सुना चाची आपने ! भोला मर गया आज सुबह । बड़ी बुरी मौत पाई बेचारे ने । कल रात कोई पानी देने वाला भी नहीं था उसके पास । सोहन और उसकी औरत ने बुरा किया । भुगतेंगे, कोल्हू के बैल की तरह काम किया भोले ने इनका ।जब तक माँ-बाप और मोहन था तो भोले को बड़े लाड़ दुलार से रखा गया पर उनके जाने के बाद तो बेचारे का जीवन नरक ही बन गया था ।
हमें तो पता भी ना चला , कब ले गए ? नहीं तो अर्थी के आगे हाथ ही जोड़ लेते ।
हाँ चाची , तुम्हारी पीछे की गली है फिर सूँ ना सपट, किसी की आँखों से एक बूँद पानी तक ना टपका । ऐसा जीवन भी ना दें भगवान किसी को । जब तक माँ- बाप रहे , राजकुमार बन के रहा भोला , फिर मोहन ने किसी चीज़ की कमी ना रहने दी पर इस सोहन की आँखों…
अपने- अपने घर की छत पर कपड़े सुखाती दो पड़ोसनें आपस में रोहन की बात कर रही थी । रोहन का जन्म महाशिवरात्रि के दिन हुआ था इसलिए सब उसे भोला कहने लगे । जन्म के समय जब माँ ने सरकारी अस्पताल की दो नर्सों को कहते हुए सुना —- कैसा अजीब सा बच्चा है तो वे तुरंत बोल उठी — अजीब सा कैसा ? मतलब…..? मेरा बच्चा दिखाओ।
कुछ नहीं.. देख लेना । ठीक है सब…. हम तो कुछ ओर बात कर रहे थे । तुम्हारे बच्चे के बारे में बात नहीं थी ।
पर माँ का दिल कह रहा था कि बात उन्हीं के बच्चे के बारे में थी। दिल बैठा जा रहा था, अजीब सा …. कहीं मांस का लोथड़ा…. नहीं-नहीं…. आख़िर…. कैसा है ।
जब परिवार के दूसरे लोगों ने भोला को देखा तो उनके मुँह से निकला-
हाय ! कैसा हनुमान सा बालक है ?
पर बच्चा कैसा भी हो , माँ- बाप की आँखों का तारा होता है । ठीक वैसा ही भोले के साथ हुआ । उसके माता-पिता के लिए भोला , अपने दूसरे बच्चों की अपेक्षा अधिक लाड़ला था हालाँकि भोला देखने में सामान्य बच्चा नहीं था। देखने वाले ख़ासतौर पर , बच्चे उसे देखते ही डर जाते और बड़े लोग भोला को अजीब नज़रों से घूरते ।
जैसे-जैसे भोला बड़ा होता गया वह मोहल्ले भर के बच्चों के मनोरंजन का साधन बन गया । बच्चे और जवान उसे छेड़ते और वह बेचारा खीझकर कभी रोने लगता , कभी हाथ में पकड़ी चीज़ फेंककर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करता । पर मजाल किसी की कि भोले के माता-पिता के सामने कोई उसके साथ अशिष्ट व्यवहार करने की जुर्रत करता । और बड़े भाई मोहन की तो भोले में जान बसती थी । जब भी भोले को कोई छेड़ता तो वह अपनी कुछ तोतली आवाज़ में चिल्ला उठता——
मे बाई ताऊगा , वो पीतेगा सबे ।
और छेड़खानी करने वाले उसकी भाषा सुनकर तालियाँ पीट- पीटकर हँसते हुए कहते——
क्या बोला ? फिर बोल , फिर बोल ।
देखने और बोलने में असामान्य होने पर भी भोले में हर एक प्राणी के प्रति ज़बरदस्त संवेदनशीलता थी । कभी चिड़ियों को दाना-पानी देने की बात हो , दरवाज़े पर खड़ी गाय को रोटी देने की या घर के किसी भी सदस्य की मदद करने की , भोला हमेशा सहायता करता । कभी माँ झूठ भी कह देती कि भोला ! आज तो माँ थक गई तो वह उसे सत्य वचन समझ कर माँ को रसोई से खींचकर बिस्तर पर बैठा देता ।
जब एक दिन किसी रिश्तेदार के विवाह से रात में लौटते हुए माँ-बाप की टैक्सी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उन्होंने मौक़े पर ही दम तोड़ दिया तो भोले का समयचक्र ही घूम गया । वैसे तो मोहन ने छोटे भाई को कलेजे से लगा लिया , भाभी ने भी अपने पति का साथ दिया और वे भोला को अपने साथ ले आए ।पर समस्या यह थी कि मोहन अपनी पत्नी के साथ मुंबई में रहता था और वहाँ भोले को रखना बहुत मुश्किल था । बड़ी इमारतों के छोटे-छोटे कमरों में भोले का दम घुटता , वह नीचे सड़क की तरफ़ भागता , भाई-भाभी की अनुपस्थिति में, यदि वे घर लॉक करके निकलते तो बालकनी में खड़ा-खड़ा रोता-चीखता , ऐसे में सोसाइटी के लोगों की शिकायतें आती । थक-हारकर भोला को वापस गाँव लाना पड़ा ।
बस यहीं से भोला के दुर्दिन शुरू हो गए । सोहन और उसकी पत्नी को अवैतनिक नौकर मिल गया । पहले तो सोहन की दुकान में झाड़ू देना , घर की सब्ज़ी काटना , धुले कपड़ों को सुखाना – उतारना ही उसकी ज़िम्मेदारी थी पर एक बार दो/ तीन दिन कामवाली नहीं आई तो सोहन की पत्नी ने भोला को वाइपर पर कपड़ा डालकर पोंछा लगाना , बर्तन साफ़ करना , दुकान पर चाय- खाना ले जाने की ड्यूटी भी दे दी । हालाँकि मोहन भोले के नाम से हर महीने पाँच हज़ार रूपये सोहन के बैंक अकाउंट में डालता था । रोज़ उससे वीडियो कॉल करता और अक्सर सोहन से पूछता—-
सोहन , भोला बहुत कमजोर हो गया है । तुम उसके खाने- पीने का ध्यान तो रखते हो ना ? ….. सोहन ! आज भोला नहाया नहीं क्या ? कपड़े बड़े मैले लग रहे हैं ।
मैं तो भइया .. तुम्हारे भेजे पाँच हज़ार रुपये से ज़्यादा खर्च कर देता हूँ इसके ऊपर । अब आपको ऐसा लग रहा है कि मैं ध्यान नहीं रखता तो आप ले जाइए ।
सोहन अच्छी तरह जानता था कि मोहन की मजबूरी है और वो भोला को मुंबई नहीं ले जाएगा ।
एक दिन सुबह सोहन को खबर मिली कि मोहन भइया को दिल का ज़बरदस्त दौरा पड़ा है । वे अस्पताल में भर्ती थे जिस दिन भाभी ने वीडियो पर बात कराई तो मोहन के मुँह से केवल यही निकला ——
मेरा…. भो..ला… ! इससे अधिक वे कुछ बोल नहीं पाए और उनकी आँखों से अविराम आँसुओं की झड़ी लग गई । अपने भाई को रोता देखकर भोला भी जार-जार रोया——
बाई … मे बाई…. आ…जा…. ।
पर मोहन उसी रात चल बसा । कुछ महीने तो भोला ने उसे याद किया । अपने आप ही बोलता रहता , ज़ेहन में बसी स्मृतियों को दोहराता , सोहन या उसकी पत्नी को पकड़कर प्रश्न करता पर जब प्रत्युत्तर में डाँट मिलती तो सहम जाता ।
मोहन के द्वारा भेजी धनराशि बंद होते ही सोहन और उसकी पत्नी की रात-दिन की बद्दुआएँ सुनाई देने लगी —-
इस पागल ने जन्म सड़ा दिया । पता नहीं… कब मरेगा ? एक टाइम में दो किलो आटा खाता है । पूरा राक्षस है । इस हनुमान से ने जीवन नरक बना दिया ।
अक्सर पड़ोसी भी कहते —-
जिस दुकान-मकान पर सोहन अकेले क़ब्ज़ा जमाए बैठा है उस पर भोले का भी तो हक़ है । वैसे तो मंगलवार का व्रत करें पर उसी अपने आराध्य देव के नाम का इस्तेमाल अपने भाई के लिए ग़लत अर्थ में करता है । बेचारा सुबह से शाम तक काम में लगा रहता है पर इन्हें चैन नहीं । ईश्वर, भोले को इन अत्याचारियों से मुक्त कर दो ।
शायद भगवान को भोला की हालत पर दया आ गई । एक दिन देर रात तक छत को पानी से धोते समय, भोला बहुत भीग गया और अगले दिन उसे तेज बुख़ार चढ़ गया । वह अकेला पड़ा रोता- चीखता रहा और माँ- बाप तथा मोहन का नाम लेकर पुकारता रहा पर कोई पीछे के स्टोर में जाकर झाँका तक नहीं , कामवाली ने ही अपने आँचल में बंधी दवा की गोली उसे दे दी पर भाई-भाभी का दिल ना पसीजा । दो दिन की हाय- हाय के बाद भोला अपनों के पास चला गया । ईश्वर तो केवल अपने पास बुलाने का बहाना बनाता है वैसे ही वो बुख़ार उसे नारकीय जीवन से छुटकारा दिलाने का माध्यम बन गया ।
करुणा मलिक
अत्यंत सुंदर रचना