बधाई हो माँ, पहले पोते की सगाई की । अब तो आप दादी सास बन गई ।
पूर्णिमा ने गाड़ी से उतरकर मिठाई का डिब्बा बरामदे में बैठी अपनी सास की गोद में रखकर चरण छूते हुए कहा ।
तुम्हें भी बधाई हो पूर्णिमा रानी ! तुम भी तो सास बन गई । सब काज ठीक से हो गया ?
हाँ माँ, बस आपकी कमी खल रही थी । लड़की वाले भी बार-बार कह रहे थे कि माँ जी को भी लाना चाहिए था ।
मन तो मेरा भी वही पड़ा था पर कमर और घुटनों से बेकार हो चुकी । पाँच/ छह घंटे का सफ़र था । प्रभा और उमा पहुँच गई थी टाइम से ?
हाँ माँ, दोनों ठीक समय पर मिल गई थी । अपनी – अपनी गाड़ी में थी । प्रभा – उमा जीजी , दोनों जीजाजी थे और मुकुल , मुकेश थे …..
गौरी को नहीं लाए थे क्या ?
हाँ, गौरी और उसके पति भी थे । पहले हम सब एक पेट्रोल पंप पर इकट्ठा हुए और एक साथ पहुँचे वहाँ ।
मिलजुल कर काम करने में दुगुनी रौनक़ लग जाती हैं । चलो ये बढ़िया किया कि तारीख़ निश्चित हो गई , अब तैयारी शुरू कर दो ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
जिंदगी की गाड़ी समय पर ही पकड़ लेनी चाहिए , छूटनी नहीं चाहिए – राजश्री जैन : Moral Stories in Hindi
इस तरह पूर्णिमा ने अपनी सास को समधियाने की सारी बातें बताई । धीरे-धीरे वह दिन भी आ पहुँचा जिसका पूरे परिवार को बेसब्री से इंतज़ार था । घर के सबसे बड़े पोते की शादी । सारे बुआ- फूफा , मौसी- मौसा और ममेरे – मौसेरे – फुफेरे भाई- बहनों को पराग की शादी का उसी दिन से इंतज़ार था जब नौकरी लगने पर सबने सुना कि पराग के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए हैं । केवल बड़ी बुआ की बेटी गौरी विवाहिता थी बाक़ी सब में बड़ा पराग ही था । इसलिए दस दिन पहले से ही घर में रौनक़ लग गई थी । उसका एक बड़ा कारण यह भी था कि ज़्यादातर स्कूल- कॉलेज में सर्दियों की छुट्टियाँ चल रही थी ।
पूर्णिमा रानी , सबका चाय- नाश्ता हो गया क्या?
कहाँ माँ ? ये बच्चे पूरी रात तो जागते हैं और अब दस बजे के बाद उठेंगे । छोटा सा दिन होता है । कब नाश्ता होगा और कब दोपहर का खाना?
अरे भाभी, नाश्ते खाने का झंझट ख़त्म करो वरना रसोई में चूल्हे को आराम भी नहीं मिलेगा । सीधे खाना दो और काम ख़त्म ।
ना जीजी , कब- कब मिलते हैं ये सब ? और आगे कब मिलेंगे, क्या पता ? रसोई संभालने के लिए चार औरतें अलग से बुला रखी है । चिंता मत करो …..आप सब नाचो- गाओ और खाओ- पीओ बस ।
यूँ ही रानी नहीं कहती , दिल की रानी है मेरी पूर्णिमा । कितने भी लोग आ गए, कभी शिकन तक नहीं आई इसके चेहरे पर। बड़े दिल की है । हर किसी का ख़्याल रखने वाली ।
ये तो सौ आने सही बात कही माँ जी । सिर्फ़ कहने के लिए नहीं , व्यवहार से रानी है आपकी बहू । हम तो बारह साल से इस घर में काम कर रहे हैं पर मजाल है कि पूर्णिमा भाभी ने कभी दिल दुखाया हो या तीज- त्योहार पर मान ना किया हो । और हमारे घर की ब्याह शादी में बिना बोले , हमारी मदद ना की हो ।
बर्तन साफ़ करती लचछो के मुँह से अपनी बहुरानी की प्रशंसा सुनकर माँ जी के चेहरे की चमक बढ़ गई ।
बड़ी ही धूमधाम से पराग की बारात वधू के द्वार पहुँची । और बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सभी घर की बहू रानी को साथ लेकर लौटे । भाई- बहनों ने जमकर मस्ती की और हर रीति रिवाज के अनुसार लेनदेन का आनंद उठाया । जहाँ सारी बहनों ने द्वार पर भाई- भाभी को रोककर मनपसंद उपहार लिए तो कंगना खुलाई की रस्म के अवसर पर देवरों की पूरी सेना भाभी के गोद में बैठने के नाम पर ख़ाली चेक की डिमांड पर अड़ गई।हँसी – ठिठोली की आवाज़ से घर का कोना-कोना गूँज उठा ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
पूर्णिमा ने हर रस्म के लिए अपने पति और छोटे बेटे के साथ मिलकर सबके लिए उपहारों की व्यवस्था कर रखी थी । छोटे छोटे पर कुछ अलग हटकर उपयोगी उपहारों को पाकर सभी बच्चों के चेहरे खिल उठे थे । पराग और नई नवेली निधि भी सास की दूरदर्शिता से काफ़ी प्रभावित हुई ।
भाभी! गौरी तो सुबह जल्दी निकलेगी तो निधि रानी से हलवा या खीर बनवाकर पहली रसोई की रस्म करवा लो ।
उफ़्फ़, निधि रानी ! इन्हें कैसे पता चला कि मेरा पूरा नाम निधि रानी है । पक्का दादी ने बताया होगा बड़ी खुश होकर । अब तक तो सहेलियाँ ही मज़ाक़ उड़ाती थी और छोटे भाई- बहन छेड़ते थे पर यहाँ भी ….. कितना रोई थी वह जब उसका टैंथ का एडमिट कार्ड आया था- ‘ निधि रानी ‘
स्कूल में मम्मी- पापा फार्म पर हस्ताक्षर करने गए थे । इसका मतलब मम्मी- पापा नाम के साथ रानी लगा आए थे । दादी हमेशा ही उसे निधिरानी कहती और वह चिढ़ जाती थी ।
‘ रानी ‘ सुनते ही बहू निधि ने सोचा कि अब तो यहाँ भी मुझे मज़ाक़ का पात्र बनना पड़ेगा ।
बहुरानी ! किन ख़्यालों में खो गई? तुम्हारी बुआ कह रही है कि पहली रसोई की रस्म आज करवा दें क्योंकि इकलौती विवाहिता ननद कल सवेरे चार बजे चली जाएगी ।
कहाँ हो निधि रानी ? भाभी , कहाँ है बहू ? अच्छा….. यहाँ रसोई में हो । ठीक है भाभी , गौरी को कहती हूँ कि चूल्हे पर स्वास्तिक बना दे ताकि बहू पहली रसोई का नेग करे ।
तभी पूर्णिमा की नज़र निधि पर पड़ी —-
क्या हुआ रानी ? घर की याद आ गई या थक गई? चल एक बार सूजी डाल दे कढ़ाई में…. फिर भूनने का काम सरोज कर देगी ।
मम्मी जी, आपको किसने बताया कि मार्कशीट में मेरा नाम निधि रानी है…
अच्छा…. मार्कशीट में तुम्हारा नाम निधि रानी है । कोई बात नहीं…. चलो बेटा , पहले हलवा बना दो । देखो , गौरी ने भी स्वास्तिक बना दिया…. ये लो अपनी ननद के पैर छूकर उन्हें उपहार दो और माँ अन्नपूर्णा को नमन करके अपनी रसोई शुरू करो ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
तभी पूर्णिमा की सास आई । पूर्णिमा ने सास को तुरंत बरामदे में से कुर्सी लाकर बिठाते हुए कहा—- माँ! आज से तीस साल पहले आपने मुझे इसी रसोई में परिवार की बहुरानी बनने का आशीर्वाद दिया था । आज निधि को ….
नहीं पूर्णिमा रानी, आज ये तेरा अधिकार है । सास ने पूर्णिमा की बात को काटते हुए कहा ।
निधि की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है । वह तो बेचारी रानी शब्द में खोई थी । तभी सास ने निधि के सर पर पल्लू रखा और अपना हाथ पल्लू के ऊपर रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा—-
बहू , रानी एक शब्द नहीं, अभिमान है, विश्वास है, प्रेम है और अपनत्व है । बहू तो हर लड़की बन सकती है पर बहुरानी बनना सबके हिस्से में नहीं आता । तुम रानी बनकर अपने पति और नए परिवार का अभिमान बनना । तुम हमारे घर में आने वाले हर उस मेहमान का विश्वास बनना जिसे यहाँ पहुँचने पर प्रेम- सत्कार और अपनत्व मिलेगा । माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद हमेशा तुम पर बना रहे ।
आज निधि नतमस्तक थी अपनी दादी, अपने माता-पिता और विशेष रूप से अपनी सास के समक्ष , जिन्होंने उसके नाम के सामने रानी जोड़ा और रानी शब्द से परिचित कराया ।
करुणा मलिक