सोने के हार

एक गरीब महिला थी  वह दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा कर अपना जीवन यापन करती थी और अपने बच्चों और अपने परिवार का पालन पोषण करती थी क्योंकि उसका पति बहुत पहले ही कैंसर नामक बीमारी से मृत्यु को प्राप्त हो गया था।  लेकिन उस महिला में एक खासियत जरूर थी उसके घर के पड़ोस में ही एक कृष्ण जी का मंदिर था वह सबसे पहले सुबह उठकर मंदिर की सफाई करती थी और पूजा करने के बाद ही वह कोई काम शुरू करती थी यह उसका नित्य कर्म था।

गरीब महिला की भक्ति देख कर एक दिन विष्णु भगवान से लक्ष्मी जी बोली कि प्रभु आपकी पूजा  यह महिला कितनी निष्ठा से करती है। आप इसके लिए कुछ करते क्यों नहीं आप ऐसा कुछ क्यों नहीं कर देते हैं कि इस महिला को कहीं और किसी के दरवाजे पर जाकर काम करना ना पड़े।  भगवान विष्णु बोले देवी लक्ष्मी जिसको भगवान की भक्ति प्रिय होता है उसे और कुछ भी प्यारा नहीं लगता है अगर मैं उसकी कुछ मदद भी कर दूं तो वह उसको भाव नहीं देगी क्योंकि ऐसे लोग अपने कर्म पर विश्वास करते हैं।



माता लक्ष्मी बोली कि प्रभु ऐसा नहीं है आखिर वह महिला दूसरे के घरों में काम करने के लिए पैसे के लिए ही तो जाती है अगर उसे पैसा एक जगह इकट्ठा ही मिल जाए तो वह काम करने क्यों जाएं।  ऐसा कीजिए कि कल जब गरीब महिला मंदिर की साफ सफाई कर बाहर निकले तो आप वहां पर एक “सोने का हार” सीढ़ीयो पर गिरा दीजिए ताकि उस महिला को मिल जाए और वह अपने परिवार का पालन पोषण सही ढंग से कर पाए।

अगले दिन महिला जब मंदिर को साफ सफाई कर के उतर रही थी तो उसने देखा कि वहां पर एक “सोने का हार ” पड़ा हुआ है। उसे लगा कि किसी का मंदिर के सीढ़ीयो  पर गिर गया होगा उसने आसपास नजर घुमाई तो देखा कि आस पास तो कोई भी नहीं दिख रहा है फिर उसने सोचा कि चलो इसे उठा लेती हूं अगर कोई मिल जाएगा तो उसे मैं दे दूंगी।

गरीब महिला सीढ़ी से उतरकर जैसे ही दो कदम आगे बढ़ी थी तभी एक भिखारी आया और उस महिला से आग्रह करने लगा माता कुछ खाने को पैसे दे दो बहुत भूखा हूं 2 दिनों से कुछ भी नहीं खाया हूं माता मुझ पर रहम करो कुछ दे दो।

गरीब महिला ने सोचा कि मेरे पास तो कुछ है नहीं इस भिखारी को देने के लिए शायद यह सोने का हार प्रभु ने इसीलिए मुझे सीढ़ी पर दिया है कि मैं इस गरीब भिखारी की मदद कर सकूं और फिर यह मेरा है ही नहीं तो मुझे इस सोने की हार से लोभ  कैसा प्रभु ने मुझे दिया था और मैं प्रभु को ही सौंप देती हूं।



गरीब महिला ने वह सोने का हार भिखारी को देते हुए कहा कि यह लो इसे बेचकर तुम अपने लिए  नए कपड़े खरीद लेना और अपने परिवार वालों को भी भोजन खरीद कर खिला देना। भिखारी ने जैसे ही सोने का हार देखा तो गरीब महिला से बोला माता यह तो सोने का हार है यह मैं कैसे ले सकता हूं मुझे तो सिर्फ एक वक्त का खाना खाने का पैसा दे दो।

गरीब महिला ने बोला बाबा इसे तुम ले जाओ मुझे इस सोने की हार की जरूरत नहीं है।  यह सोने के हार प्रभु श्री कृष्ण ने ही मुझे आपको देने के लिए दिया है वरना मैं तो गरीब हूं मेरे पास “सोने के हार”  कहां से आता या तो मुझे सीड़ियों पर मिला था।

प्रभु की कृपा से मैं बहुत ही खुश हूं भगवान ने मुझे जितना दिया है उसी में मैं खुश हूं।  मैं नहीं चाहती हूं कि यह “सोने का हार” लेकर भगवान की भक्ति को भूल जाऊं मेरे पास कमी है इसीलिए मैं रोज भगवान की मंदिर में आती हूं क्योंकि जिसके पास बहुत धन हो जाता है वह भगवान को बहुत जल्दी ही भूल जाता है वह अपने आप को खुद ही भगवान समझने लगता है।

गरीब महिला को जाते ही भिखारी  सोचने लगा कि मैं कई वर्षों से इस मंदिर की सीढ़ियों पर भीख मांगता हूं लेकिन कभी भी मैं कमाने को नहीं सोचता हूं और यह एक गरीब महिला है जिसके पास भगवान ने “सोने का हार”  दिया फिर भी ये हमें दान में दे दिया। हम इस सीढ़ियों पर बैठकर बरसों से भीख मांगते रहे लेकिन भगवान से हमने अपने लिए कुछ नहीं मांगा बस हम लोगो से यही बोलते रहते हैं कि भगवान हमें कुछ पैसे दे दो भगवान आपको लाखों देगा।   कभी यह हमारे मन में ख्याल नहीं आया कि जो हम दूसरों के लिए भगवान से मांगते हैं वह अपने लिए खुद क्यों नहीं मांगे उस दिन के बाद से भिखारी ने अपने भिखारी का चोला हटा दिया और नियमित रूप से भगवान की भक्ति में लग गया और उस दिन के बाद से उसे महसूस होने लगा उसका जीवन भी पहले से बेहतर और अच्छा होने लगा।

यह सारा दृश्य भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी देख रही थी भगवान विष्णु ने कहा कि देख लिया आपने जिसको भगवान की भक्ति प्रिय होता है फिर उसके इस दुनिया में कुछ भी प्रिय नहीं लगता है आपने उसे धन  देना चाहा लेकिन वह धन उसने किसी और को दे दिया क्योंकि उस गरीब महिला के लिए अपनी भक्ति धन से बड़ा कोई धन नहीं लगता।

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