कान्हा ! आज तो ऑफिस जाना ही पड़ेगा, अब तो छुट्टी नहीं मिलेगी….. तुम्हारी तो कक्षाएँ नहीं लग रही तो बेटा ,दादी और पापा का ध्यान रखना….. तुम्हारा खाना टेबल पर रखा है… छोटे कैसरोल में सब्ज़ी और बड़े में रोटी …. दादी और पापा की खिचड़ी कुकर में इंडेक्शन पर बनी रखी है….. बस थोड़ी सी गुनगुनी करके दे देना।…..
सुन भी रहा है क्या ? उठ जा …. बारहवीं की परीक्षा है ….. तैयारी के लिए समय मिला है….. नहा-धोकर नाश्ता करके पढ़ने बैठ जा …
अरे मम्मी! आप छुट्टी क्यों नहीं कर लेती …..
बेटा …. एक हफ़्ते की छुट्टी तो ले ली …. सारी ई ०एल० कैसे ले लूँ ….. कभी इमरजेंसी में…..
क्या है ये इसका ध्यान रखो उसका ध्यान रखो ? फिर मत कहना कि अच्छे नंबर नहीं आए …. पढ़ने का समय तो मिलता ही नहीं….
कान्हा ! तुम्हें शर्म नहीं आती….. क्या काम करते हो तुम ? पूरा दिन तुम्हारे कानों में लीड लगी रहती है….. तुम पूरा दिन पढ़ोगे ? आठ बजे तक तो तुम बिस्तर पर पड़े हो ….
रात को देर से सोया था….
अच्छा….. मैं तो कुछ समझती ही नहीं…. डिस्कशन के नाम पर तुम ग्यारह बजे तक गौरव से बातें करते रहे….फिर सो गए ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
थोड़े सख़्त लहजे में हिदायत देकर इंदिरा घर से निकल गई । आज माँ जी और पति सोमेश को बुख़ार में छोड़ते हुए उसका दिल भर आया पर मजबूरी थी ….. छुट्टियाँ भी तो सीमित ही होती हैं । एक-दो दिन जाकर ….. फिर से छुट्टियाँ लेने की सोच ली ।
पूरे दस दिन हो गए…. सोमेश को वायरल फीवर ने जकड़ा हुआ है ….. कमजोरी आ गई है ।और माँ जी के घुटने की सर्जरी के बाद….. बुख़ार । दोनों के मुँह का ज़ायक़ा भी बिगड़ा हुआ है । ज़बरदस्ती खिलाना पड़ता है ।
ऑफिस आकर इंदिरा का काम में मन नहीं लगा पर …. क्या करती …. फ़ोन किया तो कान्हा ने नहीं उठाया….
उँह…. घुसा होगा … वाश रूम में । चलो थोड़ी देर में करती हूँ ।
दस दिन में इतना काम पेंडिंग हो गया …..
सोचकर इंदिरा ने काम में ध्यान लगाना उचित समझा पर दिमाग़ में सोमेश, माँ जी और कान्हा घूम रहे थे । तभी उसके साथ बैठी आरती ने कहा—
इंदिरा…. ध्यान कहाँ है? क्या भाई साहब की तबीयत ठीक नहीं… और तुम्हारी माँ जी कैसी हैं ? कान्हा की पढ़ाई कैसी चल रही है….
ठीक चल रही है । कहने को तो इंदिरा ने कह दिया पर उसका दिल जानता था कि बेटा तैयारी के लिए मिले अवकाश के नाम पर खूब सोता है, खूब दोस्तों से गप्पें मारता है….. एक तो पति और सास की तबीयत ठीक नहीं ऊपर से यह सुनकर कि कान्हा पढ़ाई के लिए बिल्कुल भी गंभीर नहीं तो सोमेश को चिंता हो जाती…. और माँ जी तो कह भी उठी थी—-
इंदिरा…… चल एक कुर्सी रसोई में डाल दे , मैं बैठी-बैठी रोटी सेंक दूँगी….अब तो बुख़ार उतर रखा है, तेरी निगरानी के बिना ये पढ़ेगा नहीं……
अब माँ जी, ये कोई बच्चा तो है नहीं…. बड़ा हो चुका है, इतने बड़े बच्चे माँ-बाप का सहारा बन जाते हैं पर इसे पता नहीं, कब अक़्ल आएगी? आप को बुख़ार है …. दवाई की वजह से उतरा है….. डॉक्टर ने घुटने पर ज़्यादा ज़ोर देने के लिए मना कर रखा है….. आप चिंता न करें , हो जाएगा ।
इंदिरा ने यह सोचकर ज़्यादा कहना- सुनना बंद कर दिया कि इन दोनों की तबीयत ठीक हो जाए , कान्हा की तरफ़ बाद में देखूँगी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
इंदिरा….. ए इंदिरा….. किन ख़्यालों में खो गई ? भाई साहब और माँ जी ठीक है क्या ?
आरती की आवाज़ से वह होश में आई —-
कहाँ यार ? माँ जी का तो चलो … बुख़ार उतर गया पर सोमेश का बुख़ार आज उतरेगा , अगले दिन फिर चढ़ जाता है । बहुत कमजोर हो गए ……
कौन से डॉक्टर को दिखाया है? चेकअप करवाया ….
डॉ० पंत को दिखा रखा है…… उन्हें सब अच्छा बताते हैं । माँ जी के घुटने की सर्जरी भी उसी अस्पताल के डॉ० गर्ग से करवाई है …..
हाँ…. मेडिसिन में डॉ० पंत की बराबरी नहीं…. क्या कहा उन्होंने? आजकल बीमारियाँ भी नई-नई चली हैं ।
बॉस भी दस दिन की छुट्टी पर गए हैं…. चल मेहता साहब को अपनी मजबूरी बताकर आधा घंटा पहले निकल जा …
मेहता साहब से बात करके इंदिरा चल दी । रास्ते में उसने फल और सब्ज़ी ख़रीदी । घर के सामने लगी पड़ोसियों की भीड़ देखकर इंदिरा का दिल धड़कने लगा—-
हे भगवान, कोई अनहोनी….. माता रानी दया करना….वह सब्ज़ियों का थैला रिक्शे में ही छोड़कर दरवाज़े की तरफ़ भागी …. माँ जी को एंबुलेंस में लिटाया जा रहा था——
माँ……. क्या हुआ, सोमेश ? मैं तो सुबह अच्छी भली छोड़कर..
माँ बाथरूम में गिर गई और बेहोश हो गई…. तुम्हें भी फ़ोन किया पर तुमने उठाया नहीं….
वो रास्ते में फल- सब्ज़ी लेने लगी , शायद उसी समय…….
इस कहानी को भी पढ़ें:
आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi
हुआ यूँ था कि खाने के बाद कान्हा किताब को पकड़े कानों में लीड लगाकर बैठ गया । सोमेश भी दवाई लेकर लेटा और उसकी भी आँख लग गई , उस समय माँ जी भी सो गई । फिर कुछ समय बाद सोमेश को तेज बुख़ार हो गया वह बुख़ार में बड़बड़ा रहा था ….बेटे की आवाज़ सुनकर माँ जी ने पहले तो कान्हा को आवाज़ लगाई पर जब उसने नहीं सुनी तो वह धीरे-धीरे उठकर बर्फ़ लेकर आई ताकि सोमेश के माथे पर पट्टी रख सकें ।
इसी बीच उन्होंने एक-दो बार फिर से पोते को आवाज़ लगाई पर उसके कानों में लीड लगी थी, कहाँ से सुनता ? कोई बीस-पच्चीस मिनट के बाद माँ जी वाशरूम गई ….. पता नहीं वहाँ उनका संतुलन बिगड़ा या पैर फिसला कि अचानक तेज धड़ाम की आवाज़ आई…. सोमेश उठकर दौड़ा और माँ को पड़ा देखकर उसके मुँह से तेज चीख निकली……
इतनी तेज कि बग़ल में रहने वाले पड़ोसी आ गए पर कान्हा अपने कमरे में अपने कानों में लीड लगाए गानों में खोया हुआ था । तभी पड़ोस के एक लड़के ने उसके कमरे में जाकर उसे हादसे की खबर दी और तब कान्हा बदहवास सा पिता के पास दौड़ा….. तब तक एंबुलेंस भी आ चुकी थी और इंदिरा भी ।
माँ जी को अस्पताल ले ज़ाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने ब्रेन हेमरेज के कारण उन्हें आई० सी० यू० में भर्ती कर लिया तथा दो दिन के बाद माँ जी को मृत घोषित कर दिया ।
माँ जी के मृत शरीर को देखकर इंदिरा आपा खो बैठी——
माँ जी! आपका पोता ही आपका हत्यारा है…..काश ! मैं ऑफिस ना जाती । सोमेश ! हमारे तो करम ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दिया ….. जिसके दिल में ना इज़्ज़त है, ना रहम ….. माँ जी….. हमें छोड़कर मत जाओ …..
आज माँ जी गए पूरे तेरह दिन हो गए थे पर इस बीच ना तो इंदिरा ने बेटे से बात की और ना ही कान्हा की हिम्मत हुई कि माँ के सामने जाकर कुछ कहे । हवन के समय भी कान्हा एक कोने में खड़ा माँ जी की तस्वीर के सामने आँसू बहाता रहा । वह शायद दादी से मन ही मन माफ़ी माँगता रहा ।
बीते दिनों में सोमेश का बुख़ार तो पूरी तरह से उतर गया था पर कमजोरी इतनी आ गई थी कि दस मिनट भी बैठा नहीं जाता था । वो तो अच्छा था कि नौकरी छोटी ही सही पर सरकारी थी , नहीं तो शायद इतनी लंबी छुट्टी के कारण नौकरी से हाथ धो बैठता ।
इंदिरा ने अपनी ननद को कुछ समय के लिए बुला लिया ताकि सोमेश को माँ जी की कमी अधिक ना खले ।धीरे-धीरे ज़िंदगी पटरी पर आने लगी और क़रीब आठ- दस दिन में सोमेश के स्वास्थ्य में भी काफ़ी सुधार हो गया ।
इधर इंदिरा ने कान्हा को बुआ के माध्यम से कह दिया——
इस कहानी को भी पढ़ें:
मैंने तो खुद को बेऔलाद सोच लिया है । मैंने तो क़सम खा ली , इसे कुछ नहीं कहूँगी…. पढ़ना है पढ़ें ना पढ़ना हो ना पढ़े ….. जो हमारा फ़र्ज़ है…. उसमें कमी की , ना करेंगे । दाल- रोटी के लिए तो एक की कमाई बहुत है …… मैं तो इसलिए नौकरी कर रही हूँ ताकि कल को बच्चा यूँ ना कहें कि मुझे कमी छोड़ दी ….
कान्हा चुपचाप अपने कमरे में बैठा सुन रहा था । हाँ….माँ जी के जाने के बाद कान्हा खुद सुबह उठकर पढ़ने बैठ जाता और अपना फ़ोन भी बाहर के कमरे में ही रखता , अगर किसी से कुछ काम होता तो इंदिरा या सोमेश के सामने बात करके तुरंत रख देता और कानों में लगाकर सुनने वाले सभी उपकरण, शायद उसने फेंक दिए थे ।
कान्हा की परीक्षा हुई , वह पास हो गया पर न तो सोमेश ने और न ही इंदिरा ने, कान्हा को बधाई दी मानो उन्होंने उससे रिश्ता ही तोड़ दिया था ।
सोमेश ने रिज़ल्ट के बाद पूछा ——
अगर एडमिशन लेना हो , बता देना ।
पापा …. एक साल ड्राप करके तैयारी करना चाहता हूँ……
कोई कोचिंग सेंटर ज्वाइन कर लो…..
नहीं… खुद ही पढ़ूँगा …… अगर ज़रूरत पड़ी तो बता दूँगा ।
माँ जी की मृत्यु ने उसे बहुत बदल दिया था । अब कान्हा अपने तो सारे काम करता ही था बल्कि बिना कहे ही घर के कामों में हाथ बँटा देता ….. पर माँ- बेटे के बीच संवादों का आदान-प्रदान नाम मात्र था । बात-बात पर कान्हा- कान्हा करने वाली इंदिरा ने मुँह ही सिल लिया था पर वो उसकी ज़रूरतों का पूरा ध्यान रखती थी । उसके खाने, पहनने , सोने इत्यादि का ….
आख़िर माँ थी …. शायद यही वो तरकीब थी जिससे कान्हा अपनी ज़िम्मेदारी समझ रहा था । कहना- सुनना , डाँट- डपट के बाद….. उपेक्षा ने कान्हा को यह अहसास दिला दिया था कि अब फ़िक्र करने वाला कोई नहीं…… इसलिए उसने अपने कर्तव्यों की तरफ़ ध्यान देना शुरू कर दिया था ।
पूरे एक साल की कठिन मेहनत और तपस्या के बाद आज कान्हा का आई ० आई० टी० , कानपुर में सिलेक्शन सुखद परिणाम के रूप में सोमेश और इंदिरा के सामने था । जब सोमेश के पैर छूने के बाद कान्हा इंदिरा के पैरों पर झुकने लगा तो उसने अपने दिल के टुकड़े को गले लगाकर भरी आवाज़ से कहा—-
मेरे बच्चे! अगर तू पहले ही मेरी बातों को गंभीरता से लेता तो आज माँ जी फूली ना समाती ….. तुझे क्या पता ….. मैंने अपने दिल पर कैसे पत्थर रख के तुझे एक श्राप से मुक्ति दिलाई है?
इस कहानी को भी पढ़ें:
“जज सब अपराधों की सजा एक साथ दे देता है “- बिमला महाजन : Moral Stories in Hindi
श्राप ? क्या कह रही हो , इंदिरा ! माँ जी की मृत्यु के कारण…..अरे , ईश्वर तो किसी न किसी को माध्यम बनाता है।
नहीं सोमेश! माँ जी की मृत्यु के कारण नहीं………..अपने बच्चे को यह कहना कि हमारे तो करम ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दिया, यह किसी श्राप से कम नहीं होता …… पर मेरे बेटे ने उस कलंक को मिटा दिया है ।मेरी माता रानी ने मेरी कोख और हमारी परवरिश पर दाग नहीं लगने दिया ।
आज माँ-बेटे के बीच की सारी दूरियाँ मिट गई थी ।
करुणा मलिक
# हमारे तो करम ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दिया
प्रेरक कथानक।