काव्या – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

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” बधाई हो काव्या, तुम मॉ बनने वाली हो।” इतना सुनते ही विगत स्मृतियां उसके मस्तिष्क में शोर मचाने लगीं।

उसे आज भी वह दिन याद था जब डॉक्टर वेदांत की कार से टकराकर वह अचेत हो गई थी। डॉक्टर वेदांत और रुद्रांगी अपने मित्र के विवाह समारोह से वापस लौट रहे थे। डॉक्टर दम्पत्ति जल्दी घर पहुंचना चाहते थे लेकिन पानी बरसने के कारण उन्हें कार धीमी चलानी पड़ रही थी।

पहले तो उन दोनों का रुकने का मन नहीं हुआ, सोचा कि किसी की शरारत तो नहीं है या यह स्त्री लुटेरों के किसी गिरोह से मिली हुई हो और कार से उतरते ही घटना को अंजाम दे दिया जाये लेकिन डॉक्टर होने के कारण बीच सड़क पर किसी को ऐसे अचेत छोड़कर जाने का मन नहीं हुआ।

कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद दोनों कार से उतरे। रुद्रांगी ने आगे बढ़कर स्त्री की नब्ज देखी और डॉक्टर वेदांत की सहायता से कार की पिछली सीट पर लिटा दिया।

दोनों आकर कार की अगली सीट पर बैठ गये।

” कहॉ चलें।” वेदांत ने रुद्रांगी की ओर देखकर पूॅछा।

” घर ही चलो, चिन्ता की कोई बात नहीं है। इसने कई दिन से कुछ खाया पिया नहीं है, इसलिये अचेत हुई है। घर चलकर कुछ इंजेक्शन दूॅगी तो होश आ जायेगा।

घर आकर डॉक्टर रुद्रांगी ने उस स्त्री को कुछ इंजेक्शन दिये। करीब एक डेढ़ घंटे बाद उसे होश आया तो वह झटके से उठकर बैठ गई और अजीब सी नजर से चारो ओर देखने लगी।

उसने देखा कि उसके सामने एक युवा जोड़ा खड़ा है।  काव्या को होश में आया देखकर लड़की उसके पास आ गई – ” आप लेटी रहिये । अब आप ठीक हैं। यह मेरे पति डॉक्टर वेदांत हैं और मैं डॉक्टर रुद्रांगी। आप हमारी कार से टकराकर बेहोश हो गईं थीं।”

तब तक वेदांत हाथ में जूस का गिलास लेकर आ गया – ” रुद्रा, पहले इन्हें यह जूस पिला दो।”

रुद्रांगी के कहने से काव्या ने जूस तो पी लिया लेकिन कमजोरी के कारण उसकी आंखें नहीं खुल रही थी। वेदांत ने रुद्रांगी को कुछ इशारा किया तो उसने काव्या से कहा – ” आप आराम करिये, मैं अभी आती हूॅ।”

उसके बाद काव्या सोई तो सुबह तक सोती रही। उसने ऑखें खोली तो एक अजनबी घर में स्वयं को पाकर चौंक गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, कहॉ जाये। चुपचाप उठकर बिस्तर पर बैठ गई।

थोड़ी देर बाद कमरे में रुद्रांगी आई और उसे जगा हुआ देखकर बोली – ” अरे… , आप उठ गईं? मैं आपके लिये चाय भिजवाती हूॅ, आप ब्रश करके चाय पी लीजिये।”

काव्या कुछ बोल नहीं पा रही थी। थोड़ी देर बाद रुद्रांगी एक पन्द्रह सोलह साल की लड़की को लेकर उसके पास आई – ” ज्योति, इनका ख्याल रखना।”

फिर उसने काव्या से कहा – मैं और वेदान्त अस्पताल जा रहे हैं। लौटकर बात करेंगे और आप जहॉ कहेंगी, छोड़ आयेंगे। खाना, नाश्ता ठीक से करियेगा।”

शाम को दोनों साथ ही घर आये। सारा दिन काव्या सोचती रही कि अपनी सारी सच्चाई इस उदार दम्पत्ति को बता कर चली जाऊंगी।

शाम को चाय के बाद काव्या ने खुद कहा – ” डॉक्टर साहब, पहले मैं अपने बारे में आपको सब कुछ बता देना चाहती हूॅ।”

” ठीक है, तुम इनसे बात करो। ” वेदांत उठकर जाने लगा तो काव्या ने उसे रोक लिया – ” आप दोनों के सामने ही सब कुछ बताऊॅगी।”

कुछ देर तक काव्या चुप रही, फिर उसने बोलना शुरू किया। छोटा सा परिवार था उसका, अपने बापू और मॉ के जिगर का टुकड़ा थी काबू। काव्या की मॉ को अपनी बेटी को पढाने लिखाने का बड़ा शौक था। इसलिये शुरू से ही उसे गॉव के स्कूल में भेजना शुरू कर दिया। 

जब वह पॉचवीं कक्षा में थी तो जब स्कूल से लौटकर आई तो घर के बाहर मॉ लेटी हुई थी और बहुत सी स्त्रियां उसे घेर कर रो रही थीं। किसी ने बताया कि मॉ जब खेतों से लौट रही थीं तो उसे सांप ने काट लिया है।

काव्या इतनी छोटी भी नहीं थी कि मृत्यु का अर्थ न जानती हो। बापू भी उसे गले से लिपटा कर रो रहे थे। दस साल की काव्या की देख रेख के लिये जब बापू नई मॉ को ले आये तो शुरू में उसने भी काव्या को प्यार दुलार किया लेकिन गर्भवती होने के बाद घर के काम का सारा भार दस साल की काव्या पर डाल दिया गया। 

गर्भवती पत्नी की देखभाल में लगा उसका बापू देख ही नहीं पा रहा था कि काम के बोझ से उसकी बेटी के चेहरे की हॅसी गायब हो गई है। उसका स्कूल जाना बन्द करवा दिया गया।

नई मॉ ने हॅसते हुये उसका छोटा सा भाई बापू को देकर कहा – ” देख लो, मैंने आते ही तुम्हें बुढ़ापे का सहारा दे दिया है। बिटिया का क्या था, पालो पोसो और शादी के समय ढेर सारा पैसा दो, उस पर जिन्दगी भर काम दूसरे के आयेगी।” 

बापू बेटे को गोद में लेकर नई मॉ को देखकर मुस्कुरा रहे थे। दूसरा बेटा होने के बाद तो बापू की नजर में नई मॉ महारानी बन गई। अब घर का सारा काम करने के बाद भी नई मॉ खुद तो बापू के सामने मारती ही थी और झूठी चुगलियां करके बापू से भी पिटवाया करती। 

काव्या के पास अकेले में अपनी मॉ को याद करके रोने के सिवा कोई काम नहीं था। काव्या उस समय सत्तरह साल की थी, तभी नई मॉ और बापू ने गांव में सबसे कहना शुरू कर दिया कि काव्या की शादी बहुत अच्छे घर में तय हो गई है और लड़के वालों ने अपने ही शहर आकर विवाह करने को कहा है।

उसके दोनों भाई, नई मॉ और बापू बुलन्द शहर के गांव में काव्या को लेकर आ गये। उसी दिन मंदिर में जीवन से उसकी शादी हो गई। शादी में जीवन का केवल एक दोस्त और मॉ शामिल थे। 

काव्या सोच रही थी कि यह कैसी शादी है जिसमें कोई सम्मिलित नहीं है। फिर भी उसे आशा थी कि वह अपने प्यार और मेहनत से अपनी ससुराल को ही अपना सर्वस्व मान लेगी।

नई मॉ ने जीवन के साथ उसे विदा करते समय कह दिया – ” आपकी अमानत आप लोगों को सौंप रही हूॅ। हमारी जिम्मेदारी खतम हो गई। आप लोग अपने हिसाब से जैसे चाहे रखें, हम शिकायत करने नहीं आयेंगे।”

बापू ने गले से तो लगाया साथ ही यह भी कह दिया – ” इन लोगों की सारी बातें मानना और सबको खुश रखना। मेरी इज्जत का ख्याल रखना। कभी इन लोगों की शिकायत लेकर मत आना।”

थोड़े दिनों में ही उसे पता चल गया कि जीवन को नित्य रात की ड्यूटी के लिये एक स्त्री देह चाहिये और सास को दिन भर घर में काम करने के लिये एक नौकरानी। काव्या ने कभी कोई विरोध नहीं किया, करती भी तो किस आधार पर? सुनने वाला था ही कौन? उसे यह भी पता चल गया था कि उसकी सौतेली मॉ ने इस शादी के बदले पॉच लाख रुपये लिये हैं। 

अभी शादी का सातवां महीना ही चल रहा था कि काव्या की तबियत खराब रहने लगी। अब वह पहले की तरह फुरती से काम नहीं कर पाती थी। उल्टी और चक्कर के कारण उससे उठा नहीं जाता था। सास की अनुभवी ऑखों ने जान लिया कि बात क्या है? वह काव्या को गांव के स्वास्थ्य केन्द्र में ले गई तो उसके संदेह की पुष्टि हो गई। काव्या दो माह की गर्भवती थी। काव्या को जहॉ एक ओर मॉ बनने की सूचना से खुशी हुई, वहीं उसका मन दहशत से भर गया। कैसे पालेगी इस नन्हीं सी जान को?

बच्चे की सूचना से न सास को खुशी हुई और न जीवन को –  ” महारानी को इतना पैसा खर्चा करके लाये और इसने आते ही पेट में बच्चा भर लिया। इनको पालो और साथ में इनकी औलाद को भी पालो। “

जीवन ने तो पता चलने पर उसे थप्पड़ मार दिया – ” तुझे पेट फुलाकर घूमने के लिये  पॉच लाख खर्चा नहीं किये थे। मौज मस्ती के लिये लाया गया है। बाहर बहुत पैसा खर्चा होता था, इसलिये एक बार तुझ पर खर्च कर दिये थे कि रातें भी रंगीन करेगी और घर का काम भी करेगी। यह बच्चे कच्चे का ड्रामा मेरे सामने नहीं चलेगा।”

जीवन गर्भपात के लिये उसे डॉक्टर के पास ले गया लेकिन काव्या की शारीरिक कमजोरी के कारण डॉक्टर ने गर्भपात करने से मना कर दिया। इस बात से सास और जीवन और अधिक चिढ़ गये।

काव्या को आशा थी कि बच्चे की खबर सुनकर इन लोगों के मन में उसके लिये न सही आने वाले बच्चे के लिये तो दया आयेगी ही लेकिन सब व्यर्थ। 

काव्या की सास उस दिन मंदिर के देवी जागरण में गईं थीं।  दिन भर की थकी काव्या ने उस दिन सुबह से कुछ नहीं खाया था। जीवन शराब के नशे में आया और अपनी भूख शान्त करने लगा तो काव्या गिड़गिड़ाने लगी – ” मेरी तबियत ठीक नहीं है। सुबह से उल्टियों के कारण मैंने कुछ नहीं खाया है। डॉक्टर ने भी अभी यह सब करने को मना किया है।”

इतना सुनते ही जीवन के क्रोध का पारा चढ़ गया। काव्या को गालियां देते हुये उसने धक्का देकर उसको बिस्तर पर गिरा दिया और उसके पेट पर बैठ गया। एक हाथ से उसका मुंह दबाते हुये कहा – ” अपनी औकात भूल गई है ना। आज तुझे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि सारी जिन्दगी याद रहेगा।”

काव्या दर्द से छटपटाने लगी। मुंह बन्द होने के कारण वह चीख भी नहीं पाई लेकिन जीवन तब तक उसके पेट पर अपना पूरा भार डालकर बैठा रहा जब तक वह  बेहोश नहीं हो गई। बेहोश काव्या को वैसे ही छोड़ कर वह दूसरे कमरे में जाकर सो गया। 

सुबह सास जब घर आईं तो बहुत देर खटखटाने के बाद जीवन ने उठकर दरवाजा खोला – ” वह महारानी कहॉ है जो कच्ची नींद से तुम्हें उठकर आना पड़ा।”

जीवन कुछ न बोला और चुपचाप जाकर सो गया। बड़बड़ाती हुई सास अन्दर आई और सीधे काव्या के पास गई। एक बार तो अपने ही रक्त में डूबी काव्या को देखकर घबरा गई। पास ही छोटा सा बेजान भ्रूण पड़ा था। जल्दी से स्वास्थ्य केन्द्र गई और वहॉ से स्वास्थ्य केन्द्र वाली डॉक्टर को लाकर दवा, इंजेक्शन आदि दिलवाई। 

वह समझ गई कि काव्या की इस हालत के लिये जीवन ही जिम्मेदार है और अगर काव्या मर गई तो एक नई मुसीबत खड़ी हो जायेगी।

होश आने पर जब काव्या ने सास को बताया तो उसने काव्या को धमकाते हुये कहा – ” झूठ बोलने की जरूरत नहीं है। तुम्हारा पेट गुब्बारा तो है नहीं कि मेरे लड़के के जरा से भार से फूट जायेगा। अपना मुंह बन्द रखना नहीं तो जीवन का गुस्सा जानती हो, इससे भी बुरी हालत करेगा।” 

काव्या डर से कॉप गई। उसका बच्चा तो चला ही गया, अब वापस नहीं आयेगा। वह चुपचाप लेट गई। धीरे-धीरे खुद ही ठीक होकर घर के कामों में लग गई।

करीब एक महीने बाद उस दिन सुबह से ही पानी बरस रहा था। उसकी सास और जीवन एक रिश्तेदारी की शादी में गये थे। काव्या घर में अकेली थी। सारा दिन सोचती रही। वह कब तक जीवन की वासना का शिकार बनकर प्रताड़ना सहती रहेगी? मायके से कोई उम्मीद नहीं थी। आखिर शाम होने तक उसने अपने मन में निर्णय कर लिया। आज जैसा मौका पता नहीं कब मिले?

बरसात के कारण गांव के घरों के दरवाजे जल्दी बन्द हो जाते हैं। काव्या चुपचाप घर को बाहर से बन्द करके बाहर आ गई। उसने अपना मुंह ढक लिया और सास की ही साड़ी पहन ली कि यदि कोई उसे देख भी ले तो उसे जीवन की मॉ ही समझे। 

पगडंडी छोड़कर वह हाईवे पर आ गई। वह कितनी देर चलती रही, उसे कुछ पता नहीं चला। अचानक उसकी ऑखों में कोई तेज रोशनी पड़ी तो वह डरकर बेहोश हो गई। यह रोशनी डॉक्टर दम्पत्ति की कार की थी। सुबह उसकी ऑख खुली तो वह डॉक्टर दम्पत्ति के घर में थी। 

काव्या के ऑसू बहते जा रहे थे – ” घर से निकलते समय कुछ नहीं सोचा था लेकिन अब कहॉ जाऊॅ, इतना पढी लिखी भी नहीं हूॅ कि खुद कमाकर खा सकूॅ। घर की चहारदिवारी में तो केवल जीवन नोचता था लेकिन बाहर तो हर व्यक्ति अकेली स्त्री को नोचने को तैयार बैठा है।”

रुद्रांगी और वेदान्त सहम गये। फिर रुद्रांगी ने आगे बढ़कर उसके ऑसू पोंछे – ” चिन्ता मत करिये, आप यहॉ सुरक्षित हैं। जब तक चाहें, रह सकती हैं।”

” क्या मुझे कोई ऐसा काम मिल सकता है जिससे मैं स्वाभिमान सहित अपना जीवन बिता सकूं।”

” जरूर मिल जायेगा। अभी आप अपने को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ करिये, उसके बाद काम की बात करेंगे।”

दूसरे दिन जब डॉक्टर दम्पत्ति को रसोई से आती सुगन्ध ने आकर्षित किया तो रुद्रांगी ने चहकते हुये पूंछा – ” ज्योति, क्या बना रही हो, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है।”

तब तक खाने की मेज पर चाय के साथ पकौड़े की ट्रे लिये हंसती हुई ज्योति आ गयी – ” यह मैंने नहीं आपकी मेहमान ने बनाया है।”

सामने काव्या को देखकर रुद्रांगी उससे बोली – ” आपको अभी आराम करना है, यह सब करने की क्या जरूरत है?”

” आराम करते करते ऊब गई हूॅ। मुझे काम करने की आदत है। खाली रहने से मैं और अधिक बीमार पड़ जाऊॅगी।”

उसी दिन दोनों ने काव्या को खाना बनाने और घर की व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंप दी। जब रुद्रांगी मॉ बनी तो पूरे समय उसने एक बड़ी बहन और मॉ की तरह उसका ख्याल रखा। अब भी माटी पर रुद्रांगी से अधिक काव्या का अधिकार है – ” इसको गोद में लेकर ऐसा लगता है कि मेरा खोया हुआ बच्चा वापस आ गया।”

ड्राइवर राहुल का काव्या के प्रति आकर्षण देखकर वेदांत के कहने से रुद्रांगी ने काव्या से बात की तो उसने कहा – ” आपने मुझे दूसरा जन्म दिया है, मेरे सम्बन्ध में कोई भी निर्णय लेने के लिये आप लोग स्वतन्त्र हैं लेकिन उसको मेरी सच्चाई बता दीजियेगा।” 

पिता की शीघ्र मृत्यु हो जाने के कारण दो बहनों और एक भाई की जिम्मेदारी उस पर आ गई। जिम्मेदारी में लगे रहने के कारण अभी तक उसने विवाह नहीं किया था।

एक सप्ताह बाद कोर्ट में राहुल और काव्या एक दूसरे के हो गये।  वेदांत ने उन दोनों को अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत करने के लिये सर्वेन्ट क्वार्टर में रहने की व्यवस्था कर दी। 

दोनों एक-दूसरे को पाकर इतने सुखी और सन्तुष्ट थे कि शादी के सातवें महीने ही डॉक्टर रुद्रांगी यह खुशखबरी सुना रही थीं।

काव्या के चेहरे पर मातृत्व का गर्व चमक उठा। तभी रुद्रांगी ने हॅसते हुये राहुल को कमरे में बुला लिया – ” राहुल, काव्या तुम्हें कुछ बताना चाहती है। तुम उसकी बात सुन लो तब तक मैं अपना मरीज देखकर आती हूॅ।”

रुद्रांगी चली गई तो राहुल आकर काव्या के पास बैठ गया – ” बोलो, क्या बात है?”

” तुम्हारा दायित्व बढ़ने वाला है, कोई अपने घर में आने वाला है।” 

राहुल अवाक सा उसे देख रहा था, उसने काव्या का चेहरा अपनी हथेलियों में भर लिया – ” क्या मैं जो समझ रहा हूॅ, सच है काव्या? क्या सचमुच मैं इतना भाग्यशाली हूॅ कि नन्हें होठों से पापा सुन सकूॅगा?”

काव्या ने लजाकर सिर हिला दिया।

प्रमाणित – स्वरचित एवं स्वलिखित

लेखक/ लेखिका बोनस प्रोग्राम के अन्तर्गत एक महीने में आठ कहानियों में से मैं अपनी पहली कहानी प्रस्तुत कर रही हूॅ। 

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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