हैलो मम्मी… कैसी हो, कुछ काम कर रही थी क्या …. बहुत देर बाद फ़ोन उठाया ।
हूँ… हूँ…. दाँत में दर्द है …. फिर फ़ोन करूँगी…. रख दे ।
माँ के फ़ोन रखते ही मानसी सोचने लगी, दाँत में दर्द….. हो सकता है पर आज दाँत का दर्द…. केवल बहाना लग रहा है….. शायद प्रशांत ने फिर से…… चलो एक बार प्रिया से बात करती हूँ….
और सोचते-सोचते मानसी ने भाभी प्रिया को फ़ोन लगा दिया —
हाँ प्रिया ! ठीक हो तुम सब ….
नमस्ते बुआजी, मैं अवनी …. मम्मी की तबियत ठीक नहीं..सो रही है । अम्मा भी आज सुबह दयाल बाबाजी के यहाँ गई है…
चल ठीक है…. बेटा, तुम रखो … मैं बाद में फ़ोन करूँगी ।
इतना कहकर मानसी ने फ़ोन रख दिया वो समझ गई कि मम्मी ने दाँत दर्द का बहाना क्यूँ बनाया …. फिर वही क़िस्सा… प्रशांत पी कर आया होगा ….. मम्मी ने कुछ कहा होगा और बदले में औलाद के मुँह से अपमानित शब्द सुनकर माँ भावुक होकर अपने भाई के घर पहुँच गई है ।
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मानसी का मन बेचैन हो उठा । कब तक चलेगा ऐसे ? पापा स्वामी दयानंद सरस्वती के परम अनुयायी और संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य…….. और बेटा पक्का शराबी…. छिः छिः ….. पता नहीं कैसे प्रशांत को गंदी लत लग गई थी । अच्छी ख़ासी नौकरी थी प्रशांत की ….. भाई – बहन के विवाह के पश्चात सब शांतिपूर्वक चल रहा था उसके मायके में । भाभी प्रिया भी सरल साधारण ….. पति और सास-ससुर की हाँ में हाँ मिलाकर चलने वाली । अपने दिमाग़ से तो कुछ सोचती ही नहीं थी ।
पापा के सामने बड़ी पोती अवनी का जन्म हो चुका था । उन्होंने नई पीढ़ी का स्वागत शानदार ढंग से किया था । हवन के बाद प्रीतिभोज…. सचमुच मम्मी- पापा बहुत खुश थे । अपनी बहू प्रिया के लिए भी मम्मी ने कानों के झुमके बनवाए थे ।जिसे देखकर बुआ बोली थी —-
ये क्या नई रीत शुरू कर दी कांता…. बेटियों को तो सब देते देखे ….. पर बहू को भी …. इसके मायके वाले देंगे… तुम क्यों दे रही हो ?
मेरे लिए तो जैसी बेटी वैसी बहू …. फिर तुम्हारे भाई की इच्छा है कि वंश को बढ़ाने वाली तो सबसे पहले उपहार की हक़दार है….. अब आप तो जानो ही हो अपने भाई के सिद्धांतों को…
मानसी अतीत में खोई थी , उसकी आँखों से अविरल धारा बह रही थी । वही तो दिन था जहाँ एक ओर हवन के पवित्र श्लोक घर के कोने-कोने में गूँज रहे थे, वहीं पहली बार प्रशांत के मित्रों ने पार्टी की ज़िद की और उसने पाप की नज़रें बचाकर सारा इंतज़ाम कर दिया । हालाँकि प्रिया के सामने प्रशांत ने बताया भी और मोहित को शक भी हुआ—
मानसी ! बुरा ना मानो तो एक बात पूछूँ….. प्रशांत का अपने दोस्तों को ख़ास पार्टी देने की बात पापाजी को पता है? जनाब ने खुद भी लगा रखी है…
क्या कह रहे हो… प्रशांत ऐसा कभी नहीं कर सकता…… पापा के साथ हवन पर बैठा था…. क्या उन्हें पता न चलता ?
अरे भई… ये सब खाने से पहले की बात है…. तुम प्रिया से पूछो। जो मुझे लगा वो मैंने बता दिया ।
अगले दिन प्रिया से पूछने पर वह साफ नकार गई हालाँकि एक महीने बाद , जब प्रशांत किसी दोस्त की शादी से पी कर आया तो उस दिन की भी सच्चाई खुली । मम्मी- पापा तो एकदम सदमे में आ गए । जब प्रिया से पूछा तो उसने जवाब दिया——
मम्मी जी, इन्होंने कहा था कि ये पहली और अंतिम बार है । बेटी के होने की ख़ुशी में , अब दोस्त पार्टी की ज़िद कर रहे हैं…, प्लीज़ घर में किसी को पता ना चले । मैंने सोचा कि क्यों बेकार में ही बात बढ़ाई ….. इन्होंने अवनी के सिर की क़सम खाई थी….
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पापा के मन में यह बात ऐसी बैठी कि दो महीने के भीतर ही वे दुनिया से चले गए । मम्मी, मानसी और मोहित ने प्रशांत को बहुत समझाया कि सँभल जाए । जो बात अभी तक ढकी- दबी थी …वह पापा की तेरहवीं के दिन जग ज़ाहिर हो गई, जब भोजन के समय किसी रिश्तेदार ने प्रशांत की बराबर में आकर उसे सूंघते हुए कहा——
आचार्य जी का बेटा…. और शराब … सूतक का भी ख़्याल नहीं…. छिः.. कहीं इसी दुख के कारण तो हार्ट अटैक नहीं पड़ गया । मुखाग्नि देने वाले को कितने पवित्र भाव से नियम क़ायदे निभाने चाहिए….. इसे तो पता ही नहीं…. इससे मुखाग्नि दिलवाकर … ये क्या अनर्थ कर दिया ….पता नहीं…. हवन के समय ……
नहीं- नहीं….. हवन के समय कोई बदबू नहीं थी …. मैं बराबर में ही बैठा था , दयाल मामाजी ने बात सँभालते हुए कहा ।
… उधर परिवार भी बढ़ता गया । अवनी के बाद आरुषि और फिर आयुष आया । प्रिया अपने बच्चों में लगी रहती और प्रशांत चौबीस घंटे शराब के नशे में रहने लगा । आख़िर वही हुआ जिसका डर था, प्रशांत ड्यूटी के दौरान नशे में रहने के कारण सस्पेंड हो गया । ख़र्चे बढ़ने लगे और आमदनी शून्य । प्रशांत को न बच्चों की ज़िम्मेदारी दिखती थी न माँ और पत्नी की आँखों में आँसू । उसने धीरे-धीरे बैंक बैलेंस ख़ाली कर दिया ।
एक दो बार मानसी ने मम्मी का ध्यान बैंक में रखे ज़ेवरों की तरफ़ घुमाया भी पर मम्मी को पता नहीं…. अपने बेटे पर कौन सा अंधविश्वास था ——
ना रहने दे…… इतनी हिम्मत नहीं है उसकी ….. लॉकर की तरफ़ उसका ध्यान नहीं जाएगा ….. उसे भी तो अपने बच्चों की चिंता है । मानसी को मोहित ने ज़्यादा कुछ कहने से रोक दिया——
तुम रहने दो……. कहीं ऐसा ना हो कि मम्मी या प्रिया को लगे कि हम उन्हें प्रशांत के खिलाफ भड़का रहे हैं ।
जिस परिवार के मान-सम्मान को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता था…..लोग अब उसकी थू-थू करने लगे ।हर रोज़ मोहल्ले वालों के लिए नया तमाशा । मानसी ने भी आना-जाना कम कर दिया । बस फ़ोन पर ही हाल-चाल पूछ लेती थी ।
आज मानसी को लगा कि वह कैसे अपनी मम्मी, भाभी और बच्चों को वक़्त के सहारे छोड़ सकती हैं…. क्या शादी के बाद लड़की अनजान हो जाती है….., हद है ….. मैं इतना बड़ा अनर्थ नहीं होने दूँगी ।
न जाने कौन सी शक्ति आई कि उसने खुद से कहा —
रोने-धोने से कुछ भी नहीं होगा मानसी ….. जो तिनका-तिनका जोड़कर मम्मी-पापा ने घर बनाया है, बिखर जाएगा । काश ! प्रिया ने प्रशांत की गलती को कभी छिपाया न होता … गलती करने वाले को पहली ही गलती पर सजा मिलनी चाहिए……अब मुझे ही अपना मायका बचाना है ।
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मानसी ने फिर मम्मी को फ़ोन लगाया—-
मम्मी, दाँत का दर्द हो या नहीं….. ये बताओ कि आप कल तक मेरे पास पहुँच जाओगी या मुझे आपको लेने आना पड़ेगा?
मैं कल सुबह की बस से आ जाऊँगी….. ठीक है मिलने पर बात करेंगे, इतना कहकर मम्मी ने फ़ोन रख दिया क्योंकि वे मानसी की आवाज़ सुनकर जान गई थी कि मानसी सब कुछ जान गई है और बहुत ज़िद्दी है ।
अगले दिन शाम के पाँच बजे के क़रीब मम्मी की बस देहरादून पहुँचने वाली थी इसलिए मानसी ने ऑफिस से आते समय उन्हें रिसिव कर लिया ।
मम्मी को हाथ में बैग पकड़े उतरते देख मानसी का दिल भर आया —- बेचारी मम्मी…. इस उम्र में बैग पकड़े इस तरह ….
पर उसने तुरंत अपनी भावनाओं पर क़ाबू करते हुए कहा——
नमस्ते मम्मी! रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई ?कुछ खाया था ?
ना बेटी , सब ठीक रहा …. खाना तो दिया था तेरी मामी ने पर भूख ही नहीं लगी ।
चलो … अब घर चलकर गर्म रोटी सेंक दूँगी, चाय के साथ खा लेना ।
इस तरह मानसी ने इधर-उधर की बात करके मम्मी को नार्मल करने का प्रयास किया ।वो नहीं चाहती थी कि मम्मी किसी अपराध बोध के अहसास से दामाद और बेटी का सामना करें ।
घर पहुँच कर मम्मी के हाथ- पाँव धुलवाने के बाद मानसी ने चाय बनाई और उसके साथ दो बिस्किट खाए ….. इस समय रोटी खाने का मन नहीं था । मोहित भी ऑफिस से आ चुके थे…. औपचारिक अभिवादन के बाद मोहित बच्चों के कमरे में चले गए क्योंकि मानसी का गंभीर चेहरा देखकर वह समझ गया कि वह मम्मी के साथ अकेली रहना चाहती है ।
मानसी मम्मी को अपने कमरे में लेकर गई और बोली —-
मम्मी…. आप कितना भी छिपा लो … आपके मन की परेशानी हर कोई समझ सकता है । क्या बार-बार मामाजी के यहाँ जाने से समस्या सुलझ जाएगी ? प्रशांत दो तीन में माफ़ी माँग लेगा और आप विश्वास करके वापस चली जाएगी ।
मम्मी, मैं ज़मीन- जायदाद और घर …. हर जगह अपना हिस्सा चाहती हूँ ….
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क्या कह रही है…… तू चाहती है कि मेरे बच्चे सड़क पर आ जाएँ ? तो इसलिए तूने बुलाया ताकि अपने घर में दबाव बनाया जा सके …।
जो भी हो मम्मी….. पर मेरा फ़ैसला अटल है बल्कि मैं तो कहती हूँ कि आप भी अपने हिस्से की माँग करें । अब तो चार- पाँच दिन मामाजी के यहाँ आ जाती हो पर क्या ….. मामा- मामी के न रहने पर भी मायके में यही मान- सम्मान मिलेगा?
मानसी ने देखा कि मम्मी का मुँह लाल हो गया और बिना अपना सामान खोले ही उन्होंने कहा —
मुझे नाइट बस से दिल्ली के लिए बिठा दो ….
पर अभी तो आपके लाड़ले ने फ़ोन करके माफ़ी नहीं माँगी …. आगे ये सब न दोहराने के वादे नहीं किए….. आने तो दो फ़ोन, चली जाना ….. मेरी बात को समझने की कोशिश करो मम्मी!
मानसी , अगर तू चाहती है कि मैं दो-चार दिन रह लूँ तो इस बारे में बात ना करना ।
रात को मोहित ने भी मानसी से कहा—-
तुम्हारा काम समझाना था …. बेटे ने क्या कम दुख दे रखे हैं जो तुम भी बेचारी मम्मी को…..
मोहित! प्लीज़…. इस बार मुझे रोकना मत ।
अगले दिन ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी ली और मोहित के साथ एक वकील से मिलकर प्रशांत को नोटिस भेजने की पूरी बातचीत कर ली । वकील ने आश्वासन दिया कि आप पिता की जायदाद में आधे की अधिकारी हैं पर अगर माँ अपने हिस्सा
की बात न करें , नहीं तो… माँ अपना हिस्सा बेटे के पास छोड़ सकती हैं ।
शायद यह वकील के भेजे ईमेल का ही नतीजा था कि मम्मी के फ़ोन पर कॉल पे कॉल आने लगी —-
कांता …. क्या सुन रही हूँ कि मानसी ने मायके से अपना हिस्सा लेने का नोटिस भेजा…. इस लड़की का दिमाग़ तो ठीक है… हज़ारों- करोड़ों में खेलती है । दोनों की सरकारी नौकरी है…. बेचारा प्रशांत….. क्यों गरीब को लूटने में लगी है?
कांता बहनजी! ये क्या सुन रही हूँ कि मानसी भाई से हिस्सा माँग रही है….. तुम्हारे भाई को तो बड़ा ग़ुस्सा आया …. पर हम क्या कहें … समझाओ उसे …. समाज में नहीं रहना क्या ?
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समधिन जी ! हमारी प्रिया तो लुट गई …. अचानक क्या हो गया … क़िस्मत ही ख़राब निकली …. शादी ये सोचकर की थी कि सीधे लोग हैं पर आपकी लड़की ने तो अनर्थ ही कर दिया …. भला बताओ , क्या बहनें इस तरह मायके से हिस्सा माँगती है?
पर मानसी के ऊपर किसी भी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । मकान का ऊपर का भाग उसने अगले ही दिन किराए पर चढ़ा दिया । पाँच हज़ार रुपये और बिजली का अलग रीडिंग के अनुसार…. कुछ ज़मीन में खेती थी … उसका भी साल में पचास – साठ हज़ार साल का मिल जाता था । माँ ने अपना हिस्सा प्रशांत के पास ही रखा …. मानसी कुछ कहना चाहती थी पर मम्मी का प्रशांत के प्रति अधिक मोह देखकर उसने चुप रहना ही उचित समझा ।बैंक में जमापूँजी के नाम पर एक हज़ार रूपये मिले …. लॉकर में केवल चाँदी की पाजेब मिली । मानसी को हैरानी हुई कि मम्मी की सहानुभूति अब भी प्रशांत के साथ थी —-
मानसी …. ये ठीक नहीं कर रही तू …. तेरा वश चले तो तू इसके हाथ में कटोरा पकड़ा दे …. मैंने सोचा भी नहीं था कि तू ऐसी निकलेगी ।
मानसी और मोहित लौट आए । मानसी दो- तीन महीने में चक्कर मार जाती । जब भी आती … भतीजी- भतीजे के लिए कपड़े ज़रूर लाती , उनके जन्मदिन पर कुछ न कुछ उपहार अवश्य भेजती । प्रिया के लिए भी राखी और भाई-दूज पर साड़ी देती …. मम्मी की ज़रूरतों के अनुसार कभी कुछ तो कभी कुछ दे जाती …… भाई की दीन-हीन दशा पर उसकी आँखें भर आती पर उसने किसी को अपनी मनःस्थिति की भनक तक नहीं लगने दी ।
समय बीतता चला गया ….. अवनी ने बारहवीं और आरुषि ने दसवीं की परीक्षा दी थी । आयुष आठवीं में था । प्रशांत कभी बहाल तो कभी सस्पेंड होकर ज़िंदगी जी रहा था । सूखकर काँटा हो गया था, प्रिया भी समय से पहले बूढ़ी दिखाई देने लगी थी । मानसी को आशंका थी कि जमा तो क्या, क़र्ज़ा सिर न कर लिया हो । एक दिन उसके पास अवनी का फ़ोन आया—-
बुआजी, मैंने नर्सिंग कॉलेज में दाख़िला लेने के लिए अप्लाई किया था….. पर आप तो जानती है कि पापा से कुछ उम्मीद करना बेकार है । ना तो उन्हें हमारी फ़िक्र है और ना ही पैसे ….. मेरी सहेली बता रही थी कि पढ़ाई के लिए लोन मिल जाता है…. क्या फूफाजी अपने बैंक से लोन दिलवाने में मेरी हेल्प कर देंगे?
सुनकर मानसी का कलेजा मुँह को आ गया —
हाय ! मेरी फूल सी नाज़ुक गुड़िया….. बचपन में ही अपनी फ़ीस और दाख़िले के जोड़-तोड़ में लगी है । क्या करे …. ऐसे पिता का जिसने केवल पैदा कर दिया ।
अवनी बेटा , तू क्यों लोन की फ़िक्र करती है । अभी ये सब सोचने की तेरी उम्र नहीं है । दाख़िले के दिन मैं तेरे साथ चलूँगी….. बस बता देना ।
इस तरह मानसी ने उसका एडमिशन करवा दिया । मानसी बार-बार आभार व्यक्त करके एक ही बात दोहरा रही थी—
बुआजी, बस एक बार पढ़ाई पूरी हो जाए ….. नौकरी तो मुझे ज़रूर मिलेगी…. इतना मुझे विश्वास है….. मैं सारा पैसा लौटा दूँगी ।
चुप …. बड़ी दादी बन गई है …… पैसा लौटाएगी । बस पढ़ाई पर ध्यान दे ।
ये तो शुक्र था कि मम्मी की पेंशन से रोटी- पानी का ख़र्चा चल रहा था वरना प्रशांत की तनख़्वाह कहाँ से आई और कहाँ गई कुछ पता न चलता । थोड़ी सहायता प्रिया के मायके वाले तीज-त्योहार पर कर देते ।
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उधर आरुषि ने भी बी० ए० करते ही बैंकिंग के लिए आवेदन किया और पहले ही चांस में नौकरी हासिल कर ली । मानसी की देखरेख में दोनों बहनें अपने- अपने पैरों पर खड़ी हो गई । अब दोनों बहनों ने भाई आयुष को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उसका मार्गदर्शन भी किया । दोनों बहने तो चाहते हुए भी और योग्य होते हुए भी मन मुताबिक़ पढ़ाई नहीं कर पाई थी पर आयुष को उन्होंने अच्छी कोचिंग दिलवाई । पहले साल तो नहीं पर दूसरे साल आयुष का एम० बी० बी० एस० में दाख़िला हो गया ।
तीनों बच्चे इतने शालीन , सभ्य और संवेदनशील थे कि जानकार तीनों बच्चों के उदाहरण देते हुए कहते — आचार्य जी के पोते- पोतियों को देखो ….. कैसे-कैसे करके पढ़ाई की …. वरना बाप को कोई होश नहीं…… एक हम हैं…. खिलाने के लिए चम्मच पकड़े खड़े रहते हैं ।
आज कई सालों बाद मम्मी ने मानसी को फ़ोन किया ——
मानसी ! अवनी तेरी बात कभी नहीं टालेगी ….. विवाह की बात तो कर बेटा….. तुझे तो पता ही है, मेरी भी उम्र हो रही है, दोनों लड़कियों की ज़िम्मेदारी पूरी हो जाए बस …… लड़के का भी हो ही जाएगा ।
क्या कोई रिश्ता नज़र में है , मम्मी?
नहीं अभी तो नहीं पर शादी की हाँ तो करें …. ज़िद पकड़े बैठी है कि पहले आयुष की पढ़ाई पूरी हो जाए …… अरे … डॉक्टरी की पढ़ाई तो लंबी है …… फिर शादी सही समय पर ही अच्छी लगती है ।
मम्मी….. मैं खुद भी बात करना चाहती थी, आपको याद है मेरी पड़ोसन रमा …. वह कई बार अवनी और आरूषी से मिल चुकी है । वह अवनी को अपने बेटे और आरूषी को अपने भाँजे के लिए माँग चुकी है । मम्मी…… मैं सिर्फ़ दोनों बहनों से बात करूँगी….. समझाऊँगी पर दबाव हरगिज़ नहीं बनाऊँगी । वे खुद समझदार हैं ।
और सचमुच जब मानसी ने समझाया तो दोनों काफ़ी विचार विमर्श के बाद इस नतीजे पर पहुँची कि बुआ सोच समझ कर और देखभाल कर ही रिश्ते की बात कर रही है ।
आयुष की परीक्षा के बाद दोनों के विवाह की तारीख़ एक ही दिन निश्चित की गई । जब पग फेरे के लिए दोनों बहने मायके आई तो मानसी ने अपने हिस्से के वे सारे काग़ज़, जिनके कारण उस पर भाई के साथ अनर्थ करने का दोष लगा था, अवनी और आरूषी के हाथ पर रखते हुए कहा——-
बेटा , तुम्हारे भविष्य को ध्यान में रखते हुए मुझे कठोर कदम उठाना पड़ा था, तुम्हारी पढ़ाई- लिखाई सब तुम्हारे अपने पैसों से हुई है । किसी का कोई अहसान तुम्हारे ऊपर नहीं है । जो भी किराया और फसल का पैसा आता था, वह सब इकट्ठा होता गया । ज़िंदगी ने छोटी सी उम्र में तुम्हें बहुत कुछ सिखा दिया है….. अब मुझे कुछ कहने – समझाने की ज़रूरत नहीं ।
नहीं बुआजी….. हमें हमेशा आपकी ज़रूरत रहेगी । अगर आप सही समय पर सही निर्णय न लेती तो क्या पता सिर पर छत भी ना रहती ।
मम्मी ने अपनी मानसी के सिर पर हाथ फेरा , प्रिया ने ननद के कंधे पर हाथ रख दिया और प्रशांत दूर बैठा हिचकी ले रहा था। तब अवनी ने कहा——
पापा , हमारा कुछ तो ख़्याल कीजिए…… हम बाप के प्यार और केयर को सारी ज़िंदगी तरसे हैं …… कम से कम अब तो हमारा साथ दीजिए……. बहुत से सेंटर हैं ….. जहाँ आप इस नशे की आदत से छुटकारा पा सकते हैं……. बस आपको सहयोग करना पड़ेगा…. बोलो ना पापा …… क्या आप हमारी हेल्प करोगे ….
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प्रशांत ने तीनों बच्चों के हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा —-
चाहे ….. मैं मर जाऊँ पर मुझे क़सम है अपने मरे बाप की जो आज के बाद कभी शराब……. मानसी …. बहन ….. मुझे नशा मुक्ति केंद्र में ले चलो ।
और मानसी एक बार फिर अपने मायके को बचाने की ख़ातिर भाई को गाड़ी में बिठाकर नई उम्मीदों के साथ नए सफ़र पर निकल पड़ी ।
करुणा मलिक
#ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने
Touching story. I am regular reader of stories but first time tears are in my eyes. My salute to you for such a wonderful story.
NICE STORY