सोने के कंगन – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

मुग्धा, विवाह की पहली वर्षगाँठ की बहुत बहुत बधाई! आज मैंने दफ़्तर से छुट्टी ली है, चलो कहीं बाहर घूम कर आएँगे और खाना भी बाहर ही खाएँगे । अरे हाँ, माँ ने विशेष रूप से कहा है कि तुम्हारी मनपसंद कोई उपहार भी दिलवा दूँ, बताओ … क्या चाहिए?

आपने कह दिया तो समझो , मिल गया । घर में ही कुछ बनाती हूँ, छुट्टी का ख़्याल आपको कैसे आ गया? पर सही किया … शाम को पार्क चलेंगे…. कुछ देर साथ बैठकर वक़्त बिताएँगे ।

मुग्धा जानती थी कि पति दिनेश कभी भी बाहर का नहीं खाते । अगर कभी मजबूरी में या शादी- ब्याह में खाना पड़ जाए तो अगले दो दिनों तक बदहजमी से परेशान रहते हैं…. इसलिए बाहर खाने से मना कर दिया ।

माँ और छोटी ननद  सुधा ने आज मुग्धा को रसोई में नहीं जाने दिया । घर में ही दिनेश और मुग्धा की पसंद का खाना बनाया।  खाने के बाद सास ने कहा —-

दिनेश, जाओ बेटा! आज छुट्टी ली है तो घूम-फिर आओ । दिन  भी छोटा होता है, समय से घर आ जाना और देखो कुछ खरीदवा देना आज , उसकी पसंद का । 

दिनेश अच्छी तरह जानता था कि मुग्धा उपहार में कुछ नहीं लेगी । विवाह की पहली रात मुँह दिखाई की रस्म के नाम पर उसने खुद ही कहा था——

मुग्धा, तुम बताओ … मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया था, मेरा कोई ऐसा मित्र भी नहीं जिसके साथ ऐसी निजी बातें करता ……तुम्हारी इच्छा क्या है, मैं वही दिलवा दूँगा। 

पहले तो मुग्धा सकुचाई पर जब दिनेश ने बहुत ज़ोर दिया और कहा कि वह उपहार चुनने में बहुत कच्चा है तो मुग्धा ने गर्दन झुकाकर कहा था—-

सोने के कंगनों के बीच चूड़ियाँ पहनने का मुझे  बड़ा चाव है पर हमारे यहाँ लड़कियों को मायके से सोने के कंगन नहीं दिए जाते ,अगर आप …..

अच्छा….. तो सोने के कंगन की इच्छा है हमारी धर्मपत्नी की । दरअसल माँ तो कह रही थी कि तुम्हारे लिए कंगन बनवाएँ पर…. वो …

वो क्या , बताएँ, अब मैं भी इस घर की सदस्य हूँ, क्या बात है, क्यों आपका मुँह उतर गया ? 

मुग्धा, पापा के इलाज में पैसा पानी की तरह बह गया । ना पापा बचे , ना जमापूँजी और ना ज़ेवर । फिर सीमा और सुमन की बढ़ती उम्र देखकर, छोटी होने के बावजूद भी पहले शादी करनी पड़ी । सिर पर काफ़ी क़र्ज़ हो गया , हालाँकि दोनों की ही ससुराल वाले बड़े अच्छे हैं । दहेज के नाम पर कुछ नहीं माँगा पर लड़कियों को ख़ाली हाथ तो विदा नहीं किया जा सकता इसलिए थोड़ा-थोड़ा करने में भी क़र्ज़ लेना ही पड़ा । 

इसलिए तुम्हारे लिए एक चेन और अंगूठी का ही बंदोबस्त कर पाए पर मैं तुम्हारे लिए जल्दी से जल्दी कंगन ख़रीदने की कोशिश करूँगा । 

मुग्धा दिनेश की सच्चाई और सरलता से बड़ी प्रभावित हुई । वैसे तो दिनेश और उसके परिवार के बारे में हर किसी से अच्छा ही अच्छा सुना था । उसके रिश्ते के लिए पापा ने कहाँ-कहाँ की ख़ाक छानी पर जहाँ भी जाते , लंबी चौड़ी माँग सुनकर ख़ाली हाथ लौट आते । रिश्ते देखते-देखते मुग्धा की उम्र बढ़ती रही , ऐसे में जब दिनेश के साथ रिश्ते की बात चली तो दोनों ही तरफ़ बढ़ी उम्र को लेकर शंका थी कि आख़िर अब तक शादी क्यों नहीं हुई । पर पहली ही मुलाक़ात में दिनेश की माँ ने बेटे के विवाह में देरी का कारण और मुग्धा के माता-पिता ने बेटी का समय पर न होने का असली कारण एक दूसरे को बताया । दोनों पक्ष एक-दूसरे के उत्तर से संतुष्ट हो गए और बड़े ही सादे समारोह में मुग्धा और दिनेश ने एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया । 

हर गुजरते दिन के साथ मुग्धा और दिनेश के बीच समझदारी और प्रेम बढ़ता गया । और आज उनके विवाह की पहली वर्षगाँठ भी आ गई । दोनों पहले मंदिर गए , फिर पार्क की गुनगुनी धूप में बैठकर बातें कीं तथा लौटते हुए दिनेश ने कहा—

मुग्धा, चलो मुझे तो बाहर का खाने से परेशानी हो जाती है पर तुम आज अपने मनपसंद गोल- गप्पें खाने से इंकार मत करना।और हाँ, एक गोल- गप्पा खाने से मुझे भी मत रोकना । 

जब दोनों खिलखिलाते घर में आए तो सास ने खूब दुआएँ दी और ननद ने छेड़खानी की । 

साल भर के अंदर ही मुग्धा ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया । गृहस्थी की गाड़ी अपनी चाल चलती रही । इधर दो-दो बच्चों का एक साथ खर्च, माँ की बढ़ती उम्र की बीमारियों का खर्च, मुग्धा के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता तथा सुधा के विवाह की तैयारियाँ……… चाहते हुए भी दिनेश आज तक मुग्धा के लिए कंगन नहीं बनवा पाया । मुग्धा ने तो कभी शिकायत नहीं की पर वह अक्सर कह देता—-

मुग्धा, पता नहीं कब तुम्हें मुँह दिखाई के कंगन दे पाऊँगा ।एक के बाद एक ज़िम्मेदारी….. पहले सोचा कि क़र्ज़ पूरा हो जाए तो सबसे पहले कंगन बनवाऊँगा, फिर डिलीवरी , फिर सुधा की शादी…. घर का खर्च…रिश्तेदारी का निर्वाह….. 

बन जाएँगे कंगन भी , जो खर्च ज़रूरी है वो ही करते हैं । महँगाई भी तो दिनों दिन बढ़ती जा रही है । मध्यमवर्गीय परिवार को तो सौ बातें सोचनी पड़ती हैं । 

मुग्धा, इस करवा – चौथ पर अपने लिए चार कंगन ख़रीद ही लो , मुझे ऐसा लगता है कि घर – परिवार में ऐसा कभी नहीं होगा कि अब कोई ज़िम्मेदारी नहीं रही  और  अब हम अपने शौक़ पूरे करेंगे ।

पर आज माँ के पास बराबर वाली आँटी आई थी । वे अपने मकान को बेच रही है । अब उन्होंने नोएडा में अपनी बेटी की बग़ल में फ़्लैट ख़रीद लिया है तो माँ से कह रही थी कि पहली छाँट आपकी है , आप मना कर दोगे तब दूसरों को बताएँगी ।मैं तो कहती हूँ कि थोड़ा ऊपर- नीचे करके मकान ख़रीद लो , मौक़े का है , थोड़ी खुली जगह हो जाएगी….. कंगन का क्या है , आगे बन जाएँगे । 

इसके बाद बच्चों की शिक्षा, विवाह, भात- नेग होते चले गए और न तो दिनेश को कंगन याद रहे ना ही कभी मुग्धा ने याद दिलाया । दोनों बच्चों की शादी में लाखों का ज़ेवर ख़रीदा गया। बहू के लिए मीनाकारी के कंगन ख़रीदते समय एक बार उसका मन किया भी कि लगे हाथों अपने लिए भी ख़रीद लें पर दूसरे ही पल ख़रीदने के ख़्याल को दिल से निकालते हुए सोचा—- अभी तो कितना कपड़ा ख़रीदना है, माँ तीनों बुआओं को भतीजे के ब्याह की एक-एक अंगूठी देना चाहती हैं , बाद में देखा जाएगा । 

मुग्धा की तबीयत ख़राब रहने लगी  थी । एक रात ऐसा दर्द उठा कि रात में ही अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा । दो दिन आई० सी० यू० में रहने के बाद उसे कमरे में शिफ़्ट कर दिया गया । सेब छिलकर देते हुए दिनेश  अचानक मुग्धा की सूनी कलाइयों को देखकर बोले——

ये अस्पताल वाले भी ना , कल घर से तुम्हारी चूड़ियाँ लेकर आऊँगा और देखो , इस बार चूड़ियों के साथ पहनने के लिए अपने कंगन ले लेना ….

—- अंश को पैसे ट्रांसफ़र कर दिए क्या  ?  कह  रहा था कि दीवाली तक रजिस्ट्री हो जाए तो अच्छा रहेगा । अब पेंशन में दोनों काम तो होने …… कंगन फिर ले लेंगे … बहू- बेटा कहेंगे कि बुढ़ापे में कंगन ख़रीदने की पड़ी है और हमारी मदद नहीं की । 

—- उम्र गुजर गई मुग्धा  ,पर हमें अपने लिए कुछ करने का समय नहीं मिला ? चलो … लेट जाओ, बहुत देर से बैठी हो । मैं भी कैंटीन से खाना खा आता हूँ । 

—- कल घर चलेंगे बस , बाहर का खाकर आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी…..

—- मुग्धा…. मुग्धा, उठो …. ये गोली खानी है …. अरे सुन रही हो ? 

कहकर दिनेश ने मुग्धा की सूनी कलाई को हाथ में उठाना चाहा पर वह कलाई तो काँपते हाथों से फिसल कर नीचे झूल गई ।

लेखिका : करुणा मलिक

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