कोला आजी – पुष्पा पाण्डेय
हमारा घर हवेली के नाम से जाना जाता था। गाँव के रईस घराने में गिनती होती थी। शाम होते ही मेरी दादी हवेली के दूसरे दरवाजे पर पल्ला मारकर अपनी छोटी मचिया लेकर बैठ जाती थी। वहीं बाहर की तरफ ओटा पर एक तरफ कोला आजी बैठती थी। गाँव के सभी लोग बूढ़े-बच्चे उन्हें कोला … Read more
मरदूद….- विनोद सिन्हा “सुदामा”
अरे कहाँ मर गया सुनता क्यूँ नहीं….. मार कर ही छोड़ेगा क्या……? राम प्रसाद जी अपनी खाँसी और हाँफती साँसों पर काबू करने की असफल चेस्टा करते हुए अपने बेटे को पुकारे जा रहे थे… अरे…..मरदूद सुनता क्यों नहीं..निकम्मा…काम का न काज़ का दुशमन अनाज का..दिन भर सिर्फ निठ्ल्ले की तरह इधर उधर घूमता रहता … Read more
विषवृक्ष – रवीन्द्र कान्त त्यागी
छोटे से कस्बे में मेरा आई.आई.टी में उच्च श्रेणी प्राप्त करना कई दिन चर्चा का विषय रहा था. पहले महीने ही एक अंत्तराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पॅकेज की नौकरी लग जाने के बाद पिताजी ने वधु तलाश कार्यक्रम शुरू कर दिया था और ये स्वाभाविक भी था. महानगर की एक पौष कॉलोनी में प्रशासनिक अधिकारी … Read more
ख्वाब,हकीकत – गोविन्द गुप्ता 
बहुत तेज बिजली कड़क रही थी रमन और राम्या अपने रूम में थे दोनो मोवाइल चलाते चलाते सो गये और घुप्प अंधेरा हो गया क्योकि बिजली चली गई, रमन साफ्टवेयर इंजीनियर था और राम्या डॉक्टर दोनो की जिंदगी बहुत खूबसूरत थी ,कोई कमी नही बस कोई बच्चा नही था शादी के दस वर्ष के बाद … Read more
अनोखी सौगात- गोविंद गुप्ता
सचिन एक मध्यम वर्गीय परिवार का संस्कारित लड़का था चार भाई एक बहन में सबसे बड़ा होने के कारण जिम्मेवारियां बहुत थी बचपन से ही सामाजिक कार्यो में रुचि लेने वाले सचिन ने समाज के दर्द को देखते हुये अपने छोटे से कस्वे में सामूहिक विवाह करवाने का निर्णय लिया उस समय सचिन की उम्र … Read more
अरमानों की पतंग – रीता मिश्रा तिवारी
निशा जैसे ही तैयार होकर नीचे आई तो नमन ने कहा । सुबह सुबह कहां जा रही हो , आज तो सन्डे है न दीदी ? हां तो…मैं कहां जाती हूं क्या करती हूं , तू पूछने वाला कौन है ? तेरा प्यारा भाई जिसे तू बहुत बहुत प्यार करती है । हां चल_चल ठीक … Read more
भटकन – उर्मिला शर्मा
“ऐ अम्माजी बबुनी नहीं दिख रही हैं। आप देखी हैं का। भोरे से नहीं दिख रही हैं। थोड़ा आटा सानना है।” – बेबी ने अपनी सास से पूछा। “नाहीं दुलहिन हमहूँ भोरे से खोज रहे हैं। कब से ठंढा तेल मांग रहे हैं, सिर में लगाने वास्ते।”- खाट से ही गौरी ने जवाब दिया। “ऐ … Read more
सहनशक्ति – कंचन श्रीवास्तव
पारिवारिक कलह इंसान को तोड़के रख देती है। हां ठीक ही कहा , बाहरियों से तो आदमी लड़ सकता है पर अपनों से नहीं।भाई लड़े भी तो कैसे ,बड़े हैं तो भी सुनो ,छोटे है तो भी। इसलिए सिर्फ अपने भीतर ही मंथन करो और मुस्कुराते रहो। यही कहानी हर घर की है पर दूसरों … Read more
लहसुन की चटनी – नीरजा कृष्णा
माधवी अपने बच्चों के पास आई हुई थीं। बेटा बहू दोनों डाक्टर… दोनों ही अति व्यस्त। चाह कर भी माँ के पास बैठने का समय नहीं निकाल पाते थे पर घर में उनके लिए पूरी सुखसुविधाओं का प्रबन्ध था। रमा चौबीस घंटे उनकी सेवा में थी। आज सुबह से वो मम्मी जी के उखड़े मूड … Read more