सदा सुहागन – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अम्मा मनिहारिन आई है ,वो कुछ बोलती की शहर से आई बहुत ने कहा व्हाट्स मनिहारिन ये क्या क्या शब्द आप सब बोलती रहती हैं मेरी तो कुछ समझ में नही आता।

दलान में बैठी दादी सास ने मुंह बिचकाया हुं ये क्या जाने रस्मों रिवाज पूजा पाठ तीज त्योहार।इसे तो सिर्फ़ नौकरी करना और पत्ता चाट के फेकना आता है।

इतने में कल की पूजा की तैयारी में लगी विभा  हाथ पोछते बाहर आते हुए बोली।

अच्छा अच्छा बैठा दो दादी के पास आते हैं कहते हुए रमेश (पति ) से पैसे मांगने चली गई।

अजी सुनते हो कुछ पैसे दे दो मनिहारिन आई है कल गुड़िया है ना चूड़ी पहनना है।

अरे हां सुनों हम अकेले नहीं है अम्मा बिटट्टी और हो सकता है सुगु भी …कहते कहते रुक गई हां वो इस लिए कि पहने या ना पहने पर हम सब को तो पहनना ही है और हां सिधा में डालने के लिए कुछ पैसे भी ,अरे! कुल मिलाकर हज़ार वजार रुपये दे दीजिये।

इतने में काम चल जायेगा ,भाई चिल्लड पार्टी भी तो आई है बच्चों को भी तो देना होगा ना , आखिर कार ननद रानी भी बहुत दिनों बाद आज त्योहार पर आईं हैं।

कही हुई पल्लू संभालती मनिहारिन चाची के पास पहुंच गई ।पाय लागूं चाची कैसी हैं।अच्छी चुड़िया लाई हैं ना।

हां हां बहुरानी हरे रंग में ही विभिन्न बेरायटी की चुड़ियां लाये है। देखो तो सही तुम्हारे मन को बहुत भायेगी।

और हां सुना है बबुआ की घर वाली भी आई है अरे बुला दो उसके भी  नरम नाजुक कलाई में हरी हरी चुड़ियां पहना दें।इतने में विभा बोली हां चाची पहले जिज्जी और अम्मा को पहना दीजिये फिर हमें और बिटियां रानी को । इतना सुनते ही फिर बीच में बोली और बहुरानी को ।हां हां पूछते है ।इतने में सुगु भी जिन्स पहने आ ही गई ये देख मनिहारिन के होठों पर हाथ की चारों उंगलियां अनायाह ही

पहुंच गई।और मन ही मन सोचने लगी इ का पहनेगी इनका कहां भायेंगी चुड़िया भइया इ तो जिन्स घड़ी वाली हैं।वो सोच ही रही थी कि इतने में सुगु ने कहां माम!वैरी गुड , यहाँ चूड़ी खरीदने  नही जाना  पड़ता बल्कि चूड़ी वाली खुद पहनाने आती है । क्या बात है ये तो बड़ी अच्छी बात है दीदी इन्हीं को मनिहारिन बोल रही थी क्या अच्छा माम एक बात बताये क्या मुझे भी पहनायेगी ये चुड़िया।मुझे भी पहनना है तभी तो कल पूजा करेंगे 

ये सुन विभा के चेहरे की रौनक और अपनों के बीच इज़्ज़त दोनों बढ़ गई कि भले बेटे ने लव मैरिज की है पर बहु संस्कारी है साथ ही रीति रिवाज को मानने वाली है।सोचते हुए चाची से बोली चाची पहले सुगु को पहना दीजिये फिर हम पहनेंगे 

इतना कह सुगु का हाथ आगे बढ़ा दिया।और थोड़ी ही देर में नक्काशी दार हरी चुड़ियों से उसकी गोली कलाई से गई। सच भले पहनावा आधुनिक  है पर संस्कार भरपूर है 

सोचते हुए चाची  कितने पैसे हुए बताना तो जरा।इस पर वो झट से बोली ज्यादा नही बहुरानी यही कुल आठ सौ रुपये ।

अच्छा आठ सौ बोलते हुए जैसे ही उसने दो पाच पांच सौ की नोट उनकी तरफ बढ़ाई सुगु ने अरे माम आप रखिये मैं देती हूं कहते हुए पर्स से पैसे निकाले और मनिहारिन की तरफ बढ़ा दिया।

ये देख वो मंद मंद मुस्काई और बोली बहुरानी बहुरिया संस्कारी और दिल वाली लाई हो ।कहते हुए सदासुहागन का आशीर्वाद दिया और टोकरी सर पर उठवाने का इशारा करते हुए खड़ी हो गई उसके खड़े होते ही सुगु ने झुककर टोकरा उठवाया और अपने कमरे में चली गई और मनिहारिन दूसरे घर ,सच  बहु की तारीफ सुनकर विभा का सर गर्व से ऊंचा हो गया।

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज

Leave a Comment

error: Content is protected !!