ऐसे कैसे मेरे बेटे को कोई फँसा सकता है….. मैं अभी एडवोकेट सिन्हा को फ़ोन करता हूँ । बहू … तुम परेशान मत होना ।
रिटायर्ड जज कर्मवीर सिंह जी बौखलाए से बोले । उन्होंने तुरंत अपने शागिर्द रहे आनंद सिन्हा को फ़ोन मिलाया पर फ़ोन नहीं उठाया गया । दो/ तीन बार रिंग करने के बाद स्वयं ही बोले—
ओह … पता नहीं…. फ़ोन रखकर कहाँ चला गया ? जब किसी काम की जल्दी हो तो सौ अड़चनें आती हैं ।
तभी पड़ोसन के घर से लौटी उनकी पत्नी माया उनके चेहरे को देखकर बोली—-
क्या हुआ….. परेशान लग रहे हो…. ठंड में तुम्हारे माथे पर पसीना …. सब ठीक तो है ? पानी लाऊँ….
अरे …. क्या ठीक है … बहू का फ़ोन आया अभी …. नवीन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया ….. पता नहीं… कैसे फँसा लिया मेरे बेटे को ….
ये तो होना ही था एक ना एक दिन … मेरी सुनता कौन है यहाँ…. ? तुमने अगर ….
चुप रहो …. जब देखो…… उल्टा ही बोलोगी । कोई तो अपने बच्चों की कामयाबी पर खुश होता है …. तुमने हमेशा हाय- हाय लगाकर रखी … देख लिया नतीजा ….
नतीजा तुम्हारी ग़लत सलाह का आया है… जिस दिन उसकी नौकरी लगी …. तुम्हारा पहला वाक्य याद है मुझे आज भी…..
शाबाश बेटा… आयकर विभाग में बड़ा ऑफ़िसर… भई नवीन ! तुम्हें तो माँगने की भी ज़रूरत नहीं…, पैसा खुद चलकर आएगा… याद है या भूल गए ?
हाँ तो…. क्या ग़लत कहा था …. आ नहीं रहा पैसा खुद चलकर…
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अब सारा निकल जाएगा…. इज़्ज़त जाएगी सो अलग …. क्या पता … नौकरी…..
ऐसा है नवीन की माँ , जाओ अंदर जाओ । मेरे मुँह से कुछ निकल जाएगा….. कैसी माँ है ? बेटे को पुलिस ने पकड़ लिया और ये ऊपर से कोसने में लगी है….
नवीन की माँ वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गई । तभी जैसे कुछ याद आया , फ़ोन मिलाकर बोली—-
सोनी ! इधर ही आजा बहू , वहाँ लोग सत्तर बात पूछ-पूछकर परेशान कर देंगे ……. हाँ.. सुन … वरूण और वर्तिका को तो फ़ोन नहीं कर दिया तुमने ?….ठीक किया ….. बच्चे हैं घबरा जाएँगे …. अभी अपने मायके में बताने की ज़रूरत नहीं….. तेरे पापा लगे हैं फ़ोन- फान करने में ….. चल तो मैं कहती हूँ इन्हें…. हम उधर आ जाते हैं ।
रिटायरमेंट के बाद कर्मवीरसिंह जी अपने पुश्तैनी मकान में आकर रहने लगे थे क्योंकि पूरी ज़िंदगी नौकरी की हेकड़ी में अपनों से ही दूरी बना ली थी पर रिटायर होने पर एकाएक कुटुंब वालों की याद आने लगी और घनी आबादी वाले मोहल्ले में पुराने मकान को सुविधाओं का जामा पहनाकर पत्नी संग वहाँ आकर रहने लगे । शहर की पॉश कॉलोनी में विला खरीदा हुआ था इसलिए बेटा- बहू वहीं रह गए । पोता वरूण और पोती वर्तिका मसूरी के मशहूर रेज़ीडेंशियल स्कूल में पढ़ रहे थे । लक्ष्मी और सरस्वती दोनों का ही परिवार पर विशेष आशीर्वाद था । पहले पिता ने नाम और धन कमाया अब नवीन उन्हीं के पदचिह्नों पर चल रहा था ।
कर्मवीरसिंह जी की पत्नी धार्मिक विचारों की पाप-पुण्य में विश्वास करने वाली महिला थी । वैसे तो बहू सोनी अत्यंत आधुनिक थी पर ज़रा सा संकट आते ही तुरंत सिर ढककर मंदिर पहुँच जाती , न जाने किस-किस देवी- देवता का प्रसाद बोल देती । वो बात अलग होती थी कि संकट टलते ही माँगी गई मन्नत भूल जाती थी ।
आज दोपहर को खाना खाकर बेडरूम में जाकर ज़रा लेटी ही थी कि ऑफिस से फ़ैमिली दोस्त मोनिका का फ़ोन आया—-
सोनी , नवीन सर रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़े गए हैं, तुम तुरंत अंकल जी को फ़ोन करके बता दो …. अच्छा बाद में फ़ोन करती हूँ । फ़िलहाल तुम फ़ोन मत करना …….
सोनी कुछ पूछती कि फ़ोन कट गया । उसने बिना समय गँवाएँ ससुर को इसकी जानकारी दी ।
सास-ससुर के पहुँचते ही सोनी की आँखों से आँसू बह निकले। जी कड़ा करके सास ने कहा—-
ये एक दिन का काम नहीं है…… कोई ना कोई पीछे लगा था….. नहीं तो भला एकदम पुलिस कहाँ से आती। ? नाश हो उसका…… मैं कहती रही कि बेटा , ग़लत तरीक़े से कमाया पैसा ग़लत ही रास्ते जाता है पर ….. ख़ैर ….. कहाँ है वो आपका सिन्हा , जिसके दम पर चौड़े रहते थे …. अब ना वो फ़ोन…..
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पता नहीं…. कहाँ है ? रिंग तो जा रही है । इसका मतलब है कि उसे नवीन की भनक लग चुकी है । ख़ैर….. क्या वो ही अकेला है ….. इसको तो देख…..
पापा जी …. अपने भाई को फ़ोन करूँ क्या ? किसी भी हालत में नवीन की रात जेल में नहीं गुजरनी चाहिए ।
बहू…… अगर तुम्हें लग रहा कि मैं प्रयास नहीं कर रहा तो बुला लो जिसे चाहो……..
नहीं-नहीं पापाजी, मेरा ये मतलब नहीं था…. कुछ समझ नहीं आ रहा इसलिए ज़ुबान फिसल गई…. सॉरी पापाजी …टेंशन में पता नहीं क्या-क्या ख़्याल आ रहे हैं…
लाख कोशिश के बावजूद भी नवीन को दो दिन पुलिस रिमांड में रहना पड़ा क्योंकि अगले दिन सार्वजनिक अवकाश था । तीसरे दिन नवीन को ज़मानत मिली ।
जब वह घर पहुँचा तो सोसायटी की खिड़कियों और बालकनी में खड़े लोगों की आँखें उसे ही घूर रही थी और वह शर्म से गड़ा जा रहा था ।
घर आकर माँ को देखते ही नवीन ऐसा फूट- फूटकर रोया जैसे छोटा बच्चा । उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बह रहे थे ।
माँ ने अपने बेटे को सँभालते हुए कहा —-
बेटा , गलती तो तुमने की है…. पर इसमें अकेले तुम्हारी गलती नहीं है । तुम्हारे पापा ने तुम्हें बढ़ावा दिया, मैं केवल मुँह से कहती रही जबकि माँ के पास बच्चों को रोकने के कई तरीक़े होते हैं और तुम्हारी पत्नी ने भी समझाने की कोशिश नहीं की । अनजाने में हुई गलती तो एक बार माफ़ भी की जा सकती है पर जानते- बूझते हुए गलती की सजा तो मिलेगी और मिलनी भी चाहिए ….. ग़लतियाँ इंसानों से ही होती है पर सच्चा आदमी उसे सुधार लेता है ।
क्या कह रही हो…. जानती भी हो अपने गुनाह को क़बूल करने का क्या परिणाम हो सकता है….हम वकील के अनुसार……
नहीं नवीन, ज़्यादा से ज़्यादा नौकरी चली जाएगी, कुछ समय के लिए जेल हो जाएगी….. रंगे हाथों पकड़े जाने पर क्या सबूत … कम से कम तू पापों से तो मुक्ति पा लेगा , मन में शांति तो रहेगी । एक बार विश्वास कर अपनी माँ पर , सच्चे दिल से माँगी माफ़ी को ईश्वर भी स्वीकार करते हैं ।
आज नवीन को सिर्फ़ अपनी माँ की बातें सुनाई दे रही थी । पिता और पत्नी का मौन भी उसका मनोबल बढ़ा रहे थे और उसने मन ही मन फ़ैसला किया कि एक झूठ बोलकर वह झूठ के दलदल में नहीं फँसेगा , ग़लतियाँ इंसानों से ही होती है और मैं अपनी गलती सुधारूँगा और जाँच में पूरा सहयोग दूँगा ।
करुणा मलिक