग बंद हो गया।

तनीषा को अपनी नौकरी का बहुत अभिमान था, इसलिए वह घर के किसी काम में हाथ नहीं लगाती।
सुषमा जी समझातीं—
“रश्मि सुबह से अकेली रसोई में जुटी रहती है, थोड़ा उसका हाथ बटा दो।”

लेकिन तनीषा तुरंत जवाब देती—
“मैं भी तो दिन भर ऑफिस में काम करके थक जाती हूँ। अब मैं कोई काम नहीं कर सकती।”

वह अपना और विशाल का खाना लेकर चुपचाप कमरे में चली जाती। रविवार को भी दोनों का बाहर घूमने का प्रोग्राम फिक्स रहता।

सुषमा जी को यह सब बहुत बुरा लगता।
वह सोचतीं—
“मेरी बड़ी बहू के भी तो कुछ अरमान हैं।”

लेकिन दिव्यांश को अपने व्यवसाय से बिल्कुल फुर्सत नहीं मिलती थी।

रश्मि कहती—
“माँ जी, आप क्यों परेशान होती हैं। सही कहती है तनीषा। मैं तो घर पर ही रहती हूँ, मेरा क्या थकना। उसे सचमुच ऑफिस आने-जाने में थकान हो जाती होगी।”

रश्मि नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से घर में कोई टकराव हो।

सुषमा जी बोलीं—
“रश्मि बेटा, तुम्हारे इसी भोलेपन का फायदा उठा रही है तनीषा।”

रश्मि ने माँ का हाथ पकड़कर कहा—
“कोई बात नहीं माँ जी, जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दीजिए।”

लेकिन अब तो तनीषा बात-बात पर रश्मि को जवाब देने लगी थी। रश्मि केवल खामोश रह जाती।

सुषमा जी समझातीं—
“तनीषा, घर-परिवार में सबको साथ लेकर चलना चाहिए। भगवान न करे भविष्य में कभी जरूरत पड़ी, तो कोई काम आएगा।”

तनीषा बोली—
“मुझे क्या जरूरत पड़ने वाली है? और जब जरूरत पड़ेगी, तो मैं भाभी की खुशामद करने के बजाय अपनी मम्मी को बुला लूँगी।”

इत्तेफाक से तनीषा के पाँव भारी हो गए। घर में खुशियाँ मनाई जाने लगीं। अब तो तनीषा के और भी पैर ज़मीन पर नहीं टिकते थे क्योंकि रश्मि अभी तक इस परिवार को संतान नहीं दे पाई थी।

समय व्यतीत होने लगा और धीरे-धीरे प्रसव का समय नज़दीक आ गया। तनीषा ने अपने कहे अनुसार अपनी सेवा के लिए मायके से मम्मी को बुला लिया। रश्मि को कोई दिक्कत नहीं थी।

लेकिन अहंकार टूटता अवश्य है।

उधर प्रसव की तारीख और इधर विशाल का ऑफिस की बहुत ज़रूरी मीटिंग के लिए बाहर जाना। उसी समय तनीषा की मम्मी को तेज़ बुखार चढ़ गया। अचानक रात में तनीषा को बहुत तेज़ दर्द उठा।

वह सुषमा जी के पास आई और बोली—
“मम्मी जी, लगता है मुझे अभी अस्पताल जाना पड़ेगा। मम्मी को तो तेज़ बुखार है, आप भाभी को बुला दीजिए।”

सुषमा जी बोलीं—
“मैं कैसे बुलाऊँ? तुम उसके कमरे के बाहर जाकर आवाज़ लगा दो।”

लेकिन आहट सुनकर रश्मि खुद ही बाहर आ चुकी थी। तनीषा को परेशान देख वह बोली—
“तनीषा, तुम बिल्कुल परेशान मत हो। मैं और तुम्हारे भैया अभी तुम्हारे साथ चलते हैं।”

दिव्यांश ने गाड़ी निकाल ली। रश्मि ने विशाल को भी फोन करके स्थिति से अवगत करा दिया।

अस्पताल पहुँचने पर डॉक्टर ने कहा—
“ऑपरेशन करना पड़ेगा। इन पेपर पर हस्ताक्षर कर दीजिए और खून का इंतज़ाम भी कीजिए।”

रश्मि बोली—
“डॉक्टर साहब, मेरा ब्लड ग्रुप चेक कीजिए।”

इत्तेफाक से उसका ब्लड तनीषा से मैच कर गया। दिव्यांश ने कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए। थोड़ी देर बाद ऑपरेशन थिएटर से बच्चे के रोने की आवाज आई—
“मुबारक हो, नन्ही-सी परी ने जन्म लिया है।”

दिव्यांश और रश्मि ने हाथ उठाकर भगवान को धन्यवाद दिया।

तनीषा को कमरे में शिफ्ट किया गया। होश आने पर वह अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा थी।

वह बोली—
“भाभी, मुझे माफ कर दीजिए। शायद भगवान ने जानबूझकर यह स्थिति उत्पन्न की थी। मैं बहुत घमंडी हो गई थी, आपका अपमान करने से भी नहीं चूकती थी। भगवान ने मेरा अहंकार तोड़ दिया। लेकिन मुझे विश्वास है कि आप अपनी छोटी बहन को ज़रूर माफ कर देंगी।”

तनीषा रश्मि का हाथ पकड़कर रोने लगी।

रश्मि बोली—
“पगली कहीं की, रोते क्यों हो? अब तो हँसने और मुस्कुराने का समय आया है। देखो कैसे नन्ही परी तुम्हें देख रही है। मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई मेल नहीं था और ना है। मैंने हमेशा तुम्हें अपनी छोटी बहन माना है। क्योंकि मेरी तो कोई बहन थी ही नहीं। भगवान ने तुम्हें मेरे जीवन में इसी रूप में दिया है। भूल जाओ सब बातें। क्षमा बड़े को चाहिए और छोटन को उचित। मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है। अब तुम खूब खुश रहो, क्योंकि परी को दूध भी तो पिलाना है।”

रश्मि ने तनीषा को गले से लगा लिया।

तनीषा मुस्कुराते हुए बोली—
“थैंक्यू भाभी।”

फिर रश्मि बोली—
“दिव्यांश, सुनिए। मम्मी जी और विशाल भैया भी खुशखबरी का इंतजार कर रहे होंगे। उन्हें भी तो बता दीजिए।”

दिव्यांश ने सुषमा जी को फोन करके दादी बनने की खुशखबरी सुनाई।

error: Content is protected !!