“क्या, तूने भी आज परांठे खाएं हैं..पर तू तो कभी नाश्ते में परांठे खाती नहीं..हमेशा ओट्स यां सैंडविच खाती है तो फिर आज परांठे क्यों?अरे,अपनी सास को बोल देती ना”, रश्मि जी फोन पर अपनी बेटी से बात कर रही थी।उनकी यह बातें उनके पास बैठी उनकी बड़ी बहन नंदिता जी सुन रही थी।
रश्मि जी की बेटी माही की शादी अभी 20 दिन पहले ही हुई थी।नंदिता जी उस समय अपने ससुर जी के निधन की वजह से अपनी भांजी की शादी में आ नहीं सकी इसलिए वह एक दिन पहले आगरा से दिल्ली अपनी बहन के घर आई थी।नंदिता जी को भी माही से बड़ा प्यार था पर मजबूरी वश वह शादी में शामिल नहीं हो सकी थी। माही की शादी दिल्ली में ही हुई थी और आज अपनी बहन को माही से यूं बातें करते देख वह थोड़ा हैरान भी हो गई थी।
“क्या हुआ..माही ठीक तो है ना”, नंदिता जी ने रश्मि से जी से पूछा।
“देखो ना दीदी, माही ने कभी भी परांठा नाश्ते में नहीं खाया और आज उसे नाश्ते में परांठा खाना पड़ रहा है। उसकी सास को यह बात समझनी चाहिए ना”।
“तो क्या हुआ, इतनी छोटी सी बात का तुम क्या दुख मना रही हो।बच्ची थोड़ी है..अगर एक दिन परांठा खा भी लेगी तो क्या फर्क पड़ता है और अगर माही को कुछ और खाना था तो वह खुद ही बना लेती।माही की सास भी अकेले कितना करेंगी।तुम्हें पता है सुबह-सुबह कितना काम होता है और सबको अलग-अलग नाश्ता बना कर देना साथ में टिफिन बनाने कितने मुश्किल हो जाते हैं”।
बहन की बात सुनकर रश्मि जी चुप्पी लगा गई थी। कुछ देर बाद दोनों बहनें आपस में बातें करती रही और फिर दोपहर को खाना खाकर थोड़ी देर के लिए सो गई।शाम को जब नंदिता जी की नींद खुली तो उन्होंने देखा रश्मि जी किसी से फोन पर बात कर रही थी।
कुछ देर बाद जब रश्मि जी चाय लेकर आई तो नंदिता जी ने पूछा ,”अब किस के साथ गप्पें लड़ा रही हो फोन पर”।
“अरे, कुछ नहीं दीदी..वो माही से ही पूछ रही थी सुबह उसने नाश्ता भी ठीक ढंग से नहीं किया था ना इसलिए पूछा कि कुछ खाया भी है अच्छी तरह से उसने”।
बहन की बात सुन नंदिता जी कुछ कहना चाह रही थी पर इतने में ही उनके बहनोई आ गए और वे सब चाय पीकर आपस में बातें करने लगे।रात को सबने मिलकर खाना खाया और फिर आइसक्रीम खिलाने के लिए रश्मि जी का बेटा शुभम सबको साथ ले गया। अगले दिन भी नंदिता जी देख रही थी कि रश्मि जी दिन में दो-तीन बार तो माही से बात कर ही लेती थी।
खैर, अगले दिन माही को अपनी मासी से मिलने आना था पर नंदिता जी ने देखा कि रश्मि जी ज़ोर-ज़ोर से फोन पर बात कर रही थी,”अरे, हमने गाड़ी तेरे लिए दी है ना कि तेरी जेठानी के लिए।उसे अगर कहीं जाना था तो कैब कर लेती तेरी गाड़ी लेकर जाने की क्या ज़रूरत थी या फिर तुझे पूछ लेती..अच्छा.. पूछा था.. तो फिर तू मना कर देती ना..एक बार मना करती तो अपने आप समझ जाती जितनी ढील देगी उतना तू ही पछताएगी.. अच्छा अब कैब करके आ जा और शाम को गौरव (माही का पति) को बोलना वह तुझे लेता जाएगा” नंदिता जी हैरान थी कि रश्मि माही को क्या समझा रही हैं”।
फोन रखते ही रश्मि जी अपनी बहन को माही के ससुराल वालों की शिकायत करती हुई बैठ गई और बोली,” देखो ना दीदी, यह माही की जेठानी उसकी गाड़ी इस्तेमाल कर रही है जबकि उसके पास दफ्तर जाने के लिए अपनी गाड़ी है और ऊपर से यह देखो कल रात माही ने पूरे घर की रोटियां बनाई।अरे दफ्तर से थकी आ रही है बच्ची इतने बड़े परिवार की रोटियां बनाकर और नहीं थक जाएगी क्या। यह बात माही की सास को समझनी चाहिए ना”नंदिता जी अपनी बहन की बातें सुनकर हैरान थी।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि जिस बहन ने खुद को अपने ससुराल के संयुक्त परिवार में अच्छी तरह ढाल लिया था वह आज अपनी बेटी के वक्त ऐसा बर्ताव क्यों कर रही थी। कुछ देर बाद माही कैब करके आई और अपनी मासी को देखते ही खुश हो गई। सारा दिन बहुत अच्छा बीता पर नंदिता जी ने देखा कि उनकी बहन माही से कुरेद कुरेद कर उसके ससुराल वालों के बारे में पूछ रही थी और साथ ही साथ उसे अपनी हिदायतें भी देती जा रही थी।शाम को गौरव भी आ गया और सबसे बहुत प्यार से मिला।नंदिता जी को वह बहुत सुलझा हुआ लड़का लगा। सबसे मिलकर माही रात को खाने के बाद अपने ससुराल चली गई।
नंदिता जी ने अपनी बहन से बात करने का सोच लिया था इसलिए अगले दिन नाश्ते के बाद वह रश्मि जी को अपने पास बिठाकर बोली,” देख रश्मि, तुझे याद होगा कि जब मेरी और तेरी शादी हुई थी तो हमे भी अपने-अपने परिवारों में शुरुआत में कितनी मुश्किलें आई थी और कभी नई-नई गृहस्थी में कोई बात होती तो हम परेशान होकर मां को चिट्ठी लिख देते क्योंकि उस समय ऐसे फोन तो उपलब्ध नहीं थे और जब तक वह चिट्ठी मां के पास पहुंचती और मां का जवाब हमारे पास वापसी पहुंचता तब तक उस बात का गुस्सा भी ठंडा हो जाता और हम भी उस बात को भूल जाते।
तुझे याद होगा कभी-कभी गुस्सा भी आता कि मां इतनी जल्दी जवाब क्यों नहीं देती पर अब मैं समझती हूं कि शायद हमारी मां बहुत समझदार थी..जानती थी कि उनके देर से जवाब देने में हम खुद ही अपनी गृहस्थी को संभालने की कोशिश करेंगे और तुझे याद होगा मां के जवाब में भी हमेशा संयम से रहने और धैर्य और प्यार से रिश्ते निभाने की ताकीद होती थी।
तू आज अपने आप को देख..तू माही से दिन में लगभग दो-तीन बार बात करती है।उसको अपने परिवार में खुद रचने बसने दे..कुछ खुद ही सोचने समझने दे ..हां, हो सकता है शुरुआत में वह कुछ गलती करें या उसे किसी की बात का बुरा लगे पर उसे यह सब खुद ही हल करने दे।अगर हर बात में तू उसे समझाने लगेगी तो कैसे चलेगा।क्योंकि, तू एक मां है तो हमेशा अपनी बेटी का ही पक्ष लेगी।
तेरी बेटी होने के साथ-साथ माही अब एक बहू भी बन चुकी है इसलिए उसका घर बसने दे। अगर वह ऐसे ही तेरे साथ हर छोटी-छोटी बात की शिकायत करेगी तो ना उसका ससुराल में मन रहेगा और ना ही वह दिल से उन रिश्तों को निभा पाएगी।मुझे तो लगता है माही की सास को नहीं बल्कि मां को
समझने की ज़रूरत है। अपनी बेटी का घर बसने दे.. बेटियों की मां को थोड़ा दिल तो कड़ा करना ही पड़ता है ताकि उनकी गृहस्थी खुशी से चलती रहे” बहन की बात सुनकर रश्मि जी को भी लगा कि सच में वह सही कह रही हैं।उन्हें खुद को ही समझाना होगा और माही को थोड़ा वक्त देना होगा ताकि वह अपने परिवार के साथ खुद ही सामंजस्य बिठा सके और अपने रिश्तों को अच्छी तरह से निभा सके।
अगले दो-तीन दिन नंदिता जी वहीं थी। उन्होंने देखा कि इस बीच माही का फोन आया तो उनकी बहन ने उससे एक दो बातें कर कर फोन रख दिया और खुद से भी बार -बार फोन नहीं किया।नंदिता जी खुश थी कि उनकी बात को उनकी बहन ने समझा है।
कुछ महीनों बाद नंदिता जी का फिर से दिल्ली आना हुआ तो माही भी मायके आई हुई थी और इस बार अपनी मासी से वह अपने ससुराल वालों की खूब तारीफें कर रही थी। यह वही ससुराल वाले थे जिनकी शिकायतों का पुलिंदा कुछ महीने पहले वह अपनी मां को बता रही थी।
नंदिता जी ने माही की बातें सुन उसके सर पर हाथ फेरा और अपनी बहन की तरफ देखा।उन्हें लगा उनकी बहन मुस्कुराते हुए उन्हें जैसे कह रही थी.. सच में दीदी..माही की सास को नहीं मां को समझने की ज़रूरत थी।
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#अप्रकाशित
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।