चाची….. कुछ सुनाई नहीं दे रहा… ज़ोर से बोलिए…. घर में सब ठीक है ना….. ओह … यहाँ बहुत शोरगुल है…. चाची … रूकिए ज़रा, मैं ऊपर कमरे में जाती हूँ…..
हाँ चाची….. अब बोलिए…. सब ठीक है ना? यहाँ सब रिश्तेदार, पड़ोसी आदि आए हैं…. असल में…. बिट्टू भैया का यही पास के कस्बे में सिविल हॉस्पिटल में मेडिकल ऑफ़िसर के रूप में अपॉइंटमेंट हुआ है…..
अरे ऋचा….. मैंने भी इसलिए ही फ़ोन किया है । सुन….
पर मैंने तो अभी किसी को घर पे फ़ोन तक नहीं किया …, चाची … आपको कैसे पता चला ?
तू भी बावली है…. तेरी सास ने वहाटसएप ग्रुप में स्टेट्स लगाया हुआ है, आज सुबह ग्यारह बजे का डाला हुआ है ।
क्या….. मम्मी जी ने ?? तभी मैं सोचूँ कि इतनी भीड़ एकदम कहाँ से आ गई…. भैया को खुद कल शाम ही पता चला है…. और उन्होंने तो रात में केवल अमर और पापाजी के सामने ज़िक्र किया था…… मुझे खुद रात को…..
छोड़ ना .. इन बातों को, देख राशि के रिश्ते की बात आज ही कर लेना अपनी सास से…. इन मामलों में लोग जल्दबाज़ी करते हैं………. दोनों बहने एक घर में रहेंगी तो कितना बढ़िया रहेगा । वैसे तेरी मम्मी ने ही याद दिलाया मुझे… चल …ऐसा कर , अब तू मेहमानों को देख … वैसे एक-दो दिन में हम खुद भी आएँगे ।
इतना कहकर चाची ने फ़ोन रख दिया और ऋचा यही सोचती रह गई कि….. वाह मम्मीजी ! हमारी पीढ़ी तो यूँ ही बदनाम हूँ….. फ़ोन पर तो आप लोग अपडेट रहते हैं….
सचमुच इतनी सी देर में , मौसी की देवरानी तो अपनी बेटी और दो किलो काजू- कतली लेकर पहुँच भी गई——
बहुत-बहुत बधाई….. लो मुँह मीठा करो…. मुझसे तो रुका नहीं गया …. तनु बोली, मैं तो व्यक्तिगत रूप से बधाई देकर आऊँगी । सच , तनु तो आपके परिवार को एक आदर्श परिवार मानती है । भला … कहाँ मिलती सरकारी नौकरी आजकल ? हज़ारों एम०बी०बी० एस० … एम० डी० ख़ाली बैठे हैं….
उनकी लच्छेदार बातों को सुनते ही ऋचा के कान खड़े हो गए । उसे लगा कि पता नहीं, जब तक चाचा- चाची आएँगे तब तक बिट्टू भैया …. नहीं-नहीं…. डॉ० सागर गर्ग को, राशि के लिए बचा भी पाएगी या नहीं…. तुरंत अपनी मम्मी को फ़ोन मिलाकर कहा——
मम्मी…. वो चाची दो- तीन दिन बाद आने की कह रही थी…. पर मुझे तो लग रहा है कि वे देर ना कर दें ……
इतनी सीधी ना है तेरी चाची, जहाँ भी कोई लड़का बता देता है वहीं कोई न कोई जानकारी निकाल के रिश्ता हाथ में कर लेती है । चल …. तू टेंशन मत ले …. बात तो चलती ही है….. इस तरह एकदम रिश्ता तय न करेंगे तेरे सास-ससुर ……
मम्मी की बात सुनकर ऋचा को तसल्ली मिली वरना उसे तो ऐसा लग रहा था कि मौसी की देवरानी रिंग सेरेमनी करके ही जाएँगी ।
इधर एक दिन के बाद , सागर ज्वाइनिंग के लिए गया और उधर उसके माता-पिता ने बड़ी बहू की चचेरी बहन राशि के लिए ज़बान दे दी क्योंकि राशि की भी इंटर्नशिप चल रही थी । एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे और सबसे बड़ी बात यह कि दोनों एक फ़ील्ड के थे ।
जब शाम को सागर आया तो ऋचा ख़ुशी से चहकते हुए बोली—-
सबसे पहले यह बताइए कि मैं आपको बिट्टू भैया कहूँ या सागर जीजू ?
मतलब ??
अब इतने भी भोले ना बनो जैसे कुछ समझते ही ना हो ….. और ऋचा ने चाचा-चाची के आने का कारण तथा बातचीत का आँखों देखा हाल बयान कर दिया ।
पर भाभी ….. इतनी जल्दी में ? बिना बातचीत, ऐसा कैसे??
इतने में कुसुम जी कमरे से आती हुई बोली—-
इतनी जल्दी….. जब से एम०बी०बी०एस० पूरी की है, हम तो लोगों को चाय-नाश्ता और खाना खिला खिलाकर थक गए और ये कह रहा है….. इतनी जल्दी ….. चलो तब तो हमने भी मान लिया था कि बिना स्पेशलाइजेशन के , कोई वैल्यू नहीं होती पर अब तो नौकरी भी लग गई……. भले ही रस्म नहीं हुई पर मैंने और तेरे पापा ने ज़बान दे दी ।
मतलब मम्मी, कम से कम इस बारे में बातचीत तो कर लेती..
क्यों… हमने तो अमर की बारी में भी इसी तरह किया था….. फिर लड़की से मिल लेना … इतना तो हमें भी पता है कि तेरे लिए कैसी लड़की ठीक रहेगी? क्यों… ऋचा?
हाँ भैया…. मेरी कज़िन राशि…. आप तो कई बार मिल चुके हैं। डॉक्टर है … दो महीने में इंटर्नशिप पूरी हो जाएगी , उसी….
बात वो नहीं है….. दरअसल….
देख बिट्टू….. राशि एकदम सही लड़की है । तू जानता नहीं, रिश्ता थोड़ी जान-पहचान में ही सही रहता है आजकल….. देख रहा है ना मुकुल का क़िस्सा ……. पचास लाख माँग रहे हैं लड़की वाले … समझौता करने का …
अरे मम्मी…..
भैया! आपने कोई लड़की खुद ही तो पसंद नहीं कर ली ?
असल में, मैं खुद एक- दो दिन में आप लोगों को राधिका से मिलवाना चाहता था पर आपने जल्द……
ले ….. जिस बात से डर रही थी वहीं हो गया । मन कह तो रहा था कि कुछ गड़बड़ है पर …..
मम्मी! राधिका बहुत अच्छी लड़की है…. बिल्कुल भाभी जैसी … डॉक्टर है और उसने भी पिछले हफ़्ते ही मेडिकल ऑफ़िसर के रूप में सहारनपुर के सरकारी अस्पताल में ज्वाइन किया है।एक बार मिलकर तो देखिए…..
अगर मुझे पसंद ना आई तो क्या……
कैसे पसंद नहीं आएगी…. ऐसा कभी नहीं हो सकता?
कुसुम जी ने बहुत हाथ- पाँव मारे पर थकहारकर , उन्हें बेटे की मर्ज़ी को स्वीकार करना ही पड़ा ।
ऋचा! सोच ले , कैसे कहेगी अपनी चाची को …. मैं तो बात नहीं कर सकती ।
सास की बात सुनकर ऋचा ने अपनी मम्मी को फ़ोन पर सारी घटना बताई, एक बार तो उन्हें भी बुरा लगा पर फिर यह सोचकर कि आजकल के बच्चे अपने हिसाब से करते हैं, उन्होंने ऋचा से कहा कि वो खुद चाची से बात करके बता दे ।
मम्मी! प्लीज़ आप बता दो ना …. मुझे शर्म आती है….
नहीं ऋचा, मेरी बात ओर है । ये बात वैसे तो तुम्हारे सास- ससुर को करनी चाहिए पर अगर वे नहीं करते तो फिर, तुम्हें या अमर को करनी पड़ेगी ।
हिम्मत करके ऋचा ने अपनी चाची को सागर और राधिका के बारे में सब कुछ बता दिया——
सॉरी चाची …. हमें तो पता ही नहीं था वरना….
रहने दे बेटा …. इस बात को मैं मान नहीं सकती कि घरवालों को कुछ भी पता न हो….. वैसे तो तेरी सास बड़ी चतुर बनती है और बेटे का पाँच- छह साल से किसी लड़की के साथ चक्कर चल रहा है, ना पता चला ?
सागर और राशि के रिश्ते की बात तो ख़त्म हो गई पर चाची ने मन ही मन ऋचा के ससुराल वालों से ही नहीं, ऋचा के साथ भी दुश्मनी सी पाल ली ।जब भी ऋचा की मम्मी उसके बारे में कोई बात कहती तो वह हाँ -ना कुछ भी ना करती । यहाँ तक कि राशि का रिश्ता तय होने की बात भी चाचा ने दो-तीन दिन के बाद ऋचा के पापा को बताई । हालाँकि जब ऋचा एक हफ़्ता रहने के लिए मम्मी के पास गई तो चाची ने पहले की तरह खाने पर बुलाना तो दूर , उससे ढंग से बात भी नहीं की ।
— मम्मी…. बताओ! अब बिट्टू भैया का रिश्ता राशि के साथ नहीं हुआ तो इसमें मेरी क्या गलती है ? मैं बिना मतलब ही …
कोई बात नहीं….. हो जाएगा सब ठीक । बस एक काम करना … राशि की शादी की कोई भी रस्म हो …. उसमें तू ज़रूर आ जाना । चाहे अमर को छुट्टी ना भी मिले , कैब करनी पड़े पर चाची को कहने का कोई मौक़ा मत देना । एक – डेढ़ घंटा ही तो लगता है या ऐसा कर लेना , चाची के मायके वाले भी तो उसी शहर में हैं …… उनमें से किसी के साथ बैठ आना । रमन की शादी में भी, तेरी चाची ने छोटी-छोटी रस्मों का भी बुलावा दिया था ।
हाँ मम्मी… एक ही तो बहन है मेरी ….. मैं तो कोई फ़ंक्शन मिस नहीं करूँगी ।
पर राशि की रिंग सेरेमनी के लिए चाचा- चाची की तरफ़ से कोई निमंत्रण ही नहीं आया …. बेचारी ऋचा तो इंतज़ार ही करती रह गई ।
मम्मी ने कहा—— बेटा , बस लड़के वालों के अलावा बेहद करीबी रिश्तेदारों को बुलाया गया था…..
मम्मी! क्या बहन करीबी रिश्तेदारों में नहीं आती ?
अरे नहीं बेटा , दरअसल शहर से बाहर वालों को नहीं…..
क्या चाची के मायके से मामाजी वगैरहा…..
ऋचा …. मामाओं को तो बुलाना पड़ता है ना बेटा….
ऋचा जानती थी कि छोटे बच्चे की तरह मम्मी उसे बहका- फुसला रही है ताकि बेटी को दुख ना हो पर……
राशि की शादी की रस्में शुरू हो चुकी हैं , ऋचा को इस बात का पता किसी न किसी रिश्तेदार के व्हाटसएप्प पर लगे स्टेट्स से लग गया….. ओह .. तो चाची ने इतना मनमुटाव कर लिया कि शादी तक में निमंत्रण नहीं भेजा । ऋचा ने भी मम्मी से इस बारे में कोई बात नहीं की , फिर बेचारी मम्मी को कोई न कोई बात बनाकर , बेटी के दुखी मन को तसल्ली देनी पड़ेगी ।
पूरा दिन उदासी में गुजरने के बाद रात में, अपनी नाइटी निकालते समय , ऋचा की नज़र हैंगर पर लटकी मेंहदी कलर की उस साड़ी पर पड़ी , जो उसने आज के फंक्शन में पहनने के लिए तैयार की थी , वह एक लंबी साँस लेकर रह गई ….
अभी बाथरूम में ही थी कि उसके फ़ोन की घंटी बजी , अनसुना करके वह अपने काम में लगी रही । दुबारा…. तीबारा …. और फ़ोन बंद हो गया । ऋचा के मन में इतनी उदासी थी कि ना तो फ़ोन देखने का मन था और ना ही किसी से बात करने का ।
तभी कुसुम जी की आवाज़ कानों में पड़ी——
ऋ…..चा….. कहाँ हो ? तुम्हारी चाची तुम्हें फ़ोन किए जा रही है और तुम ….. बेटा , ये तो कोई बात नहीं… लो बात करो ।
मन तो किया कि बात ही न करे , “ अब सारी रस्में पूरी होने पर मेरी याद आई या मोहल्ले- पड़ोसियों को जवाब देती- देती थक गई ? “
हाँ चाची…नमस्……….
ऋचा…. बेटा , तुम्हारे बड़े मामा की तबीयत बहुत ख़राब है….. माँ अकेली सँभाल नहीं पा रही…..
और इतना कहने के बाद चाची का गला रुँध गया …. तब रमन भैया ने फ़ोन अपने हाथ में लेकर कहा——
ऋचा , तुरंत जीजू के साथ मामा के घर पहुँचो , वहाँ शायद मामा को दिल का दौरा पड़ा है, यहाँ से ये लोग चल तो पड़े पर कम से कम एक -.डेढ़ घंटा तो लगेगा ही…..
फ़ोन रखिए और चिंता मत करना…..
कहकर ऋचा नाइटी के ऊपर दुपट्टा लेकर अमर के साथ चाची के मायके की ओर दौड़ी । वहाँ पहुँच कर देखा कि मामाजी दर्द से तड़प रहे थे…… इसी बीच अमर ने सागर से फ़ोन पर बात करके अस्पताल तक पहुँचने से पहले , बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में पूछ लिया था । पंद्रह मिनट के अंदर ही मामाजी को हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया गया था… …. मामाजी को आई० सी० यू० में भर्ती किया गया था ।
हुआ कुछ यूँ था कि उधर राशि की मेंहदी का फ़ंक्शन चल रहा था और इधर चाची के बड़े भाई अचानक ब्लड- प्रेशर के बढ़ने के कारण घर में , अपनी माँ के साथ अकेले थे । उनकी पत्नी, बच्चे और छोटे भाई का पूरा परिवार, उन्हें डॉक्टर को दिखाने के बाद फ़ंक्शन में शामिल होने के लिए चला गया क्योंकि डॉक्टर ने कहा कि इन्हें आराम की ज़रूरत है, ख़तरे की कोई बात नहीं….. कल तक ब्लड- प्रेशर कंट्रोल हो जाएगा ।
हालाँकि उनकी पत्नी ने कहा——
जी , मेरा मन नहीं मानता , आपको अकेला छोड़कर जाते हुए… मेंहदी ही तो है…. मैं यहीं रह जाती हूँ.. कल एक बार दिन में चली जाऊँगी, परसों तो शादी है ही ….
मैं ठीक हूँ फिर तुम लोग रात को वापस आ तो जाओगे… माँ तो है मेरे पास …. और अगर कुछ ऐसा लगा तो फ़ोन कर दूँगा… एक घंटे की ही तो बात है, वैसे भी अगर तुम नहीं गई तो पुष्पा को अच्छा नहीं लगेगा ।
वहाँ पहुँच कर भी नाच-गाना शुरू होने से पहले, चाची की भाभी ने फ़ोन करके तबीयत के बारे में पूछा और आश्वस्त होकर , वे कार्यक्रम में लीन हो गई ।
अचानक रात को मामाजी की बारह बजे के क़रीब आँख खुली तो उनके हाथ में दर्द की लहर निकल रही थी…. पानी पीया पर दर्द बढ़ता जा रहा था…. हलचल सुनकर माँ की आँख भी खुल गई और उन्होंने देखा कि बेटा पसीने में नहाया हुआ दर्द से तड़प रहा है । नानी ने परिवार के लोगों को कई बार फ़ोन किया पर किसी ने भी नहीं उठाया….. शायद शोरगुल में सुनाई नहीं पड़ा।
थक- हारकर उन्होंने अपनी बेटी को फ़ोन कर दिया …. संयोग से , उस समय चाची कुछ मेहमानों के लिए कॉफी बनवाने रसोई में आई हुई थी । जैसे ही चाची ने अपनी माँ की काँपती आवाज़ सुनी , उन्होंने तुरंत ऋचा को फ़ोन मिला दिया क्योंकि इस आपात स्थिति में, ऋचा से करीबी कोई नहीं था ।
जिस समय क़रीब एक घंटे बाद चाची के मायके वाले हॉस्पिटल पहुँचे उस समय तक ऋचा के सास- ससुर भी नानी को लेकर वहाँ पहुँच चुके थे ।नाइट ड्रेस में बैंच पर बैठे अमर और ऋचा को देखकर चाची की आँखें भर आई —-
ऋचा मेरी बच्ची! मुझे माफ़ कर दो ….. अगर तुम और दामादजी समय पर भैया को हॉस्पिटल ना लाते तो पता नहीं, क्या हो जाता ?
अगले दिन डॉक्टरों को मामाजी की हालत में काफ़ी सुधार दिखाई दिया पर अभी अगले दो दिन उन्हें डॉक्टरों की देखरेख में रहना था ।
चाची ने कुसुम जी से भी माफ़ी माँगते हुए कहा—
समधनजी! है तो बदतमीज़ी….. पर अपनी छोटी बहन समझ कर माफ़ कर देना और राशि को अपना आशीर्वाद देने ज़रूर आना ।
कोई बात नहीं पुष्पाजी ….. मेरे साथ तो मनमुटाव ठीक था पर ऋचा के साथ ……. उसने तो कभी अपनी मम्मी और आप में फ़र्क़ नहीं समझा ….
चाची की आँखों से बहते आँसू बता रहे थे कि उन्हें अपने व्यवहार पर ग्लानि हो रही है ।
# मनमुटाव #
करुणा मलिक