Moral Stories in Hindi
बेटा मुझे कुछ पैसे की जरूरत है शांति जी बेटे रवि से चार दिन से बोल रहीं थीं पर रवि हमेशा अनसुना करके कोई ना कोई बात घुमा कर वहां से निकल जाता।
शांति जी स्कूल में अध्यापिका थीं तो हर महीने उनको अच्छी – खासी पेंशन मिलती थी।जब तक शरीर स्वस्थ था तब तक तो खुद बैंक जा कर निकाल लातीं थीं लेकिन अब शरीर नहीं साथ देता था तो बच्चों पर निर्भर होना शुरू हो गया था। इसलिए उनकी बात का महत्व भी कम होने लगा था।
रवि को लगता की मां को क्या जरूरत पैसे की खाना – खर्चा तो मैं करता हूं और पेंशन बची रहेगी तो भविष्य में बच्चों के पढ़ाई लिखाई में काम आएगी।भला इस उम्र में क्यों फालतू के खर्चे करना। इसीलिए कोशिश करता की मना भी ना करना पड़े और काम चल जाए।
रवि ” आज मेरी पेंशन ला कर देना” शांति जी ने गुस्से में कहा।
मां,” ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी जो पैसों की रट लगाए बैठी हो? सबकुछ तो मैं करता हूं तुम्हारा।”
बेटा,” मुझे अपने लिए कुछ सामान लेने हैं और मेरा चश्मा देखो उसकी डंडी कब की टूट गई है।नया चश्मा बनवाने के लिए चाहिए। आखिर तुम क्यों नहीं निकालते मेरी पेंशन।”
मां जी हम आपके पैसे लेकर कहीं भाग नहीं जाएंगे और यहां का रहना खाना वो क्या मुफ्त का होता है। कितना खर्च होता है आपके ऊपर महीने का कभी सोचा है आपने? मंजू जो बहू थी शांति जी की रसोई घर से जोर से चिल्लाती हुई आई।
ओह!” तो मुझे यहां रहने – खाने के खर्चे देने होंगे बहू। तुम लोग मुझ पर अहसान कर रहे हो इसका मतलब।”
शांति जी ने पूरी जिंदगी ना जाने कितने बिगड़े बच्चों को रास्ते पर लाया था। रवि और मंजू को तो ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी और सही भी है जब मां – बाप बच्चों के ऊपर अपनी पूरी जिंदगी और दौलत कुर्बान कर देते हैं बिना ऊफ किए तो क्या एक लड़का अपनी मां को सम्मान भरी जिंदगी नहीं दे सकता है। पेंशन पर तो शान्ति जी का हक था और पूरी जिंदगी काम करने के बाद बुढ़ापे का सहारा होती है पेंशन।उस पर भी सभी की निगाह थी।
“ठीक है मां कल लाकर दे दूंगा…. आफिस जाते समय कलेश मत किया करो” रवि बड़बड़ाते हुए निकल गया।
शाम को लौटा तो मंजू गुस्से में बोली की मां जी को इस उम्र में पूजा अर्चना पर ध्यान देना चाहिए।खाने को दो वक्त की रोटी और छत है। आज के जमाने में कौन रखता है मां – बाप को, फिर भी उनका तो बस दिन रात सिर्फ पैसे पर ही दिमाग अटका रहता है। सुनिए जी,” ज्यादा पैसे नहीं निकालिएगा।इस उम्र में भी शौक शान चढ़ा है इनके ऊपर।”
हां हां ” चुप करो… सुबह से मां ने जीना हराम किया है घर आते ही, ना तो तुम लोग चाय- पानी पूछते हो बस पैसा – पैसा यही है तुम औरतों का रोना” रवि झुंझला कर बोला।
” अब मैं कहां से आ गई बीच में। मां के आगे मेमना बने रहते हो बस पत्नी पर सारे रुतबे झाड़ने होते हैं। ये लो चाय और नाश्ता” मंजू ने मेज पर पटकते हुए कहा।
अरे ” तुम नाराज़ नहीं हो… गुस्से में मुंह से निकल गया और हां कल गली के नुक्कड़ वाली दुकान से ठीक-ठाक दो साड़ियां दिला लाना। फालतू के चक्कर में पड़ने की जरूरत नहीं है और दो – चार सौ में चश्मा भी बन जाएगा” रवि ने मंजू को धीरे से पास बिठाकर कहा।
मां का क्या बोल कर एक – दो दिन में चुप है जाएंगी। पेंशन इक्ट्ठा होने दो।जब तक मां जिंदा हैं तभी तक का है, बाद में कुछ नहीं मिलेगा।
शांति जी के कानों में ये बात पड़ गई थी। उनको समझ में आ गया था कि बेटे – बहू की नीयत खराब हो चुकी है और हमारी मजबूरी का फायदा उठाने लगें हैं ये सब।ये ठीक है की मेरा खाना – खर्चा उठाते हैं पर इसका मतलब ये तो नहीं की मेरी और भी जरूरतों को नजरंदाज कर दिया जाए। अगर उनको पैसों की जरूरत है तो हक से मांग लें मुझसे लेकिन इस तरह बचकानी हरकत करने की जरूरत नहीं है। जबकि भगवान का दिया सबकुछ तो है इनके पास।
खेत – क्यारी यहां तक की घर भी इनके नाम कर दिया था रवि के बाबूजी ने फिर भी लालच जाने का नाम ही नहीं ले रही है।अब तो कुछ भी कहना सुनना बेकार है मैं ही कुछ करूंगी की मेरे पैसे हर महीने मुझे मिले और मैं अपने ऊपर उसे कैसे भी खर्च करूं ये मेरी मर्जी होगी।
बेटा!” रोज – रोज छोटी – बड़ी जरूरत के लिए तुम्हारे और बहू के आगे मुझे हांथ फ़ैलाने पड़ते हैं और मैं बूढ़ी हो गई हूं तो क्या मुझे अपने शौक पूरे करने का हक नहीं है। हां एक बात दिमाग में रख लो अगर तुमने आगे से इस बात का अहसास जताया की तुमने अपने घर में मुझे रक्खा है और खिला – पिला रहे हो तो ठीक नहीं होगा क्योंकि जिस घर में तुम लोग रह रहे हो ये हमारी जन्मों की पूंजी लगाकर बनाया है हमने।”
मां,” तुम तो कहां की बात कहां ले जा रही हो।”
दूसरे दिन पांच हजार रुपए निकाल कर रवि ने मां को पकड़ाते हुए कहा कि,” लो मां कहां खर्च करने हैं पैसे।”
“ठीक है बेटा अगर तुम चाहते हो कि रोज – रोज ये सब ना हो तो मेरा बैंक का एटीएम वापस कर दो। आगे से इस बारे में कोई भी बात नहीं होगी ” शांति जी की कड़क आवाज और अंदाज से रवि हिल चुका था।उसे लगा कि उसका कोई भी दांव-पेंच नहीं चलेगा और उसने चुपचाप एटीएम मां को वापस कर दिए।
रवि को समझ में आ गई थी बात की उसने गलती तो की है जो मां के पेंशन को रखना चाहा।उनका हक है उस पर और सबक भी मिल चुका था की मां – बाप के खाने पीने का हिसाब रखना और उनको अहसान जताते रहना बहुत ही गलत बात है।
शांति जी पढ़ी लिखी महिला थीं उनको जहां तक कर्तव्यों की जानकारी थी तो अपने अधिकार की भी थी। उन्होंने नौकरी करके अपने घर को चलाने में ही हिस्सेदारी नहीं दिया था बल्कि एक अच्छी जिंदगी भी दी थी अपने परिवार को। घर और बाहर की जिम्मेदारी उठाना आसान नहीं था उस जमाने में लेकिन सबकुछ अच्छी तरह से किया था।इस उम्र में वो समझौते भरी जिंदगी नहीं जीना चाहतीं थीं और जरुरतों के लिए क्यों किसी के आगे हांथ फ़ैलाना।
शांति जी अब पोते की मदद से बैंक जाकर खुद अपनी पेंशन निकाल कर लातीं और अपने ऊपर एवं नाती – पोते पर भी दिल खोलकर खर्च करती सिर ऊंचा करके।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी