डियर पापा – मीनू मोहलेजी : Moral Stories in Hindi

आपके आशीर्वाद और मां की दुआओं से मैं यहां न्यूयॉर्क में रहते हुए बहुत सुखी हूं।आज मेरे पास घर,गाड़ी,अच्छी नौकरी,सुख सुविधा के सभी साधन हैं,बस नहीं है तो केवल समय।यही कारण है कि पिछले महीने आपको हार्ट अटैक पड़ने और आपके हॉस्पिटल में भर्ती होने की खबर मिलने पर भी मैं इंडिया नहीं आ पाया।हां, पैसों की व्यवस्था मैने यहीं बैठे बैठे कर दी थी ताकि मां को कोई तकलीफ़ न हो।

आपसे मिलने का बहुत मन करता है,दिल चाहता है,आपके दुख दर्द को बांटू ,आपसे और मां से ढेर सी बातें करूं, पर मीलों लंबी दूरी,बच्चों की पढ़ाई की मजबूरी,मेरी और आपकी बहू के ऑफिस की मजबूरी….सुख सुविधा संपन्न लाइफ स्टाइल…मैं चाहकर भी आपके पास नहीं आ सकता। दिल और दिमाग़ में यही झंझावत चलता रहता है।

एक बात अक्सर मेरे दिमाग में आती है। बचपन से ही आपकी इच्छा थी कि आपका इकलौता बेटा यानी मैं,विदेश जाकर नौकरी करूं,खूब पैसे कमाऊ ताकि आप भी अपनी बिरादरी में शान से सीना चौड़ा कर चल सकें।ताऊजी के दोनों पुत्र काफी पहले विदेश जाकर बस गए थे।ताऊजी गर्व से अपने बेटों द्वारा भेजे गए डॉलर का जिक्र करते

तब आपका चेहरा फीका पड़ते हुए मैने अपनी आंखों से देखा है। मैं बचपन में कहां जानता था,अमेरिका कहां है,डॉलर किसे कहते हैं,गाड़ी,बंगला,पद प्रतिष्ठा क्या होती है।

आपके कहे अनुसार मैं कॉन्वेंट में पढ़ा।मंहगी फ़ीस देकर कोचिंग ली,इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की।आपके मन में दबी पद,पैसे,रिश्तेदारों में रुआब डालने की लालसा….सब आपने मेरे मन में उड़ेली। “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा,मेरा बेटा बड़ा आदमी बनेगा….”

सोते,जागते,उठते बैठते मां भी लोरी की जगह मेरे कान में यही गुनगुनाया करतीं।हालांकि मैं कतई आप दोनों को अकेला छोड़कर विदेश जाना नहीं चाहता था।इतना विश्वास तो था मुझे खुद पर कि अपने देश में ही रहते हुए मैं आपके और अपने परिवार के लिए अच्छी नौकरी हासिल कर ऐशो आराम के सारे साधन जुटा सकता हूं पर आपकी जिद के आगे मेरी एक न चली।

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अब मैं यहां सैटल हो गया हूं ,आपसे हजारों किलोमीटर दूर रहते हुए सुख सुविधा का आनंद ले रहा हूं पर मेरे दिल में यह मलाल रहता है कि मैं आपकी सेवा नहीं कर पा रहा,पुत्र धर्म नहीं निभा पा रहा।आपको और मां को पोते पोतियों के साथ खेलने और समय बिताने के सुख से वंचित रखा है मैने।

पिछली बार मां ने फ़ोन पर बात करते हुए मुझे संवेदनहीन बता दिया।खून सफ़ेद हो गया है,बाप की सेवा करने नहीं आ सकता,मां को सहारा नहीं दे सकता…न जाने क्या क्या बातें सुना डाली उन्होंने।अब उन्हें कैसे समझाऊं कि मेरा परिवार,मेरे बच्चे इस भौतिक संपन्नता,यहां के आज़ाद माहौल के इतने आदी हो गए हैं कि अब अपने देश वापस ही नही लौटना चाहते।

अब आप लोग किसी न किसी बहाने मेरे पास वाट्सअप पर संदेश भेजते हो कि…माता पिता जीवन भर कष्ट उठाकर बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाते हैं और बच्चे विदेश जाकर उन्हें भूल जाते हैं।

पर पापा,सच बताना,क्या इस संवेदनहीनता का जिम्मेदार मैं अकेला हूं ?क्या इन सब हालातों का सारा दोष सिर्फ मेरा है? जरा सोचना पापा!!!

आपका बेटा…..

स्वरचित, मौलिक

मीनू मोहलेजी

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