जागृति! क्या हुआ बेटा … एकदम पीली-पीली हो गई….. कब आई ससुराल से ? मम्मी घर में हैं क्या ?
नमस्ते आँटी , हाँ जी …मम्मी घर में ही हैं । मैं तो कल शाम ही आई हूँ…. आप और बाक़ी सब कैसे हैं घर में ।
सब बढ़िया है । शादी के बाद तो लड़कियों पे रूप चढ़ता है…. दो महीने में क्या हालत हो गई तुम्हारी….. सास ज़्यादा काम कराती है क्या?
नहीं.. नहीं आँटी जी ….. मम्मी जी तो बहुत अच्छी हैं पर नया घर, नया माहौल…. एडजस्ट करने में थोड़ा टाइम तो लगेगा ही…. ये लीजिए… मम्मी आ गई, आप लोग बातें कीजिए… मैं आती हूँ ।
इतना कहकर जागृति अंदर चली गई । तक़रीबन ढाई महीने पहले उसकी शादी आशीष के साथ हुई थी । ससुराल भी छोटा सा था । दो भाई और एक बहन …. आशीष छोटा था पर शादी उसकी पहले हुई थी क्योंकि बड़ा भाई अभी लंदन में रहकर पी०एच०डी० कर रहा था और शादी उसकी प्राथमिकता नहीं थी।
आशीष बैंक में प्रोबेशनरी ऑफ़िसर था , जब किसी पहचान वाले के माध्यम से जागृति का रिश्ता आया तो माता-पिता अच्छे रिश्ते को ठुकरा ना सके और आशीष के लिए हाँ हो गई । आशीष को हर तरह से एक सुयोग्य पुत्र , भाई , दोस्त, पड़ोसी कहा जा सकता था पर सुयोग्य पति की कसौटी पर वह खरा न उतर सका । ऐसा नहीं था कि उसका चरित्र दाग़दार था, बस वह पत्नी के साथ हमबिस्तरी को ही पति धर्म समझता था।
स्त्री का कोमल मन शारीरिक संबंधों की अपेक्षा भावनात्मक संबंधों पर अधिक आश्रित होता है । जागृति का कोमल ह्रदय उस समय कुम्हला गया जब उसने महसूस किया कि पति का ध्यान केवल कुछ पल के लिये उसकी ओर जाता है बाक़ी समय तो वे दोनों अपरिचित से होते हैं । खीझना , रूठना , मनाना , चिढ़ाना – ये शब्द तो आशीष के शब्दकोश में थे ही नहीं, अगर कभी जागृति कभी अपनी तरफ़ से पहल करके कुछ कह भी देती तो जवाब मिलता——
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तुम पढ़ी- लिखी हो , जहाँ मन करे … घूमने चली ज़ाया करो … फिर मम्मी और नंदिनी हैं , अगर उनके पास समय हो तो उन से पूछ लिया करो । मुझे घूमने- फिरने का शौक़ नहीं है ।
जागृति का कितना मन था कि हनीमून के लिए जाए पर इच्छा जताते ही पति ने कह दिया—-
अरे …. हमारे तो पूरे घर में आजतक कोई हनीमून पर नहीं गया फिर वहीं जाकर क्या होगा ….. जो यहाँ नहीं होगा ?
धीरे-धीरे जागृति ने मन की कहना ही छोड़ दिया….. मन का खिलखिलाना और गुनगुनाना कहीं पंख लगाकर उड़ गया । ससुर ने भी कई बार पूछा —
जागृति…… बहू ..क्या बात है….. कमजोर होती जा रही हो…. खाने-पीने का ध्यान रखा करो …. सुधा , बहू तो अभी नई है , तुम देखो कहाँ कमी है ..?
सास भी कहती —- जागृति, आशीष ने तो कुछ नहीं कह दिया…. बेटा , अपनी इस माँ से कुछ छिपाना मत …
कई बार जागृति सोचती — क्या मम्मी जी को सचमुच कुछ नहीं पता या दिखावा करती हैं । उनके जमाने में कुछ भी होता हो पर वे आजकल के चलन से तो परिचित हैं । नए पति-पत्नी घूमने जाते हैं, साथ खाते- पाते हैं…..,
दो/ढाई महीने जागृति इंतज़ार ही करती रह गई पर आशीष का व्यवहार ज्यों का त्यों…..
उसने कभी इन बातों का ज़िक्र अपने माता-पिता के सामने नहीं किया पर एक दिन जागृति की मम्मी का ही फ़ोन आया उसकी सास के पास—-
नमस्ते बहनजी, जागृति की मम्मी बोल रही हूँ । कुछ दिनों के जागृति को रहने के लिए भेज दे तो बहुत अच्छा लगेगा…. दरअसल पहली बार इतने दिन हमसे दूर……
अरे … महिमा बहन , कैसी बात करती हो…. आपका पूरा अधिकार है अपनी बेटी पर ….. मैं खुद चाहती थी पर सोचा कि नई-नई शादी हुई है… शायद बच्चे ही ना चाहते हो , हम तो बहुत कोशिश करते हैं कि जागृति ख़ुश रहे पर आजकल वो भी शायद आपको मिस कर रही है….. कल संडे है , आशीष को भेजती हूँ… छोड़ आएगा और आप लोगों से मिल भी लेगा ।
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इस तरह आशीष जागृति को मायके छोड़कर चला गया । बेचारी जागृति सोचती ही रह गई कि वे कैसे पति-पत्नी होते होंगे जो —
पत्नी के मायके जाने की बात सुनकर उदास हो जाते होंगे, ना जाने की ज़िद करते होंगे और जल्दी लौट आने का तथा फ़ोन करने का वादा लेते होंगे …
आज जागृति का पीला चेहरा देखकर, पड़ोसी आँटी ने टोका तो जागृति ने बात अनसुनी कर दी पर जब उसकी मम्मी ने पूछा—- जिगरी , तू ख़ुश तो है ना बेटा वहाँ ? घरवाले कैसे हैं, विशेष रूप से.. आशीष जी ? बेटा सीधे- सरल लोग लगे मुझे और तेरे पापा को …. बाक़ी तू बता ?
जागृति की आँखों में पानी भर आया… क्या कहे … क्या कमी बताए … बस यही कि उसका पति रोमांटिक नहीं है…. बीमार होने पर डॉक्टर के पास तो ले जाएगा पर … कभी गोद में सर रखकर सहलाएगा नहीं….. घूमने-फिरने से मना नहीं करेगा…., हाँ, उसे खुद कहीं जाना पसंद नहीं….
नहीं मम्मी…. सब ठीक है । मम्मी जी- पापाजी बहुत अच्छे हैं….. नंदिनी तो मेरी फ्रैंड बन गई है ।
फिर तेरे मुँह पर ये बारह क्यों बजे हैं , कौन कहेगा कि तू नवविवाहिता है और अपनी ससुराल में खुश हैं…. पता है कि मुझे कितनी शर्म आई जब कल वर्मा आँटी ने कहा —-
महिमा , जागृति के चेहरे पर ध्यान दो … कुछ गड़बड़ है…. कोई बात इसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है…. किसी डॉक्टर को दिखाओ ….. बता बेटा , …क्या तबीयत ठीक नहीं है?
अब जागृति के सब्र का बांध टूट गया और उसने अपनी मम्मी को अपने मन की सारी बात कह डाली ….मम्मी…. शायद आशीष के साथ गुज़ारा संभव नहीं……. कब तक घुटती रहूँगी?
पहले तो जागृति की मम्मी चुप होकर सोचती रही फिर बोली —- बेटा , कुछ बीमारियों का कोई इलाज दवा नहीं होती ,बस इन्हें समय के साथ अपने प्रेम, अपनत्व और विश्वास के बल पर ही ठीक किया जा सकता है । बेटा… सबकी अपनी-अपनी पसंद-नापसंद होती है…. ये बात सही है कि पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे का ख़्याल रखना चाहिए पर कभी-कभी किसी एक को ज़्यादा ख़्याल रखने की ज़रूरत होती है और अपने पति को अपनी पसंद का ख़्याल रखने वाला , तुम्हें बनाना होगा….. तुम उसे केवल अपने प्रेम से इसका अहसास दिला सकती हो….. बेटा…… ज़िंदगी आसान नहीं है, हमें आसान बनानी पड़ती है । अच्छा….. बताओ , क्या तुम ऐसा कर पाओगी?
रिश्ते तो एक झटके में टूट सकते हैं पर क्या गारंटी होगी कि आगे तुम्हें मनपसंद मिलेगा ।जब तुम अपने पूरे मन से आशीष का ध्यान रखोगी, उसे भी इसका अहसास ज़रूर होगा…..बस थोड़ा सा सब्र करना पड़ेगा ।
यस… यस …. यस मम्मी, मैं एक न एक दिन आशीष को अपना बहुत ख़्याल रखने वाला पति बनाकर छोड़ूँगी