कसम से माँ जी क्या जैम बनाईं हैं आप ……मैंने तो जिंदगी में इतना टेस्टी जैम नहीं खाया ….वो भी अमरूद का …..!! आपके हाथों में जादू है माँ जी , जादू …..। अपनी सासू माँ की तारीफ करते नहीं थक रही थी रोली …… !!
सच ही तो है जया देवी को जेली , जैम , अचार , मुरब्बा बनाने का शौक बहुत ज्यादा था और वो इन सब चीजों को बड़े धैर्य पूर्वक मेहनत करके बनाती थी ….और रोली को भी सहयोग करने को कहती थीं….। शुरू – शुरू में रोली को ये सब चीजें बकवास लगती थी उसे लगता था….आज के जमाने में इतनी मेहनत करके कौन बनाता है इन सब चीजों को ….. ! इससे अच्छा तो बाजार से ले आओ और आराम से खाओ…।
जब भी घर के पेड़ में अमरूद पकते….. सासू माँ उन्हें लेकर धोना , उबालना फिर छान कर बीजें और गुदे अलग – अलग करना …शुरू हो जाती थी इस दौरान रोली से भी मदद लेती थी… इच्छा ना होने पर भी रोली सहायता करने को मजबूर रहती….। रोली उतना ही मदद करती जितना सासू माँ कहती थी । उसने इन चीजों की बारीकियों को सीखने की कभी कोशिश नहीं की ….।
कभी-कभी जया देवी इन चीजों को बनाते बनाते थक भी जाती थी और गुस्सा भी करती थी …कि…..खाने में सभी को अच्छा लगता है पर बनाते समय कोई आगे नहीं आता ….। असल में लगातार अमरूद के गूदे को धीमी आंच पर घंटों चलाना होता था इतने संयम से लंबे समय तक निपुणता पूर्वक करना रोली के बस की बात नहीं थी ….। और सासू माँ जया देवी भी इस बात को अच्छी तरह जानती थी… इसीलिए उन्होंने कभी भी रोली को इस कार्य के लिए बाध्य नहीं किया ….।
पर बातों बातों में जया देवी ने एहसास दिलाने में संकोच भी नहीं किया कि…आजकल की लड़कियां एक हाथ में फोन और एक हाथ में चमचा लेकर खाना बनाती है तो कहाँ से स्वादिष्ट खाना बनेगा… ध्यान तो कहीं और होता है , हमारे जमाने में तो घंटों सब्जी भूना जाता था फिर सिलबट्टे पर मसाला पीस कर डाला जाता था भाई हम मेहनत करते थे तब जाकर लाजवाब सब्जी बनती थी !!
रोली जानती थी ये सब बातें उसके लिए ही है पर वो ये भी जानती थी….. सासू माँ जो भी बोल रही है गुस्से में बोलती है ……वो दिल से बहुत अच्छी हैं …..इसीलिए रोली कभी उनके बातों का बुरा नहीं मानती थी …..बल्कि ये कहकर अरे माँ जी…. ” आजकल हार्ड वर्क नहीं स्मार्ट वर्क का जमाना है ” और धीरे से मुस्कुरा कर माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश करने लगती ….!
धीरे धीरे जया देवी की उम्र बढ़ने के साथ-साथ तबीयत बिगड़ने लगी और लगभग इन सब चीजों का बनना बंद ही हो गया ….।
पहली बार रोली को एहसास हुआ यदि माँ जी को कुछ हो गया और वो नहीं रही तो यह विशेष हुनर जो उनके हाथों में था उनके साथ ही विलुप्त हो जाएगा …..ऐसा सोचकर भी वो दुखी हो जाती …। क्योंकि वास्तव में जया देवी का यह हुनर काबिले तारीफ था ….और उसे पछतावा होने लगा कि जब माँ जी इन सब चीजों को बनाती थी तब उसने ध्यान पूर्वक इन चीजों को क्यों नहीं सीखा …..??? वास्तव में माँ जी ठीक ही तो कहती थी ……जो हमें बकवास लगता था ……!!!
समय बीतने के साथ जया देवी का निधन हो गया …। अचार , मुरब्बा ,जेली ,जैम की भी तारतम्यता थम गई ……!!!
कुछ वर्षों बाद आँगन के पेड़ में अमरुद पकने लगे …..रोली ने सोचा एक बार माँ जी के समान जैम बनाने की कोशिश करती हूँ …..जैसा उसने देखा था और कुछ उसी अंदाज से पूरी मेहनत से अमरूद के जैम बनाएं रोली ने……!! जैम तो बन गया पर शायद वो स्वाद नहीं आया जो माँ जी के हाथों से बना जैम में हुआ करता था ….और कुछ ही दिनों बाद उसमें फफूंद भी लगने लगे ……।
अब रोली समझ चुकी थी समय रहते चीजों की उपयोगिता आवश्यक है …..हर बात पर अपना विचार थोपने से ज्यादा जरूरी और अच्छा होता है बड़ों की बातें सुनकर मानना….कभी-कभी बड़ों से सुनना समझना व सीखना भी जरूरी होता है…..।
हमारा दायित्व बनता है कि… समय रहते अपने अभिभावको के अनुभव , तजुर्बे और कुछ विशेष योग्यताओं को आत्मसात करें , ताकि हम अगली पीढ़ी को भी …अपने घर की परंपरागत चीजों से अवगत करा सके…!
जब भी रोली अमरूद के उस पेड़ को देखती …पिछली न जाने कितनी यादें उसके मस्तिष्क में घूम जाती… मां जी की वो मेहनत …उनका प्यार … उनका तजुर्बा उनकी कही एक-एक बात..
आज एक बार फिर….. आंगन के पेड़ पर लगे अमरूद को देखकर अनायास ही रोली के मुँह से ये बात निकल गई…… सच में मां जी …आप बहुत अच्छी तो थी ही ….बहुत गुणी भी थी….
” मां जी आपके साथ आपका हुनर भी चला गया “……!!!
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
नोट : साथियों , ये रचना मैंने कुछ पहले लिखी थी पर मेरे दिल के बहुत करीब है.. वर्षों बीत गए पर रचना पढ़कर आज भी याद ताजा हो जाती है, सोचा आप लोगों से भी सांझा करूं…!
संध्या त्रिपाठी