आज बहुत देर कर दी सैर से लौटते हुए, कब से नाश्ता बना कर रखा है रेखा ने नाश्ता परोसते हुए पति
मानव से कहा। बस वैसे ही, थोड़ी देर राजीव जी के पास खड़ा हो गया रास्ते में। शायद तुमने ध्यान नहीं दिया, वो जो
सात नं वाला घर है हमारी गली में एक मंज़िला, उसकी उपरी मंजिल बननी शुरू हो गई। चलो अच्छा है ना। सारे घर
एक से सुदरं लगेंगे और छत पर सैर करनी भी आसान होगी। पूरी दस घरों वाली गली में वो एक घर ही एक मजिंल
का था , बाक़ी सब दो मजिंले या किसी किसी ने तो एक दो कमरे तीसरी पर भी डाले हुए थे। सब की अपनी
अपनी ज़रूरते और आर्थिक स्थिति होती है, मगर अच्छे लोग वही होते है जो दूसरों की खुशी में भी खुशी मनाते हैं।
अपनी खुशी तो हर कोई मनाता है। ख़ुशक़िस्मती से रेखा का मुहल्ला काफी अच्छा था। किरायेदारों को मिला कर तीस
पैंतीस परिवार होंगे। सब आपस में मिलजुल कर रहते। दु:ख सुख में एक दूसरे का साथ देते।
खाना तो हर किसी ने अपना अपना ही होता है, लेकिन मुसीबत में अगर कोई सहारा मिल जाए और
खुशी को बाँटने का मौका मिल जाए तो समय अच्छा गुज़र जाता है। तभी तो कहते है कि पड़ौसी अच्छा हो तो बहुत
सी मुसीबतें टल जाती है। वैसे भी किसी मुशकिल घड़ी में रिशतेदार या घर वाले तो बाद में पहुँचते है, पड़ौ
सी पहले पहुँच जाते है। आजकल वैसे भी आधुनिक सुख सुविधाओं के चलते दुनिया बहुत छोटी हो गई है कोई विदेश
में रह रहा है तो कोई भारत में ही किसी दूसरे शहर में पढ़ रहे है या नौकरी , बिजनैस वगैरह कर रहे हैं। संयुक्त
परिवार व्यवस्था भी नाममात्र की रह गई है। लोग अकेले रहना ज्यादा पंसद करते है। ' प्राईवेसी' का चलन कुछ ज़्यादा
ही हो गया है। लेकिन सब ठीक चलता रहे तो सब ठीक है। अगर मुशकिल घड़ी जैसे कि बीमारी या और भी कई तरह
की समस्याएँ चलती रहती है, उस समय फिर अपने ही साथ देते हैं।
बात चल रही थी रेखा मानव के मुहल्ले की। राजीव और मीना के मकान की सिरफ एक मजिंल ही
बनी हुई थी। राजीव मिलटरी में नौकरी करते थे। दो बेटियाँ हैं। मीना की भी सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी थी।
समय के साथ दोनों रिटायर हो गए। दोनों बेटियों को शादी के बाद आस्ट्रेलिया जाना पड़ गया। एक की शादी तो भारत
में ही हुई, लेकिन पति को कंम्पनी ने कुछ समय बाद ही बाहर भेज दिया। दूसरी के लिए रिशता वहीं पर ही मिल
गया। राजीव और मीना अकेले ही रहते थे। राजीव की मिलटरी की नौकरी के कारण मीना पहले भी बेटियों के साथ ही
रहती थी। पति की पोस्टिंग तो न जाने कहाँ कहाँ होती रही है। नौकरी के बाद मीना का समय किटी पार्टियों में अच्छा
निकल जाता।रेखा, मीना के इलावा मुहल्ले की और भी औरते किटी पार्टियों में बिजी रहती। मिलने जुलने के इलावा
मुहल्ले की समस्याओं का पता भी चलता रहता और गपशप भी हो जाती।
कितने भी अच्छे हो, मगर है तो हम इन्सान ही। भले ही आजकल दूसरों की बातों में पुराने समय की
तरह बातों में दख़लंद नहीं दिया जाता , मगर कानाफूसी तो हो ही जाती है। जलदी ही मुहल्ले में यह बात फैल गई
कि उपर वाली मंजिल राजीव के समधी बनवा रहे हैं। बड़े शहरों में छतें बेचना अब कोई नई बात नहीं है। नीचे कोई है
तो उपर कोई और रह रहा है। सरकार से भी कई जगह इजाज़त मिलनी शुरू हो गई है। लेकिन राजीव की बड़ी बेटी के
ससुर मोहित का उपर घर बनवा कर रहना लोगों को कुछ हज़म नहीं हो रहा था। सब जानते हैं कि समधियाने के
रिशते बड़े नाज़ुक होते है। थोड़ी दूरी बनी रहे , तो ही ठीक है। लेकिन कोई क्या कर सकता है। पूछ तो सकते नहीं ,
आपस में ही बात करके मन को शांत करने के इलावा कोई चारा नहीं था।राजीव के समधी मोहित के दो बच्चे थे।
बेटे की शादी राजीव की बेटी से हुई और वो दोनों आस्ट्रेलिया में थे और बेटी वहीं देहली में ही थी। नौकरी के दौरान
उनके पास सरकारी क्वाटर्र रहा। और अब दोनों समधियों में कुछ तो फैसला हुआ जो वो वहीं पर आकर रहेगें।
मकान बनता रहा, धीरे धीरे लोगों की दिलचस्पी भी कम होती गई। वैसे भी एकदम से बात फैलती है
फिर जब सामने से कोई ध्यान न दे तो हर कोई चुप हो जाता है। देखा जाए तो इतनी फ़ुरसत भी किसके पास होती
है कि दूसरों की बात में टाँग अड़ाता रहे। सात आठ महीने में मकान बन कर तैयार हो गया। बहुत ख़ूबसूरती से
सजाया गया। राजीव ने भी नीचे वाले भाग की मरम्मत करवा कर रंग रोगन करवा दिया। मोहित परिवार ने शिफ़्ट
करने से पहले धार्मिक अनुष्ठान किया और सारे मुहल्ले का प्रीति भोज किया। उस समय दोनों परिवारों के बच्चे आए
हुए थे। कुछ समय बाद सब चले गए। नीचे वाले तल पर राजीव और मीना और उपर वाले तल पर मोहित और रैना
हँसी खुशी रहने लगे। राजीव की दोनों बेटियाँ बाहर, जबकि एक तो मोहित की बहू ही थी। मोहित की बेटी कभी कभार
अपने दोनों बच्चों के साथ आती तो जैसे घर में बहार आ जाती। दोनों समधियों में बहुत प्यार देखने को मिलता। चारों
लगभग एक ही गाड़ी में निकलते। कुछ लोग खुश होते कुछ को थोड़ी जलन भी होती। कुछ महीनों बाद मीना को
आस्ट्रेलिया जाना पड़ गया, क्योकिं बेटी प्रैगनैंट थी। राजीव साथ नहीं गया वह प्राईवेट फ़र्म में नौकरी करता था।
मीना के जाने के बाद भी राजीव को कोई तकलीफ नहीं हुई, क्योकिं उसके खाने पीने का ध्यान मोहित और रैना
बखूबी रखते थे। घर के काम के लिए नौकरानी पहले से ही रखी हुई थी। बेटी के घर बेटा पैदा होने की खुशी दोनों
परिवारों ने मिलकर मनाई। आख़िर दोनों का रिशता था। मीना के वीजे की म्याद खत्म होने से पहले ही मोहित और
रैना अपने पोते की देखभाल के लिए चले गऐ।
विदेशों में बच्चों के साथ नौकरी करने के भी कुछ क़ायदे कानून है। राजीव की दूसरी बेटी भी वही
पर थी। दोनों बहनों का घर एक ही शहर में था। उसके एक बेटी थी। ससुराल में कोई पास आकर रहने वाला नहीं था,
और उसका मन बच्चें को ज़्यादा देर कहीं बाहर छोड़ने को नहीं होता था। जब मोहित और रैना वहाँ पर आए तो अपने
पोते की देखभाल के साथ बहू की बहन की बेटी का भी ध्यान रखने लगे। बहू को भी अपने काम के लिए समय मिल
जाता। वो अभी बाहर तो नहीं जाती थी, मगर आन लाईन काम कर लेती थी। विदेशों में जितनी आमदन है, खर्चे भी
उसी हिसाब है और सहूलतें भी वैसी है। लेकिन वहाँ पर भारत की तरह घरेलू नौकर नहीं मिलते, और अगर मिलते भी
हैं तो इतने महँगे कि उन्हें अफोर्ड करना बहुत मुशकिल है। मोहित रैना बाहर थे, राजीव मीना भारत में थे। घर की
भी देखभाल अच्छे से हो रही थी। लेकिन कहते है ना कि मुसीबतें कह कर नहीं आती थी। मोहित , रैना की बेटी
सारा वही देहली में थी, उसके पति निखिल का बहुत बुरी तरह से ऐक्सीडैंट हो गया। ससुराल से सारा की काफी बड़ी
उम्र की सास थी जो कि ज्यादा चल फिर नहीं सकती थी। एक ननद थी , जो आई , लेकिन सबका अपना घर
परिवार। आख़िर कोई कब तक रह सकता है।
निखिल का बाल बाल बचाव हुआ, लेकिन टाँग में काफी चोट आई। महीना भर तो हस्पताल में ही
रहना पड़ा। सारा के दो छोटे बच्चे , नौकरी, बीमार सास, बेचारी क्या क्या करती। लेकिन राजीव मीना ने उसे बहुत
सहारा दिया। जब वो हस्पताल रहा , तब भी और जब घर आ गया तब भी। मीना तो कई बार उसके पास रात को भी
रह जाती थी। दिन तो निकल ही जाते है, लेकिन अगर अपनों का साथ हो तो पता ही नहीं चलता। कुछ समय बाद
मोहित आ गया लेकिन बच्चों के पास रैना थी। यहां पर आकर मोहित ने बेटी दामाद को संभाला और अपने घर की
भी , खाने पीने की भी कोई चिंता नहीं क्योकिं राजीव और मीना थे ही। इसी तरह बारी बारी से सब लोग आते जाते
रहते और देखा जाए तो पाँच घरों का काम आराम से चल रहा था। इसी बीच जब एक बार मीना गई हुई थी तो
राजीव जी नहीं गए थे।राजीव को निमोनिया हो गया और काफी तेज़। एक दम से मीना का आना संभव नहीं था तो
मोहित परिवार ने ही उनकी सेवा की और उन्हें अपनों की बिलकुल भी कमी महसूस नहीं होने दी।
कितना भी किसी को न बताया जाए मगर कुछ पूरी कुछ अधूरी ख़बरें यहाँ वहाँ फैल ही जाती है,
और फिर रेखा के इस मुहल्ले में तो काफी लोग बहुत समय से रह रहे थे। वो लोग जिनहें इन दो समधियों का एक ही
घर में नीचे , उपर की मंजिल पर रहना बहुत अजीब सा लगा था, वही अब इन दोनों परिवारों की तारीफ़ करते नहीं
थकते थे। सबकी समझ में ये बात आ गई थी कि पहले जमाने की बात और थी, जब लोगों के आठ दस बारह बच्चे
भी होते थे। फिर चार पाँच का जमाना और अब तो एक या दो। जब परिवार ही इतने सिमट गए है तो किसे अपना
कहा जाए। और जब बेटियों को बराबर के अधिकार मिल गए है तो कर्तव्य भी तो बराबर के हुए। अब अगर किसी की
एक बेटी है और दूसरे का एक ही बेटा है तो दोनों के माँ बाप को उन्हीं की आस है। तो समय आ गया है कि सोच
बदली जाए। मौका मिले तो मिल जुल कर रहने में कोई बुराई नहीं।
दिंसबर में मीना की दोनों बेटियाँ आस्ट्रेलिया से आई। दोनों के बच्चे पहली बार ननिहाल
आए थे, तो जश्न तो बनता ही था। सारा भी अपने परिवार के साथ आ गई। उसकी सास जो बैड पर ही थी, उसे भी
स्पैशल तौर पर बुलाया गया। इतना सम्मान और प्यार देख कर तो जैसे उसकी बीमारी आधी हो गई। सबने क्रिसमस
और नया साल मिलकर मनाया। एक जश्न सब मुहल्ले वालों ने भी मिलकर किया। मीना की बेटियों ने सबको बाहर
से लाया हुआ कुछ न कुछ तोहफा दिया। जिस दिन दोनों बेटियों की फ़्लाइट थी, सब उनसे मिलने आए और कुछ न
कुछ भेंट किया। आख़िर रिवाज के मुताबिक हम आज भी बेटियों को खाली हाथ विदा नहीं करते। पता ही नहीं चल
रहा था कि कौन अपना कौन पराया। सब अपने लग रहे थे। अब सबको लग रहा था कि इन दोनों परिवारों का
फैसला और सोच बिलकुल सही है। और आज के समय की माँग भी यही है।
विमला गुगलानी