सुखदायक झूठ  -गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 अनु रोज दोपहर में 2:15 पर बस स्टॉप पर पहुंच जाती थी। स्कूल बस वही पर उसकी बेटी वेदिका को ड्रॉप करती थी। अप्रैल का महीना चल रहा था और इतनी गर्मी। वेदिका भी पसीने से तरबतर होती थी इतनी चिलचिलाती धूप में अनु ब्लॉक में घर के पास बने छोटे बगीचे में बेंच पर बैठी एक वृद्धा को रोज देखती थी।हालांकि बेंच पेड़ के नीचे थी पर गर्मी में रोज दोपहर के समय यह यहां क्यों बैठी रहती है कोई इनके साथ दिखाई भी नहीं देता। 

        आखिरकार अनु से रहा नहीं गया और एक दिन वह उस आंटी पूछने लगी, “आप इतनी गर्मी में दोपहर के समय यहां अकेली क्यों बैठी रहती है हमसे तो थोड़ी देर भी धूप बर्दाश्त नहीं हो रही और आप तो बुजुर्ग है ऐसे में आपकी तबीयत खराब हो जाएगी घर जाइए पंखा चला कर बैठिए।” 

         आंटी-” मेरा घर में बैठना किसी को पसंद नहीं है, बीमार होकर मर ही जाऊं तो अच्छा है वैसे भी मैं सबके लिए बोझ बन गई हूं, दूसरा हार्ट अटैक आए तो मेरी जान छूटे। ” 

      अनु-” आप परेशान मत होइए,मुझे बताइए क्या बात है क्या आपको बहू बेटे ने तंग कर रखा है? ” 

      पहले आंटी थोड़ा हिचकििचाई और फिर बोली-” बेटी मेरा नाम निर्मला है। मेरी दो बेटियां हैं बड़ी वाली रिया और छोटी प्रिया मैं दोनों बेटियों के पास छह महीने रहती हूं, मेरी छोटी बेटी का घर है यही सामने वाला। ” 

 अनु-” और अंकल जी कहां है? ” 

 निर्मला-” 2 साल पहले उनके गुजर जाने के बाद ही मेरा यह हाल हुआ है। मेरे बहुत समझाने के बाद भी उन्होंने दोनों बेटियों में सब कुछ आधा-आधा बांट दिया और बोले कि मुझे मेरी बेटियों पर पूरा भरोसा है। दोनों के पास मजे से रहना और अगर तुम पहले चली गई, तो मैं रहूंगा क्योंकि अकेले रहना

बहुत मुश्किल होता है निर्मला, बच्चों का साथ होगा तो अच्छा रहेगा। और फिर खुद ही पहले चले गए, वैसे अच्छा ही हुआ, बेटियों का लालची और स्वार्थी रूप देख लेते तो जीते जी मर जाते। ऐसा कहकर निर्मला रोने लगी। ” 

 अनु ने कहा-” आप थोड़ी देर मेरे घर चलिए, मैं आपको बाद में आपके घर छोड़ दूंगी आपके घर पर इन्फॉर्म करना है तो कर दीजिए। ” 

 निर्मला-” मेरी चिंता है ही किसे, पर मैं तुम्हारे घर जाकर क्या करूंगी बेटी? “

 अनु-” चलिए आंटी” 

 अनु निर्मला को अपने घर ले आई, पहले उसे ठंडा पानी पिलाया और फिर खाना खिलाया,आराम से बैठकर उनसे बात की। बाद में वह उनका घर छोड़ आई। 

 निर्मला ने बताया-” मैं अपनी बेटियों के घर खुशी-खुशी सारे काम कर देती थी,सिर्फ सफाई को छोड़कर, बर्तन धोना,खाना बनाना,कपड़े धोना, प्रेस करना, तब मेरी बेटी और दामाद को मुझे कोई शिकायत नहीं थी। उसके बाद मुझे हार्ट अटैक आया, मेरी ताकत धीरे-धीरे कम होती जा रही है। मुझे डॉक्टर के पास ले जाने का खर्चा और मेड का खर्चा अब उन्हें भारी लगने लगा है पहले सारे काम फ्री

में हो जाते थे। मेरी बेटी छोटी-छोटी बातों पर मेरे ऊपर चिल्लाती है और कहती है कि सारा दिन आराम से ऐसी चला कर बैठी हो इतना बिल आ जाता है।जब तक घर के सारे काम खत्म ना हो जाए, पार्क में जाकर बैठा करो और आकर खाना खा लिया करो, मैं बना कर रख दूंगी। जब बेटी अपमान करेगी तो क्या दामाद पीछे रहेगा। ” 

   ऐसा कहकर निर्मला रोने लगी। अनु ने उन्हें ढांढस बंधाया और उनसे पूछा कि क्या आपको अपनी बेटी का मोबाइल नंबर याद है तो बता दीजिए। निर्मला ने अपनी बेटी का फोन नंबर बता दिया। अनु ने बातों बातों में उनसे उनके पति का नाम और वह कहां काम करते थे यह भी पूछ लिया था। निर्मला ने

बताया था कि उनके पति का नाम राजेंद्र प्रसाद था और उनकी कंपनी में सब उनका बहुत सम्मान करते थे क्योंकि उनका स्वभाव बहुत विनम्र था और वह जरूरत पड़ने पर किसी की भी मदद के लिए तुरंत तैयार हो जाते थे। ” 

     अनु एक दिन बहाने से निर्मला जी के घर अपनी बेटी वेदिका के साथ गई, क्योंकि उसे पता था कि निर्मल जी की पोती की उम्र वेदिका के बराबर है, दोनों फ्रेंड्स बन जाएगी, तो उनके घर आना जाना आसान होगा। पहली बार पहुंच कर उसने बहाने से प्रिया से पूछा-” मैंने सुना है कि आपके यहां कोई कमरा किराये के लिए खाली है।” 

 प्रिया-” जी नहीं, हमारे यहां तो नहीं है, पर आप तो यही आसपास रहती है शायद फिर आपको क्या जरूरत पड़ गई कमरे की? ” 

 अनु-” नहीं दरअसल मेरी एक सहेली को जरूरत है।” 

        तब तक प्रिया की बेटी बाहर आ गई थी और वेदिका से बातें करने लगी। प्रिया अंदर चली गई। अनु जैसे ही वापस मुड़ी तो प्रिया के चिल्लाने की आवाज आई, ” यह क्या किया मम्मी आपने, सारी चाय गिरा दी और कप भी तोड़ दिया, आपने तो परेशान कर रखा है हमें। ” 

     अनु को बहुत बुरा लगा लेकिन वह उस समय चुप रही। धीरे-धीरे अनु ने प्रिया से दोस्ती कर ली और एक दिन जब पोछा लगने के बाद फर्श पर पैरों के निशान देखकर प्रिया अपनी मम्मी पर

चिल्लाने लगी, तब अनु, प्रिया को समझाने लगी, ” देखो प्रिया, तुम्हें अपनी सास पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए, हम लोगों का भी कभी ना कभी बुढ़ापा आएगा, वक्त से डरो, न जाने बुढ़ापे में हमारा क्या हाल हो। ” 

 प्रिया ने उसकी बात पर ध्यान न देते हुए कहा-” जो भी होगा देख लेंगे, और यह मेरी सास नहीं,मेरी मां है।”  

 अनु-” माता-पिता से बढ़कर हमारी चिंता कोई नहीं कर सकता और ना ही उनसे बढ़कर हमें कोई प्यार कर सकता है। “

 अनु को साफ दिख रहा था कि प्रिया पर किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा है। 

     फिर काफी दिन बीत गए और आंटी अब बेंच पर नजर नहीं आती थी। 

 एक दिन शाम को अनु मंदिर से वापस आ रही थी। तब उसने आंटी को वहां बैठे देखा तो वह तुरंत उनसे मिलने जा पहुंची। 

 अनु-” नमस्ते आंटी कैसी है आप? ” 

 निर्मला-” नमस्ते बिटिया, मैं तो ठीक हूं तुम कैसी हो, तुमसे मिलने के बाद तो मानो मेरे दिन ही बदल गए। ” 

    अनु-” आंटी आपको स्वस्थ और हंसते मुस्कुराते देखकर बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन ऐसा क्या हुआ? ” 

 निर्मला-” एक दिन प्रिया के पास मेरे पति की कंपनी वालों का फोन आया और बोले कि आपसे बात करनी है। वह लोग कहने लगे कि हम लोग जांच करने आए हैं कि अपने माता जी को किस हाल में रखा है। हम बीच-बीच में जांच करते रहेंगे और अगर आपने पूरे वर्ष माताजी को बहुत अच्छी तरीके

से रखा होगा तो हम लोग वर्ष के अंत में आपको ₹10000 महीने के हिसाब से सहायता देंगे। हम लोग माताजी से बात करेंगे। माताजी दुखी या बीमार लगेगी तो आपको कुछ नहीं मिलेगा। ” 

 तब मेरे दामाद ने कहा-” हमने तो कभी ऐसा कोई नियम सुना नहीं है और आप लोग क्या पहले सोए हुए थे? ” 

 कर्मचारियों ने कहा-” आपने सही कहा, किसी कंपनी में ऐसा नियम नहीं होता है, लेकिन हम लोगों ने इंसानियत के नाते अपनी अपनी सैलरी से थोड़ा बहुत जमा करके देने का मन बनाया है और आप हमें बेशर्मों की तरह बातें सुना रहे हैं। पहले का कुछ नहीं हो सकता। चलो भाइयों, उठो चलो। ” 

 दामाद-” अगर बाद में आपने धोखा किया तो, लिखित में दीजिए। ” 

 कर्मचारी -” किसी को सहायता देना और इंसानियत की बातें लिखित में नहीं होती। ( यह लोग पूरी तैयारी करके आए थे ) हम बस अभी आपको 10000 दे सकते हैं और अगर इस वर्ष के बीच में मदद पाने वाले इंसान को कुछ हो जाता है यानी की माता जी को कुछ हो जाता है तो हम आपको कुछ भी नहीं दे सकेंगे। ” 

     मेरे दामाद ने कहा-” ठीक है ठीक है, आप तो बुरा मान गए सर जी। ” 

      फिर एक दिन मैंने अपनी बेटी और दामाद को बात करते सुना, मेरा दामाद कह रहा था ” चलो, मम्मी जी पर अगर 40 -50000 खर्च हो भी गए, तो भी हमें हर साल 50000 की बचत तो हो ही जाएगी। ” 

 इस लालच में यह लोग मेरी सेवा कर रहे हैं और बात-बात में मेरा अपमान भी नहीं करते। ” 

 अनु रास्ते में सोचती हुई जा रही थी कि मेरे पति ने अंकल जी के ऑफिस जाकर, आंटी जी की हालत बताकर, उनके साथी कर्मचारियों को ऐसा झूठा नियम बताने को मना लिया लेकिन एक साल पूरा होने पर क्या होगा, यह लोग तो लालची हैं, पैसा नहीं मिलेगा तो पीछे पड़ जाएंगे। अभी तो सब ने मिला कर

10000 दे दिए, ताकि लालची लोगों को यकीन आ जाए, बाद में क्या होगा, फिर उसने अपने विचारों को यह कहकर झटक दिया की बाद की बाद में देखी जाएगी। भगवान ही कोई रास्ता ढूंढेंगे। अभी एक सुखदायक झूठ से कम से कम आंटी का जीवन तो सुखी हो गया। 

 5-6 महीने बाद अनु को प्रिया के व्हाट्सएप मैसेज से पता लगा कि आंटी नींद में ही चल बसीं, शायद उन्हें दूसरा हार्ट अटैक आया था। 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

     कहानी का शीर्षक -सुखदायक झूठ  

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