मोह मोह के धागे – विनोद सिन्हा “सुदामा”

सुनो….जरा इधर आना सुई में धागा डाल दो जरा….तुम्हारे कुर्ते की जेब सिल दूँ, आगे की एक बटन भी टूटी है उसे भी टाँकनी है , ओहहहह…बिन चश्मे कुछ दिखाई नहीं देती अब तो… राधिका जी ने अपने पति मोहन जो दूसरे कमरे में पेपर पढ़ रहे थे….उन्हें आवाज लगाई….. आता हूँ…बस जरा सा रह … Read more

आँसू – राम मोहन गुप्त

[ बड़ी बहन भी माँ ही होती है ] ‘नहीं, कहीं नहीं जाएंगी आप, जिसे जो भी कहना हो कहे, साथ रहना चाहे रहे या न रहे’ कहते हुए अम्बर ने अनीता के हाथों से अटैची छीन ली। उसे ऐसा करते देख नीलिमा पैर पटकते हुए अपने कमरे में घुस गई।  कितने समय से नीलू … Read more

हिम्मत – रीटा मक्कड़

संगीता की शादी को अभी कुछ महीने ही हुए थे। उसने नोटिस किया कि उसके ससुराल में उसके बड़े ननदोई जी का कुछ ज्यादा ही दबदबा है।उनकी छवि ही सबके सामने ऐसी बन चुकी थी कि ससुराल में कोई भी काम उनसे पूछे बिना और उनकी मर्जी के बिना नही होता था।सास ससुर भी उनको … Read more

वो लड़की – सीमा नेहरू दुबे

अक्सर याद आ जाती है, बचपन सबका ही खास होता है, कितने ही संगी साथी होते है कुछ याद रहते है कुछ हम भूल जाते है, पर कुछ तौ हमारे जहन के किसी कोने मै छुप कर अपना घर बना लेते है। ऐसी ही थी वो लड़की, उसकी याद के साथ साथ एक गांना भी … Read more

गौरी दीदी – कान्ता नागी

#बड़ी_बहन  गौरी अपने भाई सुमित से अगाध स्नेह करती थी,उसका एक ही सपना था सुमित पढलिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए।गौरी के पापा बैंक मे मैनेजर और मां मंजरी देवी कुशल गृहिणी थी। गौरी जब भी अपने घर की छत पर जाकर आकाश पर उड़ते विमान को देखती तो सोचती -वह भी एक दिन … Read more

सबसे अनमोल – नीरजा कृष्णा

अशोक जी अपनी पत्नी के  साथ अपनी रिटायर्ड जिंदगी बहुत हँसी खुशी गुजा़र रहे थे। उनके तीनों बेटे अलग अलग शहरों में अपने अपने परिवारों के साथ थे। उन्होनें नियम बना रखा था….दीपावली पर तीनों बेटे सपरिवार उनके पास आते थे…वो एक सप्ताह कैसे मस्ती में बीत जाता था…कुछ पता ही नही चलता था। कैसे … Read more

निष्प्राण – सुनीता मिश्रा

मेरी निष्प्राण देह जमीन पर पड़ी थी। कोई नहीं रो रहा था, न कोई शोक मना रहा था। न मेरे माँ बाप थे, न भाई बहिन न रिश्तेदार। मैं अचंभित था, नहीं पता किसी की वासना या जननी की भूल, नाले के पास पाया गया मैं। कुत्ते नोच रहे थे, कुछ दूरी पर चर्च था। … Read more

कन्यादान – कंचन श्रीवास्तव 

घूंघट के भीतर से आंखों ने रेनू को ढूंढ़ लिया और जैसे ही दोनों की नज़रें मिली दोनों ही फफक पड़ी रेनू के सामने रिया का वही दुधमुंहा चेहरा सामने घूम गया जब हो रूई के फाहे से उसे दूध पिलाया करती थी। और रिया भी  आंचल में मुंह डालके सारे आंसुओं को उड़ेल देना … Read more

सत्संग – अनुज सारस्वत

सुबह का समय था दादी घर के मंदिर में सभी भगवानों को स्नान करा रही थी उनके पास बेटे का गिफ्ट करा हुआ बलूटूथ स्पीकर था जिस पर हल्की मध्यम आवाज में भजन बज रहा था। “श्याम से मिलने का सत्संग एक ठिकाना है । कृष्ण से प्रीत लगी उनको भी निभाना है। एक दिन … Read more

शहर में घर – हरेन्द्र कुमार 

दीना नाथ जी रेटियार्ड होकर घर आ चुके थे। गृह मंत्रालय में क्लर्क का काम करते थे। अच्छी खासी रकम मिली थी सेवा- निवृत्ति (रिटायरमेंट) के बाद। गृह मंत्रालय में ऊपर की आमदनी भी थी। नौकरी करते वक्त उन्होंने गांव में बारह बीघा जमीन खरीद ली थी। दो लड़का और एक लड़की का परिवार था … Read more

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