आकांक्षा महत्वाकांक्षी थी, मेहनती थी और अपने करियर को लेकर हमेशा गंभीर रहती थी। MBA करने के बाद उसे एक कंपनी में नौकरी मिली, और इसके लिए उसे दूसरे शहर जाना पड़ा। वहाँ उसने एक पी जी लिया, जहाँ वह एक लड़की के साथ कमरा शेयर करती थी। सहेली भी नई थी, किसी और कंपनी में काम करती थी। दोनों का रिश्ता धीरे-धीरे बन रहा था, लेकिन आकांक्षा की दुनिया फिलहाल उसके काम और सपनों तक ही सीमित थी।
सैलरी अभी बहुत अच्छी नहीं थी पर उसके सपनों की उड़ान अभी बहुत दूर जानी बाक़ी थी ।
उसकी कंपनी में आमतौर पर लड़कियों को शाम छह–सात बजे तक छोड़ दिया जाता था, लेकिन महीने के आख़िरी दिन में बहुत बार अगले महीने की टार्गेट मीटिंग्स देर रात तक चलती थीं। और चाहे मजबूरी कह ले या ज़रूरत सभी को रुकना पड़ता था ।उस रात भी यही हुआ। मीटिंग, डिनर और चर्चाएँ लंबी चलीं और जब आकांक्षा बाहर निकली तो रात के बारह बज चुके थे। उसने जल्दी-जल्दी कैब बुक की, उसमें बैठ गई, और जैसे ही गाड़ी चली, उसने देखा कि फ़ोन की बैटरी एक प्रतिशत ही रह गई पर उसने सोचा अब तो बस घर पहुँचना है, और उसने तुरंत ड्राइवर को ओटीपी दे दिया और बेफिक्र हो गई ।लेकिन यही सबसे बड़ा संकट बन गया।
ड्राइवर ने शुरुआत में कहा — “मैडम आप राइड कैंसिल कर दीजिए, मैं ऑफलाइन ले चलता हूँ, आपको पैसे भी बचेंगे और मुझे भी लाभ होगा ।कैब कंपनी काफ़ी कमीशन ख़ुद रख लेती है ।आप मुझे सौ रुपए कम दे देना ।बात व्यावहारिक लगी और बचत होगी ये सोच आकांक्षा मान गई। अब गाड़ी कुछ देर सही रास्ते पर चली, फिर अचानक उसने मोड़ बदलना शुरू कर दिया। आकांक्षा ने कहा, “ये तो शाम वाला रास्ता नहीं है।” ड्राइवर हल्की हँसी के साथ बोला, “रात का वक्त है मैडम, सब नहीं दिखाता, हम पुराने ड्राइवर हैं, हमें शॉर्टकट पता है।”इतने में आकांशा का फ़ोन डेड हो गया ।
आकांक्षा का दिल धड़क उठा। और तभी उसने देखा कि ड्राइवर फोन पर किसी से कह रहा है — “हाँ, हाँ, अभी थोड़ी देर में आया। हाँ है ।
हाँ है ये दो शब्द सुनते ही उसकी रगों में सिहरन दौड़ गई। उसे साफ़ हो गया कि यह कोई शॉर्टकट नहीं बल्कि एक साज़िश थी। उसे यक़ीन हो गया कि कुछ गड़बड़ होने वाली है।
उसके भीतर डर का तूफ़ान था, लेकिन चेहरा शांत। उसे माँ की बातें याद आईं
माँ देख बेटी अब तू नए अजनबी शहर में अकेली रहेगी — “मुश्किल हालात में चेहरे पर डर मत आने देना, डर को हराने का नाम ही जीत है।”
उसे वो दिन याद आया जब किचन में ज़्यादा काली मिर्च का छौंक लग गया था और उसकी आँखों में आँसू भर आए थे। तब माँ हँसते हुए बोली थीं — “ये जो काली मिर्च का छौंक है न, यही तेरी असली सहेली है। अगर कभी कोई तुझे डराने या सताने की कोशिश करे तो इसे हथियार बना लेना।” उसी दिन माँ ने उसे बैग में रखने के लिए एक स्प्रे दिया था।
उस रात वही बैग उसके पास था। उसने माँ को याद किया, ईश्वर को धन्यवाद दिया और अचानक स्प्रे ड्राइवर की आँखों में डाल दिया। ड्राइवर दर्द से चीखते हुए गाड़ी रोकने पर मजबूर हुआ। आकांक्षा ने झट से चाबी छीनी और सड़क पर भाग निकली।
रात गहरी थी, सड़क सुनसान। फोन पहले ही डेड हो चुका था। दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था कि हर कदम पर लगता था गिर जाएगी। बहुत देर बाद सड़क किनारे उसे एक बूढ़ा आदमी दिखा, हाथ में बीड़ी लिए। किस्मत ने साथ दिया — उसके पास छोटा-सा पुराना फ़ोन था। बिना टच वाला ।आकांक्षा को अपनी नई सहेली का नंबर याद नहीं था, लेकिन पापा का नंबर दिल में दर्ज था। काँपते हाथों से उसने वही नंबर मिलाया।
पापा की आवाज़ सुनते ही उसका गला भर आया। उसने रोते हुए पूरी बात बताई और कहा — “पापा, पी जी के ओनर को फोन कीजिए, मुझे घर पहुँचना है।” पापा ने तुरंत कार्रवाई की और थोड़ी देर में आकांक्षा सुरक्षित अपने कमरे पर लौट आई।
लेकिन उस रात उसके मन में बहुत कुछ उमड़ता रहा। वह काँपते हुए सोचती रही — “अगर गाड़ी में चार लोग होते तो? अगर मेरे पास स्प्रे न होता तो? अगर मैं माँ की बात याद न रखती तो?” उसके भीतर डर और गुस्सा दोनों घुल गए थे। डर इस बात का कि लम्हे भर में उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो सकती थी, और गुस्सा इस बात का कि समाज में अब भी ऐसे लोग हैं जो औरत को सिर्फ़ एक जिस्म समझते हैं।
उसने ठान लिया कि अब कभी लापरवाही नहीं करेगी। कभी पचास सौ के चक्कर में ऑफलाइन नहीं चलेगी ।कंपनी में साफ़ कहेगी कि अगर देर रात तक काम लिया जाता है तो सुरक्षा का इंतज़ाम भी ज़रूरी है। और खुद भी हर हाल में तैयार रहेगी — चाहे स्प्रे हो, अलार्म हो या कोई और हथियार। सबसे ज़रूरी, उसने अपने दिल में लिख लिया — “फोन को कभी डेड नहीं होने दूँगी। हर मीटिंग में बैठने से पहले उसे चार्जिंग पर लगाऊँगी। कभी नहीं भूलूँगी कि ज़िंदगी और मौत के बीच का फ़ासला सिर्फ़ एक चार्ज हुए फोन का भी हो सकता है।”
उसका दिल बार-बार कह रहा था — “हर बेटी को कठोर बनना ही पड़ेगा, सूझबूझ का परिचय देना पड़ेगा ।चुस्त बन कर रहना ही पड़ेगा, बिना डरे निडर होना ही पड़ेगा। इस दुनिया में अनेक महिषासुर हैं, और हमें ही काली का रूप धारण करना पड़ेगा।”
लेकिन भीतर कहीं एक सवाल गूंजता रहा — “कब बदलेगा यह समाज का नजरिया? कब वो दिन आएगा जब बेटियाँ रात को भी बेख़ौफ़ चल सकेंगी? क्या कभी ऐसा स्वर्णिम समय आएगा जब इस प्रकार की घिनौनी साज़िशें हमेशा के लिए खत्म हो जाएँगी।
दोस्तों बड़े भारी मन के साथ लेखनी को विराम देती हूँ ।
उम्मीद है ये कहानी आपको पसंद आएगी ।
इसी उम्मीद में
ज्योति आहूजा
#साज़िश