माँ की आलमारी – प्रीति आनंद : Moral Stories in Hindi

माँ को गए आज छह महीने हो गए। पल-पल उनके याद में आँखें नम हो जाती थीं। जैसे कोई दुःख का बादल ठहर-सा गया था…. मेरे दिल पर।

आज मैंने पहली बार उनकी अलमारी खोली है। न जाने कितने तरह का समान सलीक़े से लगा हुआ है।

साड़ी-ब्लाउज़ के सैट बना कर कितने हिसाब से लगा रखा है माँ ने। साड़ी का रंग भले हल्का पड़ गया हो पर उन्हें पलंग के गद्दे के नीचे दबा कर रखती थीं। मजाल है कोई कह दे कि बिना प्रेस की साड़ी पहनी है उन्होंने!

सर्दियों के कपड़ों को धो-सुखा कर प्लास्टिक की पन्नियों में पैक कर रखा था। नैपथलीन की गोलियों के बिना भी कपड़े बिलकुल दुरुस्त रहते थे! शॉल, स्वेटर हो या चादर-कंबल, हर चीज़ अपने निर्धारित जगह पर थी।

दवाइयों के डिब्बे, खाने-पीने की चीजें की भी जगह थी। पुराने अल्बम, जो किनारे से घिसकर फट गए थे और जिन्हें वे अक्सर निकाल कर घंटों देखती रहतीं, उन्हें भी सहेज कर रखा हुआ था।

माँ के पास जब भी बैठी, वह छोटी-बड़ी कहानियाँ सुनाती थी… पर सारी कहानियाँ या तो उनके बचपन की होतीं या हमारे बचपन की!

उनके पास हम भाई-बहनों की शादी के बाद की घटनाओं से जुड़ी कोई कहानी नहीं थी। उन्होंने कहानियाँ समेटना छोड़ दिया था या फिर जीना? 

हम भी तो अपनी ज़िंदगी में इतने मसरूफ़ हो गये थे कि उनकी ज़िंदगी, उनकी दिनचर्या के बारे में उनसे ज़्यादा बात ही नहीं होती थी। फ़ोन मिलाया तो अपनी ही ज़िंदगी की व्यस्तता जताते रहते।

पिताजी की देहावसान के बाद जब वह भैया के यहाँ आ गईं तो मुलाक़ातें अधिक होने लगीं। हम कुछ ले जाते तो सदा मना करतीं… मेरी दी हुई तमाम चीज़ें भी सहेज कर रखी हुई थीं… मानो जान से भी ज़्यादा प्यारी हो! माँ की यही आदत थी… बचपन से मेरी हर चीज़ सहेज कर रखती।

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बचपन के उस घर में ज़रूरी-ग़ैरज़रूरी अनगिनत सामान था पर आज उनके ज़रूरत का हर सामान एक कमरे के एक छोटे-से कोने तक सिमट कर रह गया था। फिर भी मेरे बनाए चित्र हो या उनके जन्मदिन पर दिए हुए हाथ से बनाए कार्ड हो या कुछ ख़ास खिलौने …. सबको उस अलमारी में जगह मिली हुई थी।

एल्बम में जन्म से लेकर अभी तक की सारी तस्वीरें लगी हुई थीं। हर फोटो के लिए उनके पास कोई न कोई कहानी होती। और जब वह उसे बयान करतीं तो चेहरा कैसे खिल उठता था! मानो उन दिनों को फिर से जी रही हों!

कहीं पढ़ा था किसी बेटी ने माँ की सारी यादों को जीवित रखने के लिए एक टाइपिस्ट नियुक्त किया था जिसने उनकी सभी कहानियों को डायरी में क़ैद कर दिया था। काश मैंने भी कुछ ऐसा ही किया होता… तो माँ के शब्दों में ही लिखी उनकी जीवनी सदा मेरे पास रहती! जब याद आती, पन्ने पलट लेती!

स्वरचित

प्रीति आनंद

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