गोविंद और रमा जिस ऑटो में बैठे थे , वह ऑटो गोविंद के घर के सामने रुकी । वह खुद उतरकर माँ को भी ऑटो से उतारकर उसने जल्दी से घर का दरवाज़ा खोल दिया और माँ से कहा माँ आज रुक जाएगी क्या?
रमा ने उत्तर दिया कि नहीं पल्लवी की तबीयत ठीक नहीं है । आज ही चली जाती हूँ । गोविंद ने कहा ठीक है चलो मैं आपको बस में बिठाकर आता हूँ।
रमा उसके साथ बाहर आई तो सामने से बहू संगीता पोता अव्यय का हाथ पकड़कर आ रही थी ।
रमा ने कैसी है ? कहकर सर हिलाया । बहू ने भी ठीक हूँ , कहकर सर हिलाया । रमा ने पोते के सर पर हाथ रखकर ऑटो में बैठ कर चली गई ।
बस स्टैंड पर उतरते ही रमा ने बिस्किट के पैकेट और चॉकलेट बार खरीद कर बैग में रख लिया । गोविंद को उसकी इस हरकत पर बुरा लगा ।
गोविंद के पिताजी एक सरकारी स्कूल में पढ़ाते थे । उसकी एक छोटी बहन पल्लवी भी थी जिसकी शादी पिताजी जब जीवित थे तभी हो गई थी । पल्लवी का पति सुरेश वहीं गाँव में खेतीबाड़ी करता था। पिताजी ने अपनी थोड़ी सी जमीन भी उसे ही दे दी । उसकी देखभाल भी वह करता था । पिता की मौत के बाद माँ को हर महीने पेंशन मिलती थी । वह वहीं बहन के घर के पास पिता के द्वारा बनाए हुए मकान में रहती थी ।
गोविंद यहाँ शहर में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था । उसकी तनख़्वाह घर चलाने के लिए कम पड़ती थी । इसलिए संगीता भी बेटे के स्कूल में पढ़ाने जाती थी।
रमा महीने में एक बार गोविन्द के पास आती थी । अपना पेंशन लेने के लिए । गोविन्द ने कई बार माँ से कहा था कि यहीं रह जाए उनके पेंशन के मिलने से उसे भी थोड़ी सी मदद मिल जाएगी ।
रमा का दिल अपनी बेटी के लिए ज़्यादा धड़कता था । वह उसे छोड़कर नहीं आना चाहती थी ।
अपने पेंशन का पैसा पूरा बेटी को ही देती थी।
आज भी गोविन्द के घर बिना रुके पैसे लेकर चली गई ।
माँ को बस में बिठाकर वह घर आया तो संगीता उदास थी पूछने पर उसने बताया कि अव्यय को तेज बुख़ार है समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूँ?
गोविन्द उसे गोदी में लेकर अस्पताल पहुँचा वहाँ उसे दिखाकर दवाइयाँ लेकर आया ।
रमा गाँव पहुँची और नातिन के हाथों बिस्कुट और चॉकलेट के पैकेट थमा दिया । पल्लवी ने कहा माँ आप सब्जी बनाकर दे दीजिए मैं चावल बना देती हूँ …… मेरा आज काम करने का मूड नहीं है। ऐसा हर दूसरे दिन होता है जब पल्लवी को खाना बनाने का मूड नहीं होता है ।
रमा अपना सारा पेंशन बेटी के लिए खर्च करती थी । एक दिन पल्लवी ने माँ से कहा माँ हम लोग दस दिन के लिए सुरेश के दोस्तों के साथ घूमने जा रहे हैं ।
रमा ने कहा बहुत अच्छा है …… बेटा जाओ मैं तुम दोनों के लिए बहुत खुश हूँ । आज ही मेरा पेंशन भी आया है ॰॰॰॰॰॰ कुछ पैसे चाहिए तो ले लेना ।
रमा ने दूसरे दिन पल्लवी लोगों के लिए सफर में खाने के लिए तीन-चार आइटम बना दिया था । वह दिनभर काम करती रहीं इसलिए थक गई थी ।
इतना काम अकेले करने के कारण रमा को बुख़ार हो गया था । पल्लवी सामान लेने आई तो रमा ने बताया कि उसे बुख़ार आ गया है ॰॰॰॰ पल्लवी चिढ़कर बोली आपसे किसने कहा था ? इतना सब तामझाम करने की अब देखो बुख़ार आ गया है ।
मैं जाकर अभी वैद्य जी से दवाई लेकर भेजती हूँ ……. कहकर गई तो शाम को आई दवा देकर कहा …….अपना ध्यान रखना हम कल सुबह निकल रहे हैं ।
रमा की काम वाली आई तो देखा रमा की आँखें नहीं खुल रहीं थीं । उसे तेज बुख़ार था । बाई ने पड़ोसी को खबर दी । पडोस में रहने वाली सावित्री जी आई और उन्होंने रमा से कहा रमा पल्लवी को खबर कर दो ना !!!
रमा ने मुश्किल से आँखें खोलते हुए कहा सावित्री आज सुबह वह अपने पति के साथ दस दिन के लिए बाहर घूमने चली गई है ।
सावित्री ने कहा ठीक है , गोविंद का नंबर दो मैं उसे फोन करके बुला लेती हूँ । सावित्री ने गोविंद को फोन पर रमा के बारे में बताया ।
गोविंद से संगीता ने पूछा किसका फोन है तो उसने बताया कि सावित्री आंटी का फोन है । माँ बेहोश हो गई है और पल्लवी गाँव से बाहर गई है । संगीता ने कहा माँ की हालत खराब है तो वहाँ उन्हें छोड़ नहीं सकते हैं आप अभी जाकर उन्हें ले आइए ।
गोविंद माँ को लाने गाँव गया और टेक्सी में उन्हें लेकर सीधे अस्पताल पहुँच गया । डॉक्टरों ने उनके टेस्ट कराए और इलाज शुरू कर दिया ……. दो दिन में ही रमा की हालत सुधर गई डॉक्टरों ने उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया । संगीता ने ही बिल भर दिया और रमा को लेकर घर पहुँच गई । घर पर उनका कमरा और बिस्तर सब रेडी करके रखा था ।
रमा जैसे ही अंदर गई साफ सुथरे कमरे को देख खुश हो गई थी ।
संगीता ने जल्दी से खिचड़ी बनाई और रमा को खिलाया और दवाई देकर उन्हें सोने के लिए कहकर लाइट ऑफ करके दरवाज़ा बंद कर देती है ।
संगीता और गोविंद खाना खा रहे थे तो उसने कहा संगीता इतने पैसे कहाँ से लाई है । उसने कहा क्यों ? मैं माँ के लिए कुछ नहीं कर सकती हूँ ? गोविंद ने कहा कर सकती हो लेकिन कल तक तो हमारे यहाँ का बिजली बिल जमा नहीं करने से कट कर दिया था ।आज अचानक सब ठीक हो गया है ।
संगीता ने कहा कुछ नहीं मैंने अपनी चूड़ियाँ बेच दी हैं उससे सब ठीक हो गया है । जब आप अच्छी सी नौकरी करेंगे तब मेरे लिए चूड़ियाँ बनवा देना । अभाव की जिंदगी में भी उन्हें खुश रहकर जीना आता है ।
रमा को नींद नहीं आ रही थी उसने उन दोनों की बातों को सुन लिया था वह सोच रही थी कि उसने अपनों को पहचानने में इतनी गलती कैसे कर दी है ।
रमा दूसरे दिन उठकर बाहर आई तो देखा रमा का खाना बन कर तैयार हो गया था सबके टिफ़िन बंध गए थे । रमा को देखकर उसने रमा का हालचाल पूछा उसके लिए चाय नाश्ता लेकर आई और दवाई खिलाकर कहा माँ मैंने टेबल पर सब रखा है । आप परोस कर खा लेंगी ना मैं शाम को जल्दी आ जाऊँगी ।
रमा ने कहा हाँ बेटा जाओ मैं तुम लोगों के कारण बिलकुल ठीक हूँ । संगीता और गोविंद एक साथ ही शाम को जल्दी आ गए थे । गोविंद सोच रहा था कि अब माँ कहेगी मुझे बस स्टैंड पर छोड़ दो मैं गाँव चली जाऊँगी । आश्चर्य की बात यह थी कि रमा ने कहा गोविंद मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूँ तुम्हें कोई दिक़्क़त तो नहीं है ।
गोविंद और संगीता दोनों ने एक साथ कहा आपके मुँह से यह बात सुनने के लिए हमारे कान तरस गए थे । रमा ने गोविन्द से कहा कि गाँव का घर बेच दे मुझे मेरी बहू के लिए गहने बनवाने हैं और हँसते हुए कहा बहू कल से तुम घर की फ़िक्र मत करना मैं हूँ तुम सुकून से अपनी नौकरी कर लो ।
गोविंद के हाथों में पेंशन का पैसा और पिछले महीनों से बचे हुए कुछ पैसों को रखते हुए कहा बेटा अब हम सब आराम की जिंदगी जिएँगे , खुश रहेंगे । सबके चेहरे खिल उठे थे सोचा चलो देर से ही सही लेकिन सब ठीक हो गया है । एक दिन अचानक पल्लवी आकर कहती है माँ मैं यह क्या सुन रही हूँ आप घर बेच रहीं हैं । रमा ने सोचा देखो मैं इसके लिए जान छिड़कती थी और आज यह मेरा हालचाल पूछने के बदले घर की बात पूछ रही है । रमा ने कहा कि यह काम मुझे बहुत पहले कर देना था पल्लवी मेरा स्थान कहाँ है यह मैं जान चुकी हूँ बेटा ।
तुम्हारा खुद का अपना परिवार है । तुम खुश रहो और घर की बात पूछ रही हो तो वह भाई का ही है तुम्हारे पिता जी ने वसीयत में तुम्हें खेत और घर भाई के नाम लिखा है ।
मैं बड़ी हो गई हूँ अपना अंतिम समय बेटे के साथ बिताना चाहती हूँ तुम आते जाते रहो हम भी कभी आएँगे कहकर अपनी बेटी को समझा दिया ।
अपनों की पहचान ( साप्ताहिक विषय)
के कामेश्वरी
के कामेश्वरी