“बता किसका बच्चा है, मेरा बेटा तो छह महीने से घर आया नहीं, मायके मे कहा से मुँह काला करवा कर आयी है
” यह शब्द मेरी दादी के थे, जो अपनी बहु से कह रही थी.मेरे चाचा जी आर्मी मे थे, पहले आर्मी वालो को छह महीने मे ही छुट्टी मिलती थी
, और मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे, हाँ गांव मे एक -दो घरों मे लैंड लाइन फ़ोन होते थे जिसे यदा -कदा बात हो जाती थी. अब बात करते है मेरी चाची की,
जो छ महीने मायके रह कर आयी थी, हुआ ऐसा था कि मेरे चाचा जी कि बटालियन मेरी चाची के गांव से गुजारी तो चाचा जी को एक रात चाची जी के साथ बिताने को मिल गया,
इसका नतीजा यह हुआ कि चाची जी गर्भवती हो गयी, यह बात मेरी दादी को नहीं पता थी कि चाचा जी चाची के पास गये थे,
इसलिए वह चाची पर इलज़ाम लगाती रही, चाची अपनी सफाई देती रही लेकिन दादी ने एक भी नहीं सुनी, और उनपर जुर्म करने शुरू कर दिए,
चाची चुचाप सहती रही और घर के सारे काम भी निष्ठा भाव से करती रही, उन्हें आशा थी कि, जब चाचा जी आ कर सच बताइएँगे तोह जब ठीक हो जायेगा,
इसी आस मे वह दादी के सारे अत्याचार सहती रही. एक दिन तो हद हो गयी जब मै स्कूल से आयी तोह मैंने देखा मेरे दादी जो भारी -भरकम शरीर वाली है,
चाची के ऊपर चढ़ी बैठी है और मार रही थी, मै डर गयी क्योँकि घर मे कोई नहीं था, मै भाग कर पड़ोस वाले काका को बुला लायी तब तक देर हो चुकी थी
मेरी दादी ने चाची के ऊपर पेट्रोल डालकर जला दिया था, आनन -फानन मे काका ने चाची को बचाया और आग से बाहर निकाल लाये तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी,
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मेरी चाची अस्सी प्रतिशत जल चुकी थी, गांव के हॉस्पिटल ले जाया गया वहां के डॉक्टर ने चाची को शहर ले जाने कि सलाह दी लेकिन मेरी दादी नहीं मानी
और चाची को घर ले आयी, कहते है ना जले को पानी नहीं पिलाना चाहिए, लेकिन मेरी दादी हमेशा मेरी चाची को पानी ही पिलाती रहती थी
ताकि वह जल्दी भगवान को प्यारी हो जाये, और वह समय भी जल्दी आया जब मेरी चाची को बिना कसूर के इस दुनिया से विदा लेनी पड़ी.
काश दादी ने चाचा जी का इंतज़ार कर लिया होता, तोह शायद मेरी चाची और उनका बच्चा हमारे साथ होता.
“दोस्तों कभी -कभी हमारी जिंदगी मे ऐसे मोड आते है जब हमें हमारे विवेक से काम लेना चाहिए और बहु भी सही हो सकती है यह सोच रखनी चाहिए “
लक्ष्मी गौर
स्वरचित कहानी