बेटा ! अब इस घर में तुम्हारे लिए बचा ही क्या है जो तुम अंतिम हवन के बाद यहीं रहना चाहती हो ? अजित के कारण ही तो तुम्हारा संबंध था इन सब से …..
मम्मी प्लीज़, धीरे बोलिए….अगर माँ या बाबा ने सुन लिया तो उनके दिल पर क्या बीतेगी? ये बात सही है कि अजित के कारण ही इस घर से मेरा संबंध जुड़ा था पर बीते एक साल में मेरा अलग रिश्ता माँ और बाबा के साथ जुड़ चुका है ।
पर हम तुम्हें यहाँ किसी भी हालत में नहीं छोड़ेंगे । तुम्हारे सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है । किस के सहारे पहाड़ सी ज़िंदगी गुज़ारोगी?
मम्मी! माँ और बाबा किसके सहारे ज़िंदगी गुज़ारेंगे…. ये भी तो सोचिए…. मैं एकदम उन्हें छोड़कर कैसे चल दूँ? कम से कम थोड़ा समय तो गुजरने दीजिए ।
महक की ज़िद देखकर उसके माता-पिता वापस लौट गए पर जाते- जाते कह गए कि अजित के पहले महीने के बाद उसे हरगिज़ यहाँ नहीं रहने देंगे ।
माता-पिता की बात अपनी जगह सही थी । मात्र तेईस वर्ष की आयु में बेटी का विधवा हो जाना कितना पीड़ादायक होता है ये बात केवल वही समझ सकता है जिस पर गुजरती है ।
महक के सामने बीता एक साल चलचित्र की भाँति घूमने लगा । वधू प्रवेश के समय आलता लगे पैरों की छाप और पायल के घुँघरुओं की आवाज़ सुनकर माँ ने कितनी बलैयाँ ली थी, कितने आशीर्वाद दिए थे और महक की तुलना लक्ष्मी माँ से करते हुए कहा था—-
इस घर के तो भाग्य खुल गए । पता नहीं, हमारे कौन से पुण्यों के फल के रूप में ऐसी लक्ष्मी सी बहू मिली है? भगवान… तेरा आँचल ख़ुशियों से भर दे , हमारी उम्र तुम दोनों को लग जाए , तुम्हारी जोड़ी बनी रहे मेरे बच्चों!
सोचते – सोचते महक की आँखों से आँसू बहने लगे । क्या एक भी आशीर्वाद काम नहीं आया ? उसने तो कभी किसी का दिल नहीं दुखाया , बचपन से आज तक कभी ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ा फिर उसके साथ ऐसा क्यूँ हुआ? उम्र भर साथ निभाने का वचन लेकर अजित केवल साल भर में उसका साथ छोड़कर चले गए ?
सेना के अधिकारी की पत्नी बनकर उसे कितनी ख़ुशी हुई थी ।मम्मी- पापा तो इस रिश्ते से बहुत खुश थे पर दादी ने ज़रूर कहा था—-
निरंजन ! मेरे तो दिल में धुकधुकी सी लगी है । जान का ख़तरा तो रहता ही है मिलिटरी में ….. चारों तरफ़ मारधाड़ मची है ।फिर महक शहर में पली – बड़ी है …. छोटे से क़स्बे में कैसे रहेंगी ?
कैसी बात करती हो माँ! एक रिटायर्ड फ़ौजी की पत्नी होकर …..डरती हो । पिताजी के बाद इस घर का दामाद एक फ़ौजी… वाह ! मेरा तो सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है । रही बड़े शहर की बात , तो उसे कौन सा ससुराल में रहना है? दो-चार दिन को आया करेगी ।
पहले के और अब के जमाने की मिलिटरी की नौकरी में बहुत अंतर आ गया बेटा , पर चल … ठीक है । वैसे तो जीवन-मृत्यु ईश्वर के हाथ है ।
शादी के बाद पूरे एक महीने तक वह माँ और बाबा के साथ ससुराल में ही रही । घर के ग्रामीण वातावरण में नया अनुभव था पर उसका दिल इतना लगा था कि अजित के साथ जाते समय सास के गले लगकर रोने लगी थी—-
ना बेटा …. घर से जाते समय रोया ना करते । ख़ुशी- ख़ुशी जाओ और ख़ुशी-ख़ुशी आओ । नई गृहस्थी की शुरुआत ख़ुशी से करो । अब से पहले तो अजित बाहर खाता था पर बहू , रसोई की शुरुआत तो तुझसे ही होगी ।
माँ ने चलते समय घी , बेसन के लड्डू, घर का पिसा बेसन , मावा न जाने क्या-क्या रख दिया । अंबाला पहुँचकर बड़े से आर्मी क्वार्टर में महक को कई दिन तक माँ- बाबा की कमी खलती रही । हालाँकि अंबाला घर से ज़्यादा दूर नहीं था पर अजित की व्यस्तता के चलते जल्दी- जल्दी घर जाना भी नहीं हो पाता था । माँ- बाबा को बुलाना इसलिए असंभव था क्योंकि घर में चार गायें थी , खेतीबाड़ी और नौकर- चाकर ….. किस के ऊपर ज़िम्मेदारी छोड़े ?
सब कुछ कितना बढ़िया चल रहा था । एक दिन अजित ने कहा——
महक ! एक महीने बाद पूरे महीने की छुट्टी लेकर घर रहने चलेंगे । कल मुझे पाँच- छह दिन के लिए देहरादून जाना है । अगर इच्छा हो तो मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूँ….. कुछ ओर ज़्यादा दिन रह लेना ।
हाँ- हाँ अजित , माँ- बाबा के साथ रह लूँगी । फिर इकट्ठे आ जाएँगे ।
बस वह अजित के साथ दो महीने के लिए ससुराल आ गई । अजित ने माँ के हाथ से बने ताजे मक्खन और छाछ के साथ चूल्हे पर सिकी मिस्सी रोटी खाई और एक महीने बाद आने की बात कहकर चला गया । लेकिन देहरादून से लौटने के दूसरे ही दिन किसी काम से जालंधर जाते समय वह ट्रक की ऐसी चपेट में आया कि मौक़े पर ही दम तोड़ दिया । फ़ोन आते ही महक बाबा के साथ बदहवास सी हास्पिटल पहुँची पर तिरंगे में लिपटे अजित को पूरे सम्मान के साथ
आर्मी गाड़ी में लेटा देखकर बाबा के लड़खड़ाते शरीर को महक ने सँभाला …..पता नहीं, कहाँ से उसमें शक्ति आ गई…… दो घंटे में ही छुई-मुई सी महक के चेहरे पर पाषाण सी कठोरता दिखाई देने लगी । पूरे रास्ते अजित के पार्थिव शरीर के पास बैठी महक केवल माँ दुर्गा से अपने आप को हालातों का सामना करने का साहस माँगती रही । काश ! अजित का कोई भाई- बहन होता तो शायद उसकी ज़िम्मेदारी बँट जाती पर अब उसे खुद को भी सँभालना था और अजित के माँ- बाबा को भी ।
सब सोचते-सोचते महक का दिल बेचैन हो गया । उसने पानी पिया और हल्की सी आवाज़ में कहा —-
माँ! सो गई क्या…..
नींद तो अजित अपने साथ ले गया …. आजा , मेरी गोद में सिर रखके सो जा मेरी बच्ची….. भगवान को ज़रा भी दया नहीं आई ।
इतना कहकर वे बैठ गई और महक उनकी गोद में सिर रखकर लेट गई——
माँ, अब कैसे- क्या होगा….. बिखरी ज़िंदगी को कैसे समेंटे ?
जिसने दुख दिया है ना , वही सब्र भी देगा । इतनी ही उम्र लेकर आया था निर्मोही! हमारी तो गुज़र जाएगी पर तेरे साथ तो छलावा हो गया …. महक ! तेरे मम्मी- पापा सही तो कह रहे हैं, चली जा बेटी …. उसे भूलकर जीवन में आगे बढ़ने में ही भलाई है ।
माँ के मुँह से यह बात सुनते ही महक तुरंत बैठ गई——
माँ…. आपने भी मम्मी- पापा की तरह कहना शुरू कर दिया । क्या शादी के साथ जुड़े संबंध, मेरी भावनाएँ गुड्डे- गुड़िया का खेल है? क्या विवाह में लिया एक-एक वचन अजित के साथ जल कर राख हो गया? माँ….. मैंने कभी नहीं सोचा था कि आप मुझे यहाँ से जाने को कह देंगी ?
अरे बेटा….. हम इतने ख़ुदगर्ज़ कैसे बन जाएँ । तेरे सिवा हमारा है ही कौन? तेरे सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है । तू ही बता …. क्या करूँ?
इतना कहकर माँ की हिचकियाँ बंध गई । महक ने बड़ी मुश्किल से सास को सँभाला ।महक अजित के पहले महीने पर आए मम्मी- पापा के साथ चली गई पर जाते- जाते घर की घरेलू सहायिका पद्मा के कानों में कह गई ——
काकी , बस दो हफ़्ते माँ- बाबा का बहुत ख़्याल रखना । फिर मैं आ जाऊँगी । भाई के साथ अंबाला भी जाना है …..थोड़ा और काम भी है ।
सबको यही लगा कि महक हमेशा के लिए मायके चली गई क्योंकि अब यहाँ आकर रहने का मतलब भी क्या था पर अंबाला जाकर सारी सरकारी औपचारिकता पूरी करके आते ही जब महक ने पापा से वापस ससुराल छोड़ने की बात कही तो पूरे घर में भूचाल सा आ गया ।
दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया तुम्हारा ? क्यों और किसके लिए जाओगी तुम वहाँ? हम किसी क़ीमत पर तुम्हें वहाँ नहीं भेजेंगे, बेटा , अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी । कोई अच्छा घर वर मिल जाए तो दुबारा ज़िंदगी शुरू करना ।
मम्मी, अजित का साथ देने के साथ- साथ मैंने उसके परिवार के प्रति भी ज़िम्मेदारी निभाने का वचन लिया था विवाह- वेदी पर । मैं ज़िंदगी दुबारा शुरू करने से मना नहीं करती पर माँ- बाबा को छोड़कर नहीं…… इस उम्र में…. हरगिज़ उन्हें अकेला नहीं छोड़ूँगी ।
महक के मम्मी- पापा और दादी ने उसे बहुत समझाया, रोना- धोना हुआ पर महक अपने निर्णय पर अटल रही । अंत में बेटी की इच्छा का मान रखते हुए महक को लेकर उसके पापा ससुराल आ गए । चलते समय बेटी के सिर पर हाथ रखते समय आँखों में पानी था , शरीर में कंपकंपी और माथे पर चिंता की लकीरें पर महक एकदम शांत । माँ- बाबा ने केवल समधी के सामने हाथ जोड़े जिनमें महक की ख़्याल रखने का
आश्वासन भी था और अपनी मजबूरी भी ।
महक के सामने सबसे बड़ी विवशता समय व्यतीत करने की थी । उसने मायके में बिताए दो हफ़्तों में काफ़ी कुछ योजना तैयार कर ली थी । अब यहाँ सबसे पहले वाई० फाई० लगवाया और एक वेबसाइट तैयार की जिस पर सबसे पहले घर का देशी घी बेचने के लिए विज्ञापन तथा आर्डर लेने का कार्य तैयार किया ।तीन महीने तक तो कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई पर उसके बाद एक दिन एक आधा लीटर पैक का आर्डर मिला तो उसकी आँखें डबडबा गई । महक ने केवल पचास लेबल तैयार करवाए थे “ अजित देशी घी “ के, आज छोटे से डिब्बे पर पति के नाम और चित्र के साथ उसने लेबल चिपकाया और माँ- बाबा को दिखाया तो बाबा ने रुँधे स्वर में कहा ——
तूने अजित को मरने नहीं दिया , बिटिया! कौन कहता है कि आजकल के बच्चे किसी की परवाह नहीं करते ….. मैं तो यूँ कहता हूँ कि आजकल के बच्चे तो पहले की तुलना में अधिक मज़बूत बन गए हैं । पर ….. मेरे दिल पर बोझ है …. सारी उम्र …
हाँ-हाँ बाबा …. जो आप कहना चाहते हैं, उसके बारे में भी सोचूँगी । मैंने कभी मना नहीं किया पर मैं उसी से शादी करूँगी जो मेरे साथ मेरे माँ- बाबा को भी अपनाएगा ।
उस दिन बाबा महक के सामने निरुत्तर हो गए । धीरे-धीरे उनका बिज़नेस चल निकला । मक्खन, दही , छाछ आदि के आर्डर भी मिलने लगे और इस तरह महक के साथ- साथ माँ- बाबा को भी कार्य मिल गया । चारों ओर डिब्बों पर अजित की फ़ोटो देखकर उन्हें ऐसा लगता मानो अजित उनके साथ ही है ।
इस बीच महक के मम्मी- पापा और माँ- बाबा जब भी उसके भविष्य को लेकर प्रश्न उठाते तो उसका वही जवाब होता —
मैंने कभी मना नहीं किया पर मैं आप दोनों को छोड़कर कभी नहीं जाऊँगी ।
आख़िर एक दिन न्यूज़ीलैंड में रहने वाले एक व्यक्ति ने महक का बिज़नेस देखने के इरादे से उससे फ़ोन पर निवेदन किया कि वह उनसे मिलने आना चाहता है । दिल्ली से टैक्सी द्वारा दूर – दराज पहुँच कर जब जेम्स महक और माँ- बाबा से मिला तो बहुत ही प्रभावित हुआ । उसे लगा था कि महक माँ- बाबा की बेटी है पर असलियत पता चलने पर वह हक्का- बक्का रह गया और कहीं न कहीं महक के लिए उसके मन में श्रद्धा का भाव पैदा हो गया ।
जेम्स ने “ अजित देशी घी “ के साथ मिलकर बिज़नेस बढ़ाने का प्रस्ताव महक के सामने रखा पर महक ने कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि पैसा कमाना उसका उद्देश्य नहीं था… वह तो केवल अजित के नाम को ज़िंदा रखकर माँ- बाबा का सहारा बनना चाहती थी विवाह- वेदी पर लिए वचन के अनुसार अजित के दुख- सुख की सच्ची साथी बनना चाहती थी ।
ख़ैर जेम्स ने भी उस पर अपना बिज़नेस वाला आइडिया थोपने की कोशिश नहीं की पर महक की कंपनी से सामान आर्डर पर मँगाकर अपने हिंदुस्तानी साथियों को गिफ़्ट किए । एक बार स्वाद चखने के बाद बिक्री खुद बख़ुद बढ़ गई । विदेशों में फैलते कारोबार को देखकर महक ने खुद जेम्स को सहायता करने का प्रस्ताव दिया जिसे उसने ख़ुशी से मान लिया । पाँच साल की पार्टनरशिप के बाद महक को इतना यक़ीन तो हो गया कि जेम्स बहुत अच्छा व्यक्ति है । वह साल में तीन- चार बार उनके घर आता , भाषा की अड़चन होते हुए भी माँ- बाबा के साथ समय बिताता , उनका ख़्याल रखता । आख़िर एक दिन बाबा ने महक से कहा—-
बिटिया! अब न जाने कब बुलावा आ जाए । अजित के जाने के बाद तूने तो हमें अकेला नहीं छोड़ा पर क्या तुम चाहोगी कि हम तुम्हें अकेला छोड़कर चले जाए ?
नहीं बाबा ….. मैंने पहले भी मना नहीं किया पर मेरी आज भी यही शर्त है कि मैं …..
बिटिया, अगर तुम्हें एतराज़ न हो तो मुझे जेम्स बहुत अच्छा लगा…. पढ़ा- लिखा और समझदार होने के साथ संस्कारी है । मेरी और तुम्हारी माँ की तो इच्छा है, बाक़ी एक बार तुम्हारे मम्मी- पापा भी मिल- देख लें तो ठीक रहेगा ।
ठीक है बाबा , जैसा आप ठीक समझें पर मेरी शर्त…..
हाँ….. वो भी बता दूँगा ।
दो दिन बाद ही महक के मम्मी- पापा भी आ गए और जेम्स के साथ बातचीत हो गई ।
बेटा, जाने से पहले गाँव बिरादरी की मौजूदगी में फेरे ले लो । कोर्ट- कचहरी का विवाह बाद में कर लेना ।
जब कन्यादान के समय पंडित जी के बुलाने पर मम्मी- पापा ने माँ- बाबा को रस्म के लिए बैठाया तो महक की आँखों से लुढ़के आँसू मोती बनकर चमक रहे थे , जिन्हें माँ ने गालों से उठा अपने सीने से लगा लिया था ।
लेखिका : करुणा मलिक
# आँसू बन गए मोती
VM