“भेद नजर का” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

सीमा सुबह से तैयारियां कर रही थी। सबके लिए  नाश्ते बनाने के बाद उसे खुद के लिए तैयार होना था। काम इतना बढ़ गया था कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। सासु माँ बार- बार किचन में आकर बोल रही थीं “-  बहू जल्दी करो,जल्दी से काम निपटा लो और तैयार … Read more

उधार – मीनाक्षी सिंह

ये लिजिये काका ,,आपके पैसे ब्याज़ सहित ! कौन ???? हाथों में लाठी लिए हुए सुरेश जी चश्में को नीचे करते हुए बोले ! मैं पहचाना नहीं ! कौन हो बेटा तुम ! और मैं कौन होता हूँ किसी को उधार देने वाला ! अपनी  खुद की दो वक़्त की रोटी मुश्किल से कमा पाता … Read more

** काम का जेंडर से क्या लेना-देना ** – डॉ उर्मिला शर्मा

 दीपा के घर उसकी सालों पुरानी सहेली अंजली आयी थी। वैसे भी लॉक डाउन के बाद भी कहाँ कोई किसी के घर आता जाता है। दोनों सहेलियां एक दूसरे के घर की सारी अंदरूनी बातें जानती थीं। जब भी मिलती ढेरों बातों के साथ अपनी दुःखम- सुखम बतियाती। भारतीय परम्परानुसार दीपा पति- पत्नी में अनबन … Read more

वृद्धाश्रम – हरीश पांडे

वृद्धाश्रम की अपनी चारपाई पर बैठे 70 वर्षीय जगजीवन शर्मा ‘वृद्धाश्रम’ पर ही एक लेख लिख रहे थे। लेखन हमेशा से ही उनकी हॉबी थी पर जवानी में व्यवसाय और पैंसे कमाने में ऐसे उलझे कि फिर अपने विचारों को सलीके से शब्दों में तब्दील करने के शौक को कहीं पीछे ही छोड़ आये। अब … Read more

हँसना रोना – नीलिमा सिंघल

अचानक हुई घर के मालिक की मौत से परिवार गहरे सदमे में डूब गया। रजनी के पति समीर की हृदयाघात से अचानक मृत्यु हो गए थी वैसे उन्हें कोई भी खास बीमारी नहीं थी। सगे सम्बन्धियों और पड़ोसियों की भीड़ जमा हो गई थी, रजनी अपने इकलौते बेटे वेद को गोद में लिए बैठी सिसक … Read more

वाह तरीका हो तो ऐसा – मीनाक्षी सिंह

युवी सुनो ! दस बार आवाज लगा चुकी हूँ तुझे ! सुनता क्यूँ नहीं ! क्या हैँ मम्मा ,पूरा दिन आप कुछ ना कुछ बोलते रहते हो ! डोंट डिस्टर्ब मी ! पूरे दिन फ़ोन में घुसा रहता हैँ ,अंधा बहरा सब हो जाता हैँ जब ये बला तेरे हाथ में रहती हैं ! मम्मा … Read more

सफर – उषा भारद्वाज

वो मुस्कुराते हुए कार में बैठ गयीं, कार चली गई ।  शिखा दूर जाती कार को एकटक देखते रही। उसकी आंखों के सामने अतीत की यादें चलचित्र बनकर घूमने लगी। वो धीरे-धीरे कदम बढ़ाने लगी और अपने घर आ गई। सीधे अपने कमरे में जाकर  लेट गयी। आंखों के सामने दीदी का चेहरा और अतीत … Read more

“गिरगिट” (बदलते चेहरे) – कविता भड़ाना

“बहादुर जरा बाहर बस के ड्राइवर और कंडक्टर भैया को चाय पिला दो” बेटी का 12वा जन्मदिन मनाकर लौटी रीमा ने अपने घर के बावर्ची को आवाज देकर कहा और बस में साथ गए बच्चो को उनके रिटर्न गिफ्ट देकर विदा करने लगी….दो बच्चो को उनके मम्मी पापा अभी लेने नहीं आए तो उन्हें फोन … Read more

“संघर्ष सफर का” – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

तालियों की गड़गड़ाहट से समूचा हॉल गूँज उठा। तभी माईक पर आवाज गूंजी…… डॉ. स्मृति आप यहां आयें और अपनी मंजिल आपने कैसे पाया कृपया उसके बारे में दो शब्द कहें । यहां उपस्थित सभी मेहमान तथा मेडिकल कॉलेज के छात्र आपके यहां तक के सफर और संघर्ष की कहानी आपकी ही जुबानी सुनना चाहते … Read more

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