मुझे माफ़ कर दो – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

दीदी , चल पड़ी हो क्या ? हाँ भाभी , ट्रेन चल पड़ी है । सीट तो ठीक मिल गई? बच्चों के साथ कोई परेशानी तो नहीं होगी ? जीजाजी भी आ जाते तो अच्छा रहता ।

 नहीं-नहीं भाभी , कोई दिक़्क़त नहीं । आराम से पहुँच जाएँगे चलिए रखती हूँ । मिलने पर बात करेंगे ।

 ठीक है । जल्दी से आ जाइए । 

 विभा को समझ नहीं आ रहा था कि कभी सीधे मुँह बात न करने वाली भाभी आज इतना लाड़ क्यों दिखा रही है ।

 विभा इसी सोच में डूबी थी कि फ़ोन फिर बज उठा । पर्स से निकाल कर देखा तो हक्की- बक्की रह गई- हे भगवान, क्या होने वाला है? स्क्रीन पर भाभी पढ़ते ही विभा किसी अनजान भय से आशंकित हो उठी । ख़ैर दिल

थाम कर फ़ोन उठाया तो तुरंत भाभी बोली –

 फ़ोन उठाने में इतनी देर क्यों लगाई? अकेली आ रही हो , दो बच्चों का साथ है । चिंता लग जाती है । कहाँ पहुँची ? गाड़ी तो ठीक समय से आ रही है ना ? 

हाँ- हाँ भाभी , चिंता ना करें । गाड़ी अपने समय पर चल रही है । बस एक घंटे में घर पहुँच जाऊँगी ।

 तुम्हारे भैया स्टेशन पर ही मिलेंगे । 

भाभी, मैं कैब से पहुँच जाऊँगी । 

 कैसी बात करती हो , दीदी ! ये पहुँच जाएँगे ,रखती हूँ । 

विभा ने तुरंत अपने पति को फ़ोन मिलाया और भाभी के अजीबोग़रीब व्यवहार के बारे में बताया ।

 अरे भई ! तुम्हें भी चैन नहीं । हमेशा शिकायत करती हो , आज बेचारी ख़्याल रख रही है तो भी शिकायत । विभा के पति ने बात हँसी में टाल दी ।

 गंतव्य पर पहुँच कर विभा ने दोनों बच्चों और सामान को उतारा ही था कि भैया पर नज़र पड़ी-

 भैया! आप क्यों परेशान हुए , मैं आ जाती । भैया ने सिर पर स्नेह भरा हाथ रखा तो विभा को पिता की याद आ गई । हमेशा पापा ऐसे ही लेने आते थे और उसे पुचकारते थे । अपनी नम आँखों को सबकी नज़रों से बचाती

विभा चुपचाप कार में बैठ गई । गली में मुड़ते ही अपने घर पर नज़र पड़ी तो देखा कि भाभी गेट पर दोनों भतीजों के साथ खड़ी है।

विभा को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि हमेशा शब्दों के कटु- बाण चलाने

वाली भाभी, आज उसके लिए पलकें बिछाए है । 

कार के रुकते ही बड़े भतीजे ने दरवाज़ा खोला और बुआ के पैर छुए । भाभी ने दोनों बाँहें फैलाकर गले से लगा लिया –

 कोई दिक़्क़त तो नहीं हुई रास्ते में ? आज भाभी के स्नेह- आँचल में लिपटी विभा को माँ के स्पर्श की अनुभूति हुई । 

चलो, हाथ- मुँह धो लो और नाश्ता कर लो । सुबह पाँच- छह बजे की चली हो ।

 भाभी ने जिस अपनेपन और अधिकार से आदेश दिया । विभा के ह्रदय की भावनाएँ आँसुओं के रूप बह चली ।

माँ- पापा की मृत्यु के बाद वो इस स्नेह के लिए कितना तरसती थी । पापा की मृत्यु के दो साल बाद माँ भी चली गई थी ।

इन दो सालों में विभा जब भी माँ से मिलने आई ,भाभी के व्यवहार से आहत होकर ही गई । माँ के जाने के बाद तो उसने दिल कड़ा करके सब्र कर लिया था कि उसका मायका केवल माँ- पापा तक ही था ।

 अब छह साल बाद भाभी के ज़ोर देने पर विभा यहाँ यह सोचकर आई कि खून के रिश्ते इतनी आसानी से नहीं टूटते । 

नाश्ते की टेबल पर विभा की पसंद की एक- एक चीज़ सजी थी । अब विभा की हिम्मत जवाब दे गई । वह अपनी कुर्सी छोड़कर खड़ी हो गई और भैया के गले लगकर खूब रोई ।

जब सबका मन हल्का हुआ तो भाभी विभा

के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर बोली- 

 दीदी ! मेरे मम्मी-पापा छह महीने पहले सड़क दुर्घटना में चल बसे । उनकी मृत्यु के बाद भाई- भाभी के बदले हुए व्यवहार ने मेरी आँखें खोल दी हैं । मैं आपको उस अधिकार , प्यार और सम्मान से हरगिज़ वंचित नहीं

रहने दूँगी जो हर बेटी को उसके मायके में मिलना चाहिए , हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए । 

अपनी माँ समान बड़ी भाभी के हाथ जुड़ने से पहले ही विभा उनके गले जा लगी ।

करुणा मलिक

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