समधन जी – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

समधन जी !”आपकी बिटिया को कुछ सिखाया नहीं है क्या?

सिर्फ पढ़ाई लिखाई और नौकरी ही कराया है आपने?” कमला जी ने फाल्गुन की मम्मी को सुनाना शुरू कर दी।

अभी अंदर आए कुछ ही समय हुआ था रमा जी को,ना ढंग से चाय – पानी पूछा और ना ही हाल खबर। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी रूपरेखा तैयार कर के बैठीं थीं,बस इंतजार ही था भड़ास निकालने का।

हे भगवान! कैसी महिला हैं समधन जी? इतनी दूर से लम्बा सफर तय कर के आई हूं, कम-से-कम थोड़ी देर मुस्करा कर बात तो कर लेती फिर शिकवा -शिकायत का पुलिंदा खोलतीं। शादी के समय तो बहुत पढ़ी लिखी नौकरी वाली बहू चाहिए थी। सचमुच में कितने चेहरे होते हैं लोगों के रमा जी ने खुद को सामान्य किया और अपने आप को तैयार किया समधन जी से बात करने के लिए।

पता नहीं फाल्गुन बेचारी कैसे रहती होगी इनके साथ। इंसान को समझने में मैंने गलती कर दी। फाल्गुन के पिता नहीं थे,

रमा ने बहुत अच्छी तरह से उसका पालन-पोषण किया था और बहुत ही संस्कारी लड़की थी फाल्गुन। इसीलिए कभी भी ससुराल की बातें मां को बताई नहीं थी कि मां बिना मतलब के परेशान होंगी और वो अकेली भी हैं।

“समधन जी क्या हो गया? क्या ग़लती हो गई मेरी बिटिया से” रमा जी ने बड़ी शालीनता से पूछा।

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बहन जी!” कोई भी रीति रिवाज जानती ही नहीं है और ना ही खाना बनाना अच्छी तरह से आता है। मेरी सेवा तो क्या ही करेगी… वक्त ही नहीं रहता है उसके पास। ये नहीं की घंटा दो घंटा मेरे साथ वक्त बिताए । दफ्तर से आते ही कमरे में चली जाती है “कमला जी बोले ही जा रहीं थीं।

समधन जी शादी को कुछ ही महीने हुए हैं और हर घर के अपने तौर-तरीके होते हैं। इतनी जल्दी वो कैसे समझेगी आपके घर को।आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप अपने रीति रिवाज उसको बताएं और सीखाएं।घर के काम खत्म करके ही वो आफिस निकल जाती है और शाम को थकी आती है तो उसको भी आराम चाहिए की नहीं?” रमा जी ने कहा।

“नौकरी के साथ घर को संभालने की जिम्मेदारी भी बहू की होती है ,भला ऐसी नौकरी से क्या फायदा की घर गृहस्थी ही बर्बाद हो जाए।” कमला जी मुंह टेढ़ा – मेंढ़ा बना कर बोले जा रही थी।

“मैं आपकी बात से सहमत हूं… लेकिन एक बात बताइए कि घर गृहस्थी की जिम्मेदारी हमारी आपकी नहीं है क्या? हम घर में रहते हैं, बच्चे तो बाहर रहते हैं दिन भर। हमसे आपसे से ज्यादा भार है हमारे बच्चों पर।उनको बाहर के साथ – साथ घर भी देखना पड़ता है और बुरा नहीं मानिएगा क्या आपको ऐसी शिकायत अपने बेटे से भी है?” रमा जी ने तार्किक आधार पर पूछा।

“लड़की – लडके में फर्क होता है बहन जी। क्या बात कर रहीं हैं? अब क्या मेरा राजू घर के काम करेगा? किस लिए शादी किया है हमने उसकी? “अब कमला जी के तेवर में बदलाव आने लगा था।

” लड़की – लड़के में फर्क क्यों बहन जी? हमारी बेटी भी उतनी ही पढ़ी लिखी है और अच्छी नौकरी करती हैं।वो भी घर चलाने में सहयोग भी करती है और घर संभालने में भी।उसको आराम की जरूरत नहीं पड़ती होगी।

फिर भी वो आफिस से आकर सभी के लिए खाना बनाती है। अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाती है क्या ये सब कम है? आपको नौकरी वाली बहू नहीं लानी चाहिए थी” रमा जी ने कमला जी कहा तो कमला जी की बोलती बंद हो गई ।

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किसी भी इंसान में कमियां निकालना बहुत ही आसान होता है पर उसकी सराहना करना बहुत कठीन होता है।हर सास अपनी बहू से कभी भी संतुष्ट नहीं होती है और बहू ज्यादा गुणवान है तो उसे कभी भी हजम नहीं होता है। रमा जी मन ही मन सोच रहीं थीं।

कमला जी मन ही मन में बुदबुदा रहीं थीं कि मां अगर इतनी तेज है तो बेटी तो होगी ही ना। सही बात ये थी कि रमा जी ने बेटी को सीखाया था कि अगर तुम्हारी गलती हो तो दस बार झुक कर माफी मांग लेना बेटी लेकिन गलत बात पर झुकना नहीं । कोशिश करना कि बहसबाजी ना हो अपनी बात को सलीके से रखना बेटी।

“आइए रमा जी  खाना खाते हैं। आपको भूख लगी होगी कितने लम्बे सफ़र से आईं हैं आप” कमला जी रसोई घर की तरफ जाती हुई बोली।

रमा जी भी जल्दी से हांथ – पैर धोकर रसोई घर में पहुंच गई और कमला जी की मदद कराने लग गई। दोनों ने खाना खाया और आराम करने कमरे में चली गई।

शाम को फाल्गुन और दामाद जी आफिस से आए तो कमरे में मिलने आए और दोनों से मिल कर रमा जी की तबीयत प्रसन्न हो गई।हीरा दामाद था, बहुत ही सम्मान करता था। रमा जी के मन में जितनी उथल-पुथल चल रही थी शांत हो गई थी क्योंकि राजू अपनी पत्नी का बहुत सम्मान भी करता था और ख्याल भी रखता था।

फाल्गुन के साथ रमा जी भी रसोई घर में लग गई,उनको देखकर मजबूरी में कमला जी को भी आना पड़ा। सभी ने मिलकर रात का खाना खाया और मिलजुल कर थोड़ी देर तक बातें करते रहे। फिर कमला जी सोने चलीं गईं और राजू भी थका था वो भी चला गया। फाल्गुन मम्मी से लिपट कर लेट कर बातें करने लगी।

फाल्गुन ” बेटी तुम्हें किसी बात की तकलीफ़ तो नहीं है ना? कैसा व्यवहार है तुम्हारे ससुराल वालों का बेटा?” रमा जी को बेटी की फ़िक्र हो रही थी।

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मम्मी!” आप ऐसे क्यों पूछ रही हो? मां जी ने कुछ कहा क्या? मम्मी उनकी बातों को दिल से नहीं लगाना।राजू बहुत ख्याल रखते हैं मेरा और देखो हर घर में कोई ना कोई होता है, क्या फर्क पड़ता है।एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल देना चाहिए यही तो सीखाया था ना आपने।

मां जी जी का व्यवहार थोड़ा है ऐसा सबकुछ बोल देती हैं मुंह पर। आपको कुछ उल्टा सीधा तो नहीं कहा ना?” फाल्गुन को सास का स्वभाव पता था और उसे अंदाजा भी था कि मम्मी से कुछ ना कुछ कहा तो होगा।

नहीं बेटा,” हम तो अपनी – अपनी बातें कर रहे थे वक्त का पता ही नहीं चला। तुम सुनाओ नौकरी सही से चल रही है?”

हां मम्मी!” बाॅस खुश हैं मेरे काम से और जल्दी ही प्रमोशन होने वाला है मेरा।”

दोनों बहुत रात तक बातें करती रहीं और फाल्गुन मां से लिपट कर सो गई। रमा जी ने संतोष की सांस ली कि बेटी ने किसी तरह की शिकायत नहीं किया और वो खुश है अपने घर में।एक मां को और क्या चाहिए था।

समधन जी के स्वभाव को बदला तो नहीं जा सकता था लेकिन शायद मेरी बातों का कुछ तो असर होगा और वो ये ग़लत आदत छोड़ पाएंगी कि अपने ही घर की बहू की बुराई करना बंद कर सकें। उन्हें तो बहू को समझना और सीखना चाहिए कि कैसे गृहस्थी चलती है आखिर इतने सालों का अनुभव होता है हमारे पास और वो तो किस्मत वाली हैं जो बेटे – बहू उनके साथ हैं और मिलजुल कर सुख – दुख बांटते हैं।हम बड़े लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि चली आ रही घीसीपिटी बातों से आगे बढ़ कर नए जमाने के तौर-तरीकों को अपनाएं और बच्चों के साथ खुशी – खुशी रहें।

दूसरे घर की बेटी को अपने घर में दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए। पहले ससुराल वालों की जिम्मेदारी बनती है कि वो उसे अपनाएं।जब वो बहू को घर का सदस्य मानेंगे तो बहू भी अपना मानेगी उस परिवार को।

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रमा जी के वापस जाने का समय आ गया था। अपना सामान रख रहीं थीं तभी कमला जी आईं और उन्हें डर था कि रमा जी कहीं सबकुछ बता ना दी हों फाल्गुन को और अगर फाल्गुन ने राजू को बताया होगा तो राजू बहुत नाराज़ होगा उन पर। सुबह सबकुछ सामान्य था तो उनको राहत की सांस आई थी।

समधन जी ” मैंने कल जो आपसे कहा…आप बुरा नहीं मानिएगा और हां आपने बहुत अच्छी तरह से मुझे समझाया था। मैं आगे से ध्यान रखूंगी, वैसे फाल्गुन बहुत अच्छी लड़की है बस थोड़ा कामकाज करना मुझे ही सीखना पड़ेगा” कमला जी ने कहा।

हां – हां बिल्कुल समधन जी। आजकल के बच्चों के पास कहां वक्त रहता है।हम आप तो घर में रहते थे तो भी हमारी आपकी सास ने भी दस कमियां निकाली होगी हममें पर हमें अपने बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार नहीं करना चाहिए।

बुरा नहीं मानिएगा तो कहना चाहती हूं कि जैसा व्यवहार करेंगी वैसा ही मिलेगा क्योंकि आजकल के बच्चों के पास खुद के लिए वक्त नहीं होता है तो वो हमें आपको जितना भी वक्त देते हैं यही बहुत है और आप भी कुछ करके देखिए उसके लिए कितना अच्छा लगेगा उसे।

सास बहू का रिश्ता खट्टा मीठा ही होता है। इसीलिए इसमें ऐसे ही स्वाद का बैलेंस बनाकर रखिएगा तो आप और आपका परिवार दोनों खुश रहेंगे।

अच्छा तो मैं चलती हूं आप भी आइए हमारे घर कुछ दिनों के लिए और हां जरुरी नहीं है कि समधन बन कर मन-मुटाव रखें, हम उम्र हैं हम दोनों एक-दूसरे का दुख – सुख बांटेंगे और कुछ वक्त गुजारेंगे साथ – साथ। हमें भी एक दूसरे को समझना जरूरी है। उम्मीद करतीं हूं आप मेरी बात पर गौर जरूर करेंगी।

कुछ दिनों के बाद फाल्गुन का फोन आया तो बहुत चहक रही थी कि,” मां जी उसका ख्याल रखतीं हैं और अब ज्यादा टोकती भी नहीं हैं, मम्मी  बहुत बदल गई हैं अब तो।जब मैं आफिस से आती हूं तो मेरे लिए चाय बनाती हैं और रसोई घर में भी थोड़ा मदद करतीं हैं।”

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रमा जी ने संतोष की सांस ली कि चलो अच्छी बात है कि समधन जी ने सकारात्मक तरीके से मेरी बातों को लिया और मुझे खुशी है कि सब खुश हैं और क्या चाहिए एक मां को। उसकी बेटी अपने परिवार में खुश है बस यही तो ईश्वर से प्रार्थना करती रहती थी वो दिन रात।

रिश्तों में बदलाव के लिए सभी को कदम बढ़ाना पड़ता है।पहल किसे पहले करनी है ये हमें समझना चाहिए क्योंकि हमारे घर आने वाले को भी समझने और समझाने में वक्त लगता है और अगर हम दिल खोलकर किसी को अपनाएंगे तो दूसरा इंसान भी हमें जरूर अपनाएग ऐसा मेरा तो मानना है।

                                 प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी

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