दस्तूर – अरुण कुमार अविनाश
” रमेश बाबू और कितना समय लगेगा ?” – गोविंद जी असहाय भाव से बोले। ” बड़े बाबू आप खुद सिस्टम का हिस्सा रहें है – आपसे क्या छुपा है ! – सरकारी दफ्तर में आवेदन देना – खस्सी को वध स्थल पर पहुचानें जैसा काम है – खस्सी जाना नहीं चाहता और कसाई खींच-खींच … Read more