Moral stories in hindi : रमाकांत भैया और हमारे घर के बीच बस एक दीवार का फासला है।हम दोनों को एक दूसरे के घर में बोली हुई और कही हुई बात सुनाई दे जाती है।
साल भर पहले ही रमाकांत भैया के पिताजी चल बसे।हमें भी बहुत दुख हुआ था।उनकी माँ का छह माह तक तो सब ने खूब ध्यान रखा पर अब हर कोई उन पर चिल्ला देता है।रमाकांत जी की पत्नी मीरा जी ,बेटा अनुज ,बेटी जया और अब तो रमाकांत जी भी बात-बेबाक चिल्ला पड़ते हैं।और बात भी क्या ???बस सब मिलाकर खाने की !!
माजी हर पांच-छह दिन में किसी न किसी पकवान की मांग कर बैठती हैं।कभी जलेबी या लड्डू तो कभी इमरती या कलाकंद या चक्की आदि आदि तो कभी तीखी-तीखी रतलामी सेंव।
परसों ही उनकी आवाज़ सुनाई दी थी- “अरे बेटा रमू, बेसन की चक्की खाने का मन हो रहा है ,मंगवा दे या बहू से बनवा दे बेटा।बहुत मन कर रहा है।”
तभी उस से भी तेज़ आवाज़ में रमाकांत भैया की आवाज़ आई ,”क्या माँ ..!! दिन भर खाने की बात करती रहती हो ,इस बुढ़ापे में भी तुम्हारी ज़बान लार टपकाती रहती है।रोज-रोज की फरमाइश से तंग आ गया हूँ माँ। अरे ,भगवान का भजन करो ,माला फेरो और ये चटखारे लेने बंद करो।जया और अनुज के खाने के दिन है ,तुम्हारे नहीं ।बीमार पड़ गई तो डॉक्टर के बिल भर-भर के कंगाल हो जाऊँगा ।”
चिल्लाते हुए रमाकांत भैया घर से निकल गए। सुनकर मुझे बुरा तो बहुत लगा ..कुछ खाने को भी देना चाहती थी पर मन मसोस कर रह गई। अच्छा नहीं लगेगा।
परंतु यह क्या ? सांझ होते-होते उनके घर से रोने-पीटने की आवाज़ें आने लगी।दिल धक से रह गया।हम दोनों दौड़ कर उनके घर पहुँचे ।देखा , माजी नहीं रही थी।चारों प्राणी दहाड़े मार कर रो रहे थे।जैसे-तैसे उन्हें धीरज बँधाया।पड़ोसियों को बुलाया और माजी की पार्थिव काया को शमशान तक पहुँचाया।
बारह दिनों तक वहाँ बहुत चहल-पहल रही। चूंकि पड़ोसी हैं तो हम तो रोज ही कुछ समय के लिए जाते रहे।पंडित जी के कहे अनुसार रोज़ माजी की पसंद के पकवान बनते रहे।माजी की तस्वीर के आगे पकवानों की थाली सजा कर रमाकांत भैया व मीरा जी हाथ जोड़ कर रो-रो कर प्रार्थना करते ,” माँ जी पधारो ,अपनी पसंद के पकवान खाओ।”
और मैं बुत बनी वहाँ खड़ी-खड़ी सोच रही थी कि जीते जी माँ को पकवान नहीं खिलाए परंतु उनकी फ़ोटो के आगे रोज़ नए-नए पकवान….?????
स्वरचित
उषा गुप्ता
इंदौर