सुखना – रूद्र प्रकाश मिश्र

बिल्कुल अपनी नाम के मुताबिक था वो । सूखी सी देह , अंदर की ओर धँसी हुई आँखें , बाहर निकला हुआ पेट और सूखे हाथ – पाँव । यही कोई बारह या पंद्रह वर्ष के आस – पास उम्र होगी उसकी ।           उसको आज सुबह से ही पास वाले गाँव के जमींदार के यहाँ … Read more

बिल्कुल तुम पर गई है – पिंकी नारंग

सुधा शिवम को याद कराते हुए कह रही थी, घर की डुपलीकेट चाबी अपने पास रख लेना |आज पापा से मिलने गुड़गांव जाना है, लौटने मे देर हो जाएगी |डिनर भी बाहर से औडर कर देना |मै भी घर आ कर तुम्हारे साथ ही खाऊँगी |शिवम हसँते हुए बोला “दोपहर का खाना भी खा कर … Read more

नहले पर दहला – प्रीती सक्सेना

स्वलिखित   हां तो बात बहुत पुरानी है, हम पुत्र जन्म के डेढ़ माह बाद इंदौर आए, एक तो काम करने की कम आदत, अरे बताया तो था, पापा हमारे एसडीएम, थे न, चपरासियों की फौज रहती थी घर में, कुछ तो इस कारण से काम करने की आदत नहीं पड़ी , और हमें ये … Read more

 मेरी तपस्या

मैं आश्नवी बचपन से ही ‘ बड़ी बहन माँ के समान होती है ‘ सुन कर पली बढ़ी हूँ। कहाँ पता था ?   भविष्य में यह कथन मेरे द्वारा ही चरितार्थ  होने वाली है। कुल चार जनों का छोटा परिवार था मेरा जिसमें मैं, मेरा छोटा भाई, मम्मी-डैडी थे। हंसते -खेलते हम बड़े होते जा … Read more

बात ऐसे बनी – गीतांजलि

उसको जब पहली बार देखा था आँखें हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं गोरे रंग के चेहरे पर तीखे नाक नक्श कितना तेज़ बिखेर रहे थे। गुलाबी साड़ी में कितनी मोहक लग रही थी। पूछने पर कुछ झिझकते हुए अपना नाम मेखा बताया। मेरे बेटे के लियें इससे अच्छी लड़की कहाँ मिलेगी। शीतल … Read more

सफर – अनुज सारस्वत

आज काफी दिनों बाद रेल में यात्रा करने का अवसर मिला कोरोना के कारण। स्लीपर का टिकट करा लिया था।मेरी ऊपर की सीट थी शरारती तो हम बचपन से थे तो जूते सहित चढ़ गये मन में शरारत सूजी रख दिये जूते पंखे के ऊपर।ऐसा बचपन में बहुत करते थे तब साधारण कोच ही हमारी … Read more

सयानी बेटी – रीटा मक्कड़

माँ का फोन बंद करने के बाद अंजली सोच में डूब गई। माँ कह रही थी संजना की तबियत आज ठीक नही है ।तुम फोन करके उसका हाल चाल पूछ लेना।बेचारी को सारा दिन काम से फुर्सत नही मिलती।कितना काम करती है ना।ऊपर से घर मे बजुर्ग सास ससुर। कितना थक जाती है बेचारी। संजना … Read more

लिट्टी की नियति – वीणा

आज पार्वती बहुत खुश थी , दिल्ली जो जाना था उसे । बेटे मनोहर ने टिकट कटवा दिया था दिल्ली आने का । कहा था– माँ , मैं डेरा ले लिया हूँ , पर छुट्टी नहीं मिल रही मुझे । रमेसर चचा के साथ तुम गाड़ी से आ जाना , मैं स्टेशन आ जाऊँगा लिवाने … Read more

प्रायश्चित पूरा हुआ – संगीता अग्रवाल

कितने अरमानों से महेश के माता पिता उसे बहु बनाकर लाए थे अपने इकलौते बेटे के लिए पर उसने उनके घर को ही तोड़ना चाहा। कितना प्यार करते थे सभी पर उसे तो सास ससुर के जिम्मेदारी बोझ लगती थी।  ” महेश मुझसे नही होती तुम्हारे मां बाप की सेवा मुझे आजादी चाहिए तुम कही … Read more

माँ की ममता – गोविन्द गुप्ता

सुनीता एक बहुत ही सीधी सादी लड़की थी ,विवाह योग्य होने पर माता पिता ने राजकुमार नामक लड़के से विवाह तय कर दिया जो अपने माता पिता का इकलोता लड़का था, शादी धूमधाम से हुई और कुछ वर्ष बाद एक लड़के का जन्म हुआ , खूब खुशी मनाई गई लड़का धीरे धीरे बड़ा होने लगा … Read more

error: Content is protected !!