पछतावे के आंसू – गीता वाधवानी
मां की तेरहवीं के सारे रीति रिवाज निपट चुके थे। सारे मेहमान भी जा चुके थे। अगले दिन जब पिताजी भी दुकान खोलने चले गए, तब वह मां की अलमारी खोल कर उसके सामने खड़ा था। यह था निखिल। हाथ में बीस हजार रुपए लिए मुस्कुराता हुआ खड़ा था। उसे पता था कि बचपन से … Read more