रात का अंधेरा धीरे-धीरे शहर पर छा चुका था। चारों ओर सन्नाटा था, परंतु दिल के भीतर तूफ़ान मच रहा था। अर्धमृत से शरीर में जान तो थी, पर दिल पर लगे ज़ख्म की गहराई से निकलते खून के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। यह कहानी है एक पिता, रमेश, की, जो अपनी बेटी आर्या की मासूमियत खोने का गवाह बना था।
आर्या बचपन से ही बेहद खुशमिजाज और चुलबुली थी। उसकी हंसी में वो मासूमियत थी जो हर दिल को छू जाती थी। पिता-पुत्री का रिश्ता केवल खून का नहीं था, बल्कि एक अटूट बंधन था जो हर मुश्किल घड़ी में उन्हें एक-दूसरे के करीब लाता था। लेकिन समय की बेरहमी ने इस प्यारे रिश्ते को तोड़ने की ठानी थी।
एक दिन, स्कूल से लौटते वक्त आर्या अचानक गायब हो गई। रमेश ने आसमान सिर पर उठा लिया। पुलिस, रिश्तेदार, दोस्त—सबने उसकी खोज शुरू की, पर आर्या का कोई सुराग नहीं मिला। हर गुजरता दिन रमेश की जिंदगी से उम्मीदें छीन रहा था, और दिल से खून के आँसू निकलते जा रहे थे।
तीन दिन बाद, पुलिस ने एक सुनसान जगह से आर्या का शव बरामद किया। वह मासूम चेहरा, जिसकी चमक से रमेश की दुनिया रौशन होती थी, अब बुझ चुकी थी। उसकी आँखों में वह दर्द और बेबसी थी, जैसे उसकी मासूमियत को रौंदा गया हो।
रमेश की आँखों के सामने जब वह दृश्य आया, तो उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई। वह रोया नहीं, क्योंकि आंसूओं की जगह अब उसकी आँखों से खून के आँसू बहने लगे थे। उसकी बेटी की मौत के साथ उसके दिल की सारी भावनाएं मर चुकी थीं।
आर्या के हत्यारे को पकड़ने के लिए पुलिस ने हर कोशिश की, परंतु सब बेकार। कानून की जटिलताओं में रमेश की उम्मीदें भी उलझ गईं। अब उसके लिए एक ही रास्ता बचा था—बदला।
रातों को रमेश सो नहीं पाता। उसकी आँखों में आर्या का मासूम चेहरा और उसकी चीखें गूंजतीं। धीरे-धीरे वह खुद को आर्या के हत्यारे की खोज में झोंक चुका था। उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई थी—बदले की आग।
कई महीनों बाद, एक दिन रमेश को उस दरिंदे का पता चला जिसने उसकी बेटी की जिंदगी छीन ली थी। वह रात उसकी जिंदगी की सबसे लंबी रात थी। रमेश ने उस दरिंदे को पकड़कर उसके सामने अपनी बेटी की तस्वीर रख दी, और बोला, “तूने मेरी बेटी से उसकी जिंदगी छीनी, अब मैं तुझसे तेरा अंत छीनूंगा।”
उसके हाथों से जब खून टपका, तो उसकी आँखों से खून के आँसू फिर से बहने लगे। बदला पूरा हो चुका था, पर उसकी बेटी अब भी नहीं थी।
साइमा बानो