Moral Stories in Hindi
विनीता ठहरी ,सीधी -सादी ,वो जिस भी इंसान से मिलती, उस पर विश्वास कर लेती। अविश्वास का प्रश्न भी कहाँ उठता है ?जिनसे वो बात करती है ,वो या तो अपने ही जानने वाले या फिर दोस्त या रिश्तेदार ही तो होते हैं। कुछ दिनों पश्चात, उसके देवर का विवाह हुआ ,जेठानी होने के नाते विनीता ने ख़ुशी -ख़ुशी सभी कार्यों में सहयोग किया। नंदिता उसकी देवरानी गांव से आई थी ,वो सभी तौर -तरीके, रीति -रिवाज़ अच्छे से जानती थी। विनीता शहर में ही, रही पली -बढ़ी थी,इतना सब नहीं समझती थी। कोई चीज विनीता को समझ नहीं आती थी तो नंदिता से पूछ लेती थी। इसमें उसे कोई बुराई भी नजर नहीं आई।
नंदिता को अपनी ससुराल में रहते जब काफी दिन हो गए ,तब उसने जाना कि विनीता सासु माँ से बहुत डरती है ,डरे भी क्यों न ?उन्होंने कुछ दिन तो शांति पूर्वक दिन बिताये क्योकि नंदिता अभी नई -नई आई थी ,जब उसे वहां रहते बहुत दिन हो गए ,तब उसने जाना कि उसकी सास कैसे स्वभाव की हैं।
तब वो एक दिन विनीता से बोली -दीदी !आपकी हिम्मत है ,आप कितना सहन करती हैं ? मैं तो बिल्कुल भी बर्दाश्त न करूं। यही बात मैंने जब अपनी दीदी से बताई ,’तब वो कह रहीं थीं -जब तुम्हारी सास तुम्हारी जेठानी को इतना परेशान करती है ,तो कल को वो तुम्हें भी परेशान करेगी ,तुम दो हो और वो अकेली !तुम दोनों साथ रहोगी ,प्रेम से रहोगी तो तुम्हारी सास तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगीं ।दोनों एक -दूसरे के साथ खड़ी रहना,तुम मेरी कुछ भी बात मम्मी को मत बताना ,न ही मैं आपकी कोई बात उनसे कहूंगी।
ठीक है ,तुम कह रही हो तो ठीक ही कह रही होंगी ,तुम्हारी दीदी ने जो बताया है , विनीता ने अपनी देवरानी की बात सुनी और अपने कार्यो में व्यस्त हो गयी।
कुछ दिनों पश्चात ,विनीता ने महसूस किया, उसकी सास उससे और अधिक नाराज़ हो रही है ,आये दिन, किसी न किसी काम में कमी निकालती रहती हैं। एक दिन विनीता छत से कपड़े उतारने के लिए गयी थी जब वो नीचे आ रही थी ,उसने देखा, उसकी देवरानी सास को न जाने ,क्या -क्या पट्टी पढ़ा रही थी ?वो उन से कह रही थी – मम्मी जी ! दीदी !मुझसे कह रहीं थीं -नंदिता जब हम दोनों एक हो जायेंगे ,तो मम्मी जी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी ,हमें एक साथ रहना होगा। मम्मी जी ,अब आप ही बताइये !आप कोई हमारी दुश्मन हैं ,आप इस घर में जो कुछ भी कर रही हैं ,हमारे भले के लिए ही तो कर रहीं हैं। आप तो इस परिवार का स्तम्भ हैं ,किन्तु ये बात दीदी कहाँ समझेंगी ? वे ठहरीं शहर में रहने वाली खुले विचारों की किन्तु मैं तो जानती हूँ। एक माँ को, एक सास को, कितना सोच -समझकर चलना पड़ता है ?ये बात वो क्या जानें ? दूसरों के सामने बेचारी बनी रहती हैं ,जैसे आपने उन पर कितने अत्याचार किये हों ?और वैसे आपके प्रति उनकी सोच तो, मैंने आपको बता ही दी।
अपनी देवरानी की बातें सुनकर विनीता हतप्रभ रह गयी ,इसी ने तो मुझसे सब कहा था ,कि मेरी दीदी ने कहा है -हम साथ रहेंगे। आज उसे अपनी सास के क्रोध के बढ़ने का कारण पता चला, देवरानी की बातें सुनकर उसे बहुत दुःख हुआ।
शाम को जब नंदिता से मिली ,तब उसने पूछा -तुम मम्मी से क्या कह रहीं थीं ?मैंने तो तुमसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा था।
नहीं भाभी !आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है ,मैं तो बस मम्मी से कह रही थी -मम्मी, आप इस घर को संभालती हैं किंतु हम भी तो आपका उतना ही सहयोग करते हैं। आप अकेली कुछ भी नहीं कर पाएंगी। वो ये सब झूठ इतने विश्वास से बोल रही थी ,जैसे अबकि बार भी विनीता उसकी बातों पर विश्वास कर लेगी। अब तक विनीता समझ चुकी थी ,उसकी देवरानी” एक मुँह दो बात ”करती है। वो अपनी ज़बान से कभी भी पलट जाती है। ऐसे इंसान पर विश्वास करने से बेहतर है ,किसी दुश्मन की बात पर विश्वास कर लो !कम से कम उसका पता तो है ,कि वो हमारा दुश्मन है। अब विनीता ने उसकी बातों पर विश्वास करना छोड़ दिया।
✍🏻लक्ष्मी त्यागी