Moral stories in hindi : ” राय साहब कोई दूसरा किस्सा सुनायें।” – मैंने स्टेशन मास्टर राय साहब से अनुनय किया।
रोज़ शाम की फिजिकल एक्सरसाइज करने के बाद – हम पार्क की बैंच पर बैठे सुस्ता रहें थे।
” किस तरह का किस्सा सुनना चाहोगे ?” – राय साहब बैंच की पुश्त से पीठ टिका कर , शरीर को ढीला छोड़ते हुए बोले।
” ये तो आपके ऊपर मुनहसर है कि आप किस तरह का वाकया सुनायेंगे !” – मैं मोबाइल को रिकॉर्डिग मोड़ पर डालता हुआ बोला।
राय साहब ने थोड़ी देर तक के लिये आँखें बंद की – जैसे कुछ सोच रहें हो – फिर एकाएक बोलें – ” वैसे तो अनगिनत संस्मरण है – पर, कुछ ऐसा किस्सा बयान करना चाहता हूँ जो किसी के लिये नजीर बन सके – जो किसी के लिये प्रेरणादायक हो ।”
” जी बिल्कुल ।”
राय साहब ने अपना चश्मा निकाला – चश्में की काँच पर मुँह से भाँप छोड़ी – रुमाल से काँच पोछ कर वापस चश्मा नाक पर टिका लिया – मानों अपने अन्तर्मन में भी झांकने के लिये उन्हें चश्में की ! साफ चश्में की ! ज़रूरत हो।
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” बात उन दिनों की है जब मेरी पोस्टिंग बड़वाहा रेलवे स्टेशन पर हुई थी। लगभग दस साल हो गए उस घटना को ।” – राय साहब अतीत की यादों में गोता लगाते हुए बोलें – ” रात के साढ़े आठ बजे रहें थे – अभी थोड़ी ही देर पहले – आठ बजे – मैंने डयूटी ऑन की थी – अगले दो ढाई घँटे तक कोई गाड़ी भी नहीं आने वाली थी –
इसलियें मैं नाइट डयूटी में होने वाले बहुत सा क्लर्कीयल वर्क – जो एडवांस में किया जा सकता था – करने की नियत से कलम चला रहा था – मेरे सामने टेबल पर बीसियों रजिस्टर पड़े हुए थे। जिन्हें मैं बड़ी तमन्यता से बारी-बारी निपटाता जा रहा था। मैं मेरे काम में इतना मशरूफ था कि मुझें किसी आये-गये का भी ख्याल नहीं था। बिल्कुल करीब कुछ आहट हुई तो मैंने नजर उठा कर सामने देखा – एक पौढ महिला टेबल के उस पार खड़ी थी – उसके दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए थे – मैं हड़बड़ाया –”जी कहिये !” स्वतः ही मेरे मुँह से निकला।
वह टेबल का घेरा काट कर मेरे बिल्कुल करीब आयी और झुक कर मेरे दोनों पैर पकड़ ली – सच कहूँ तो मेरी हालत ऐसी थी मानों काटो तो खून नहीं। मेरे पैर उसने जकड़ रखें थे – मैं कुर्सी से उठने की भी कोशिश करता तो शर्तिया उस पौढ महिला पर गिर पड़ता – कोई बड़ी बात न होती कि उसे लिये दिए ज़मीन पर ढेर हो जाता – आकस्मात ही मेरे कंठ से चीख-सी उबल पड़ी। तभी एक पौढ व्यक्ति ऑफिस के अंदर प्रवेश किया। मेरी चीख सुन कर महिला ने मेरे पाँव छोड़ दियें। वह उठी मैंने उसका चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ देखा। जिसे वह साड़ी के पल्लू से पोछ रही थी।
“क्या है ये सब ?” – मैं रुष्ट स्वर में बोला।
” साहब, लगता है आपने मुझें पहचाना नहीं !” – पौढ व्यक्ति हाथ जोड़े हुए विनीत स्वर में बोला।
” भाई साहब , आपने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है ।”– महिला अपने स्वर को संयमित बनाये रखने का भरसक प्रयास करती हुई बोली।
“मैं समझा नहीं।” – मैं अभी भी हैरान था कि मैंने ऐसा कौन-सा काम कर दिया था कि उन लोगों का भला भी हो गया और मुझें पता भी न चला।
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मैंने दोनों को मेरे सामने विज़िटर चेयर पर बैठने के लिये कहा – पर, दोनों कुर्सी पर बैठने के लिये तैयार न हुए – मजबूरन मुझें भी खड़ा होना पड़ा।
” साहब, मैं यहाँ CISF में नोकरी करता हूँ – छः महीनें पहले की बात है – मैं रोज की तरह ड्रिंक कर सिगरेट पीता हुआ शहर में मटरगश्ती कर रहा था – पता नहीं , उस दिन क्या हुआ कि मैं रेलवे प्लेटफॉर्म पर आ गया था – आपने मुझें सिगरेट पीते हुए पकड़ा था – आपने बुकिंग बाबू को ₹ 200/ की फाइन करने का आदेश दिया – उस समय मेरी जेब में ₹ 10/ भी नहीं थे – रुपयें होतें तो जुर्माना भर कर रेलवे वालों को गाली बकता-झिकता मैं घर चला गया होता – मजबूरन मुझें दण्ड से बचने के लिये बताना पड़ा कि मैं CISF में नोकरी करता हूँ – आपने मुझें फटकार लगा कर छोड़ तो दिया था पर आपकी एक बात मेरे दिल में चुभ गयी थी। “
” वो क्या!”
” जेब में ₹ 200/ भी नहीं है पर शौक़ —– !”
“ओह!”
” सर, वो दिन और आज का दिन – मैंने शराब नहीं पी है – सिगरेट नहीं पी है।”
” गुड़, वेरी गुड़।” – मैंने उत्साह से – उसका हाथ मेरे हाथ में ले कर – जोरों से दबा कर – खुशी जाहिर किया।
“भाई साहब, ये सब-इंस्पेक्टर रैंक के आदमी है – पर डेली ड्रिंकर और हेवी स्मोकर होने के कारण दो पैसे की इज़्ज़त हो गयी थी हमारी – जूनियर , सब-ऑर्डिनेट भी बेवड़ा चिलम के नाम से पीठ पीछे इनका नाम उच्चारते थे। हमेशा पैसों की तंगी रहती थी – झूठ बोल-बोल कर न जाने कितने लोगों से इन्होंने उधार ले रखा था – घर का माहौल भी ऐसा था कि सिगरेट की बास से पूरा घर गमकता रहता था।”
” मैं समझ सकता हूँ।” – मैं धीरे से बोला।
” सर, सिगरेट शराब के लिये मैंने जिंदगी में बहुत सारे समझौते भी किये – बच्चों के जूते-कपड़े फ़टे हुए है! तो क्या हुआ ? बच्चें टयूशन नहीं जा पा रहें ! तो क्या हुआ ? नाते रिश्तेदारों में ढंग से व्यवहार न दे सकें ! तो क्या हुआ ? जेब में पैसे कम है तो कभी देशी पी ली – कभी कच्ची पी ली – सिगरेट का खर्च बहुत महंगा पड़ता था तो पहले सस्ती सिगरेट शुरू की – वह भी भारी पड़ने लगा तो ऑफिस पब्लिक में सिगरेट और घर में बीड़ी पीने लगा था।
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क्या-क्या बताऊँ सर ! शौक-शौक में , दूसरों की देखा-देखी शुरू किया था – जब छोड़ना चाहा तो पता चला कि मैं तो इसके बिना रह ही नहीं सकता। बहुत हिम्मत कर – खुद पर जुल्म कर भी कोशिश की – ईश्वर से मन्नतें भी मांगी – बीवी ने भी बहुत रिक्वेस्ट की – पर , हर बार खुद का किया गया संकल्प भी टूट गया – फाइनली सोच लिया था कि इसकी चिंता छोड़ो– ये तो अब चिता पर ही छूटेगा – उस दिन आपने वैसा कुछ भी नहीं कहा था जो पहले किसी और ने मुझें नहीं कहा था – पर उस दिन भले ही आपने मुझें ज़लील किया था पर यह अहसास भी दिलाया था कि मेरी नोकरी मेरा पदनाम कितना सम्मानजनक है !
पर मैंने – खुद मैंने – मेरी औकात दो कौड़ी की बना रखी है। आपने जब मुझें घर जानें दिया तो थोड़ी देर तक मैं आपको भी गाली देता रहा – पावर दिखलाने के लिये कोसता रहा – पर, घर पहुँचते ही पता नहीं क्या हुआ कि मैं बच्चें की तरह बिलख-बिलख कर रोने लगा। बीवी बार-बार पूछती रही कि क्या हुआ पर मैं कुछ कह नहीं पाया – अंत में इसने भी हार मान ली – क्योंकि, नशे में धुत्त होकर पहले भी मैं अनोखी हरकतें करता रहा था। अगले दिन सुबह मैं एक संकल्प के साथ उठा – आपने मुझें सनावद के एक डॉक्टर का पता भी दिया था जो हेम्योपेथिक दवाइयों से व्यसन छुड़वाते है —-!
“डॉ. गुजर्र ।” – मैंने कहा।
” — हाँ वही – मैंने वहाँ जाने का इरादा बना लिया था – बीवी को रात की बात बतायी – आपसे मुलाकात की बात बतायी– और गुज़ारिश की , कि मैं नशा मुक्ति के लिये प्रयास करने जा रहा हूँ – मुमकिन है कि मेरे व्यवहार में बहुत सारा परिवर्तन हो – जो कि हुआ भी – यह स्वेच्छा से मेरी हर बद्तमीज़ी, गुस्ताखी, चिड़चिड़ापन बर्दाश्त करती रहीं –
यकीन मानिये सर कि शुरू के पन्द्रह दिन बहुत कठिनाई से गुजरा था । शारीरिक परेशानी भी हुई – अनिंद्रा , कब्जियत, बेचैनी जैसी बहुत सी अलामतें हुई – पर , उसके बाद का हर दिन विजेता होने की अनुभूति हुई – आज बीस दिन हो गये – आज एक महीना हो गया – आज छः महीना हो गया – अब मैं कह सकता हूँ कि हाँ, मैंने शराब छोड़ दी है – हाँ, मैंने ध्रूमपान छोड़ दी है।”
” यानी गुजर्र साहब ने एक और व्यक्ति का भला कर दिया है।” – मैं खुशी जाहीर करता हुआ बोला।
” सर, मैं डॉक्टर साहब के पास गया ही नहीं था।” – वह खेद प्रकाश करता हुआ बोला।
” क्यों!”
” क्या बताऊँ साहब ! अब तो बतातें हुए भी शर्म आती है पर आपसे क्या शर्म ? – उस रोज घर में डॉक्टर की फीस और दवाइयों के लिये भी पैसे नहीं थे – मैंने तब यही सोचा कि पहले आत्मबल से कोशिश करता हूँ – अगर असफल हो गया तभी डॉक्टर की सहायता लूँगा।”
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“ओह!” – अगर आप मेडिकल हेल्प ले लिये होतें तो विदड़रावल सिंगटम से परेशान नहीं होतें – खैर चाहें ज़ैसे भी , पर आप एक विजेता है – आपको विजयी होने की बधाई
।”
” पर निमित्त तो आप हुए ।”
” अब कैसा लग रहा है ! नशे की दुनियां से बाहर निकलने के बाद ?”
” अच्छा – बहुत अच्छा – हर कोई खुश है – मैं खुश हूँ – पत्नी खुश है – बच्चें खुश है – जेब खुश है – वे दोस्त खुश है जिनसे मैं उधार मांगा करता था – वे दुश्मन भी खुश है जिससे दुश्मनी ही इस बात पर हुई थी कि लिया हुआ पैसा मैं लौटा नहीं पाता था – सर, पीने के चक्कर में जो पुश्तेनी जमीन-जायदाद मैं बेच चुका था – वो तो नहीं खरीद पाया –पर, अब कोई उधार मेरे ऊपर नहीं है – जिन्हें लगता था कि उनका ऋण डूब चुका है –
हम उन्हें भी पैसा लौटा चुके है – पत्नी के कुछ ज़ेवर भी गिरवी रखें हुए है – अगले तीन-चार महीनें में वह भी छुड़ा लूँगा – अभी भी हम लोग एक साहूकार के पास से– इसका रेहन रखा हुआ कंगन छुड़ाने आयें थे ।” – वह पत्नी की कलाई पर पहना हुआ सोने के कंगन की ओर इशारा करता हुआ पुनः बोला –” वहीं इसने आपसे मिलने की इच्छा व्यक्त की– मैं आपके बंगले पर गया हुआ था – आपके बेटे ने बताया कि आप डयूटी पर है – तो हम लोग यहाँ आपके ऑफिस में आ गये।”
वह इस तरह कातर भाव से बोल रहा था कि मेरे स्वयं का ह्रदय द्रवित होने लगा था।
उसकी पत्नी की आँखें फिर से भर आयी थी – भावावेश में उसने पति की एक बाँह पकड़ी जोर से भींच कर उससे चिपकती हुई बोली – ” भाई साहब, सबसे बड़ी बात ये हुई कि ये वापस पलट गयें – कोई गम्भीर बीमारी होने से पहले इन्होंने जिंदगी की तरफ रुख कर लिया। अब तो ये पीने-खाने वालों से भी दूरी बना कर रखते है ताकि किसी भी कमजोर पल में फिर से —–।”
” बहुत बढ़िया – जहर से बचने का एक तरीका ये भी है कि जहर से दूर रहो।
राय साहब ने जेब से रुमाल निकाला फिर अपना चेहरा व मुँह पोछने के बाद मेरी ओर देखें।
” राय साहब ये रियल स्टोरी है ?”– मैं विस्मित स्वर में पूछा।
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” तुम्हें क्या लगता है ?”
” आप कहानी क्यों सुनायेंगे – कहानी बनाना बुनना चुनना गढ़ना तो मेरा काम है – पर, सिर्फ आपके कहने मात्र से उसने नशे की दुनियां छोड़ दी ! पत्नी इतनी अभिभूत हुई कि आपके पैर पकड़ ली! कमाल है !– यकीन नहीं होता!”
“भई , उन दिनों एक जिद के तहत मैं लोगों को तम्बाकू छोड़ने के लिये प्रेरित करता था – मेरे समझानें पर कम से कम पचास लोगों ने तम्बाकू प्रोडक्ट का त्याग किया था – हालांकि , बाद के दिनों में कुछ लोगों ने दोबारा शुरू कर दी थी – पर, एक बात है कि जिसकी दुनियां बदल गयी हो वह किसी भी हद तक हम्बल हो सकता है – आभार प्रकट कर सकता है।”
“ये तो है – पर आप डॉ गुजर्र को कैसे जानतें है ?”
” भई, कभी मैं भी उस सब-इंस्पेक्टर की तरह ही था।”
“मतलब , आप भी शराब सिगरेट ——?”
” शराब तो नहीं – पर , सिगरेट तम्बाकू गुटका ज़र्दा – जब तक जागता रहता था तब तक मुँह में कुछ न कुछ रहता ही था।”
” कमाल है – मैंने तो कभी आपकों सिगरेट पीते – तम्बाकू चबाते नहीं देखा !”
” कैसे देखते ! दस साल से ज्यादा हो गये – तम्बाकू प्रोडक्ट छोड़े हुए और मुझसे तुम्हारी दोस्ती हुए पाँच साल ही हुए है।” – राय साहब मुस्करा कर बोले।
” कुछ अपने बारें में बतायें ?”
” आज नहीं , फिर कभी ।” – राय साहब उठतें हुए बोले।
मजबूरन मुझें भी उठना पड़ा – मैंने रिकॉर्डिंग को सेव किया – मोबाइल को जेब मे डाला – और लपकता हुआ राय साहब के पीछे-पीछे चलने लगा।
अरुण कुमार अविनाश