दादी के परांठे – नीरजा कृष्णा

आज राजकुमार उर्फ़ राजू को फाइवस्टार होटल में डिनर का न्योता मिला है। उसे तो अपने भाग्य पर भरोसा ही नहीं हो पा रहा था। उसका उतावलापन देख कर घर में सब हँस रहे थे। मम्मी उसकी सबसे अच्छी शर्ट पर प्रैस करते हुए बोली, “इन बड़े होटलों के बस चोचले ही होते हैं। किसी … Read more

उन्मुक्त जीवन – सरगम भट्ट

सुबह के आठ बज रहे हैं , अभी तक चाय भी नहीं बनी है जबकि रोज पांच बजे ही बन जाता था ” नौ बजे ऑफिस , और कॉलेज जाने वाले तीनों बच्चे ( यानी कि सिम्मी के पति देव सुयश और नन्द रेनु (अट्ठारह ) देवर मानस ( बाइस ) “!! अभी तक सो … Read more

बालविवाह – आरती झा”आद्या”

आज गुलाबो विद्यालय नहीं आई थी.. सुपर्णा मैडम ने कक्षा में आते ही गौर किया। उड़ती उड़ती जो खबर उन्हें मिली है.. सच तो नहीं है। उन्होंने नजर घुमाया तो गुलाबो की कोई सहेली भी नहीं दिखी, जो वो कुछ पूछ सके ।कल तक तो गुलाबो स्कूल आई थी। आज अचानक कैसे.. परेशान सी सुपर्णा … Read more

“कल का इंतजार क्यों” –  तृप्ति उप्रेती

  “शिल्पी बेटा, आज माला से स्टोर की सफाई करवा लेना। त्योहार सिर पर हैं। रोज थोड़ा थोड़ा तैयारी करेंगे तो आसानी रहेगी।” सरिता जी अपनी बहू से बोलीं। शिल्पी जल्दी-जल्दी रसोई का काम निपटाने लगी ताकि माला के आते ही सफाई शुरू कर दें। वैसे तो घर पर कुल छह प्राणी है पर शिल्पी जैसे … Read more

ये बंधन तो प्यार का बंधन हैं – मीनाक्षी सिंह

मेरा नाम मीनाक्षी ! मेरे पति य़ा कहूँ मेरा सबसे सच्चा दोस्त ! हमारा विवाह जब तय हुआ तो ना इन्होने मुझे देखा ना मैने इन्हे ! क्यूंकी मेरे बी .एड के पेपर चल रहे थे ! और ये मेरे परिवार के देखे हुए थे ! तो देखने की औपचारिकता किसी ने नहीं निभायी ! … Read more

अपने बच्चे को ध्रुव मत बनने दीजिये – संगीता अग्रवाल

आधी रात को नंदिता की नींद खुली तो उसे प्यास का अनुभव हुआ जैसे ही पानी पीने को उठी देखा जग तो खाली है एक बार तो मन किया यूँही सो जाये वापिस से पर प्यास जोर से लगी थी मजबूरी मे वो जग उठा रसोई की तरफ चल दी ।बेटे ध्रुव के कमरे के … Read more

कच्चे धागे से बुने रिश्ते – संजय मृदुल

सुनो अखिल! अब तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं। तुम्हारे पापा है मुझे सम्हालने के लिए। जब जरूरत थी तब तुम्हे नहीं लगा कि यहां होना चाहिए तुम्हें, तो रोज यूँ आकर दिखावा मत करो। अखिल ने कुछ कहना चाहा पर माँ ने चादर ओढ़ कर करवट बदल ली। अखिल चुपचाप बाहर आ गया। पिछले … Read more

 “मन की पीड़ा ” – गोमती सिंह

——-पुष्पा बचपन से ही गुमसुम सी चुपचाप स्वभाव की लड़की थी , वह एक संयुक्त परिवार में रहती थी , अतः घर में  रिश्ते दारों का आना जाना लगा रहता था  इसके बावजूद घर में कौन आ रहे हैं, कौन जा रहे हैं इन सब  गतिविधियों में उसकी जरा सी भी रूचि नहीं थी । … Read more

ना जाने उसकी ज़िंदगी इतनी सी क्यों लिखी… रश्मि प्रकाश

प्रिया करीब पांच साल की थी, जब हम इस शहर में आए थे। हमारे तबादले की वजह से हमें हमेशा नई जगह और नए लोगों से रूबरू होने का मौका मिलता रहा… कितने लोगों से मिल कर ऐसा बँधन बँध जाता कि वो बस अपने से ही लगने लगते…. बिना किसी रक्त संबंध के वो … Read more

बंधन – नेकराम

बात सन 1985 की है जब मैं 5 वर्ष का था यह कहानी आज से 37 वर्ष पुरानी है आज मेरी उम्र 42 वर्ष 11 दिन 10 घंटे 9 मिनट 7 सेकंड हो चुकी है दिल्ली की एक छोटी सी पुनर्वास कालोनी में हमारा एक छोटा सा कच्चा सा मकान था बरसात के दिनों में … Read more

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