खामोशी चुभती है – कमलेश राणा : Moral Stories in Hindi

क्या हुआ अनु?? घर में इतनी शांति क्यों है बच्चे कहां गये?? कहीं दिखाई नहीं दे रहे।

अभी तो यहीं थे शायद तुम्हें देखकर पढ़ने बैठ गए होंगे। अब वो भी क्या करें आपके बाहर से आते ही वो आपसे लिपट कर प्यार जताने आते हैं तो बदले में उन्हें झिड़की ही मिलती है।

क्यों छाती पर चढ़े जा रहे हो कम से कम घर में आकर सुकून की सांस तो ले लेने दिया करो। चलो जाओ यहां से.. और आवाज नहीं सुनाई देनी चाहिए तुम दोनों की.. मेरी आंखों के सामने से दूर हो जाओ।

और बच्चे सहम कर दूसरे कमरे में किताबें खोलकर बैठ जाते चाहे उनका पढ़ने में मन लग रहा हो या नहीं पर व्यस्त होने का दिखावा करना वो भी सीख गए थे।

अब कबीर के घर में आते ही बच्चों का यही व्यवहार हो गया था उसके बुलाने पर भी वे बेमन से आते और चुपचाप बैठ जाते। उनके मन में यह डर घर कर गया था कि न जाने किस बात पर उनके पापा उखड़ जाएं और उनकी शामत आ जाए।

तुम्हारी बातें तो कभी – कभी मुझे भी आहत कर जाती हैं। यह ठीक है कि तुम दिनभर के थके – हारे घर आते हो वहां अलग – अलग तरह के लोगों से तुम्हें निपटना होता है लेकिन हम सब तो उस थकान को दूर करने के लिए दो प्यार भरी बातें कर तुम्हारे दिल को सुकून देना चाहते हैं

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पर ऐसा लगता है कि हमारा प्यार तुम्हें और अधिक झुंझलाहट से भर देता है। अब अगर तुम्हें यह पसंद नहीं है तो फिर मैं बच्चों को समझा दूंगी कि वे खुद ही तुम्हारे सामने कम से कम आया करें।

वैसे तो बच्चों का और तुम्हारा आमना – सामना होता ही कितना है? ऑफिस से घर आने के बाद तुम्हें शांति चाहिए होती है

और सुबह जब तुम सो रहे होते हो तभी वे स्कूल चले जाते हैं। जो थोड़ा समय मिलता है होमवर्क करने के बाद उसमें वो खेलें नहीं तो करें क्या? बाहर दोस्तों के साथ खेलना घूमना भी चाहें तो तुम्हारे हिसाब से सारी दुनियां ही खराब है।

अच्छा अब चुप होने का क्या लोगी तुम? सारा मूड खराब कर दिया.. घर में घुसे नहीं कि तुम अपनी रामायण ले कर बैठ जाती हो।

कुछ चाय – नाश्ता मिलेगा या उसके लिए भी बाहर चला जाऊं? क्या बीबी मिली है यार जरा भी परवाह नहीं है मेरी तो.. बस मैं और मेरे बच्चे.. पति तो बस कमाने की मशीन है रात – दिन गधे की तरह कमाता रहे और इनका भरना भरता रहे।

कबीर के इस तरह के व्यवहार से अनु और बच्चे धीरे – धीरे उससे खिंचे – खिंचे से रहने लगे थे। जब वह किसी काम के लिए उन्हें आवाज देता तभी वे आते और यंत्रवत काम करके वापस चले जाते।

जब तक कबीर ऑफिस में रहता सारा घर कहकहों से गुंजायमान रहता और उसके आते ही अजीब सी खामोशी पसर जाती।

उस दिन कबीर को एक फोटो फ्रेम टांगना था तो उसने रुद्र को आवाज दे कर बुलाया और बोला कि वो हाथ में कीलें पकड़ कर वहां खड़ा हो जाए और जब वह कील मांगे तो उसे पकड़ा दे। रुद्र ने तुरंत आज्ञा का पालन किया और खड़ा हो गया

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तभी उसका ध्यान पंखे के ऊपर रखे घोंसले पर चला गया। वहां चिड़िया अपने छोटे – छोटे बच्चों को चोंच से दाना खिला रही थी। बच्चे ची – ची करके जब अपनी चोंच मां की तरफ बढ़ाते तो रुद्र बड़े प्यार से उसे देखता।

वह इस दृश्य में इतना खो गया कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह यहां किस काम के लिए खड़ा है उसे तो होश तब आया जब पिता की गर्जदार आवाज उसके कानों से टकराई.. कहां ध्यान है तुम्हारा? एक काम नहीं होता तुमसे ढंग से.. हड़बड़ाहट में रुद्र के हाथ से कीलें छूटकर जमीन पर बिखर गईं।

तभी एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा जिससे उसका बालमन आहत हो गया कितना खुश था वह चिड़िया और उसके बच्चे को देखकर..

उनका प्यार उसे सम्मोहित कर रहा था। बच्चा ही तो था खो गया उस दृश्य में..ऐसा नहीं था कि पिता की नज़र बच्चे की नज़र के पीछे न गई हो अगर जरा सी भी सहृदयता होती उनमें तो एक मुस्कान उनके होठों पर भी खेल जाती।

रुद्र अपने कमरे में जा कर चादर में मुंह छुपाकर बहुत देर तक रोता रहा। उस दिन मां भी घर पर नहीं थीं जो उसे प्यार से आंचल में छुपा लेती।उसे यही समझ नहीं आ रहा था कि उसे किस कसूर की सजा मिली है यह..

उसके मन में बार – बार यही ख्याल आ रहा था.. पापा प्यार से भी तो बोल सकते थे न.. उसकी हिलकियां रुकने का नाम नहीं ले रही थी आखिर जब वह थक गया तो नींद ने उसे अपने आगोश में समेट लिया।

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एक दिन वह बच्चों के कमरे के पास से गुजरा तो देखा वो दोनों अपनी बातों में मस्त थे। परी कह रही थी.. भाई तुम्हें पता है मेरी सहेली के पापा बहुत अच्छे हैं वो बहुत प्यार करते हैं उसे और उसके भाई को.. उनके साथ खेलते भी हैं और उन्हें घुमाने भी ले जाते हैं.. हमारे पापा बहुत गंदे हैं बस सारा दिन डांटते ही रहते हैं।

ऐसा नहीं कहते परी वो हमारे पापा हैं। वो गुस्सा करते हैं तो क्या हुआ हमारी सारी जरूरतें भी तो वो ही पूरी करते हैं। हमारे लिए ही तो वो इतनी मेहनत करते हैं ऐसा कहते हुए रुद्र की आंखें छलक आई.. परी को तो उसने समझा दिया था पर कहीं न कहीं उसके मन में भी तो यह कसक थी कि उसके पापा भी औरों की तरह लाड़ जताएं।

यह सुनकर कबीर का दिल भर आया उसे इस बात पर बड़ा अफसोस हो रहा था कि क्यों कभी उसने अपनी पत्नी और बच्चों के जज्बातों को नहीं समझा और अकारण ही उनके दिल को चोट पहुंचाता रहा। वह जैसे ही अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ा तो देखा अनु उसके पीछे खड़ी सब सुन रही थी उसकी आंखों में भी आंसू थे।

अगले दिन जब कबीर ऑफिस से आया तो उसके हाथ में बच्चों की पसंद की आइसक्रीम थी उसने बड़े प्यार से बच्चों को आवाज दी। आइसक्रीम देखकर बच्चे खुशी से उछलने लगे पर फिर एकदम से खामोश हो गए। क्यों एकदम चुप क्यों हो गए तुम लोग अभी तो इतने खुश थे।

वो आप अभी हमको डांटने लगोगे न बस इसीलिए… कहते हुए परी भाग गई।

कबीर ने फिर अनु से आइसक्रीम काटकर लाने के लिए कहा और बोला चलो बच्चों आज हम कैरम खेलेंगे।

क्या सच पापा आप हमारे साथ खेलेंगे?? आज आप थके नहीं हैं क्या?

नहीं बेटा मैं कोई # पत्थरदिल नहीं हूं। अब मुझे समझ में आ गया है कि प्यार की जरूरत सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी है यह खामोशी चुभती है अब मुझे। घर में रौनक हो तो सारी थकान खुद ब खुद दूर हो जाती है।

ये.. ए ए ए.. मेरे पापा वर्ल्ड के बेस्ट पापा हैं कहते हुए बच्चे चहकने लगे और अनु प्यार से कबीर को देख रही थी। यह कबीर का वह रूप था जिसे देखने के लिए वह न जाने कब से राह देख रही थी।

#पत्थरदिल 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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